शिव जटाओं से प्रकट इस देवी का वास उत्तराखण्ड़ में

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भद्रकाली(बागेश्वर)  मंगलों का मंगल करने वाली,मंगलों को मंगलता का वैभव प्रदान करने वाली,वर देने वालों को भी वरदान देने वाली,सर्व शत्रुविनासिनी,सर्व सुखदायिनी,सर्व सौभाग्यदायिनी,लोक कल्याणकारिणी,सर्व स्वरुपा, कल्याणी माता श्री भद्रकाली की महिमां अपरम्पार है,आदि व अनादि से रहित भगवती भद्रकाली की कृपा से ही समस्त चराचर जगत की क्रियायें सम्पन्न होती है।जय को भी जयता प्रदान करने वाली जंयती मंगला काली,भद्रकाली कपालिनी।,दुर्गा क्षमा शिवा धात्री स्वाहा स्वधा नमों अस्तुति ते।। जनपद बागेश्वर की पावन भूमि पर कमस्यार घाटी में स्थित माता भद्रकाली का परम पावन दरवार सदियों से आस्था व भक्ति का अलौकिक संगम है।कहा जाता है,कि माता भद्रकाली के इस दरबार में मांगी गई मनौती कभी भी ब्यर्थ नही जाती है,जो भी श्रद्वा व भक्ति के साथ अपनी आराधना के श्रद्वा पुष्प माँ के चरणों में अर्पित करता है,वह परम कल्याण का भागी बनता है।

माता श्री महाकाली के अनन्त स्वरुपों के क्रम में माता भद्रकाली का भी बड़ा ही विराट वर्णन मिलता है।जगत जननी माँ जगदम्बा की अद्भूत लीला का स्वरुप अनेक रुपों में माता श्री भद्रकाली की महिमां को दर्शाता है।पुराणों के अनुसार माता भद्रकाली का अवतरण दैत्यों के सहांर व भक्तों के कल्याण के लिए हुआ है।कहा जाता है,कि जब रक्तबीज नामक महादैत्य के आंतक से यह वंशुधरा त्राहिमाम हो उठी थी,तब उस राक्षस के विनाश हेतु माँ जगदम्बा ने भद्रकाली का रुप धारण किया। तथा महापराक्रमी अतुलित बलशाली दैत्य का संहार किया, रक्त बीज को यह वरदान प्राप्त था,कि उसका जिस किसी के साथ भी युद्व होगा युद्व के समय उसके शरीर से गिरने वाली रक्त की बूंदों से उसी के समान महाबलशाली दैत्य उत्पन्न होगें।जगदम्बा माता ने भद्रकाली का विराट रुप धारण करके उसके रक्त की बूदों का पान करके उसका सहांर किया। धौलीनाग के प्रसंग में भी माता भद्रकाली का बड़ा ही निराला वर्णन मिलता है।उल्लेखनीय है,कि धौलीनाग अर्थात् धवल नाग का मंदिर बागेश्वर जनपद अर्न्तगत विजयपुर नामक स्थान से कुछ ही दूरी पर पहाड़ की रमणीक छटाओं के मध्य भद्र काली पर्वत की परिधि का ही एक हिस्सा है।

हिमालयी नागों में धवल नाग यानी धौली नाग का पूजन मनुष्य के जीवन को ऐश्वर्यता प्रदान करता है, महर्षि व्यास जी ने स्कंद पुराण के मानस खण्ड के 83 वें अध्याय में भद्रकाली के प्रिय इस नाग देवता नाग की महिमा का सुन्दर वर्णन करते हुए लिखा है। धवल नाग नागेश नागकन्या निषेवितम्। प्रसादा तस्य सम्पूज्य विभवं प्राप्नुयात्ररः।। (18/19 मानस खण्ड 83) इस तरह से भद्रकाली भक्त नाग पर्वत पर विराजमान नागों के अनेक कुलों का पुराणों में बड़े ही विस्तार के साथ वर्णन आता है, इस गोपनीय रहस्य को उद्घाटित करते हुए धवन नाग व अनेक नागों की महिमा के साथ माँ भद्र काली का वर्णन आया है।इस विषय में विस्तार पूर्वक उल्लेख करते हुए व्यास जी ने कहा है, जो प्राणी धवल नाग व नाग पर्वत पर विराजमान अन्य नागों का पूजन कर माँ भद्रकाली की भक्ति करता है, उस पर नाग देवता कृपालु होकर अतुल एश्वर्य प्रदान करते है, मानस खण्ड के 79 वें अध्याय में वर्णन आता है, वेद व्यास जी के साथ आध्यात्मिक चर्चा में देवयोग से लोक कल्याण के लिए ऋषियों के मन में नागों की निवास भूमि जानने की इच्छा जागृत हुई अपनी इस व्याकुल इच्छा को जानने के लिए ऋषियों ने व्यास जी से कहा ,महर्षेः नाग तो पाताल वासी है, पृथ्वी पर उनका आगमन कैसे हुआ, तब व्यास जी ने ऋषियों को जानकारी देते हुए समझाया ऋषिवरो! सत्युग के आरम्भ में ब्रहमा ने सारी पृथ्वी को अनेक खण्ड़ो में विभक्त कर दिया था। उन भूभागों में से एक भाग नागों के लिए हिमालय में नागपुर नामक स्थान नियत किया, जो आज भी नाग भूमि के नाम से जानी जाती है, जिसे नागों ने अपना नगर बनाया उसी नगरी के वासी श्री धौलीनाग जी सहित अनेकों पूज्यनीय नाग है, माना जाता है, सभी नाग तमाम क्षेत्रों में अदृश्य रहकर भगवान शिव की पूजा अर्चना करते हैं अनन्त, वासुकी, शेष, पदननाभ, शखपाल, धृतराष्ट्र, तक्षक, कालिय कम्बलम सहित तमाम नागों के प्रति नागपुर वासियों में अगाध श्रद्वा है, अलग अलग नामों से लोग इन्हें अपने ईष्ट देव के रुप में भी पूजते है, धौलीनाग, बेड़ीनाग, फेडीनाग, हरिनाग, की भी विशेष रुप से यहां पूजा होती है, इन नागों में श्री मूलनारायण जी को नाग प्रमुख की पदवी प्राप्त है, ऐसा वर्णन आता है,

कभी आस्तीक ऋषि की अगुवाई में अनेक ऋषियों ने नागों के साथ मिलकर इस क्षेत्र में माँ भद्रकाली के दर्शन की अभिलाषा से विराट यज्ञ का आयोजन किया इस यज्ञ को सफल बनाने में फेनिल नामक नाग के महत्वपूर्ण भूमिका निभाई बेरीनाग क्षेत्र में बहने वाली भद्रावती नदी का उद्गम इन्हीं के परामर्थ पर ऋषियों ने अपने तपोबल से किया भद्रवती तट पर स्थित गोपीश्वर महादेव नागों के परम आराध्य है, इनकी स्तुति पापों का शमन कर मनुष्य को अभयत्व प्रदान करती है, इतना ही गोपेश्वर भूभाग में पहुचने पर पहुचने वाले पूर्वजों के पापों का हरण हो जाता है सूर्योदय होने पर हिम के पिघलने की तरह यहां पहुचने पर सोने की चोरी करने वाला, अगम्या स्त्री से गमन करने वाला तथा पूर्व में पितरों द्वारा किए गये पापों का भी विलय हो जाता है कहा तो यहां तक गया है, नागों के आश्रय दाता गोपीश्वर का पूजन करने पर सारी पृथ्वी की इक्कीस बार परिक्रमा करने का फल प्राप्त होता है। त्रिः सप्त कृत्वा सकला धरित्री प्रत्रम्य यद्याति महीतले वै ततत्र गोपीश्वर पूजनेन सम्पूज्य जाती कुसुमैं सुशोमनैः (मानसखण्ड अ0 80/श्लोक 14) कहा जाता है, इस मंदिर की पूजा खासतौर पर नाग कन्यायें करती है, कुमाऊं के प्रसिद्व नाग मदिर क्षेत्र सनिउडियार भी नाग कन्याओं के ही तपोबल से प्रकाश में आया शाण्डिल ऋषि के प्रसंग में श्री मूल नारायण की कन्या ने अपनी सखियों के साथ मिलकर इस स्थान की खोज की इस विषय पर पुराणों में विस्तार के साथ कथा आती है, नाग कन्याओं को गोपियों के नाम से भी सम्बोधित किया जाता है, इन्हीं की भक्ति से प्रसन्न होकर शिवजी गोपेश्वर के रुप में यहा स्थित हुए और नागों के आराध्य बने इस भाग को गोपीवन भी कहा जाता है भद्रपुर नामक आदि अनेक स्थान गोपीवन के ही भाग है, भद्रपुर में ही कालिय नाग का पुत्र भद्रनाग का वास है। भद्रकाली इनकी ईष्ट है, भद्रापर्वत के दक्षिण की और से इनके पिता कालीय नाग माता कालिका देवी का पूजन करते है। ततस्तु पूर्व भागे वै भद्राया दक्षिणे तथा काली सम्पूज्यते विप्राः कालीयने महात्मना।। (मानखण्ड अ0 81/श्लोक 11) भद्रा के मूल में श्री चटक नाग, श्री श्वेतक नाग, का भी पूजन स्थानीय वाशिदों द्वारा किया जाता है, नाग प्रमुख मूल नारायण जी की भी अलौकिक गाथा विष्णु भक्ति का प्रताप इन्हीं क्षेत्रो से जुड़ा हुआ है,

सर्वपापहारी त्रिपुर नाग भी फेनिल नाग के ज्येष्ठ पुत्र सुचूड़ नाग का वर्णन भी पुराणों में आता है, कुल मिलाकर नाग पर्वतों में विराजमान नाग मन्दिर सदियों के अटूट आस्था का केन्द्र है, श्रद्वा व भक्ति के संगम में धौली नाग सहित सभी नाग देवताओं का महात्म्य अतुलनीय है, उल्लेखनीय है ,कि यहां पर माँ भद्रकाली पूर्ण रूप से वैष्णवस्वरूप में पूज्यनीय है, माँ भद्रकाली को ब्रह्मचारिणी के नाम से भी जाना जाता है। वैष्णों देवी मन्दिर के अलावा भारत भूमि में यही एक अद्भूत स्थान है, जहां माता भद्रकाली की महाकाली, महालक्ष्मी व महासरस्वती तीनो रुपों में पूजा होती है। इन स्वरुपों में पूजन होने के कारण इस स्थान का महत्व सनातन काल से पूज्यनीय रहा है,आदि जगत गुरु शंकरार्चाय ने इस स्थान के दर्शन कर स्वयं को धंन्य माना माँ भद्रकाली की एतिहासिक गुफा अद्भूत व अलौकिक स्वरुप है, जो मन्दिर के नीचे है, गुफा के नीचे कल कल धुन में नृत्य करते हुए नदी बहती है, इसी गुफा के ऊपर माँ भद्रकाली विराजमान है।माना जाता है यहां पर मन्दिर का निर्माण लगभग संम्वत् ९८६ ई (सन् ९३० ) एक महायोगी संत ने कराया व मन्दिर में पूजा का विधान नियत किया ।देवी के इस दरबार में समय समय पर अनेकों धार्मिक अनुष्ठान सम्पन होते रहते है।मन्दिर में पूजा के लिये चंद राजाओं के समय से आचार्य एवं पूजारियों की व्यवस्था की गई है। मन्दिर के आचार्य पद का दायित्व खन्तोली के पन्त लोगों का है। और और पुजारी का पद ग्राम भद्रकाली के जोशी लोगों को दिया गया है।

उत्तराखण्ड राज्य के कुमाऊँ मण्डल में बागेश्वर जनपद अंतर्गत बागेश्वर मुख्यालय से लगभग ३० किमी पूर्व में पहाड़ की सुरभ्य मनमोहित वादियों के बीच में स्थित इस देवी के दरवार की एक विशेषता यह है,कि प्रायः माँ जगदम्बा के मन्दिर एवं शक्ति स्थल पहाड़ की चोटी पर होते है ,लेकिन यह मन्दिर अन्य शक्ति स्थलों की अपेक्षा चारों ओर रमणीक शिखरों के मध्य बीच घाटी में स्थित है। और इन शिखरों पर नाग देवताओं के मन्दिर विराजमान हैं । जो यहां आने वाले आगन्तुकों को बरबस ही अपनी ओर खीचं लेते है। यहाँ की प्राकृतिक सुंदरता साधना के लिए जगत माता की ओर से भक्त जनों के लिए अनुपम उपहार है। भद्रकाली मन्दिर से एक नदी निकलती है, जिसको भद्रा नदी कहते है।स्कदं पुराण के81वे अध्याय में इस नदी की महिमां महर्षि व्यास जी ने उद्घाटित करते हुए कहा है।भद्रा के उद्गम स्थल पर भद्रेश की पूजा करने से सिद्धि की प्राप्ति होती है।देव,गन्धर्व,सर्प,आदि भद्रेश का पूजन करते है, चटक,श्वेतक,काली आदि नाग यहां पर भद्रकाली की पूजा कर धन्य है। तत्र भद्रवती नामा कन्दरायां महेश्वरी।पूज्यते नागकन्याभिर्नागैश्रवान्यैस्तथैव च।। इस भूभाग से होकर बहने वाली नदियों में सुभद्रा नदी की बड़ी महिमां है।कहा गया है, सुभद्रा नदी में स्नान करके भद्रकाली का पूजन करने से परम गति की प्राप्ति होती है। *सुभद्रासरितस्तोये निमज्य मुनिसत्तमां: ।देंवी भद्रवतीं पूज्य नरो याति परां गतिम्।।* भ्रदकाली के निकटतम तीर्थ स्थलो में क्षेत्रपाल के पूजन का भी अद्भूत महात्म्य है।भद्रकाली मन्दिर के नीचे गुफा के भीतर मनभावन आकृतियां है,तथा बीच में एक शिवलिगं है।अनन्त रुपों में अपनी लीला का विस्तार करने वाली अनन्त स्वरुपा सर्वस्वरुपिणी मां भद्रकाली की उत्पत्ति की एक गाथा दक्ष प्रजापति के यज्ञ से भी जुड़ी हुई है।वीर भद्र और भद्रकाली की उत्पत्ति भगवान शिव की जटाओं से भी मानी जाती है ।वीरभद्र और भद्रकाली के साथ शिव की जटाओं से जिन देवियों की उत्पत्ति हुई उनमें त्वरिता व वैष्णवी का भी जिक्र आता है। हिमालय की गोद में बसा उतराखण्ड़ वास्तव में प्रकृत्ति की अमूल्य धरोहर है।यहां पहुंचने पर वास्तव में आत्मा दिव्य लोक का अनुभव करती है।भद्रकाली गांव में रचा-बसा प्राचीन भद्रकाली का प्रसिद्ध मदिरं माँ जगदम्बा का अपने भक्तों के लिए दिव्य उपहार है। वर्ष भर यंहा श्रद्वालुओं का आगमन लगा रहता है,नवरात्रो में भक्तों की चहल कदमी बढ़ जाती है। मान्यता है कि अष्टमी को रात-भर मंदिर में अखंड दीपक जलाने से मनोकामना पूर्ण होती है। इस स्थान पर शक्ति का अवतरण कब व किस प्रकार हुआ इस विषय में कोई ठोस जानकारी नही है। यहां पर भगवती के चरणों की भी पूजा होती है।मंदिर के साथ एक दंत कथा त्रेता युग के नाग देव खैरीनाग से भी जुड़ी हुई है।गुफा के प्रवेश द्वार पर झरना यहां आने वाले श्रद्धालुओं को मन्त्र मुग्ध कर देता है। माँ बगलामुखी के भक्तजन इस दरवार में माँ पीताम्बरी की साधना भी करते है,बगंलामुखी साधकों का मानना है,कि माँ भद्रकाली नागों की ईष्ट व नाग माता है,और माँ बंगलामुखी को भी नागेश्वरी ही कहा जाता है,दोनों में कोई भेद नही है।दोनों का स्वरूप अभेद है।

शिव पुराण के अनुसार त्रैलोक्य वंदिता साक्षात् उल्का अर्थात् माता बंगलामुखी को ही भद्रकाली की जननी कहा है। *🌹त्रैलोक्यवन्दिता साक्षादुल्काकारा गणाम्बिका ,कौशिक्याश्चैव जननी भद्रकाल्यास्तथैव च।यही कारण है,कि इस भूमि पर प्रसिद्व सतं माँ बगलामुखी के साधक श्री ननतीन महाराज जी ने घोर साधना की उनके तमाम भक्तों का इस दरबार में आना जाना लगा रहता है।

महायोगी स्व०प्रयाग दत्त पन्त ने माँ भद्रकाली दरवार में वर्षों तक अखण्ड़ तपस्या की उनकी भक्ति व साधना के किस्से आज भी बड़े ही सम्मान के साथ लोगों की जुबा पर रहते है,ब्रह्मलीन संत फलाहारी बाबा पर भी माँ भद्रकाली की असीम कृपा थी। दुर्गा शप्तसती के अध्याय11में माँ भद्रकाली की स्तुति करते हुए कहा गया है।🥀 *ज्वालाकरालमत्युग्रमशेषासुरसूदनम्।।त्रिशूल पातु नो भीतेर्भद्रकालि नमोअस्तुते।।🌹*हे भद्रकाली ! तुम्हें नमस्कार है,।सम्पूर्ण दैत्यों का नाश करने वाला,ज्वालाओं से विकराल तथा अत्यन्त भयकरं तुम्हारा त्रिशूल सभी भयों से हम सबों की रक्षा करे। शिव पुराण में माँ भद्रकाली के प्रिय वीरभद्र से इस प्रकार विनती की गई है, *🥀वीरभद्रो महातेजा हिमकुन्देन्दुसंनिभ:।भद्रकालीप्रियो नित्यं मातृणा चाभिरक्षिता।।

माता भद्रकाली की शीघ्र प्रसन्नता के लिए उनकी पूजा में सोलह अक्षर का यह गोपनीय मन्त्र साधर्कों को समस्त भयों से मुक्ति प्रदान करता है,*ॐहौं कालि महाकालि किलि किलि फट् स्वाहा।भद्रकाली के इस दरबार में *भद्रकाली महाकाली किलि किलि फट् स्वाहा*मन्त्र का जाप समस्त मनोंरथों को पूर्ण करता है।धर्म,अर्थ,काम,और मोक्ष प्रदान करने वाला माँ भद्रकाली का यह क्षेत्रं युगों युगों से पूज्यनीय रहा है।इसलिए माँ के प्रति भक्तों का भाव अव्यक्त है।*हस्ताभ्यां धारयन्ती ज्वलदनल शिखासनितभं पाश युग्मं।दन्ते जम्बू फलाभै: परिहरतु भयं पातु मां भद्रकाली।।भद्र काली माता के इस दरवार तक पहुंचने के लिए हल्द्वानी से आगे अल्मोड़ा शेराघाट गणाई गंगोली होते हुए बास पटान से भी मार्ग है,कुल मिलाकर बागेश्वर जनपद में स्थित माता भद्रकाली का यह पावन स्थल तीर्थाटन की दृष्टि से अतुलनीय है। हे जयन्ती(सबको जीतने वाली),मंगला(मोक्ष देने वाली),काली(प्रलय करने वाली),भद्रकाली(भक्तों का कल्याण करने वाली),कपालिनी(प्रलय के समय मुण्ड धारण करने वाली),दुर्गा(कठिनाई से मिलने वाली)क्षमा(सबको अभय देने वाली) शिवा,धात्री,स्वाहा और स्वधा स्वरुप वाली देवी! तुम्हें नमस्कार है। हे,भद्रकाली माता तुम्हारी सदा जय हो।जय माँ भद्रकाली@/// रमाकान्त पन्त//

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