हिमालय के अद्भूत न्यायकारी देवता अलाईमल को पूजा जाता है कालाढूंगी के इस गाँव में, नवरात्री पर भक्तों की लगती है भीड़

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कालाढूंगी/ उत्तराखण्ड की धरती में गढ़वाल क्षेत्र में जहाँ प्रसिद्ध चार धाम तीर्थ यात्रियों के श्रद्धा का आपार केन्द्र है वहीं कुमाँऊ की धरती पर ग्राम एवं लोक देवताओं की महिमा यहां आनें वाले आगन्तुकों की धार्मिक चेतना को जगाती है। यहाँ की पावन भूमि पर एक से बढ़कर एक महाप्रतापी ग्राम देवता वास करते हैं पौराणिक गाथाओं से जुड़े ग्राम देवताओं के ये मन्दिर पवित्र पर्वत मालाओं की सुन्दर विराट आध्यात्मिक शोभा को दर्शातें है इन ग्राम देवताओं के विभिन्न रूपों में अद्भूत समानता है। लगभग सभी देवता अपने भक्तों से प्रसन्न होने पर उसका कल्याण करते हैं और अपनी अवमानना करने वाले पर नाराज भी जो अपने अधिकारों के लिए कोर्ट-कचहरी के चक्कर नही काट सकते वे उनके पास न्याय मांगने चले जाते हैं और आधुनिक चिकित्सा विज्ञान जब असाध्य रोगों के समक्ष हथियार डाल देता है तो रोगी के परिजन इनके पास आकर उसके स्वस्थ होने व लम्बी उम्र की कामना की प्रार्थना करते हैं। मान्यता है कि ग्राम देवता के मन्दिर आने पर अराधकों की कामना पूरी होती है इसलिए आज के वैज्ञानिक एवं भौतिकतावादी युग में भी लोगों का उन पर अथाह विश्वास बना हुआ है।

अचल श्रद्धा व अखण्ड विश्वास की डोर के साथ कुमाऊँ की धरती पर अलाईमल देवता इंसाफ अर्थात् न्याय के लोक देवता के रूप में प्रसिद्ध है संकट व अन्याय के घिरे लोगों की महाविपदाओं का हरण करने वाले देवता के रूप में इनकी पूजा की जाती है इनके दरबार में स्टाम्प पत्र व पत्र लिखकर भी लोग न्याय मांगते है एवं मनौती मांगते है नियम संयम व कठोर आध्यात्मिक अनुशासन के साथ इनके शक्ति स्थल पर पुजारी पूजा करते है इनकी पूजा में निर्मलता व पावनता का विशेष ध्यान रक्खा जाता है कुमाऊँ में अनेक भागों में इनके मंदिर है जनपद पिथौरागढ़ के अनेक स्थानों पर इनकी विशेष पूजा होती है अपने ईष्ट देवता के रूप में भक्तजन इनका बड़े ही आदर भाव के साथ इनके दरबार में शीष नवाते है डीडीहाट क्षेंत्र के लखैती गाँव में इनका भव्य मंदिर बेहद आकर्षण व मनभावन का केन्द्र है
बाहरी क्षेत्रों में प्रवास करने वाले इस क्षेत्र के लोग इन्हें कदापि नहीं भूलते है और जहां भी रहते है इन्हें याद करते है

जनपद नैनीताल के कालाढूंगी क्षेत्र के प्रतापपुर गाँव में भी इनका मंदिर आस्था व भक्ति का संगम है जहां दूर -दूर क्षेंत्र से लोग दर्शनों को आते है इस मंदिर के आस्थावान भक्त गिरधर सिंह बसेड़ा ने बताया कि यहाँ पर अलाईमल देवता की स्थापना लगभग 1970 के आसपास जनपद पिथौरागढ़ के लखैती गाँव से लाकर यहाँ की गयी उन्होंने बताया अलाईमल देवता के प्रति गहरी भक्ति-भाव रखनें वाले लछम सिंह बसेड़ा जी ने यह भूमि दान में दी और वही इन्हें यहाँ लेकर आये स्थानीय भक्तों के सहयोग से मंदिर का निर्माण किया गया पूर्ण विधि विधान व नियम के साथ यहाँ देवता की पूजा की जाती है मंदिर के भीतर पुजारी एवं आचार्य ही प्रवेश कर सकते है
श्री बसेड़ा ने बताया नवरात्रियों के अवसर पर यहाँ अलाईमल देवता का विशेष पूजन होता खासतौर से पाँचवी नवरात्रि को मन्दिर में विशेष रौनक रहती है इस दौरान प्रतापपुर बिदरामपुर रामपुर कालाढूंगी खड़कपुर चौधरी गेट चकलुवा हल्द्वानी से भक्त यहाँ दर्शनों को पहुंचतें है मनौती पूर्ण होनें पर यहाँ घटियां भी चढ़ायी जाती है गंगा सिंह बसेड़ा गोकुल सिंह बसेड़ा राजेन्द्र सिंह बसेड़ा दीवान सिंह बसेड़ा आदि मंदिर के तमाम भक्त जन सदैव मंदिर की सेवा में तत्पर रहते है

हिमालय के महा प्रतापी देवता अलाईमल की गाथा दंत कथाओं में गायी जाती है माना जाता है कि महाभारत काल के महाप्रतापी योद्वा भीष्म पितामाह व इनके पिता में बेहद मित्रवत स्नेह था इनके पिता एक वसु थे जो महाप्रतापी राजा हुए जिनका नाम दयोमल था इनकी प्रसिद्धि व प्रतिभा से प्रभावित होकर मलयनाथ भागीमल सहित तमाम देवताओं ने आदर पूर्वक इन्हें अपने आदर्श के रूप में स्थापित किया और भागीमल देवता की पुत्री रौला कयौला के साथ इनका विवाह हुआ और महाप्रतापी देवता अलाईमल के रूप में एक न्यायकारी देवता ने जन्म लिया जिनके न्याय की गाथायें काफी प्रसिद्ध है हिमालयी क्षेंत्र के अनेक भूभागों में इनकी पूजा होती है न्याय के लिए स्टाम्प पत्र यहाँ अर्पित होते है दो पक्षों का विवाद यदि मन्दिर पहुंचता है तो सुलह समझौते के बाद दोनों पक्ष पूजा अर्चना कर विशाल भण्डारा आयोजित करते है

कुल मिलाकर अलाईमल देवता परम न्यायकारी देवता के रूप में पूजित है

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