“क्या ‘ॐ नमः शिवाय’ मंत्र जपने के लिए गुरु से दीक्षा आवश्यक है?”
यह प्रश्न शैव साधना, वेदांत और तंत्र परंपरा तीनों दृष्टियों से महत्वपूर्ण है।
आइए इसे शास्त्रीय आधार पर सरल रूप में समझते हैं
१. “ॐ नमः शिवाय” मंत्र का स्वरूप सार्वभौम और मुक्तिदायक
यह मंत्र पंचाक्षरी मंत्र कहलाता है — “न-म-शि-वा-य”।
शैवागमों और वेदों में इसे परम पवित्र, स्वयंसिद्ध मंत्र कहा गया है।
इसका अर्थ है — यह मंत्र अपने आप में पूर्ण है, किसी विधि या दीक्षा के बिना भी फलदायी है।
२. शास्त्रों में उल्लेख — (लिंग पुराण, शिव पुराण, तथा योगशिखा उपनिषद)
(क) लिंग पुराण (अध्याय ८८):
“पंचाक्षरं हि मन्त्रं तु सर्वसिद्धिप्रदायकम्।
न तत्र दीक्षा विध्यन्ति स्वयंसिद्धं शिवोक्तकम्॥”
अर्थ:
“‘ॐ नमः शिवाय’ यह पंचाक्षरी मंत्र स्वयं सिद्ध है। इसके लिए किसी विशेष दीक्षा की आवश्यकता नहीं, क्योंकि इसे स्वयं भगवान शिव ने प्रकट किया है।”
अर्थात: यह मंत्र “स्वयंसिद्ध मंत्र” है कोई भी श्रद्धा और शुद्ध मन से इसका जाप कर सकता है।
(ख) शिव पुराण (विद्येश्वर संहिता, अध्याय १७):
“शिवनाम जपं कुर्याद् अनन्यचित्तः सदा नरः।
गुरुदीक्षां विनाप्येव शिवलोके महीयते॥”
अर्थ:
“जो व्यक्ति एकाग्र मन से शिव नाम का जाप करता है, वह बिना दीक्षा के भी शिवलोक को प्राप्त होता है।”
स्पष्ट संकेत:
गुरु दीक्षा अनिवार्य नहीं, परंतु यदि गुरु से प्राप्त हो तो शक्ति और फल अधिक होता है।
३. तांत्रिक या दीक्षित परंपरा में स्थिति
शैव तंत्र में दीक्षा का महत्व ‘मंत्र की शक्ति जागरण’ के रूप में माना गया है।
गुरु दीक्षा से साधक को मंत्र-शक्ति, न्यास और शुद्धि की विधि सही रूप में समझाई जाती है।
इसलिए
> बिना गुरु के जाप करना वर्जित नहीं है,
लेकिन गुरु से दीक्षा प्राप्त करने पर मंत्र का प्रभाव और साधना की गहराई बढ़ जाती है।
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