बांके बिहारी कॉरिडोर को लेकर पिछले कई सालों से जमकर विरोध हो रहा है। विरोध करने वाले लोग मंदिर में पूजा-पाठ करने वाला गोस्वामी समाज हैं।उन्होंने सख्त चेतावनी दी है कि अगर कॉरिडोर बना तो वे लोग अपने ठाकुरजी को लेकर यहां से पलायन कर जाएंगे। गोस्वामियों का कहना है कि मंदिर उनकी निजी संपत्ति है फिर इसमें सरकार दखल क्यों दे रही है? उन्होंने कॉरिडोर निर्माण के लिए ट्रस्ट बनाए जाने को लेकर सरकार की तरफ से जारी अध्यादेश को मानने से ही इनकार कर दिया है । इनका मानना है कि वृंदावन के मूल स्वरूप के साथ खिलवाड़ करने से कुंज गलियां नष्ट हो जाएंगी और वृंदावन की संस्कृति भी खत्म होगी।
बांके बिहारी लाल मंदिर के सेवायत आचार्य आनंद बल्लभ गोस्वामी का कहना है कि ठाकुर बांके बिहारी लाल जी आज भी कुंज गली होते हुए निधिवन जाते हैं अतः उनके मार्ग को नष्ट करने का दुस्साहस न करें।
इसके अलावा दुकानें हटाए जाने से रोजी- रोटी पर असर पड़ेगा तथा मनमाने तरीके से दुकानों के टेंडर पास किए जाएंगे।
*क्यों है कॉरिडोर की जरूरत?*
दरअसल वृंदावन के बांके बिहारी मंदिर में हर दिन हजारों की संख्या में श्रद्धालु दर्शन के लिए पहुंचते हैं। अगर वीकेंड हो या फिर नए नया साल या होली या रंग भरी एकादशी तो भक्तों की संख्या लाख के करीब पहुंच जाती है। मंदिर में जाने के लिए रास्ता छोटा होने की वजह से व्यवस्था बिगड़ जाती है। दरअसल मंदिर तक पहुंचने के लिए कई सौ साल पुरानी कुंज गलियों से होकर गुजरना पड़ता है। कई बार भीड़ में लोगों के दबने की खबरें सामने आती हैं,इसीलिए सरकार चाहती है कि व्यवस्था इस तरह की हो जिससे श्रद्धालुओं को कोई परेशानी न हो और ज्यादा से ज्यादा लोग दर्शन के लिए आ सकें।
*कॉरिडोर बनाने की आवश्यकता ही नहीं*
आचार्य आनंद वल्लभ गोस्वामी का मानना है कि इस समय बांके बिहारी जी मंदिर में जितने दर्शनाथी आ रहे हैं इससे तीन गुना से अधिक दर्शनार्थी यहां आ सकते हैं। इतनी जगह मंदिर के पास पूरे परिसर में है जिसमें भोग भंडार के बगल का स्थान, इसके बाद पाठशाला तथा पोस्ट ऑफिस एवं बांके बिहारी जी का चबूतरा। इन सब को मिलाकर यदि इतने ही परिसर को चौड़ा कर दिया जाए तो एक बार में लगभग 25000 यात्री यहां एक साथ आ सकते हैं। इसके अलावा इस्कॉन के बगल वाले परिक्रमा मार्ग को कम से कम फोर लाइन बना दिया जाए तथा एक्सप्रेस वे तक सीधे नेशनल हाईवे- 2 से जोड़ दिया जाए तो भीड़ जगह-जगह बंट जाएगी। यदि आसपास का अतिक्रमण हट जाए एवं ई रिक्शा स्टैंड, गाड़ी पार्किंग,और जगह-जगह शौचालय आदि बन जाए तो कॉरिडोर बनाने की आवश्यकता ही नहीं होगी, इससे लोगों को परेशानी का सामना भी नहीं करना पड़ेगा तथा जमीन अधिग्रहण के समय दिया जाने वाला मुआवजा भी नहीं देना होगा इससे सरकार को राजस्व की बचत होगी एवं वृन्दावन का वास्तविक स्वरूप भी बना रहेगा।
*क्या बांके बिहार मंदिर निजी संपत्ति नहीं?*
गोस्वामियों का कहना है कि मंदिर उनकी निजी संपत्ति है लेकिन रेवेन्यू डॉक्युमेंट्स के मुताबिक, ऐसा नहीं है। इन दस्तावेजों में यह जमीन मंदिर के नाम से है ही नहीं बल्कि गोविंददेव के नाम से दर्ज है। कॉरिडोर बनाने के लिए मंदिर के पास 100 दुकानों और 300 घरों का अधिग्रहण किया जाना है। हालांकि सरकार इसके लिए उचित मुआवजा देगी लेकिन लोग इसके लिए भी तैयार नहीं हैं।
*5 एकड़ जमीन पर बनेगा कॉरिडोर*
प्रस्तावित योजना के अनुसार बांके बिहारी मंदिर के पास करीब 5 एकड़ जमीन पर कॉरिडोर बनना है। मंदिर तक जाने के लिए तीन रास्ते बनाए जाएंगे। श्रद्धालुओं को वाहन खड़ा करने में परेशानी न हो इसके लिए 37 हजार वर्गमीटर में पार्किंग बनाई जानी है। हालांकि कॉरिडोर इस तरह से बनाया जाना है, जिससे मंदिर का मूल स्वरूप पहले जैसा ही रहे।
*कॉरिडोर के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका*
देवेंद्र नाथ गोस्वामी ने सुप्रीम कोर्ट में 19 मई को एक याचिका दायर कर कहा था कि प्रस्तावित पुनर्विकास परियोजना का कार्यान्वयन अव्यावहारिक है और मंदिर के कामकाज से ऐतिहासिक और परिचालन रूप से जुड़े लोगों की भागीदारी के बिना मंदिर परिसर के पुनर्विकास का कोई भी प्रयास प्रशासनिक अराजकता का कारण बन सकता है। उन्होंने अदालत के आदेश में संशोधन किए जाने की अपील की थी। दरअसल कोर्ट ने 15 मई को बांके बिहारी मंदिर कॉरिडोर को विकसित करने की यूपी सरकार की योजना का मार्ग प्रशस्त कर दिया था
सुप्रीम कोर्ट ने यूपी सरकार की तरफ से दायर जनहित याचिका पर इलाहाबाद हाई कोर्ट के 8 नवंबर, 2023 के उस आदेश को 15 मई को संशोधित किया था, जिसमें राज्य की महत्वाकांक्षी योजना को स्वीकार किया गया था, लेकिन राज्य को मंदिर की निधि का इस्तेमाल करने की अनुमति देने से इनकार कर दिया गया था।
*याचिका में क्या है गोस्वामी का दावा?*
वहीं देवेंद्र नाथ गोस्वामी की याचिका में दावा किया गया था कि कॉरिडोर बनाए जाने से मंदिर और उसके आसपास के पारिस्थितिकी तंत्र के धार्मिक और सांस्कृतिक चरित्र के बदलने की आशंका है, जिसका गहरा ऐतिहासिक और भक्ति संबंधी महत्व है। उल्लेखनीय है कि देवेंद्र नाथ मंदिर के संस्थापक स्वामी हरिदास गोस्वामी के वंशज हैं और उनका परिवार पिछले 500 सालें से मंदिर का प्रबंधन कर रहा है।उनका कहना है कि “मंदिर का ट्रस्ट पहले से बना हुआ है फिर नए ट्रस्ट बनाने की आवश्यकता क्यों ? बाहरी लोगों के न्यास में शामिल होने से उनका अनावश्यक हस्तक्षेप होगा जिसके चलते मंदिर के संचालन में परेशानी आयेगी । सैकड़ों सालों से चली आ रही ठाकुर बांके बिहारी जी की पूजा- अर्चना में बाधा डाली जाएगी जिसे हम किसी भी रूप में स्वीकार नहीं कर सकते हैं। सरकार जनहित के लिए जो भी कार्य करेगी उस में हमारा पूरा सहयोग एवं समर्थन रहेगा बशर्ते वृन्दावन की प्राचीन संस्कृति, परंपरा एवं इसके पुराने स्वरूप में किसी प्रकार की छेड़-छाड़ न हो।”
यहां के दुकानदारों को भी आशंका है कि जिस तरह से अयोध्या में जिस दुकान का मुआवजा 1.5 लाख रुपये मिला उसी साईज की दुकानों को 15 से 20 लाख रुपये में बेचा गया उसी तरह यहां भी लोगों को आशंका है कि बृजवासियों की अधिग्रहित जमीन का एक हिस्सा मॉल एवं आलीशान होटलें बनाने के लिए पूंजीपतियों को बेचा जा सकता है । यदि सरकार ऐसा करती है तो बृज वासी अपने आप को ठगा सा महसूस करने लगेंगे।
अब राज्य सरकार की जिम्मेदारी बनती है कि वह गोस्वामी समाज एवं स्थानीय लोगों को भरोसा दिलाए कि किसी को कोई परेशानी नहीं होगी तथा काम में ईमानदारी एवं पारदर्शिता बरती जाएगी तथा कॉरीडोर निर्माण से यहां आने वाले बांकेबिहारी के दर्शनार्थियों को सहजता और सरलता से अपने लाड़ले बांकेबिहारी के दर्शन हो पाएंगे।
(पूरन चन्द्र शर्मा-विनायक फीचर्स)



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