कोट भ्रामरी मंदिर में प्रसिद्ध संत नमन कृष्ण महाराज करेंगे श्रीमद् भागवत कथा अलौकिक शक्ति का केन्द्र है माँ का यह दरबार

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उत्तराखंड के प्रसिद्ध शक्ति स्थल कोट भ्रामरी भगवती मंदिर में श्रीमद् भागवत कथा दस अक्टूबर से आरंभ होने जा रही है यहां कथा का वाचन प्रसिद्ध कथा वाचक धर्म मार्तण्ड नमन कृष्ण महाराज जी करेगें भागवत किंकर के नाम से प्रसिद्ध नमन कृष्ण महाराज जी आधात्म जगत की विराट विभूति है देवभूमि उत्तराखण्ड के प्रसिद्ध सांस्कृतिक गाँव मल्ला जोशी खोला में जन्में श्री नमन कृष्ण महाराज वर्तमान समय में परमहंस कुटी, सिद्धार्थ सिटी, रामपुर रोड़ हल्द्वानी में निवास करते हैं वनस्पति शास्त्र से एमएससी के अलावा भारतीय प्राचीन इतिहास एवं दर्शन शास्त्र में भी आपने डिग्री हासिल करके ज्ञान का अद्भूत प्रकाश बिखेरा है भारत वर्ष के प्राचीन व प्रसिद्ध मठ हाथियाराम मठ काशी में
गुरूदेव परम पूज्य अनंतानंत श्री विभूषित हथियाराम पीठाधीश्वर आचार्य महामंडलेश्वर नैष्ठिक ब्रह्मचारी परमश्रेष्ठ यति सम्राट ब्रह्मलीन पावाहारी बालकृष्ण यति जी महाराज जी से दीक्षा लेकर सनातन धर्म की ध्वज पताका फहराकर निरन्तर लोगों को धर्म मार्ग की ओर प्रेरित कर रहे है धर्म पथ पर अग्रसर श्री नमन कृष्ण महाराज को अखिल भारतीय विद्वत परिषद-काशी से सन् 2021 में “धर्म-मार्तण्ड” की उपाधि से अलंकृत किया हैं। इससे पूर्व सन् 2016 में धर्म सम्राट स्वामी करपात्री जी महाराज ने इन्हें “गौ रत्न पुरस्कार” से अलंकृत किया। सन् 2015 में हिंदी साहित्य संस्था -अरुणोदय से विशिष्ट साहित्य सेवा सम्मान से विभूषित होनें का गौरव भी प्राप्त कर चुकें हैं।
आध्यात्मिक चिंतन के साथ-साथ साहित्य में विशेष रुचि रखने वाले धर्म मार्तण्ड श्री नमन कृष्ण महाराज जी द्वारा अब तक अनेकों पुस्तकें प्रकाशित की गई है जिनमें मेरे सद्गुरुदेव(गुरूदेव भगवान के साथ वार्तालाप एवं अनुभूतियों पर पुस्तक),
आग का दरिया” (काव्य संग्रह)
“मेरा मैं और तेरा तू”- काव्य संग्रह ग्रन्थ काफी लोकप्रिय है
आत्मतत्व- एक युगधर्म नामक पत्रिका का सम्पादन एवं लेखन कार्य कर प्रकाशित करने का कार्य भी आपके द्वारा किया गया है। आगे”ये आकाश कुछ कहता है”, मेरा मन तीर्थ”, “मुक्त गगन के गीत”, पुस्तकें प्रकाशनाधीन है
कुल मिलाकर आध्यात्मिक जगत की विराट विभूति श्री नमन कृष्ण महाराज जी इन दिनों उत्तराखंड के प्रसिद्ध तीर्थ स्थल कोट भ्रामरी माँ के दरबार में श्रीमद् भागवत कथा का वाचन कर रहे हैं इस क्षेत्र में उनके द्वारा कथा का वाचन किए जाने से भक्तजनों में विशेष उत्साह है और माँ का यह दरबार परम पूजनीय है आइए जानते हैं प्रसंगवश इस दरबार की महिमा का संक्षिप्त वर्णन

*🌹अलौकिक स्वरूप है कोट भ्रामरी भंवर बनकर माँ ने किया राक्षसों का विनाश*

देवभूमि उत्तराखण्ड के पग-पग पर आध्यात्मिक तीर्थ स्थलों की एवं पौराणिक महत्व के देवालयों की भरमार है। यहां की दिव्य वादियों में पहुंचते ही मानव के मन एवं मस्तिष्क में एक अलौकिक शांति का एहसास होने लगता है। सांसारिक मायाजाल में भटका मानव यदि इन देवालयों की शरण में आता है तो समस्त व्याधियों व संतापों से मुक्ति पा जाता है। हमारे देश के महान ऋषि-मुनियों ने सदियों से हिमालय की गोद में बसे उत्तराखण्ड को अपनी तपस्थली के रूप में चुनकर संसार में ज्ञान का जो प्रकाश बिखेरा वह देवभूमि उत्तराखण्ड की महिमां का ही सार है।
इन्हीं दिव्य महिमाओं में शक्तिपीठ व शिवालयों की भरमार है। यहां शिव के साथ-साथ शक्ति को पूजे जाने का विधान सर्वविदित है। शिवालयों की श्रृंखला में पाताल भुवनेश्वर, यमकेश्वर, हटकेश्वर, नागेश्वर, शैलेश्वर, भृगेश्वर, कोटेश्वर, मोटेश्वर, मर्णकेश्वर, मुश्तेश्वर, गुप्तेश्वर, मूसलेश्वर, बागेश्वर, जागेश्वर, नर्मदेश्वर, बैजनाथ, पातालेश्वर, बैतालेश्वर सहित असंख्य शिव मंदिर देवभूमि में मौजूद है। देवी शक्तिपीठों की श्रृंखला में श्री महाकाली शक्तिपीठ, कोकिला मैया का दरबार, पूर्णागिरी शक्तिपीठ, चामुण्डा मंदिर, शीतला मंदिर, गर्जिया मंदिर, नन्दा देवी, नैना देवी, भद्रकाली, कछार देवी, दूनागिरी मैया, पाषाण देवी, हंसा देवी, ग्यारह देवी, त्रिपुरा देवी, चण्डिका देवी सहित अनेकों मंदिर उत्तराखण्ड के मानस खण्ड में विराजमान हैं। शक्तिपीठों की इन्हीं श्रंखलाओं में माता कोट भ्रामरी का अद्भुत दरबार सदियों से अपनी महिमा का बखान भक्तों के लिए समेटे हुए है। पर्यटन एवं तीर्थाटन की दृष्टि से यह अलौकिक दरबार विश्व केमानचित्र में अपनी पहचान से कोसों दूर हैं। धर्म का लाबादा ओढ़े धर्म प्रचारकों ने भी अपने निहित स्वार्थों के चलते माता की महिमां का बखान करना गंवारा न समझा।
उत्तराखण्ड सरकार की पर्यटन एवं तीर्थाटन नीति पर सवालिया निशान लगाता यह दिव्य दरबार जगत माता की ओर से भक्तों के लिए अनुपम उपहार है। कहा जाता है कि माता कोटभ्रामरी के दरबार में जो भी भक्तजन आराधना के श्रद्धा पुष्प अर्पित करता है उससे रोग, शोक, संताप एवं विपदाओं का हरण हो जाता है। यहां पर मांगी गई मनौती कभी भी निष्फल नहीं जाती है। यही कारण है कि क्षेत्र के भक्तजन बड़ी श्रद्धा व आस्था के साथ मां के दरबार में आकर शीश नवाते हैं तथा इच्छा पूर्ण होने के पश्चात पुनः मंगल कामना के साथ बारम्बार यहां आने की इच्छा जताते हैं। इस देवी की पूजा मूल शक्ति पीठ के रूप में विराजमान होना बताया जाता है।
कत्यूरियों की अधिष्ठात्री कुल देवी भगवती भ्रामरी चंदवंशियों की भी कुल देवी रही है। शक्ति रूप में स्थित इस देवी दरबार महात्म्य के बारे में कहा जाता है कि पूर्व में यहां पर केवल माता भ्रामरी की पूजा अर्चना होती थी, लेकिन अब वर्तमान में माँ भ्रामरी के साथ भगवती नन्दा की पूजा का भी विधान है। इस दरबार में अनेकों देवी देवताओं की मूर्तियां स्थापित हैं लेकिन प्रमुख रूप से माँ कोट भ्रामरी एवं माँ नन्दा की ही पूजा अर्चना होती है। शक्ति के रूप में विराजमान दोनों दिव्य शक्तियों को अलग-अलग प्रकार से पूजा जाता है। भगवती माँ भ्रामरी देवी की पूजा अर्चना का मेला चैत्र मास की शुक्ल अष्टमी को आयोजित होता है तथा मां नन्दा की पूजा अर्चना व मेला भाद्र मास की शुक्ल अष्टमी को आयोजित होता है। कहते हैं कि माँ नन्दा की प्रतिमा पहले यहां से करीब आधा किलोमीटर दूर झालामाती नामक गांव में स्थित थी जिसे बाद में आज से लगभग 155 वर्ष पूर्व देवी की प्रेरणा से पुजारियों ने भ्रामरी कोट मंदिर में ही प्रतिष्ठापित कर दिया था। तभी से दोनों महाशक्तियों की पूजा अर्चना कोट भ्रामरी में ही सम्पन्न होती आ रही है।
माता कोट भ्रामरी के मंदिर का निर्माण कब व किसने किस प्रकार किया, यह आज तक रहस्य का विषय बना हुआ है। प्रसिद्ध कवियों, साहित्यकारों, लेखकों ने अपने-अपने शब्दों से इस दिव्य दरबार की महिमा का बखान किया है। इसी क्रम में बताते है प्रसिद्ध साहित्यकार जय शंकर प्रसाद द्वारा रचित ‘ध्रुव स्वामिनी’ नाटक ग्रंथ में चंद्र गुप्त का अपनी सेना की टुकड़ी के साथ इस क्षेत्र में रुकने का उल्लेख मिलता है। यहां यह बताते चलें कि किंवदंतियों के अनुसार नेपाल की तराई से हिमालय के बहि मार्ग से होते हुए अंन्तर हिमालय की बीच की पेटी में हिमाचल प्रदेश तक फैले अपने साम्राज्य की विजय पताका फहराये रखे जाने हेतु कत्यूरियों ने सामरिक महत्व के मुख्य-मुख्य स्थलों पर मजबूत किलों का निर्माण भी कराया। इन्हीं किलों में कत्यूर घाटी के डंगोली में स्थित प्रमुख किला कोट मंदिर भी रहा है। कहा जाता है कि काशगर व खेतान के दर्रों से भारत की सीमा में प्रवेश करने वाले लकुलीश, खस, कुषाण आदि वंशावलियों के साथ-साथ कटोर वंशावली के कबीले भी भारत में प्रविष्ट हुए। कटोर वंशावली ही कालांतर में कत्यूर नाम से प्रसिद्ध हुई। इसी कत्यूर जाति के राजाओं ने उत्तराखण्ड के विभिन्न महत्व वाले स्थलों में अपने साम्राज्य को सुचारू रूप से संचालित करने के लिए कोट व किलो का निर्माण किया।

माँ भ्रामरी देवी के साथ पौराणिक दैत्य अरुण राक्षस एवं शुंभ-निशुंभ के संहार करने की कथा जुड़ी है। इस संबंध में कहा जाता है कि इस घाटी में विशाल जलाशय था जिससे होकर अरुण नामक राक्षस इस जलाशय के भीतर से अपने राज्य में प्रवेश करता था। बताते हैं कि वह राक्षस बहुत ही बलशाली व खूंखार प्रकृति का था। उसे वरदान था कि वह न तो किसी देवता न ही किसी मनुष्य न ही किसी शस्त्र से मारा जा सकता था। इस वरदान के पाते ही उसके अहंकार व अत्याचार का बीज पनपने लगा तथा उसके संताप से तीनों लोक हाहाकार मय हो उठे। त्रस्त देवताओं व मनुष्यों ने भगवान शिव की आराधना की। शिव इच्छा से आकाशवाणी हुई कि इस महा दैत्य के संहार के लिए वैष्णवी का अवतरण होगा। वही अरुण नामक महादैत्य का बध करेगी। तत्पश्चात आकाशवाणी सत्य सिद्ध हुई। महामाया जगत जननी के अलौकिक प्रताप से समूचा आकाशमंडल बड़े-बड़े भ्रमरों से गुंजायमान होकर डोल उठा। यही बड़े-बड़े भ्रामर जलाशय मार्ग से होते हुए अरुण नामक महादैत्य के राजमहल में जा पहुंचे तथा अपने विष भरे दंशों से उस पर प्रहार करने लगे। भगवती के इसी भ्रामरी रूप से अरुण नामक महा दैत्य का अन्त किया तथा सभी प्राणियों को इस आततायी के आंतक से मुक्त कराया। तभी से इस महाशक्ति को भ्रामरी नाम दिया गया। यह शक्तिपीठ यंत्र के ऊपर पूर्ण विधि विधान से स्थापित है। वैष्णवी का नारायणी रूप होने से यहां पर नारायण व लक्ष्मी की पूजा अर्चना भी बड़े ही श्रद्धा भाव से की जाती है।यहां पर पूजित माँ नन्दा के संदर्भ में कहा जाता है कि पूर्व काल में दानवपुर जिसे कालांतर में दानपुर के नाम जाना जाता है, इस क्षेत्र के मूल निवासी यक्ष थे। श्रांण्डिपुर का दानव राजा वाणासुर था। उसी दानपुर के राजा शुंभ-निशुंभ का बध माता नन्दा ने किया। इसी कारण भगवती नन्दा का नाम शुंभ-निशुंभ मर्दिनी भी पड़ा। माँ नन्दा ने दुर्गा का रूप धारण कर महिषासुर का वध किया, उससे पूर्व भगवती इस दैत्य को थकाने के लिए जंगल में केले के पेड़ की ओट में छिप गयीं। तभी से नन्दा देवी की पूजा केले के पेड़ के रूप में की जाती है।
जनपद बागेश्वर के गरुड़ नामक स्थान के समीप स्थित माँ कोट भ्रामरी का दरबार एक ऐसा दरबार है जहां वर्ष भर स्थानीय श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है। वैसे देवभूमि की गरुड़ घाटी आध्यात्मिक रूप से पुराणों में विशेष रूप से उल्लेखित है। शिव व शक्ति की क्रीड़ा स्थली के रूप में पूजित यह क्षेत्र भगवान विष्णु की भक्ति के लिए भी पूजा जाता है। इस दरबार के आसपास अनेक श्रद्धामय स्थल पर्यटकों एवं श्रद्धालुओं को बरबस ही अपनी ओर तीर्थाटन के रूप में आज भी यह क्षेत्र कोई विशेष पहचान पर्यटक मानचित्र में नहीं बना पाया है।

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