हिमालय की गोद में बसा उत्तराखण्ड प्रकृति की अमूल्य अलौकिक धरोहर है। यहां की पावन रमणीक वादियों में पहुंचते ही सांसारिक मायाजाल में भटके मानव की समस्त व्याधियां यूं शांत हो जाती है, जैसे अग्नि की लौ पाते ही तिनका भस्म हो जाता है। यहां के एतिहासिक धरोहर रूपी रमणीय गुफाएं, सुंदर मनभावन मंदिर यहां आने वाले हर आगन्तुकों को अपनी ओर आकर्षित करने में पूर्णतः सक्षम हैं। ऋषि-मुनियों की अराधना व तपःस्थली के रूप में प्रसिद्ध इस पावन भूमि के पग-पग पर देवालयों की भरमार है। सुन्दर झरने कल-कल धुन में नृत्य करती नदियां अनायास ही पर्यटकों व श्रद्धालुओं को बरबस ही अपनी ओर आकर्षित कर लेते हैं। देवभूमि उत्तराखण्ड के कुमाऊँ की आलौकिक वादियों में प्रवेश करने से पूर्व प्रवेश द्वार हल्दूचौड में एक दिव्य रमणीक आध्यात्मिक आभा को समेटे स्थल है माँ गायत्री शक्ति पीठ
माँ गायत्री को समर्पित यह शक्ति पीठ आध्यात्म की विराट चेतना का केन्द्र है कुमायूं की वशुंधरा के प्रवेश द्वार में स्थित यह शक्ति पीठ गायत्री परिवार के मुख्य केंद्र के रूप में जन-जन की आस्था व भक्ति को संजोये हुए है वर्ष भर यहाँ श्रद्धालुओं का आवागमन लगा रहता है उपनयन विवाह आदि संस्कार यहाँ समय – समय पर आयोजित होते रहते है माँ गायत्री के हजारों भक्तजन इन कार्यक्रमों में भाग लेकर अपने जीवन को धन्य करते हैं इस पावन शक्ति पीठ की स्थापना वर्ष 1987 में तत्कालीन राजकीय इंटर कॉलेज हल्दूचौड़ में प्रधानाचार्य के रूप में कार्यरत श्री गौरीदत्त ओझा ने लोक कल्याण व क्षेत्र की सुख ,समृद्धि एवं मंगल की कामना से की जिन्हें शिक्षा विभाग की ओर से नैतिक शिक्षा प्रशिक्षण के कार्यक्रम में 5 दिन के लिए शांतिकुंज हरिद्वार भेजा गया वहां से उनको बहुत प्रेरणा मिली व्यसनों- बुराइयों से जीवन को हटाकर उन्होंने गायत्री परिवार में सक्रियता का जो बीज बोया आज उसमें वे पूर्णतया रमें हुए है और समाज में माँ गायत्री की भक्ति का प्रचार -प्रसार करते हुए महान आदर्श प्रस्तुत कर रहे हैं दौर में उन्होंने प्रधानाचार्य निवास में ही रहकर सप्ताह में एक बार सामूहिक यज्ञ का अभियान शुरू कर दिया जिसमें आसपास के बहुत सारे लोग भक्ति भाव से भाग लेने लगे। चलते चलते यह क्रम धीरे धीरे बढ़ने लगा बाद में श्री राम सिंह मेहता जी जिनकी माँ गायत्री के चरणों में अनन्य भक्ति थी इस अभियान में शामिल हुए माँ के प्रति भक्तों की बढ़ती संख्या को देखते हुए विस्तृत चर्चा के बाद एक गायत्री परिवार का संस्थान बनाने का निर्णय लिया गया इस निर्णय के शाक्षी रहे श्री नवीन चंद्र जोशी जी ने मंदिर के लिए भूमि दान में देने का संकल्प लेते हुए उसे पूरा किया। फलस्वरूप एक भव्य एवं दिव्य पीठ की स्थापना हुई बाद में विस्तार के क्रम में विद्यालय आदि के लिए भूमि क्रय की गई।
रेलवे लाइन पार गायत्री कुंज परिसर के लिए भी जमीन खरीदी गई। जो आज सुन्दर स्वरूप में अध्यात्म का विराट वैभव समेटे हुए हैं प्रारंभ से बने गायत्री परिवार ट्रस्ट, हल्दूचौड़ को इसके सदस्यों द्वारा सन 2004 में भंग कर दिया गया था और श्री वेदमाता गायत्री ट्रस्ट शांतिकुंज हरिद्वार में विलय कर दिया गया।आज इस केंद्र के लिए 150- 200 कार्यकर्ता नियमित समयदान देते हैं और 600 से अधिक लोग इसके मासिक अंशदानी सदस्य हैं।
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