देवताओं की रात्रि समाप्त दिन की शुरुवात आज से, तीर्थो पर छायी रौनक

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भगवान सूर्य जब धनु राशि को छोड़ कर मकर राशि में प्रवेश करते हैं तो इसे उत्तरायण काल कहा जाता है। इस अवसर पर प्राणी जगत में एक नये परिवर्तन की शुरूआत होती है जिसे जीवन्त बनाने के लिए त्यौहार एवं उत्सव आयोजित किये जाते हैं। यह अवसर विश्व शांति का महान प्रतीक है। मकर संक्रांति में वसुधैव कुटुम्बकम की पावन भावना सम्पूर्ण विश्व को एक परिवार की तरह रहने का संदेश देती है।
उत्तरायण काल से सूर्य की उत्तरायण गति प्रारंभ होती है इसलिए इसको उत्तरायणी भी कहते हैं। उत्तर भारत में इसे मकर संक्रांति, तमिलनाडु में पोंगल, कर्नाटक, केरल तथा आंधा्र प्रदेश में इसे केवल ‘संक्रांति कहते हैं। हरियाणा और पंजाब में इसे लोहड़ी के रूप में मनाया जाता है।
देवभूमि उत्तराखण्ड में मकर संकांति की पहली रात्रि को जागरण की परम्परा है। इस दिन शुध एवं सात्विक भोजन के उपरान्त रात्रि काल में लोग आग जलाकर उसके चारों ओर बैठ जाते हैं और अपनी प्राचीन परम्परा एवं मर्यादाओं पर आधारित कथा-कहानियां तथा आदर्शों को याद करते हैं। प्रातःकाल नदियों, तालाबों, जल बााराओं पर जाकर सूर्योदय से पूर्व स्नान करते हैं और अपने पूर्वजों की पूजा करते हुए बड़े बुजुर्गों का आशीर्वाद लिया जाता है। कुर्मांचल क्षेत्र में इसे महारानी जिया की जयन्ती के रूप में तथा घुघुतिया त्यौहार के रूप में भी मनाया जाता है।
पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, हिमाचल आदि क्षेत्रों में इस दिन गोबाुली के बाद आग जलाकर अग्नि पूजा करते हुए तिल, गुड़, चावल और भुने हुए मक्के की आहुति दी जाती है। इस सामग्री को तिलचौली कहा जाता है। इस अवसर पर लोग मंूगफली, तिल की गजक, रेवड़ियां आपस में बांटकर खुशियां मनाते हैं। बहुएं घर-घर जाकर लोकगीत गाते हुए लोहड़ी ;मंगल भाग मांगती हैं। नई बहू और नवजात बच्चे के लिए लोहड़ी का विशेष महत्व होता है। इसके साथ पारंपरिक मक्के की रोटी और सरसों के साग का भी लुत्फ उठाया जाता है।
उत्तर प्रदेश में यह मुख्य रूप से दान का पर्व है। इलाहाबाद में यह पर्व माघ मेले के नाम से जाना जाता है। 14 जनवरी से इलाहाबाद में हर साल माघ मेले की शुरूआत होती है। 14 दिसम्बर से 14 जनवरी का समय खर मास के नाम से जाना जाता है। 14 जनवरी यानी मकर संकांति से अच्छे दिनों की शुरूआत होती है। माघ मेला पहला स्नान मकर संतंति से शुरू होकर शिवरात्रि तक यानी आखिरी नहान तक चलता है। संकांति के दिन स्नान के बाद दान करने का चलन है।
मकर संकंति के अवसर पर उत्तराखण्ड के सभी तीर्थों में बड़ा मेले लगते है। जिसमें बागेश्वर का उत्तरायणी मेला, गौचर मेला, देव प्रयाग मेला आदि प्रसिद्व हैं। गंगा, यमुना, सरयू, गोमती, रामगंगा, कौशिकी गंगा, अलकनंदा, भागीरथी आदि सभी नदियों के पवित्र तटों पर स्नान, बयान, साधना व अनुष्ठान करने की परम्परा है। अनेक नदी तटों पर मेले भी लगते हैं। पुण्य स्नान रामेश्वर, चित्रशिला व अन्य स्थानों में भी होते हैं। इस दिन गंगा स्नान करके तिल के मिष्ठान आदि को ब्रहमाणों व पूज्य व्यक्तियों को दान दिया जाता है। उत्तर भारत के अनेक भागों में इस दिन खिचड़ी सेवन एवं खिचड़ी दान का अत्यधिक महत्व होता है।
महाराष्टै में इस दिन सभी विवाहित महिलाएं अपनी पहली संकांति पर कपास, तेल, नमक आदि चीजें अन्य सुहागिन महिलाओं को दान करती हैं। तिल, गूल नामक हलवे के बांटने की प्रथा भी है। लोग एक दूसरे को तिल गुड़ देते हैं और देते समय बोलते हैं- ‘‘तिल गूल बया आणि गोड़ गोड़ बोला’ अर्थात तिल गुड़ लो और मीठा मीठा बोलो। इस दिन महिलाएं आपस में तिल, गुड़, रोली और हल्दी बांटती हैं।
असम में मकर संकांति को माघ-बिहू अथवा भोगाली-बिहू के नाम से मनाते हैं। राजस्थान में इस पर्व पर सुहागन महिलाएं अपनी सास को वायना देकर आशीर्वाद प्राप्त करती हैं। साथ ही महिलाएं किसी भी सौभाग्यसूचक वस्तु का चौदह की संख्या में पूजन एवं संकल्प कर चौदह ब्रांणों को दान देती हैं। अतः मकर संकांति के माध्यम से भारतीय सभ्यता एवं संस्कृति की झलक विविध रूपों में दिखती है।
बंगाल में इस पर्व पर स्नान पश्चात तिल दान करने की प्रथा है। यहां गंगासागर में प्रति वर्ष विशाल मेला लगता है। मकर संतंति के दिन ही गंगाजी भगीरथ के पीछे चलकर कपिल मुनि के आश्रम से होकर सागर में जा मिली थी। मान्यता यह भी है कि इस दिन यशोदा जी ने श्रीकृष्ण को प्राप्त करने के लिए व्रत किया था। इस दिन गंगासागर में स्नान-दान के लिए लाखों लोगों की भीड़ लगी होती है। लोग कष्ट उठाकर गंगा सागर की यात्रा करते हैं। वर्ष में केवल एक दिन मकर संकांति को यहां लोगों की अपार भीड़ होती है। इसीलिए कहा जाता है- ‘सारे तीरथ बार-बार गंगा सागर एक बार।’
तमिलनाडु में इस त्यौहार को पोंगल के रूप में चार दिन तक मनाते हैं। प्रथम दिन भोगी-पोंगल, द्वितीय दिन सूर्य-पोंगल, तृतीय दिन मट्टू-पोंगल अथवा केनू-पोंगल, चौथे दिन कन्या-पोंगल। इस प्रकार पहले दिन कूड़ा करकट इकट्ठा कर जलाया जाता है दूसरे दिन लक्ष्मी जी की पूजा की जाती है और तीसरे दिन पशु बान की पूजा की जाती है। पोंगल मनाने के लिए स्नान करके खुले आंगन में मिट्टी के बर्तन में खीर बनायी जाती है, जिसे पोंगल कहते हैं। इसके बाद सूर्यदेव को नैवेद्य चढ़ाया जाता है। उसके बाद खीर को प्रसाद के रूप में सभी ग्रहण करते हैं। इस दिन बेटी और जमाईं राजा का विशेष रूप से स्वागत किया जाता है।
शास्त्रों के अनुसार, दक्षिणायन को देवताओं की रात्रि अर्थात नकारात्मकता का प्रतीक तथा उत्तरायण को देवताओं का दिन अर्थात सकारात्मकता का प्रतीक माना गया है। इसीलिए इस दिन जप, तप, दान, स्नान, श्राद्व तर्पण आदि धार्मिक क्रियाकलापों का विशेष महत्व है।
मकर सकांति के अवसर पर गंगा स्नान एवं गंगातट पर दान को अत्यंत शुभकारक माना गया है। इस पर्व पर तीर्थराज प्रयाग एंव गंगा सागर में स्नान को महास्नान की संज्ञा दी गयी है। सामान्यतः सूर्य सभी राशियों को प्रभावित करते हैं, किंतु कर्क व मकर राशियों में सूर्य का प्रवेश धार्मिक दृष्टि से अत्यंत फलदायक है। यह प्रवेश अथवा संत्मण त्यिा छः-छः माह के अंतराल पर होती है। भारत उत्तरी गोलासर्् में स्थित है। मकर संतंति से पहले सूर्य दक्षिणी गोलासर्् में होता है अर्थात भारत से दूर होता है। इसी कारण यहां रातें बड़ी एवं दिन छोेटे होते हैं तथा सर्दी का मौसम होता है, किंतु मकर संतंति से सूर्य उत्तरी गोलास की ओर आना शुरू हो जाता है। अतः इस दिन से रातें छोटी एवं दिन बडे होने लगते है तथा गरमी का मौसम शुरू हो जाता है। दिन बड़ा होने से प्रकाश अबिाक होगा तथा रात्रि छोटी होने से अंबाकार कम होगा।
कहा जाता है कि इस दिन भगवान भास्कर अपने पुत्र शनि से मिलने स्वयं उसके घर जाते हैं। चूंकि शनिदेव मकर राशि के रवागी हैं, अतः इस दिन को मकर संतंति के नाम से जाना जाता है। महाभारतकाल में भीष्म पितामह ने अपनी देह त्यागने के लिए मकर संतंति का ही चयन किया था। मकर संतंति के दिन ही गंगा जी भगीरथ के पीछे-पीछे चलकर कपिल मुनि के आश्रम से होकर सागर में जा मिली थीं।

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