गंगा दशहरा विशेष: गंगा तट का यह तीर्थ समर्पित है पितरों को

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हरिद्वार / मायाक्षेत्र के नाम से पुराणों में प्रसिद्व व पावन नगरी हरिद्वार का कुशावर्त तीर्थ पितरों को समर्पित आस्था व भक्ति का निर्मल संगम है। भगवान दत्तात्रेय जी की यह तपस्थली युगों – युगों से पितरों की पूजा का श्रद्वा भरा केन्द्र रहा है। कल- कल धुन में नृत्य करते हुए भगवान शिव को नमन् करती माँ गंगा की निर्मल धारा के सुरभ्य तट पर स्थित इस अलौकिक तीर्थ स्थल की महिमां का वर्णन करते हुए शिव पुत्र कार्तिकेय ने पुराणों में कहा है, कुशावर्त नामक महान् तीर्थ में स्नान करके मनुष्य अपने जन्म जन्मान्तर के पापों से मुक्ति पाकर मोक्ष का अधिकारी बन जाता है, उसका पुर्नजन्म नही होता है। यहां जो स्नान, दान, जप, होम, वेदपाठ तथा पितृतर्पण किया जाता है, वह कोटिगुण अधिक फल देता है।

🌹☘स्नानं, दानं जपो होम: स्वाध्याय: पितृतर्पणम्। यदत्रक्रियते कर्म तत्तत्स्यात्कोटिसंख्यकम्।।(कुशावर्त महात्म्य केदार खण्ड अ० ११२) यह महातीर्थ विशेष रुप से भगवान दत्तात्रेय की तपस्थली के रुप में प्रसिद्व है। कहा जाता है, कि जिस युग में भागीरथ जी के प्रयासों से माँ गंगा का धरती पर आगमन हुआ। आगमन के उसी दौर में लोक मंगल की कामना को लेकर भगवान दत्तात्रेय ने इस स्थान पर एक पैर में खड़े रह कर सहस्त्रों वर्षों तक कठोर तप किया। तपस्या में लीन रहनें के दौरान ही माँ गंगा का यहां से जब आगमन हुआ तो तभी गंगा ने उनके कुश, वस्त्रखण्ड़, दण्ड तथा कमण्डल को अपने वेग में बहा दिया। गंगा के तीव्र वेग की ध्वनि से भगवान दत्तात्रेय का ध्यान भंग हुआ उन्होनें अपनें नेत्र खोले तो गंगा सहित अपनें कुश व कमण्डल को गंगा के भवरों में डोलते देखा तपस्या में गंगा के कारण आयी बाधा से क्रोधित मुनि ने गंगा को भस्म करनें के लिए श्राप देने की तैयारी की तो ब्रह्मलोक सहित समूचे ब्रह्माण्ड में हलचल मचगयी ब्रह्मा सहित सभी देवताओं ने परम भक्ति का आश्रय लेकर कार्तवीर्य (सहस्त्राअर्जुन) के गुरु भगवान दत्तात्रेय की स्तुति की। स्तुति से प्रसन्न मुनि ने गंगा सहित सभी को अभय प्रदान करते हुए कहा इस पावन स्थल पर आप सभी देवता नित्य निवास करें। यहां

🌹☘गंगा ने अपनें भवर में मुझे धारण किया है, इसलिये यह स्थान कुशावर्त महातीर्थ नाम से जगत में प्रसिद्ध होगा। महातीर्थ के नाम से प्रसिद्व कुशावर्त तीर्थ में धन्य मानव अपने पितृजनों का तर्पण करेगें।(*कुशावर्त्तमिति ख्यातं तीर्थमेतद्भविष्यति। धन्या लोका: करिष्यन्ति स्नानं पितृ समर्चमन्।। केदारखण्ड अध्याय ११२ श्लोक ९)। भगवान दत्तात्रेय ने इस स्थान को वरदान देते हुए कहा है, जो भी यहां अपनें पितृजनों का श्रद्धापूर्वक तर्पण करेगा उसका भी पुर्नजन्म नहीं होगा। महातीर्थ कुशावर्त में दिया गया दान कोटिगणित फलदायी होगा। (कुशावर्ते महातीर्थे दंत्त स्यात्कोिटिसंख्यकम्)। विराट महिमां की अलौकिक गाथा का यह पावन तीर्थ हर युग में परम पूज्यनीय है। इस स्थल की महिमां के बारे में कहा जाता है, कि भगवान श्री रामचन्द्र जी ने भी यहां अपनें पिता दशरथ व पितृजनों का तर्पण कर पितरों का आशीर्वाद लेकर अक्षय कीर्ति अर्जित की* मायाक्षेंत्र हरिद्वार की महिमा अतुलनीय है। पितृजनों को समर्पित कुशावर्त तीर्थ सहित अनेकों पुण्यदायक तीर्थ कुशावर्त तीर्थ के आसपास शोभायमान है। कुशावर्त के दक्षिण भाग में बिष्णुतीर्थ का जिक्र भी पुराणों में विस्तार के साथ किया गया है। विष्णुप्रिय स्थल की कथा सूर्यवंशी राजा धर्मध्वज के साथ भी जुड़ी हुई है। जिसका पुराणों में विस्तार के साथ वर्णन आता है। ऋषि दुवार्षा के श्राप से उन्हें यहां मुक्ति प्राप्त हुई।माया क्षेंत्र हरिद्वार की महिमां का बखान स्कन्द भगवान ने नारद जी को विस्तार के साथ बताते हुए कहा है। माया सृष्टि, स्थिति व प्रलय करनें वाली साक्षात् भगवती है। माँ भगवती के आँचल में स्थित हरिद्वार, कुशावर्त, विल्वक, नील पर्वत व कनखल में स्नान करनें वाले का पुर्नजन्म नहीं होता है।(*गंगाद्वारे कुशावर्ते बिल्वके नीलपर्वते। स्नात्वा कनखले तीर्थे पुर्नजन्म न विद्यते।।) चण्डिकातीर्थ का स्नान भी बड़ा ही पुण्यदायी बतलाया गया है। कुशावर्त तीर्थ सहित गंगा के पावन तटों में स्नान करके दक्षेश्वर महादेव के दर्शन का फल धन्यता को प्रदान करता है,इस अद्भूत महिमां का जिक्र भगवान स्कंद ने नारद जी को मायाक्षेत्र महात्म्य में बताया है जिसका जिक्र पुराणों में विस्तार के साथ वर्णित है। *🌹☘मायाक्षेत्र की परिधि में ही कुशावर्त के महात्म्य के साथ रामतीर्थ, हृषीकेष तीर्थ, लक्ष्मणतीर्थ, सहित उनेकों आद्वितीय तीर्थ स्थल है। सभी का अपना अपना विशेष महत्व है। गंगाद्वार तीर्थ की महिमां के बारे में तो कहा गया है। इस जैसा पावन तीर्थ भूतल पर दूसरा नही है

कुल मिलाकर नदियों में श्रेष्ठ, विष्णु के चरण कमल से उत्पन्न, शिवजी के मस्तक पर निवास करने वाली, ब्रहमा के कलश में स्थित, शिव समागम देने वाली, मुक्ति देने वाली, त्रिमूर्ति माँ गंगा के कुशावर्त तीर्थ की महिमां को शब्दों में नहीं समेटा जा सकता है* कहा भी गया है,*वेदाध्ययन कर्माणि तथा यज्ञादिकाक्रिया: पृथ्वी पर्यटन वापि स्नानं सागर सगंमें। मायापुरीति या सम्यक् कलां नार्हन्ति षोडशीम्* अर्थात् वेदों के अध्यनकर्म तथा यज्ञ आदि क्रियायें अथवा पृथ्वी पर्यटन या गंगासागर संगम में स्नान ये सब मायापुरी की सोलहवीं कला के बराबर भी नही है

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