धारचूला(पिथौरागढ़)/सम्पूर्ण विश्व ही नहीं बल्कि अनन्तकोटी ब्रहमाण्ड़ में परम पूज्यनीय देवाधिदेव महादेव जी का आवास स्थल कैलाश पर्वत सनातन संस्कृति की सबसे अनमोल धरोहर है।यह पावन पर्वत युगों युगों से परम पूज्यनीय रहा है।कैलाश पर्वत क्षेत्र के अन्तर्गत आने वाली समस्त पर्वत श्रृखंलाये व उन पर्वतों पर विराजमान देवी,देवता,नाग देवता, बहती गंगा की जलधाराये,कल कल धुन में नृत्य करती नदियां व उन नदियों से निकलनें वाले अनहाद नादों के स्वर,लता,वृक्ष,व शक्ति पीठ भी सदा से पूज्यनीय रही है।यही वह भूमि है।जो युग युगों से ऋषि,मुनियों,देवताओं की तपस्या का केन्द्र बिन्दु रही है। कहा जाता है कि इस पावन पर्वत को सबसे पहले राजा मान्धाता ने प्रकाशित किया
कैलाश सहित इन पर्वतों के दर्शन महापुण्यदायक है।शिव व शक्ति के सनातन महात्म्य से परिपूर्ण इस भूमि की महिमां अपरम्पार है।महाभारतकाल,रामायण काल के अनेकों प्रसंग कैलाश की भूमि से जुड़े हुए है।इस काल में यह क्षेत्रं उत्तरकुरु के नाम से विख्यात रहा है।कैलाश की महिमां का बखान अनेकों पुराणों में विस्तार से मिलता है।भगवान स्कंद ने इस पर्वत की महिमां को परम मुक्ति का केन्द्र बताया।मानसखण्ड़ ने इस पर्वत की महिमां के अद्भूत गीत गाये है।इस पुराण में कहा गया है,कि यह पर्वत ईशानकोण में स्थित है।पंचशिखरों के दर्शनों की पूज्यनीयता भी देवभूमि में आकर ही सिद्व होती है।नन्दाखाट,पन्चाचुली,द्रोणगिरी,त्रिशूल,नन्दादेवी,ऊटाधूरा आदि तमाम ऐसी पर्वत श्रृखंलायें है।जिनके दर्शन तीर्थाटन की दृष्टि से बेहद महत्वपूर्ण मानें जाते है।
कैलाश पर्वत पर स्थित सरोवर सम्राट मानसरोवर के अलावा अनेकों ऐसे सरोवर देवभूमि में है।है।जो बेहद मनमोहक होनें के साथ साथ आध्यात्म जगत की गहरी गाथाओं को अपनें अपने आंचल में समेटे हुए है।जिनमें भीमसरोवर,ऋषि सरोवर,नल दमयन्ती सरोहर सहित खासे प्रसिद्ध है।पुराणों में वर्णित वर्णन के साथ हर सरोवर की अपनी अपनी आध्यात्मिक कथाये है।पुराणों में वर्णित पौराणिक मदिरों के यहां स्थान स्थान पर दर्शन होते है।यात्राओं के प्रसंग में कैलाश की यात्रा जीवन की सर्वश्रेष्ठ उपलब्धि मानी जाती है।ऋषि मुनियों ने प्राचीन समय में ही यहां पहुचनें के लिए यात्रा पथों का निर्धारण पुराणों में कर दिया था।मानखण्ड़ के अनुसार यहां की यात्रा भगवान बिष्णु के कूर्मअवतार के क्षेत्रं कूर्माचल से करनी चाहिए यात्रीजनों के लिए कहा गया है।वहां से कूर्मशिला की चोटी पर भगवान शंकर का विधिवत पूजन कर सरयू गंगा में स्नान करने के पश्चात आगे की यात्रा का वर्णन पुराणों में विस्तार के साथ मिलता है।
यात्रा पथ जागेश्वर,पातालभुवनेश्वर,वैद्यनाथसीराकोट,दारूकावन का आनंद ध्वज पर्वत,पताका पर्वत, गौरी पर्वत आदि के महत्व का भी विस्तार के साथ जिक्र आता है। इसके अतिरिक्त और भी विस्तृत यात्राएं और अलग-अलग मार्गों का वर्णन कैलाश यात्रा के प्रसंग में है ।माना जाता है कि कैलाश पर्वत में ही तपस्या करके राजा मांधाता ने अलौकिक सिद्धियां प्राप्त कर अपने जीवन को कृतार्थ किया उनकी तपस्या का प्रतीक मांधाता पर्वत आज भी विश्वविख्यात है राक्षसराज रावण की तपोभूमि का प्रमुख केन्द्र कैलाश को ही माना जाता है। कैलाश की मानसरोवर को ही समस्त नदियों का उद्गम स्थल भी कहा गया है यहां तक कि गंगा का उद्गम भी इसे ही कहा जाता है मानसरोवर को ही विश्वास के सर्वश्रेष्ठ एवं सर्वप्रथम प्राचीन सरोवर की मान्यता पुराणों ने दी है कैलाश मानसरोवर की पवित्र भूमि के चारों ओर देवताओं का वास है कहते हैं कि उनका दर्शन किसी दिव्य चक्षु संपन्न प्राणी को ही बड़े संयोग से प्राप्त होता है जैन धर्म के अनुयाई मानते हैं की कैलाश शिखर पर ही प्रथम तीर्थंकर ने निर्वाण प्राप्त किया कैलाश पर्वत के आसपास अनेक तीर्थ स्थल है।जिनकी अतुलनीय महिमां पुराणों ने गायी है।मानस खंड के पांचवें अध्याय में महर्षि वैशंम्पायन ने बड़े ही स्पष्ट शब्दों में कहा है कि पृथ्वी का प्रमुख पर्वत हिमालय है जहां भगवान शिव साक्षात विराजमान है।पृथिव्याः प्रथमश्चैव हिमाद्री:श्रूयते नृप पुराणों ने हिमालय को चार भागों में विभक्त किया है।प्रथम भाग मानसरोवर क्षेत्रं मानस इसी के अनन्तर कैलाश नामक खण्ड़ फिर केदार नामक विशाल पर्वत व एक भाग नागों से सुसेवित पाताल खण्ड़ है।
महर्षि सूतजी ने शिव पार्वती के विवाह के प्रसंग में राजा जनमेजय को हिमालय पर्वत की महिमां के बारे में बताते हुए कहा है,पृथ्वी पर हिमकणों से पूरित हिमालय माता पार्वती व भगवान शिव की तपस्या का प्रमुख केन्द्र है। .भूमौ हिमाद्रिप्रवरो हिमसीकरसेवि हिमालय की विराट महिमां का उल्लेख करते हुए महर्षि वेद व्यास जी ने कहा है।जो मनुष्य सूर्योदय के समय इस पर्वत के दर्शन करता है।उसके पाप दूर से ही नष्ट हो जाते है। हिमसीकरसंपृक्तं यं दृष्ट्वा पापकोटय हिमालय की पावनता का बखान करते हुए भगवान दत्तात्रेय ने कहा है।जिस हिमालय पर कल्याणदायक शिव का वासस्थान विद्यमान है,उससे बढ़कर अधिक श्रेष्ठ़ दूसरा और कौन सा स्थान हो सकता है। वर्तते पर्वतश्रेष्ठ़ !कोअस्तित्वतोअधिको भुव जब भगवान दत्तात्रेय ने स्वंय भगवन महेश से उनकी स्तुति करते हुए कैलाश पर्वत हिमालय का महत्व जानने की जिज्ञासा प्रकट करते हुए पूछा हे,घुंघराले जटा वाले नीलकंठ आप को मेरा प्रणाम है ,विकराल मुख्य वाले पशुपति भैरव के अंनन्तर महाभैरव स्वरूप नंदिकेश्वर से स्तूयमान हे महादेव आपको मेरा नमस्कार है जटारुपधारी एवं उग्र रूप शिव तुम्हें मैं प्रणाम करता हूं काल के शत्रुरुप महाकाल तथा भगवान विष्णु से वन्दित शिव को मेरा नमस्कार है। इस प्रकार भगवान शिव की वंदना करते हुए भगवान दत्तात्रेय ने महादेव से कैलाश पर्वत हिमालय के महत्व की जिज्ञासा जाननी चाही उनके द्वारा की गई यह स्तुति स्कंद पुराण के मानस खंड के हिमाद्रि चरित्र नामक सातवें अध्याय में वर्णित है ।भगवान दत्तात्रेय की जिज्ञासा को शांत करते हुए स्वयं भगवान शिव ने दत्तात्रेय से कहा हे मुनिश्रेष्ठ हिमालय बड़ा पुण्य स्थल है ।मैंने उसे कभी नहीं छोड़ा अधिक कहने से क्या लाभ त्रिकाल मैं भी उसे मैं कभी नहीं छोड़ा है। हे मुनिश्रेष्ठ अन्य पर्वत उसे बढ़कर पुण्यजनक नही है। इसके समान पृथ्वीतल पर दूसरा कोई पर्वत नहीं है योगीवर मैं वही प्रतिष्ठित हूं और वही सोता भी हूं हिमालय में मेरे सिर देवों से पूजित हैं ,मेरे सिर के उत्तर भाग में स्थित नन्द पर्वत पर मेरे साथ ही ब्रह्मा तथा विष्णु की पूजा होती है ।शिवलिंगों से समायुक्त एवं अनेक नदियों से सुशोभित ना होने के कारण अन्य पर्वत हिमालय के समान श्रेष्ठ नहीं है iप्रियो हिमाद्रिसदृशो नास्ति नास्ति भुवस्तल मानसरोवर की महिमां जानने की इच्छा रखनें वाले धन्वन्तरि ऋषि को परम रहस्य बताते हुए भगवान दत्तात्रेय ने उसकी उत्पति का वर्णन करते हुए कहा।अनेक गणों एंव रुद्र कन्याओं से परिसेवित पार्वती पति शंकर की स्थिति कैलाश पर्वत पर जानकर ब्रहमा के मानस पुत्रों ने यहां घोर तपस्या आरम्भ की तपस्या के प्रभाव से उन्होंने कैलाश पर्वत पर पार्वती सहित हंस रुप में भगवान शंकर को देखा वैदिक और त्रांतिक विधि से उनका पूजन किया। तथा यहां की सुंदर एवं पवित्र भूमि पर वर्षों तक कठोर तपस्या की एक बार हेमंत ऋतु आने पर सर्वश्रेष्ठ पर्वतों पर हिमपात होने से तपस्यारत ऋषियों के मुह कुम्हला गये तथा ब्रह्मा के पुत्र मंदाकिनी तक जाने में असमर्थ हो गये।उस स्थान को जलरहित देखकर वे ब्रहमलोक पहुचें और ब्रहमा की स्तुति की। उनकी स्तुति से ब्रहदेव प्रसन्न हुए अपनी व्यथा बताते हुए उन्होंने ब्रह्मदेव से कहा कि कैलाश पर्वत पर जिस स्थान पर आपकी आज्ञा से हम तपस्या कर रहे थें।वहां वर्फ जमजाने से वह स्थान जलरहित हो गया है।जिस कारण हमारी पूजा पूर्णता से दूर हो गई है.हमारे इस कष्ट का निवारण कीजिये। इस पर लोक पितामह ब्रह्मा ने मानस क्षेत्र की मानस सृष्टि की रचना की और उसके मध्य स्वर्ण हसं के रूप में शिवलिंग को प्रतिष्ठित किया।ब्रहमा जी ने इसे स्वंय हसों से सेवित वंनाया और गौरी पर्वत एंव कैलाश के मध्यवर्ती स्थान को श्री हरि विष्णु के चरणों से निकली अनेक धाराओ से युक्त कर उसे जल से भर दिया।इस प्रकार गंगा के चौदह प्रवाहों से सुशोभित मानसरोवर की ब्रहमा जी ने मानस सृष्टि की।ऋषियों के अनेक सुन्दर तथा पवित्र आश्रमों से पूरित उस सरोवर को अनेक नदियों के मूल उद्गम के रुप में प्रतिष्ठित किया नदियोँ में श्रेष्ठ़ गंगा भी मानसरोवर में प्रकट हुई।तब ऋषिजन व ब्रहमपुत्रों ने मानसरोवर के दर्शन करके अपना जीवन धन्य किया उसके मध्य में स्थित सुवर्ण हंस के रुप में शिवलिंग को देखा।इस प्रकार मानसरोवर का आख्यान सुनकर धन्वन्तरि ने भगवान दत्तात्रेय को प्रणाम किया।आगे भगवान दत्तात्रेय से उन्होनें पूछा अब आप यह भी बताने का कष्ट कीजिए की उस दुर्गम पर्वत को सर्वप्रथम पारकर आरोहण कर उसके स्वरूप का परिचय कराने वाला इस भूमंडल पर कौन है। दत्तात्रेय भगवान ने कहा वेदों में विचारित एवं पुराणों के वचनों से प्रमाणित तथा शुभ लक्षण संपन्न हे धन्वंतरि आप मेरे इस कथन को सुनें वैवस्वत मनु के वंश में उत्पन्न अपने नाम को सार्थक करने वाला मांधाता नाम का एक राजा था ।वह बुद्धिमान तथा प्रजापालन में निरंतर तत्पर रहने को अपना प्रमुख धर्म समझता था सत्यवादी इंद्रियों को दमन करने वाला तथा मूर्तिमान धर्म के समान वह राजा कदाचित योग से विरत हो गया प्रसंगवश स्त्री रूप धारण कर पृथ्वी उस राजा के पास आई महाराज मनु के वंश में उत्पन्न हुए उस राजा को उस स्त्री ने वरण करना चाहाराजा मान्धाता व पृथ्वी के वरण के बीच की कथा विस्तार पूर्वक स्कंदपुराण के मानस खण्ड के दसवें अध्याय में पढ़ी जा सकती है।इसी कथा के प्रसंग में राजा मान्धाता ने ब्रहमा की इस मानस सृष्टि को शिवलिंग सहित प्रकाशित किया।तब से इस शिवलिंग सहित इस मानसरोवर का मनुष्यों को ज्ञान हुआ हिमालय के ऊपरी भाग में स्थित ऋषिर्यों द्वारा प्राप्त यह दुर्गम मानसरोवर मानवों के लिए भी सुगम्य हो गया* *ततः प्रभूति मत्याना मानसाख्यः सरोवर कैलाश पर्वत व मानसरोवर को सर्वप्रथम भूमण्डल पर प्रकाशित करनें वाले राजा मान्धाता के बारे में कहा जाता है,कि वे सूर्यवंशी राजा युवनाश्व के पुत्र थे।ये पिता के पेट से उत्पन्न हुए कहा जाता है,कि एक बार किसी स्थान पर मुनियों ने यज्ञ किया।अर्धरात्री में सामग्री समाप्त होनें पर पवित्र जल को वेदी के मध्य में रखकर ऋषिजन सो गये प्यास से विलखते युवनाश्व वहां पहुचें और प्यास की अधीरता के कारण उस जल को बिना पूछे पी गये।अौर वहीं सो गये।प्रातःकाल उठने पर युवनाश्व ने अपनी भूल को स्वीकार किया।जल के प्रभाव से युवनाश्व ने गर्भ धारण किया बाद में दाहिनी भुजा को तोड़कर गर्भ बाहर किया।और देवराज इन्द्र ने इन्हें मान्धाता नाम दिया गया है हजारों अश्वमेध यज्ञ करनें से सौगुना,काशीवास से हजारगुना,एक ओर सब तीर्थ एंव काशीवास से जो फल मिलता है उससे हजारगुना फल मानस क्षेंत्र के दर्शन से प्राप्त होता है।* अश्वमेधसहत्रेम्यस्तस्य पुण्यं शताधिकम।सहत्रगुणित तस्य काशीवासात्र संशय एकत:सर्वतीर्थानिदानानि विविधानि च।एकतो मानसं क्षेत्रं सर्वक्षेत्रोंत्तमोत्तमम् भगवान दत्तात्रेय ने तो यहां तक कहा है कि इस मृत्युलोक में पहले तो मनुष्य जन्म दुर्लभ है उससे भी बढ़कर दुर्लभ मानसरोवर के दर्शन है श्लोक स्पष्ट है::* *दुर्लभ मानुषे लोके मानुष्यं नृपसत्तम।तत्रापि दुर्लभं मन्ये मानसाख्यस्य दर्शनम्*(स्कंदपुराण मानस खण्ड़ अध्याय13श्लोक 4) सरोवरों में श्रेष्ठ मानसरोवर की कथा का विस्तृत वर्णन शिव पार्वती संवाद में भी मिलता है सरोवरों में श्रेष्ठ मानसरोवर की पूजनीय कथा के द्वारा ही धन्वंतरि को शुद्ध बुद्धि की प्राप्ति हुई तथा स्वयं को धन्य महसूस करते हुए धन्वंतरि जी ने दत्तात्रेय जी से आग्रह करते हुए कहा हे मुनिवर आप के मुख से पावन कैलाश पर्वत व मानसरोवर की कथा को सुनकर मैं धन्य हो गया हूं। अब मैं मानसरोवर में स्थित तीर्थों की महिमा के बारे में जानना चाहती हूं इस पर भगवान दत्तात्रेय बोले भगवान शंकर के द्वारा पार्वती को कृपापूर्वक कहे गए मानसरोवर के तीर्थों का महत्व बड़ा ही निराला है।इसके श्रवण मात्र से जन्म-जन्मांतर के पापों का नाश हो जाता है दत्तात्रेय भगवान ने शिव पार्वती संवाद का सुन्दर वर्णन करते हुए कहना आरंभ किया एक बार कैलाश शिखर पर आसींन देवाधिदेव महादेव भगवान शंकर को प्रणाम करके माता पार्वती ने विनय पूर्वक पूछना आरंभ किया भक्तों के संकटों का हरण करने वाले देवाधिदेव आपनें हंस स्वरुप से अपना वास स्थान मानसरोवर के जल में किस कारण से बनाया है। लोगों को वहां स्नान करने से क्या फल प्राप्त होता है वहां कौन कौन से पवित्र तीर्थ परम वैभव को प्रदान करने वाले हैं कौन कौन से देवता वहां विराजमान हैं।वहां मनीषियों ने कौन कौन से शिवलिगों का पूजन किया है।वहां के किन किन कंदराओं में देवताओं का पूजन होता है।आपके जलमग्न देह को त्यागकर स्वर्णरूप शरीर धारण करनें का क्या रहस्य है।वहां की नदियां किस प्रकार प्रवाहित है।उन नदियों में स्नान करनें पर क्या क्या फल की प्राप्ति होती है।माता पार्वती की प्रिय वाणी को सुनकर भगवान शिव ने स्कंद पुराण मानस खण्ड़ के सोलहवे अध्याय में विस्तार पूर्वक इस गोपनीय रहस्य को समझाया है।जिसका संक्षिप्त सार इस प्रकार है।शिवजी ने कहा सतयुग के प्रारंभ में तीर्थों सहित मानसरोवर की महिमा के कारण हंसों द्वारा में पुजित हुआ लोककल्याण के लिए भक्तों के अनुनय व विनय पर मैने यह धातुरूप धारण किया।स्वर्णहंस के रुप में मेरा दर्शन अभीष्ट है।लेकिन ये दर्शन पुण्यशील प्राणियों को प्राप्त होते है।यहां में तुम्हारे सहित सदा ही ब्रह्मा,विष्णु के साथ वास करता हूँ।इस पावनभूमि के दुर्गमतीर्थ,पर्वत,नाग,देवता,गुफाओं के दर्शन पुण्यात्मा ही प्राप्त करते है।इनकी महिमां का विस्तार पूर्वक सौ वर्षों में भी वर्णन नहीं किया जा सकता है।यहां देवतीर्थ से हसंसरोवर पर्यन्त अनेकों तीर्थ है।जिनमें शम्भुगिरी पर्वत,शेषी गुफा में विराजमान शेषेश्वर महादेव,है।यही से त्रिपथगामिमी शेषी नामक गंगा प्रकट हुई है।जो कर्कोटक आदि नागों से सेवित रही है।इसके मूल भाग में शेषी तीर्थ है।जहां पर स्नान कर मनुष्य विष्णु सायुज्य प्राप्त होता है। इसके पश्चात वरुण तीर्थ है इसमें स्नान करके वरुण का पूजन कर मनुष्य इन्द्र लोक को प्राप्त करते हैं ।शेषी के दक्षिण तट पर कामेश नामक तीर्थ स्थित है जो ब्रह्मलोक प्राप्त कराने में सक्षम है। इसके अतिरिक्त देव तीर्थ महेंद्र ईश्वर शिव स्थान के पास शर्करा नदी है।जहां पर पितृ तर्पण करनें से मनुष्य तीनों ऋणों से मुक्ति पा जाता है।
वहां से 400 हाथ की दूरी पर मेनका तीर्थ ,चित्रगुप्त तीर्थ,यमतीर्थ,यम सरोवर,कपिला नदी,नलगिरी,कपिल आश्रम,नल पर्वत,स्मरगिरीकन्दरा,बाणासुर से पूजित बाणेश्वर,जामदग्न्यतार्थ,काकतीर्थ,श्रृगांलतीर्थ,पुलोमजातीर्थ,रघुनाथतीर्थ,देवभद्रा,सौरभ तीर्थ,तुगंतीर्थ,रामतीर्थ,पुष्पभद्रातीर्थ,इन तमाम तीर्थों की महिमां को विस्तारपूर्वक माता पार्वती को समझाते हुए भगवान शंकर बता रहे है।रामतीर्थ से बढ़कर मानसरोवर में कोई तीर्थ नहीं है यही वह स्थान है।जहां पर प्रभु श्री राम ने अपनें घोड़ो को स्वर्ग जाते हुए छोड़ा था।यही पर श्री राम ने बिष्णु एंव शिव आदि को प्रतिष्ठापित किया है।यहां पर पिण्डदान करनें से पितृगणों का उद्वार करते हुए करोड़ों कुलों सहित मनुष्य को बिप्णु लोक प्राप्त होता है।इसके अतिरिक्त बलितीर्थ,कपितीर्थ,ध्रुव तीर्थ,भूतान्तक तीर्थ,गोशतद तीर्थ,गौरी पर्वत,चन्द्रभागा पर्वत,चन्द्रवती गुफा,शशतीर्थ,बिन्दुमाधव तीर्थ,कुबेर तीर्थ,चण्डेश्वर,सिता तीर्थ,सितेश शिव,बाणतीर्थ,सारस तीर्थ,विश्वनाथ शिला,श्येनतीर्थ,नारदतीर्थ,ज्वालातीर्थ,वटक तीर्थ,देवतीर्थ,श्वानतीर्थ,घण्टाकर्णतीर्थ,गणनाथ तीर्थ,वसिष्ठतीर्थ,कलापक तीर्थ,बकतीर्थ,शारदेश महादेव,प्रभातीर्थ,संज्ञातीर्थ,वामनतीर्थ,सहित अनेकों तीर्थों का वर्णन व उनकी विस्तारपूर्वक अलग अलग महिमां बतलाते हुए भगवान शिव ने माता पार्वती को कैलाश के महात्म्य से अवगत कराया। साथ ही भगवान शिव ने माता पार्वती को बताया मानसरोवर के उत्तरी भाग में जो कैलाश पर्वत है।वहां पाताल के समान 3300 गुफायें है।उनमे तुम्हारे साथ मेरा निवास है।मन्दाकिनी,भद्रा,भद्रेश्वर,गौरीश्वर शिवलिंग,कलापी गुफा,काली गुफा,कालीश्वर,कपिलेश महादेव,कालिकेश,वज्रतीर्थ,मुचुकन्द तीर्थ,कलाप पर्वत,सुनन्दा नदी,वासुकीतीर्थ,मीनतीर्थ,गौतमतीर्थ,स्वर्णधारानदी,कमला गुफा,बहमकपाल तीर्थ,सनत्कुमार तीर्थ,अशिवन तीर्थ,धर्माधर्म तीर्थ,पाशुपत तीर्थ,चक्रतीर्थ,वारूणी नदी,स्वाति नदी,हसंसरोवर,तीर्थों सहित चालीस हजार तीर्थ है।सप्तर्षियों के समान सात प्रमुख पर्वत है।इस प्रकार कैलाश मानसरोवर का महात्म्य भगवान शिव ने भी माता पार्वती को अतुलनीय बताया है*///@ रमाकान्त पन्त///
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