कालीचौड़ में भक्तों की भीड़ ने बिखेरी महाशिवरात्रि की आभा

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महाशिवरात्रि के पावन अवसर पर कुमाऊं के प्रसिद्ध शक्तिपीठ कालीचौड़ मंदिर में पहुंचकर हजारों शिव भक्तों ने माँ काली व काली के ईश्वर कालीश्वर महादेव के दर्शन किये
हल्द्वानी के निकट गौलापार क्षेत्र में स्थित माँ काली का यह प्राचीन मंदिर आस्था व भक्ति का अटूट संगम है
शिवरात्रि के पावन अवसर पर यहां पहुंचे भक्तजनों ने मंदिर की शानदार व्यवस्थाओं के लिए कमेटी का भी धन्यवाद अदा किया माँ काली के दर्शनों के साथ – साथ शिव भक्तों ने प्राचीन शिव पिण्डी कालीश्वर महादेव का पूजन कर सुखद अनुभूति का आनन्द लिया शिवरात्रि के पावन अवसर पर कालीचौड़ मंदिर क्षेत्र अध्यात्म के रंग में रंगा रहा
इधर मंदिर समिति के सभी कार्यकर्त्ताओं एवं पदाधिकारियों ने सभी आगन्तुकों का स्वागत किया तथा शान्ति व्यवस्था पूर्वक दर्शनों के लिए सभी भक्तजनों का आभार भी जताया
समिति के अध्यक्ष पंकज बिष्ट उपाध्यक्ष हरीश भाकुनी कोषाध्यक्ष अभिषेक सुयाल सचिव मनोज जोशी संरक्षक अर्जुन सिंह बिष्ट बसंत सनवाल महेश बिष्ट सहित तमाम माँ काली के भक्तों ने बड़ी ही निष्ठा पूर्वक यहाँ आनें वाले भक्तों का मार्ग दर्शन किय

 

🌹☘️🌹☘️🌹☘️🌹☘️🌹☘️🌹जानिये कालीचौड़ के काली मंदिर का पौराणिक महत्व*

कालीचौड़ का काली मन्दिर
काली के अलावा पवित्र करने वाला कोई मन्त्र न तो पृथ्वी पर है और न ही स्वर्ग पर है।
‘‘काली वेद जननी काली पाप नाषिनी।
काल्यास्तु पर नास्ति दिवि देह च पावनभ्।।

काली मां वेदों की माता है। सम्पूर्ण पापों का नाश करने वाली हैं
आध्यात्मिक जगत की अलौकिक निराली निर्मल शान्ति को समेटे कालीचौड़ का काली मन्दिर जगत माता जगदम्बा की ओर से भक्तों के लिए अनुपम भेंट है। देवभूमि उत्तराखण्ड में कुमाऊँ क्षेत्र के अंतर्गत काठगोदाम के पास बियावान जंगल में स्थित काली का यह मन्दिर प्राचीन काल से ऋषि-मुनियों की अराधना एवं तपस्या का केन्द्र रहा है। धार्मिक दृष्टि से यह स्थान जितना महत्वपूर्ण है,पर्यटन एवं तीर्थाटन की दृष्टि से उतना ही कंगाल। हिमालयी भूभाग में काली के जितने भी प्राचीन शक्तिपीठ व मन्दिर हैं उन सभी से यह स्थान ज्यादा फलदायी कहा गया है। कहते हैं कि यहां पर मांगी गई मनौती व की गयी पूजा कभी भी निष्फल या व्यर्थ नहीं जाती है। शैल पर्वत में स्थित महाकाली दरबार, गंगोलीहाट, नाग पर्वत के समीप स्थित भद्रकाली व काठगोदाम के समीप स्थित कालीचौड़ की महाकाली बिन्दुखत्ता की हाटकाली सहित कालिका अनेक रुपों में यहां पूजी जाती हैं। इन सभी धार्मिक स्थलों का प्राचीन काल से आध्यात्मिक महत्व रहा है और वर्तमान समय में भी यह तमाम केन्द्र अपार श्रद्वा भक्ति व आस्था के साथ पूजित हैं। इन देव दरबारों में पहुंच कर आगन्तुकजन बरबस ही दिव्यलोक सा अनुभव करते हैं। कालीचौड़ का काली दरबार भी एक ऐसा ही स्थान है। जहां पहुंचते ही सांसारिक मायाजाल में भटका मानव अनायास ही माँ के चरणों में निराली शान्ति का अनुभव करता है।
यह भूमि प्राचीन काल से ही पूज्यनीय रही है। कहते हैं कि सतयुग में सप्तऋषियों ने इसी स्थान पर भगवती की अराधना कर अलौकिक सिद्वियाँ प्राप्त की। मार्कण्डेय ऋषि ने भी यहां तपस्या कर काली की कृपा को प्राप्त किया। गुरु गोरखनाथ, महेन्द्र नाथ, सोमवारी बाबा, नान्तीन बाबा, टाटम्बरी बाबा, हैड़ाखान बाबा सहित अनेकों सन्तों ने इस स्थान पर साधना कर कालिका से निर्मल ज्ञान की प्राप्ति की। इस प्राचीन सिद्व पीठ में सिद्वबली हनुमान, काल भैरव, व भगवान शिव की मूर्तियां भी विराजमान हैं। इन सभी के दर्शन करना परम सौभाग्य का विषय माना जाता है।

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पौराणिक समय से अनेक दन्त कथाओं व किवदन्तियों को समेटे यह मन्दिर काफी समय तक गोपनीय रहा। आधुनिक समय में यह स्थान लगभग 8 दशक पूर्व प्रकाश में आया। मन्दिर के पुजारी पण्डित हरि दत्त शर्मा बताते थे कि वर्ष 1942 से पूर्व कलकत्ता में एक भक्त को इस माता ने स्वप्न में दर्शन देकर कृतार्थ किया व इस स्थान की जानकारी दी। दिव्य प्रेरणा से उक्त भक्त ने हल्द्वानी पहुंच कर अपने परिचित मित्र राजकुमार चूड़ीवाले को सिद्वि स्थल के बारे में बताया। दैवीय कृपा से दोनो भक्तों ने गौला पार पहुंच कर भक्त जनों के जत्थे के साथ इस स्थान को खोज निकाला। यहां पहुंच कर उन्होने पेड़ से सटी काली मूर्ति व शिवलिंग के दर्शन किये और यहां पर मन्दिर की स्थापना की। मन्दिर के समीप ही एक ताम्रपत्र निकला। जिसमें पाली भाषा में महाकाली मन्दिर महात्मय का उल्लेख किया गया है। काठगोदाम तीनपानी बाइपास मार्ग स्थित काठगोदाम से करीब तीन किमी0 आगे सुल्तान नगरी गांव से मुख्य मार्ग से पहुंचने के बाद उत्तर की ओर पांच किमी का पर्वतीय मैदानी भाग का सफर करने के बाद इस मनोरम मन्दिर के दर्शन होते हैं। समय-समय पर यहां पर सहस्त्रचण्डी महा यज्ञ के साथ-साथ अनेकों धार्मिक कार्यक्रम आयोजित होते रहते हैं। पुराणों के अनुसार यह क्षेत्र गर्गांचल के नाम से जाना जाता है। इस क्षेत्र में भगवान शिव का पूजन, गार्ग्येश के नाम से होता है। गर्गाश्रम को ही गार्गी नदी उद्गम कहा गया है। काली माता के उत्तर पश्चिम भाग में इसी क्षेत्र में उत्तम धाम चित्रशिला है। इन क्षेत्रों में पुलस्तय ऋषि के साथ अत्रि व पुलह ऋषि ने भी तपस्या की है। यही वो क्षेत्र है जहां मार्कण्डेय ऋषि ने तपस्या की। मन्दिर के ऊपरी क्षेत्र से बहने वाली नदी को पुष्प भद्रा के नाम से पुकारा जाता है। स्कन्द पुराण में इस क्षेत्र को वेद व्यास जी ने भद्रवट क्षेत्र नाम से संवारा है।
माता महाकाली की महिमा को समेटे कालीचौड़ मन्दिर की गोद में ही मार्कण्डेय मुनि को नारायण के दर्शन हुए। पास में ही स्थित चित्रशिला की महिमा के बारे में भी पुराणों में कथा आती है इसके दर्शन होते ही पाप नष्ट हो जाते हैं। यहां ब्रह्मा, विष्णु, महेश तीनों का वास कहा गया है। कालीचौड़ का पौराणिक सिद्व पीठ आध्यात्मिक दृष्टि से मुक्ति दायक माना गया है। यही कारण है कि पुलस्तय ऋषि, मार्कण्डेय ऋषि, पुलहा व अत्री ऋषि सहित सप्त ऋषियों की इस पावन भूमि के प्रति गहरी व अचल श्रद्वा रही है। इस अछूते तीर्थ की महिमा जान कर कब लोग तीर्थाटन के महान उद्देश्य से उपेक्षित क्षेत्र की महिमा जान कर कृतार्थ होंगे यह समय के गर्भ में है।

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