विजयी विश्व तिरंगा प्यारा

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(चारु सक्सेना-विभूति फीचर्स)
दुनिया में प्रत्येक देश का अपना-अपना राष्ट्रीय ध्वज होता है। भारत का भी अपना राष्ट्रीय ध्वज तिरंगा है।
सन् 1931 में सर्व भारतीय कांग्रेस ने राष्ट्रीय ध्वज निश्चित करने के लिए एक कमेटी बनाई, जिसमें पंडित जवाहर लाल नेहरू के अलावा सरदार वल्लभ भाई पटेल, मौलाना अबुल कलाम आजाद, मास्टर तारा सिंह, डाक्टर पट्टाभि सीतारमैया, डॉ. हार्डिकर तथा काका कालेलकर सदस्य थे। हालांकि सबसे पहले श्रीमती कामा ने विदेश में एक कान्फ्रेंस में अपना बनाया हुआ एक तिरंगा भारत के झंडे के रूप में प्रस्तुत किया था, परंतु भारत का राष्ट्रीय ध्वज बनाने की कहानी प्रसिद्ध आयरिश नेत्री ‘मिसेज एनी बेसेंट’ से शुरू होती है। उन्होंने यह सुझाव दिया था कि भारत का झंडा आधा हरा तथा आधा लाल हो, ताकि इसमें हिंदू व मुसलमान दोनों को बराबर का स्थान दिया जा सके।
इसके बाद आंध्रप्रदेश में सर्व भारतीय कांग्रेस कमेटी की मीटिंग हुई। इस मीटिंग में लोगों ने तरह-तरह के कागज के झंडे के नमूने प्रस्तुत किए।

तब महात्मा गांधी जी ने यह सुझाव दिया कि इस झंडे में तीन रंग होने चाहिए। लाल रंग हिंदुओंं का, हरा रंग मुसलमानों का तथा सफेद रंग इन दोनों की उदारता का प्रतीक हो तथा इनके बीच में चरखे का चिन्ह होना चाहिए। महात्मा गांधी जी द्वारा दर्शाये गये झंडे का प्रचार सारे देश में बहुत हुआ, परंतु इसे कांग्रेस द्वारा स्वीकृति नहीं मिली। कांग्रेस की स्वीकृति प्राप्त करने के लिए एक कमेटी नियुक्त की गई। इस कमेटी में काका कालेलकर ने यह सुझाव दिया कि झंडे के चारों तरफ लाल रंग हो तथा इसमें हरा-सफेद रंग भी हो तथा सफेद रंग के बीच में ही चरखा बनाया जाए। पंडित जवाहर लाल नेहरू ने काका कालेलकर का सुझाव नामंजूर कर दिया तथा महात्मा गांधी द्वारा दिये गये सुझाव वाला झंडा ही पसंद किया, परंतु साथ ही पंडित जवाहरलाल नेहरू ने यह सुझाव दिया कि सफेद पट्टी ऊपर होने के बजाय बीच में होनी चाहिए, क्योंकि अगर सफेद पट्टी ऊपर हुई तो आकाश के साथ एक रूप हो जाएगी, तथा स्पष्ट नजर नहीं आएगी।

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कुछ सदस्यों ने यह भी सुझाव दिया कि राष्ट्रीय झंडे पर चरखे का चिन्ह नहीं होना चाहिए परंतु इसका विरोध काका कालेलकर ने किया। उन्होंने कहा कि राष्ट्रीय झंडे के ऊपर बंदूक, तलवार, शेर, घोड़ा आदि चिन्ह नहीं होने चाहिए। क्योंकि चरखा मनुष्य को कपड़े प्रदान करता है, इसलिए चरखे का चिन्ह होना जरूरी है। मौलाना आजाद ने यह सुझाव दिया कि चरखे की जगह कपास का फूल होना चाहिए जो खादी का सूचक होगा। इस पर श्री काका कालेलकर ने कहा कि कपास का फूल ईश्वर की देन है, चरखा मनुष्य जाति की कोशिशों का सूचक है। यह प्रगति का चिन्ह है। अहिंसा का प्रतीक है। फिर कुछ दूसरे वर्गों के प्रतीक के रूप में कुछ और रंग शामिल करने का प्रश्न उठा। अंत में केसरिया रंग स्वीकार किया गया तथा चरखे का चिन्ह सर्व सम्मति से मंजूर हो गया। सर्व भारतीय कांग्रेस कमेटी ने भी इस कमेटी के फैसले पर भरपूर बहस की। यह फैसला किया गया कि तिरंगा ध्वज बहुत दिनों से चला आ रहा है तथा राष्ट्र उसे पहले ही भावात्मक स्वीकृति दे चुका है, ‘झंडा गीत’ में भी तिरंगा शब्द आता है इसलिये राष्ट्रीय झंडा तिरंगा ही होना चाहिए, तथा बीच में सफेद रंग में ही चरखे का चिन्ह हो तथा सिखों को खुश करने के लिए यह निश्चित किया गया कि लाल रंग की जगह नारंगी रंग रखा जाएगा।
पंडित जवाहरलाल नेहरू ने यह सुझाव दिया कि इन रंगों के किसी धर्म या जाति से संबंधित न माना जाये, बल्कि ये राष्ट्रीय गुणों के प्रतीक होना चाहिए। महात्मा गांधी ने पंडित जवाहर लाल नेहरू का यह सुझाव मान लिया। अंत में हरा, सफेद तथा नारंगी तीन रंगों का झंडा ही मंजूर किया गया तथा सफेद रंग में चरखे का चिन्ह बनाने का फैसला किया गया। *(विभूति फीचर्स)*

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