क्या फिर से उठेगी अलग ब्रज प्रदेश की मांग

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बांके बिहारी कॉरिडोर को लेकर ब्रजवासियों का विरोध बढ़ता जा रहा है। बृजवासियों का आरोप है कि वर्तमान सरकार बांके बिहारी कॉरिडोर के नाम पर यहां की संस्कृति,परंपरा एवं प्राचीन धरोहर को मिटाने पर तुली हुई है। उनका कहना है कि ब्रज की प्राचीन धरोहरों को नष्ट किया जाना हमारे लिए पीड़ादायक है। ब्रज की मान ,मर्यादा और परंपराओं को जीवंत रखने के लिए हम स्वयं अपनी बृज सरकार बनाने पर विचार कर रहे हैं। ब्रजवासियों के बढ़ते विरोध और ब्रज क्षेत्र की उपेक्षा से नाराज लोग पृथक ब्रज प्रदेश बनाए जाने की मांग करने लगे हैं।

भारत में राज्यों का गठन मुख्य रूप से भाषाई और सांस्कृतिक एकरूपता के आधार पर किया गया है। 1956 में राज्य पुनर्गठन अधिनियम के माध्यम से, भारत को 14 राज्यों और 6 केंद्र शासित प्रदेशों में विभाजित किया गया, जिसका मुख्य उद्देश्य प्रशासनिक दक्षता और क्षेत्रीय पहचान को बढ़ावा देना था l
भाषाई और सांस्कृतिक आधार पर राज्यों का पुनर्गठन एक महत्वपूर्ण सुधार था जो देश की स्वतंत्रता के बाद हुआ।
इसे 1956 के राज्य पुनर्गठन अधिनियम द्वारा चिह्नित किया गया था, जो भाषाई आधार पर राज्य की सीमाओं के एक बड़े सुधार की प्रतिक्रिया थी। यह अधिनियम भाषाई प्रांत आयोग (धर आयोग) के बाद आया, जिसने पहले राज्यों को विभाजित करने के आधार के रूप में भाषा को अस्वीकार कर दिया था। हालाँकि, जनता की माँगों पर , विशेष रूप से दक्षिण भारत में 1953 में राज्य पुनर्गठन आयोग की नियुक्ति की गई। 31 अगस्त 1956 को इस अधिनियम ने आंध्र प्रदेश, बॉम्बे, केरल और अन्य जैसे नए राज्यों का निर्माण किया। भारत को स्वतंत्रता मिलने के बाद बेहतर शासन और प्रशासनिक ढांचे की आवश्यकता थी। राज्यों के गठन में वित्तीय, आर्थिक और भाषाई पहलुओं को ध्यान में रखा गया।
1956 का राज्य पुनर्गठन अधिनियम भारत के इतिहास में एक महत्वपूर्ण क्षण था, लेकिन इसने पुनर्गठन प्रक्रिया के अंत का संकेत नहीं दिया। बाद में, क्षेत्रीय पहचान और प्रशासनिक आवश्यकताओं को समायोजित करने के लिए कई नए राज्य और केंद्र शासित प्रदेश स्थापित किए गए।
तेलंगाना राज्य के गठन के बाद पश्चिमी उत्तर प्रदेश को ब्रज प्रदेश घोषित करने की मांग ने जोर पकड़ा था। ब्रज प्रदेश समर्थकों का कहना था कि समान संस्कृति वाले आगरा एवं अलीगढ़ मंडल के जिलों के अलावा भरतपुर संभाग तथा ग्वालियर संभाग के चार-चार जिलों को इसमें शामिल किया जाना चाहिए। इससे क्षेत्र का बहुमुखी विकास होगा क्योंकि उत्तर प्रदेश इतना बड़ा है कि सभी जगह समान रूप से विकास कार्य हो पाना संभव नहीं है। वैसे भी पूर्व में मायावती सरकार ने पश्चिमी उत्तर प्रदेश बनाए जाने का प्रस्ताव केंद्र सरकार को भेजा था।
ब्रज डेवलपमेंट कौंसिल के तत्कालीन अध्यक्ष डा. केएस राणा का कहना था कि ब्रज प्रदेश में आगरा मंडल के आगरा, मथुरा, फीरोजाबाद, अलीगढ़ मंडल के हाथरस, अलीगढ़, एटा व कासगंज, भरतपुर संभाग के भरतपुर, धौलपुर, करौली व अलवर तथा ग्वालियर संभाग के भिंड, मुरैना व ग्वालियर को शामिल किया जाए। कौंसिल ने बैठक बुलाकर इस मुद्दे को और व्यापक स्वरूप देने के लिए आंदोलन करने जोर दिया। कौंसिल के तत्कालीन महासचिव अशोक चौबे एडवोकेट और दुर्गविजय सिंह भैया ने ब्रज प्रदेश का पुरजोर समर्थन किया। उनका कहना था कि यह समय की मांग है कि छोटे राज्यों का गठन हो। अलग ब्रज प्रदेश की मांग 1969 में भरतपुर की रॉयल असेंबली में भी उठी।
छत्तीसगढ़, झारखंड आदि कुछ क्षेत्रों ने महसूस किया कि आर्थिक विकास के लिए अलग राज्य का दर्जा आवश्यक है क्योंकि मौजूदा राज्य सरकार क्षेत्र की विकास आवश्यकताओं को पर्याप्त रूप से पूरा करने में असमर्थ थी। उत्तराखंड जैसे राज्यों को बेहतर प्रशासनिक व्यवहार्यता और शासन सुनिश्चित करने के लिए बड़े राज्यों (इस मामले में उत्तर प्रदेश) से अलग किया गया। जम्मू और कश्मीर का मामला एक प्रमुख उदाहरण है जहां सुरक्षा मुद्दों ने राज्य को दो केंद्र शासित प्रदेशों – जम्मू और कश्मीर, और लद्दाख में पुनर्गठित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई ।
भारत सरकार ने राज्य पुनर्गठन के प्रश्न का अध्ययन करने और उसके लिए सिफारिशें देने के लिए कई आयोग और समितियाँ गठित की हैं। जून 1948 में धर आयोग का गठन किया गया ,जिसके एसके धर, जेएन लाल, और पन्ना लाल सदस्य थे। आयोग ने क्षेत्र में विविध जातीय और भाषाई समूहों को समायोजित करने के लिए दो नए प्रांतों असम और नेफा की स्थापना का प्रस्ताव रखा । इसका उद्देश्य जनजातीय समुदायों की विशिष्ट आवश्यकताओं और आकांक्षाओं को पूरा करना था।
जेवीपी समिति का गठन दिसंबर 1948 में हुआ ,जिसके जवाहरलाल नेहरू, वल्लभभाई पटेल, और कांग्रेस अध्यक्ष पट्टाभि सीतारमैया सदस्य थे।
राज्य पुनर्गठन आयोग का गठन 1953 में हुआ ,जिसके न्यायमूर्ति फज़ल अली, सरदार केएम पणिक्कर, और हृदय नाथ कुंजरू सदस्य थे। आयोग ने राज्य पुनर्गठन के आधार के रूप में भाषा को स्वीकार किया। राज्य पुनर्गठन के लिए राष्ट्र की एकता और सुरक्षा,भाषाई और सांस्कृतिक एकरूपता,वित्तीय,आर्थिक और प्रशासनिक विचार आदि कारकों के आधार पर 16 राज्यों और 3 केन्द्र प्रशासित प्रदेशों की स्थापना की वकालत की । इन सिफारिशों के आधार पर राज्य पुनर्गठन अधिनियम 1956 पारित किया गया, जिससे 14 केंद्र शासित राज्य और 6 केंद्र शासित प्रदेश बनाए गए । एसआरसी 1956 और उसके बाद के अधिनियम ने भारत में राज्य संगठनों के लिए मार्ग प्रशस्त किया। वर्तमान में विभिन्न क्षेत्र अलग राज्य या पुनर्गठन की मांग जारी रखे हुए हैं l उत्तर प्रदेश को पूर्वांचल, पश्चिम प्रदेश, बुन्देलखण्ड और अवध प्रदेश जैसे छोटे राज्यों में विभाजित करने के प्रस्तावों पर चर्चा की गई। पश्चिमी राजस्थान को मरु प्रदेश बनाने की मांग की गई l वर्तमान स्थिति को देखते हुए उत्तर प्रदेश ,राजस्थान एवं मध्य प्रदेश के ब्रज भाषाई क्षेत्रों को मिला कर भाषाई एवं सांस्कृतिक एकरूपता के आधार पर ब्रज प्रदेश के गठन की मांग की जा रही है।
अलग ब्रजप्रदेश की मांग करने वालों का कहना है कि आज भी ब्रज मंडल पूरी तरह से उपेक्षित है। ब्रज के हृदय स्थल मथुरा- वृन्दावन में बिज़ली की व्यवस्था पूरी तरह से चरमरा गई है जिसके चलते स्थानीय लोगों के अलावा मथुरा- वृन्दावन आने वाले श्रद्धालुओं को भी भारी परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है। यहां के अधिकतर होटलों एवं यात्री निवास में एसी रूम में एसी ही नहीं चलता है, कारण बिजली की आपूर्ति सही ढंग से नहीं होती है। यही नहीं नगर निगम द्वारा नियमित रूप से नालियों की सफाई नहीं किए जाने के कारण मामूली बरसात होने पर सडकों पर पानी जमा हो जाता है जिसके चलते यातायात व्यवस्था बुरी तरह से प्रभावित हो जाती है। मथुरा रेल्वे स्टेशन एवं बस स्टैंड से यात्रियों को अपने गंतव्य स्थल पर पहुंचने पर भारी परेशानियों का सामना करना पड़ता है। जल जमाव के कारण यातायात व्यवस्था पूरी तरह से ठप्प ही हो जाती है l इसके अलावा नियमित सफाई न होने के कारण बीमारी फैलने का खतरा बना रहता है। कई इलाकों में लोग पानी खरीद कर पी रहे हैं। इन्हीं कारणों से बृज वासियों में नाराजगी देखने को मिल रही है और वे अपने आप को उपेक्षित महसूस करने लगे हैं। और इसी कारण एक बार फिर से अलग ब्रज प्रदेश की मांग की सुगबुगाहटें तेज होने लगी हैं। *

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(वेणुगोपाल शर्मा-विनायक फीचर्स)

(विनायक फीचर्स)*

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