गौलापार,/हल्द्वानी/सूर्या देवी की महिमां स्थानीय जनमानस में काफी लोकप्रिय है, दूर-दराज क्षेत्रों से भी भक्तों का आवगमन यहाँ लगा रहता है, नवरात्रि व वट सावित्री को भक्तों की खासी भीड़ यहां पर लगी रहती है, समय- समय पर आयोजित धार्मिक समारोह में लोग काफी संख्या अपनी -अपनी भागीदारी यहाँ अदा करते है लोग आस्था व भक्ति के साथ माँ सूर्या देवी को निरंतर याद करते है।
सूर्या देवी मंदिर क्षेत्र पाण्डव कालीन गाथाओं को भी अपने आप में समेटे हुए है, माना जाता है, कि वनवास काल के दौरान पाण्डवों ने अपना काफी समय सूर्या देवी की शरण में व्यतीत किया, सूर्या देवी शक्ति क्षेत्र की सबसे बड़ी विशेषता यह है, कि यह देवी शैलजाम नदी के तट पर एक वट वृक्ष के मध्य में है, “भक्तजनों को देवी की पूजा अर्चना के लिए वृक्ष के मध्य में अपना भाव अर्पित करना पड़ता है*
सदियों से स्थित यह वृक्ष सूर्या देवी की विराट महिमा का बखान करता प्रतीत होता है, वट वृक्षों में विराजित शक्ति के बारे में देवी भागवत में आता है।*
*🌿अश्वत्थवट निम्बाम्रकपित्थ बदरीगते । पनसार्ककरीरादिक्षीर वृक्षस्वरुपिणी* ॥
*🍃दुग्ध वल्लीनिवासार्हे दयनीये दयाधिके । दाक्षिण्यकरुणारुपे जय सर्वज्ञवल्ल्मे* ।।
*🍃अर्थात् पीपल, वट, नीम, आम, कैथ, बेर में निवास करने वाली देवी महान दयालु कृपालुता करुणा की साक्षात् मूर्तिस्वरुपा है*
वट वृक्षों के मध्य निवास करने वाले शक्तियाँ साक्षात् शिव का ही स्वरुप मानी जाती है। जगदम्बा माता की महाविराट शक्ति के रूप में ही लोग यहाँ माता सूर्या देवी की वंदना करते है, हिमालय भूमि में पूज्यनीय तमाम शक्तिपीठों की भांति ही माता सूर्या देवी पूज्यनीयां व वदनीया है, इस स्थान पर शक्ति का अवतरण कब व किस प्रकार हुआ इसका कोई उल्लेख नही है, सदियों से लोग यहाँ देवी की पूजा अर्चना बड़ी श्रद्धा व भक्ति के साथ करते आ रहे है, जानकार लोग बताते है सूर्या देवी की आराधना श्रावण मास में दही से, भाद्रपद मास में शर्करा से,अश्विन मास में खीर कार्तिक मास में दूध, मार्गशीर्ष महीने में फेनी एवं पौष में दूधि कूर्चिका माघ में महीने में गाय के घी का फाल्गुन के महीने में नारियल चैत्र में भावनाओं के निर्मल मोती वैशाख मास में गुड़ मिश्रित प्रसाद, ज्येष्ठ में शहद, आधार में नवनीत व महुए के रस का नेवैद्य माँ सूर्या देवी को अर्पित करना चाहिए*
महामंगल मूर्तिस्वरुपा महेश्वरी महादेवी परमेश्वरी सूर्या देवी को इनके भक्तजन सिद्धिकारिणी व कष्ट निवारिणी देवी के रुप में पूजते है। आस्थावान भक्तजन बताते है, इस दरबार में आकर जिसने सच्चे मन से सूर्या देवी का स्मरण कर लिया वह सदैव वैभवशाली रहता है, कोटि सूर्यो की आभाधारण करने वाली सभी प्रकार की सिद्धियां प्रदान करने वाली देवी सूर्या की महिमा अपरम्पार बतायी जाती है,
देवी के उपासक इन्हें सर्वशक्तिस्वरुपा महेश्वर की शाश्वत शक्ति साधकों को सिद्धि देने वाली सिद्विरुपा, सिद्वश्वेरी, ईश्वरी आदि तमाम नामों से पुकारते है। कहा जाता है अनेकों साधकों ने यहाँ साधन करके अलौकिक सिद्धियां प्राप्त की, इस क्षेत्र की पर्वतमालाएं कल- कल धुन में नृत्य करती नदियां पूरे क्षेत्र को नवजीवन प्रदान करती है, कहा जाता है, कि यूं तो असंख्य धनाढ्य लोग मॉ के भक्त है कोई भी यहां पर मंदिर का निर्माण करवा सकता है परन्तु मान्यता है कि इस स्थान पर माता मन्दिर में नही बल्कि प्रकृति के खुले वातावरण में रहना चाहती है, कहा जाता है कि एक बार किसी भक्त ने यहा पर भव्य मंदिर के निर्माण की बात सोची तो उसी रात्रि स्वप्न में प्रकट होकर माता ने ऐसा करने से कदाचित मना किया कहा तो यहां तक जाता है कि यहां पर भव्य मंदिर के निर्माण की योजना एक बार महायोगी हैड़ाखान बाबा ने संकल्प पूर्वक बनायी तो माता सूर्या देवी ने बाबा हैड़ाखान जी को भी इस कार्य को करने से रोक दिया था, सेलजाम के पवित्र नदी के तट पर पर्वत की तलहटी पर स्थित आदि काल से पेड़ की गोद में विराजमान इस वट वृक्ष का नदी का तेज बहाव भी कुछ नही बिगाड़ पायी है गौलापार नामक गाँव से पूर्व दिशा में लगभग सत्रह किलोंमीटर की यात्रा के साथ इस मंदिर तक आसानी से पहुंचा जा सकता है, इसी के समीप काल भैरव जी का मंदिर स्थित है। माँ के साथ महादेव जी के दर्शन से लोग यहाँ आकर धन्य हो उठते है
माँ सूर्या,मंगला,वैष्णवी, माया, कालरात्रि, महामाया मंतगी, काली, कमलवासिनी, शिवा, सर्वमंगलरुपिणी सहित अनन्त नामों से भक्तों के हृदय में वास करने वाली महेश्वरी महादेवी की पूजा अर्चना से व आराधना करने पर भगवती नरक रुपी दुर्ग से उद्धार कर परम पद प्रदान करती है, देवभूमि उतराखण्ड में शक्तिपीठों के क्रम में स्थान-स्थान पर स्थित देवी के शक्ति स्थल परम पूजनीय है, इन्ही स्थलों पर गौला पार से लगभग 17 किमी आगे सेलजाम नदी के तट पर सूर्या देवी का पावन स्थान सदियों से भक्तों को असीम व अलौकिक शान्ति प्रदान करता आ रहा है।इस स्थान पर पहुंचने पर सांसारिक मायाजाल में भटके मानव की समस्त व्याधियाँ शान्ति को प्राप्त हो जाती है।
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