हल्द्वानी का स्वर्ग आश्रम गुमनामी के साये में गुम

हल्द्वानी का स्वर्ग आश्रम गुमनामी के साये में गुम
ख़बर शेयर करें

हल्द्वानी। देवभूमि उत्तराखंड की धरती शिव व शक्ति की पावन भूमि के रूप में समूचे विश्व में परम आस्था व श्रद्धा के साथ पूजी जाती है हिमालय के आंचल की इस पावन भूमि में एक से बढ़कर एक आस्था को रेखांकित करते तीर्थ स्थलों की लंबी श्रृंखलाएं मौजूद है यहां की पर्वत मालाओं में जहां लोक देवताओं का निवास है वही शिवालय एवं शक्तिपीठों की भव्य आभा के कदम- कदम पर दर्शन होते है आध्यात्मिक विराट आभा का ऐसा ही एक मन भावन केन्द्र है पनियाली श्रोत कठघरिया का पंचवटी स्वर्ग आश्रम।

इस आश्रम को सीताराम बाबा आश्रम के नाम से भी पुकारा जाता है हल्द्वानी की धरती की परिधि में कठघरिया से आगे इस स्थल के प्रति स्थानीय लोगों में बहुत ही गहरी आस्था है दूर-दराज क्षेत्रों से भी भक्तजन यहां पहुंचकर मनौती मांगते हैं ऐसा माना जाता है यहां पर मांगी गई मनौती बहुत ही जल्दी फलदाई होती है आध्यात्मिक वातावरण की अलौकिक छटाओं में स्थित यह आश्रम बहुत ही सुंदर व मनभावन है घने जंगलों के मध्य कल-कल धुन में बहती नदी इस देव स्थल की आदितीय शोभा है

पर्यटन और तीर्थाटन के लिहाज से यह स्थान लगभग गुमनामी के साए में गुम है इस भूमि के सानिध्य में प्रसिद्ध संत नानतिन बाबा महाराज जी ने माँ पीतांबरी की साधना करके अलौकिक सिद्धियां प्राप्त की यह भूमि महान संतों की साधना भूमि का केन्द्र रहा है।

उत्तराखंड के परम पवित्र चार धामों के समान ही क्षेत्र में प्रवेश के चार द्वार जिनमें टनकपुर हल्द्वानी कोटद्वार और ऋषिकेश का भी सदियों से अपना एक विशेष महत्व रहा है पर्वतीय एवं मैदानी क्षेत्रों के यह संधि स्थल जहां अपनी प्राकृतिक सुंदरता से अभिभूत हैं वहीं इनके आंचल में अध्यात्म की आभा भी समाई हुई है सुन्दर आभा मण्डल को अपने आंचल में समेटे पनियाली श्रोत के सीताराम बाबा स्वर्ग आश्रम का हल्द्वानी के निकट होने के बावजूद भी विकास न हो पाना व गुमनामी के साये में होना कही न कही इस स्थल की उपेक्षा को दर्शाता है।

प्रसिद्ध वैष्णव संत स्वामी मोहनाचार्य जी बताते हैं कि यह आश्रम सदियों से किसी प्रकार अपनी स्थिति को संभाले हुए हैं जबकि पर्यटन की दृष्टि से इसे विकसित किया जा सकता है बताते है कि आज से लगभग 35 वर्ष पूर्व महान् तपस्वी योगी श्री 1008 सीताराम महाराज जी यहां निरंतर साधना में सलग्न रहते थे उनकी सशरीर उपस्थिति में यहाँ समय-समय पर अनेकों धार्मिक कार्यक्रम आयोजित होते थे संत महात्माओं व दर्शनार्थियों का यहां निरंतर आवागमन लगा रहता था प्रत्येक कार्तिक पूर्णिमाँ के पावन अवसर पर विशाल मेला लगता था जिसमें पश्चिमी उत्तर प्रदेश व आज के उत्तराखंड के हजारों भक्त व दर्शनार्थी प्रसाद ग्रहण करते थे।

बताया जाता है कि महान योगी सीताराम बाबा अलौकिक सिद्धियों के स्वामी थे शिव शक्ति के परम उपासक थे उनकी आयु का कोई निश्चित अनुमान किसी को नहीं था यह भी मान्यता है कि वह लगभग 350 वर्ष तक रहे उनके स्वधाम गमन के बाद इस स्थान की रौनक गुमसुम सी हो गई कुछ वर्षो बाद उनके पौत्र शिष्य श्री108 बजरंग दास जी महाराज ने धीरे-धीरे अपनी साधना व भजन के बल से इस दिव्य स्थान को सिंचित व जागृत किया लगभग 2 वर्ष पूर्व उनके बैकुंठ वास के बाद उनके योग्य शिष्य श्री गोपाल दास जी महाराज आश्रम की भजन पूजन व साधना की परंपरा को संभाले हुए हैं इस आश्रम की सुंदरता बरबस ही आगंतुकों को अपनी ओर आकर्षित करने में पूर्णतया समर्थ है।

यदि सरकारी स्तर पर इस आश्रम को विकसित करने के प्रयास किए जाएं तो यह स्थान पर्यटन एवं तीर्थाटन का एक विशेष केंद्र बन सकता है लेकिन हैरत की बात तो यह है कि इस स्थान के बारे में अनेकों स्थानीय लोगों को भी ढंग से जानकारी नहीं है तमाम प्रकार की सुविधाओं का यहां अभाव है यहां तक की आश्रम में लाइट प्रकाश आदि की भी व्यवस्था नहीं है घने वृक्षों की छांव में स्थित होने के कारण यहां शाम ढलने से पहले ही अंधेरा हो जाता है इस स्थान का पौराणिक महत्व क्या है यह अभी शोध का विषय है

Ad
Ad Ad Ad Ad
Ad