भारतीय संस्कृति को व्रत और त्यौहारों की संस्कृति माना जाता है। पूर्ण आस्था एवं विश्वास से जुड़े ये पर्व भारतीय स्त्रियों के जीवन का अभिन्न अंग है। ऐसा ही एक व्रत है करवा चौथ। इसमें महिलाएं अपने पति को परमेश्वर रूप समझकर उसके उत्तम स्वास्थ्य लंबी आयु तथा सुख समृद्धि के लिए देवी-देवताओं की उपासना तथा कई प्रकार के व्रत-उपवास व पूजा पाठ करती रहती है। करवा चौथ का व्रत भी पत्नी अपनी पति के स्वास्थ्य के लिए, उसकी लम्बी आयु के लिए रखती है। इस दिन सुहागिनें निर्जल व्रत रखकर अहोई देवी की पूजा करती हैं।
करवा चौथ के व्रत के समय सुहागिन औरतें सूर्य निकलने से पहले से लेकर शाम को चांद के दर्शन होने तक भूखी-प्यासी ही रहती हैं, बल्कि वे इस दिन सिलाई, कढ़ाई, कातना व बुनना आदि सब कुछ बन्द कर देती हैं।
करवा चौथ के नाम के अनुसार करवा का अर्थ मिट्टी का बर्तन है। शाम को जब चांद निकलता है तब व्रत रखने वाली सुहागिनें करवा में पानी डालकर उस पानी में चन्द्रमा को देखती हैं। कार्तिक मास की पूर्णिमा के बाद की चौथी तिथि को करवा चौथ कहा जाता है। इस दिन सुहागिन औरत सीधे रूप में चन्द्रमा के दर्शन करना अशुभ समझती है। इसलिए प्रत्येक सुहागिन औरत करवा में पानी डालकर उसको छत के ऊपर रखकर उस पानी में या फिर छलनी से चन्द्रमा को देखती है। औरतें ऐसा क्यों करती हैं इस बारे में हमारी पुराण कथाओं के आधार पर एक कथा इस प्रकार है-
शिवजी महाराज अपनी गुफा में बैठे समाधि में तल्लीन थे। माँ पार्वती सोलह श्रृंगार करके अपनी ललित नृत्य कला से पार्वती ने शिवजी की समाधि भंग कर दी। शिवजी ने पार्वती को शाप दे दिया तथा उनसे नाराज हो गये। तब पार्वती ने भूखी-प्यासी रहकर शिवजी महाराज को प्रसन्न किया।
दूसरी दंत कथा यह है कि इस दिन माता सीता व श्रीरामचन्द्र जी ने गृहस्थ जीवन अपनाया था।
करवा चौथ व्रत क्यों रखा जाता है इस बारे में भी दो कथाएं हैं। पहला यह है कि इन्द्रप्रस्थ नगर में एक पंडित के घर सात लड़के व एक लड़की थी। लड़की का नाम वीरवती था। छोटी उम्र में ही उसका विवाह एक सुदर्शन नाम के लड़के से कर दिया गया। पंडितजी के सातों लड़के पहले ही शादीशुदा थे। करवा चौथ वाले दिन वीरवती की सातों भाभियों ने व्रत रखकर उसे पूर्ण विधि से सम्पूर्ण किया। परन्तु वीरवती व्रत रखने के कुछ ही देर बाद भूख व प्यास के कारण तड़पने लगी। अकेली लड़की होने के कारण वह सारे परिवार की लाड़ली थी, जिस कारण उसके भाई उसकी यह दशा देखकर व्याकुल हो गये।
उन्होंने सोचा कि जब तक चन्द्रमा दिखाई देगा तब तक वीरवती प्राण त्याग देगी। इसलिए भाइयों ने उसकी जान बचाने के लिए एक वृक्ष पर जाकर दीपक जला दिया। उस दीपक को एक कांसे की परात के सामने करके चांद के आकार का घेरा बना दिया तथा अपनी बहन को कहा कि चांद निकल आया है। व्रत रखने वाली औरतें चांद के सीधे रूप से दर्शन नहीं करती, परन्तु वीरवती भूख के कारण बेहाल थी जिस कारण उसने दीपक के चांद को असली चांद समझकर उसके सीधे ही दर्शन करके उसको अध्र्य देकर अन्न पानी ग्रहण कर लिया। ऐसा करने से उसका व्रत खंडित हो गया और उस कारण उसका पति बीमार हो गया, अब वीरवती हमेशा अपने पति की बीमारी के कारण व्याकुल रहने लगी।
कुछ ही समय के बाद इन्द्र की पत्नी इन्द्राणी करवा चौथ का व्रत रखने के लिए देवलोक से भूलोक पर आई। वीरवती ने इन्द्राणी के पास जाकर अपने पति के स्वास्थ्य के लिए कोई उपाय पूछा। इन्द्राणी ने कहा कि तुमसे करवा चौथ का व्रत खंडित हो गया है। जिस कारण तुम्हारे पति बीमार हो गये हैं अगर तू अब पूर्ण विधि से करवा चौथ का व्रत रखे तो तेरे पति स्वस्थ हो सकते हैं। एक कथा के अनुसार यह भी कहा जाता है कि पांडवों के भाई अर्जुन एक बार नीलगिरि पहाड़ों पर चले गये, किसी कारण वह कई दिन वापिस नहीं आ सके। द्रोपदी को उनकी चिन्ता हुई द्रोपदी ने भगवान कृष्ण को यह सारी व्यथा सुनाई। भगवान कृष्ण ने द्रोपदी को करवा चौथ का व्रत रखने के लिए कहा। द्रोपदी द्वारा करवा चौथ का व्रत रखने के बाद अर्जुन सकुशल वापस आ गये। कहा जाता है कि उस दिन से ही करवा चौथ का व्रत रखा जाता है।
हमारे धर्मग्रंथों के अनुसार तो करवा चौथ का व्रत उपरोक्त दर्शाये गये कारणों के कारण रखा जाता है, परन्तु सामाजिक दृष्टि से करवा चौथ का महत्व इसलिए भी है कि घरेलू औरतें इस दिन सारे कामकाज तथा हर प्रकार की व्यस्तता को छोड़कर सोलह श्रृंगार कर अपने स्वप्नों को साकार करती है। *
(अंजनी सक्सेना- विभूति फीचर्स)
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