श्रीमद्भागवत कथा के श्रवण से भवसागर से होता है उद्धार: पण्डित दिवाकर जोशी , देखिये वीडियो

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बिन्दुखत्ता/ यहाँ गांधी नगर खल्यान में इन दिनों श्रीमद् भागवत कथा की धूम मची हुई है दूर-दराज क्षेत्रों से भक्तजन यहाँ कथा श्रवण को पहुंचकर अपना जीवन धन्य कर रहे है

 

समाज सेवी श्रीधर प्रसाद कुन्याल श्रीमती नंदी देवी कन्याल एवं उनके परिजनों द्वारा लोक कल्याण व पितरों के उद्धार के लिए कथा का आयोजन हो रहा है स्व० उखा देवी की मधुर स्मृति में यहाँ कथा का वाचन प्रसिद्ध कथावाचक पण्डित दिवाकर जोशी कर रहे है उनकी सुधामय वाणी की धार से कथा का श्रवण कर श्रद्धालु स्वंय को धन्य महसूस कर रहे है

 

श्रद्धालुओं के आपार जन समूह पर कथा की अमृत वर्षा करते हुए श्री जोशी ने कहा हर पल नाम सुमिरन व भक्ति करना ही जीवन का मूल उद्देश्य होना चाहिए। भागवत कथा के श्रवण से जन्म जन्मान्तर के पापों का नाश हो जाता है तथा दुर्लभ मुक्ति की प्राप्ति होती है समस्त सांसारिक मनोकामनाएं पूर्ण होती है
पण्डित श्री जोशी ने कहा सांसारिक कार्य करने के बाद पश्चाताप हो सकता है, परन्तु ईश्वरीय भक्ति, साधना, ध्यान, परोपकार के पश्चात् पश्चाताप का कोई स्थान नही वरन् आनन्द ही आनन्द है। आत्म संतोष की अनुभूति भागवत कथा के श्रवण से प्राप्त होती है।
कथा के तृतीय दिवस पर उन्होंने योगेश्वर भगवान श्री कृष्ण की दुर्लभ लीलाओं का सुन्दर शब्दों में वर्णन किया जिसे सुनकर भक्त भाव विभोर व मन्त्र मुग्ध हो गये

 

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इससे पूर्व उन्होंनें कहा कि अमृत से मीठा अगर कुछ है तो वह श्री कृष्ण का नाम है,सत्यता के मार्ग पर चलकर परमात्मा प्राप्त होंते है, मन-बुद्धि, इन्द्रियों की वासना को यदि समाप्त करना चाहते हो तो हृदय में श्री कृष्ण की भक्ति की ज्योति को जलाना पड़ेगा।
कथा के दौरान श्री कृष्ण के भक्तिमयी भजनों की प्रस्तुति से पांडाल मे उपस्थित भक्त गण झूम उठे तथा दोनों हाथ ऊपर उठा कर श्री कृष्ण भजनों पर झुमते हुए कथा एवं भजनों का आनन्द लिया। उन्होंनें आगे कहा कि श्रीमद्भागवत महान् ज्ञान यज्ञ है। यह मानवीय जीवन को भक्तिमय बना देता है। भगवान् कृष्णकी अद्भूत लीलाओं का वर्णन इसमें समाहित है। भव-सागर से पार पाने के लिये श्रीमद्भागवत कथा एक सुन्दर महासेतु है। श्रीमद्भागवत कथा सुनने से जीवन धन्य-धन्य हो जाता है ब्यास जी ने अपने पुत्र शुकदेव जी को श्रीमद्भागवत पढ़ायी, तब शुकदेव जी ने राजा परीक्षित को जिन्हें सात दिन में मरने का श्राप मिला, उन्हें सात दिनों तक श्रीमद्भागवत की कथा सुनायी। जिससे राजा परीक्षित को सात दिन में मोक्ष की प्राप्ति हुई ।
उन्होंने ने भागवत की महिमां पर प्रकाश डालते हुए कहा।श्रीमद्भागवत वेद रूपी वृक्षों से निकला एक अद्भूत पका हुआ फल है। शुकदेव जी महाराज जी के श्रीमुख के स्पर्श होने से यह पुराण परम मधुर हो गया है। इस फल में न तो छिलका है, न गुठलियाँ हैं और न ही बीज हैं। अर्थात इसमें कुछ भी त्यागने योग्य नहीं हैं सब जीवन में ग्रहण करने योग्य है।यही भागवत की परम विशेषता है। इस अलौकिक रस का पान करने से जीवन धन्य-धन्य कृत कृत हो जाता है इसलिये अधिक से अधिक श्रीमद्भागवत कथा का श्रवण निरंतर करते रहना चाहिये। जितनी ज्यादा कथा सुनेंगे उतना ही जीवन सुधरेगा व परम उद्वार होगा।/ / ब्यूरो

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