उत्तराखण्ड़ की धरती में यहाँ स्थित है परम आस्था का केन्द्र माँ ज्वाला देवी का मन्दिर

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हिमालय की गोद में बसे उत्तराखंड के पवित्र आंचल में स्थित जनपद चंम्पावत के मादली देवल गांव में स्थित माँ ज्वाला देवी का मंदिर प्राचीन काल से आस्था व भक्ति का अलौकिक संगम है उत्तराखंड की धरती पर यह एक ऐसा अलौकिक स्थान है जहां पर माँ ज्वाला देवी की पूजा बड़े ही श्रद्धा और भक्ति के साथ की जाती है इस क्षेत्र के भक्तजन बताते हैं कि जो भी प्राणी माँ ज्वाला देवी के चरणों में अपने आराधना के श्रद्धा पुष्प सच्चें मन से अर्पित करता है उसके रोग शोक दु:ख दरिद्र एवं विपत्तियों का हरण हो जाता है इस देवी को करुणा की साक्षात देवी भी कहा जाता है

 

मादली देवल गाँव में स्थित माँ ज्वाला देवी की महिमां इतनी विराट है कि उसे शब्दों में नहीं समेटा जा सकता है विभिन्न पर्वो पर यहां समय -समय पर अनेकों धार्मिक कार्यक्रम आयोजित होते रहते है देवी के इस दरबार में भजन कीर्तन व रात्रि जागरण की विशेष महिमां है धन हीन धन की इच्छा से निःसन्तान दम्पति सन्तान की इच्छा से सांसारिक क्लोशों से घिरे प्राणी शान्ति की इच्छा से विरक्त जन मुक्ति की इच्छा से तथा भांति -भाति प्रकार के मनोरथ लेकर लोग माँ के दरबार में पहुंचकर मनौती मांगते है

माँ ज्वाला देवी का मूल स्थान हिमांचल प्रदेश के कांगड़ा में स्थित है उसी स्थान की दिव्य ज्योति एक रुप में यहाँ भी विराजमान है माँ ज्वाला देवी मन्दिर की कथा दक्ष प्रजापति के यज्ञ से जुड़ी हुई है
कहा जाता है, कि दक्ष प्रजापति द्वारा एक बार कनखल हरिद्वार की भूमि में एक विराट यज्ञ का आयोजन किया गया इस यज्ञ उन्होनें अपनी पुत्री सती व शिव को आमंत्रित नही किया आमंत्रित न किये जानें का कारण जानने के लिए जब माता सती यज्ञ स्थल पर पहुंचीं तो यज्ञ में शिवजी का भाग न देखकर और पिता द्वारा किये गये शिवजी के अपमान से कुपित होकर माता शती ने यज्ञ कुंड में अपनी आहुति दे दी शिवजी को जब यह सूचना मिली तो उन्होने अपने गण वीर भद्र व माँ भद्रकाली सहित तमाम गणों को भेजकर यज्ञ ध्वस्त करवा दिया शिवगणों के ताण्डव से समूचे क्षेत्र में हाहाकार मच गया वीरभद्र ने दक्ष प्रजापति की गर्दन काट डाली बाद में दक्ष प्रजापति की पत्नी व अन्य देवगणों ने शिवजी की प्रार्थना कर क्षमा याचना की शिवजी प्रकट हुए दक्ष प्रजापति को बकरे का सिर प्रदान कर जीवन दान दिया और यहाँ से माता सती के अधजले शरीर को लेकर वे आकाश मार्ग का भ्रमण करने लगे भगवान विष्णु ने चक्र से शरीर का भेदन किया जहाँ – जहाँ माता सती के अंग गिरे वे शक्ति पीठ के रूप में पूजित हुए कहा जाता है हिमाचल के कागड़ा नामक स्थान पर माता सती की जीभ गिरी और यह स्थान ज्वाला देवी के नाम से जगत में प्रसिद्ध हुआ

 

देवभूमि उत्तराखंड में स्थित चंपावत की धरती अध्यात्म की दृष्टि से बड़ी ही अलौकिक भूमि है यहाँ के कण-कण में शिव शक्ति का वास है गौरवशाली इतिहास को समेटे चंपावत नगरी कभी चंद्रवंशी राजाओं की राजधानी भी रही है
कांगड़ा की भांति ही परम पूजनीय चम्पावत की ज्वाला देवी को यहाँ स्थापित करनें का श्रेय भी इन्हीं को जाता है मान्यता के अनुसार के जब चंद राजा चम्पावत में आए तो कांगड़ा से यहां आए विद्वान पांडे ब्रह्ममणों को उन्होंने अपना मार्गदर्शक व कुलगुरु बनाया। बताया जाता हैं कि जब कांगड़ा से पांडेय परिवार यहां आये तो अपने साथ अपनी ईष्टदेवी माँ ज्वाला देवी की एक शक्ति पिंड भी साथ में लाये और उन्होंने इसे अपनी वास भूमि के समीप बडे ही श्रद्वापूर्वक स्थापित किया माँ ज्वाला का एक स्वरूप यहाँ भी ज्वाला देवी की भांति ही परम पूजनीय है मांदली देवल गांव में स्थित माँ ज्वाला देवी यहाँ की पावन धरती में परम आस्था का केन्द्र है

देवी के इस दरबार में विगत दिनों दशहरे के पावन अवसर पर मादली देवल गाँव के ग्राम वासियों ने भव्य तरीके से श्रद्धा व भक्ति पूर्वक माँ ज्वाला देवी की पूजा अर्चना के साथ सुन्दर काण्ड हवन यज्ञ आदि अनेक धार्मिक अनुष्ठान आयोजित किये मुख्य पुरोहित गिरीश चन्द्र पाण्डेय की अगुवाई में माँ की परम भक्त गोविन्दी देवी , मनोज पाण्डेय , कैलाश पाण्डेय, हरीश चन्द्र पाण्डेय, के० एन० पाण्डेय सहित भुवन चन्द्र पाण्डेय , पूरन चन्द्र पाण्डेय, भैरव पाण्डेय सहित समस्त ग्राम वासियों ने पूजा – अर्चना में भाग लिया

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