दुर्लभ जानकारी :माँ बंगलामुखी देवी को समर्पित है हिमालय की यह दुर्लभ जात्रा

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उत्तराखण्ड़ की धरती पर कांकड़ा मयेली मध्य हिमालय माँ जगदी मैत जात्रा माँ बंगला मुखी को समर्पित है प्रति वर्ष चलनें वाली पाँच दिवसीय यह जात्रा अपनें आप में अदितीय व अलौकिक है लेकिन प्रचार प्रसार के अभाव में इस जात्रा का जिक्र गुमनामी के साये में गुम है हिमालय की यह विराट दुर्लभ तीर्थ यात्रा युगों- युगों से आस्था व भक्ति का अलौकिक संगम है

जनपद टिहरी गढ़वाल के भिलंग पट्टी के घुत्तू बुंगली धार के माँ बंगलामुखी मंदिर से चलने वाली यह जात्रा इस वर्ष आध्यात्मिक जगत में एक यादगार यात्रा रही इस यात्रा के प्रमुख यात्री श्री रामकृष्ण शरण जी महाराज ने बताया कि इस वर्ष यह यात्रा 29 अगस्त से आरम्भ हुई और दो सितम्बर तक चली उन्होनें बताया कि यह जात्रा इतनी आनन्द भरी होती है कि इसका वर्णन शब्दों में नहीं किया जा सकता है इस जात्रा के पाँच पड़ावों में पहला पड़ाव पवांली काठा दूसरा पड़ाव राजखरक ताली बुग्याल दिवालांच चौकी बुग्याल होते हुए विश्राम लुहारा में होता है इस स्थान पर प्राचीन काल से माता की पूजा अर्चना होती है तीसरे दिन माता रानी की यात्रा यहाँ से आगे बढ़कर डोली के साथ मैत कागड़ा मयेली पहुंचते है जहां पर रात भर माता रानी की पूजा अर्चना हवन यज्ञ रात्रि जागरण कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं चतुर्थ दिवस पुनः माँ के मंदिर के विग्रह के दर्शन व पूजन के बाद माता रानी की डोली से आशीष लेकर जात्रा से वापसी कर पंवाली काठा में रात्रि विश्राम करते है और पंचम दिवस को यह यात्रा वापिस माँ बगलामुखी क्षेत्र बुंगली धार पहुंचती है जहाँ रात भर भजन कीर्तन से यहां का वातावरण बड़ा ही अद्भुत मनोरम रहता है इस तरह से पंच दिवसीय यात्रा माँ बगलामुखी को समर्पित है उन्होंने बताया कि हिमालय क्षेत्र में माँ अनेक रूपों में पूजित है इन्हीं तमाम रूपों में 10 महाविद्याओं का एक स्वरूप माँ बगलामुखी है जिनकी अद्भुत यात्रा हिमालय में बड़े ही श्रद्धा व विश्वास के साथ आयोजित होती है

यात्रा पथ के ये तमाम पड़ाव यहाँ गढ़वाल हिमालय के उच्च ऊंचाई वाले घास के सुन्दर मैदान (बुग्याल) हैं, जिनमे विभिन्न प्रकार के आकर्षक फूल, जड़ी बूटी बहुतायत मात्रा में पाई जाती हैं
जात्रा के दौरान यहाँ से हिमालय पर्वतमाला के मनोरम दर्शनों के साथ-साथयमुनोत्री-गंगोत्री-केदारनाथ-बदरीनाथ पर्वत शिखरों के दर्शन भी होते हैं | हिमपात के समय बर्फ से ढकी थलय सागर, मेरु, कीर्ति स्तम्भ, चोखंभा, नीलकंठ आदि पहाड़ियों के मनोरम दृश्यों को इन यात्रा पथों से देखा जा सकता है |माँ बंगलामुखी को समर्पित यह जात्रा हिमालय की सबसे कठिन ट्रेक, के रूप में प्रसिद्ध है
उल्लेखनीय है कि हिमालय का सबसे दुर्लभ व सुन्दर तीर्थ बंगाला क्षेंत्र की महिमां अपरम्पार है तीन सिर वाली देवी का वास है यहां देवभूमि उत्तराखण्ड की धरती पर स्थित बगलाक्षेत्र युगों-युगों से परम पूज्यनीय है दस महाविद्याओं में से एक माँ बंगलामुखी का भूभाग पवित्र पहाड़ों की गोद में स्थित एक ऐसा मनोहारी स्थल है जहाँ पहुंचकर आत्मा दिव्य लोक का अनुभव करती है भारतभूमि में माँ के अनेकों प्राचीन स्थल है इन तमाम स्थलों में हिमालय के आँचल में स्थित माँ बंगलामुखी क्षेत्र का महत्व सर्वाधिक है पौराणिकता के आधार पर इसके महत्व की प्राथमिकता पुराणों में सुन्दर शब्दों में वर्णित है स्कंद पुराण के केदारखण्ड महात्म्य मे बंगला क्षेत्र की बडी विराट महिमां वर्णित की गयी है केदार खण्ड के 45 वें अध्याय मे स्वंय भगवान शिव माता पार्वती को इस क्षेत्र की महिमां का रहस्योद्घाटन करते हुए कहते हैं यह एक सुन्दर क्षेत्र है यह चार योजन लमबा और दो योजन चौडा है भिल्गणा नदी के समीप इस पावन स्थल के बारे में भगवान शिव माता पार्वती से कहते है देवी यह पावन स्थल परम गोपनिय है तुम्हारे कल्याणकारी प्रेम के वशीभूत होकर मै तुम्हें हिमालय के इस दुर्लभ तीर्थ की महिमां बताता हूँ भिल्लगणा के दक्षिण भाग में उत्तम बगलाक्षेत्र है। यह क्षेत्र अनेक तीथों से युक्त तथा भगवान शिव के नाना पिण्डी के स्वरुपों से शोभित है, जिसके दर्शन मात्र से मनुष्य देवी के नगर में वास करता है शिवजी आगे माता पार्वती को बतलाते है महादेवी बगला, सभी तन्त्रो में प्रसिद्ध है।शत्रुओं का स्तम्भन करनेवाली बगला ब्रह्मास्त्र विद्या के रूप में प्रसिद्ध है इनके स्मरण मात्र से शत्रु भी पंगु हो जाता है, बगला तु महादेवी सर्वतन्त्रेषु विश्रुता ब्रह्मास्त्रविद्या विख्याता * *यस्या स्मरणमात्रेण शत्रुः पङ्गुर्भवेद्धवम् । तत्स्थानं तु मया प्रोक्तं सर्वकामफलप्रदम्* *बगला क्षेत्र सभी कामनाओं का फल देनेवाला है बगला क्षेत्र की अलौकिक महिमां का बखान करते हुए स्कंदपुराण के केदारखंड में भगवान शिव ने कहा है यहाँ सात रात निराहार रहकर बंगला देवी का मंत्र जप करने से अत्यन्त दुर्लभ आकाशचारिणी सिद्धि की प्राप्ती होती है सभी यज्ञों में जो पुण्य प्राप्त होता है और सभी तीथों में जो फल प्राप्त होता है, वह फल बगला देवी के दर्शन से ही मिल जाता है

पुराणों के अनुसार यहाँ देवी के दक्षिण भाग में पुण्यप्रमोदिनी धारा है। उसके उत्तरी तट पर भगवान विष्णु की चार भुजावाली मूर्ति है जिसका दर्शन करने से मनुष्य कृतकृत्य हो जाता है, उसने क्या नहीं कर लिया (अर्थात् सारा पुण्य कर्म कर लिया) यहाँ के बारे में महादेव जी महादेवी को एक गुप्त रहस्य बताते हुए कहते है बंगला क्षेत्र के दक्षिण दिशा में ‘तीन सिर’ (त्रिशिरानामक) वाली देवी का वास हैं उसके पास महासिंह नित्य बार-बार गरजता हुआ रहता है। साथ ही माँ बंगला के सानिध्य में काले शरीर और काले वस्त्रवाले तथा भयंकर स्वरुप वाली अनेक नारियाँ अदृश्य होकर यहां विचरण करती रहती है भाँति- भाँति के यहाँ बाजे बजते हैं और इनकार के शब्द होते हैं पापी मनुष्य यहाँ ठहर नहीं सकता है किन्तु जो व्यक्ति धैर्यवान, संयुक्त जप करनेवाला, शिवपरायण तथा परनिन्दा और परस्त्री से विमुख है, उसे यहाँ रहते हुए लेश मात्र भी भय नहीं होता है।वह निर्भयता से शीघ्र ही सिद्धि प्राप्त कर लेता है इस क्षेत्र में स्नान की भी बहुत बड़ी महिमा गई गई है साथ ही माना जाता है कि यहां की पर्वतमालाओं में भगवान कुबेर की अपार सम्पति का दबा होना भी बताया जाता है पुराण में वर्णन है यहाँ के वाम भाग में समस्त कामनाओं का फल देनेवाली तामवणी नाम की सर्वश्रेष्ठ नदी है स्कंद पुराण में लिखा है की बंगला क्षेत्र के तीर्थों की इतनी बड़ी महिमा है कि विस्तार से तो सौ वर्षों में भी वर्णन नहीं किया जा सकता है स्वयं महादेव जी की वाणी है
बंगलाक्षेत्र में बहनें वाली भिल्लगंणा नदी की महिमां है अलौकिक

हिमालय के भूभाग में स्थित माँ बंगलाक्षेत्र की पावन भूमि में कल-कल धुन में नृत्य करते हुए बहने वाली भिलगणां नदी का पौराणिक महत्व बड़ा ही विराट है स्कंदपुराण के केदारखण्ड में इसकी महिमां बड़े ही सुन्दर शब्दों में वर्णित है स्वंय भगवान शिव ने इस क्षेत्र का वर्णन करते हुए माता पार्वती से कहा है सकल पापों का नाश करनेवाला भिल्लक्षेत्र प्रसिद्ध है | जहाँ मैं तुम्हारे साथ भिल्ल के रुप में लीला कर चुका हूँ। वहाँ भिल्लांगण नाम का एक अत्यन्त सुन्दर मनोहारी पर्वत है उस पर्वत से रमणीय गंगा की एक अन्य धारा निकली है। वह भिल्लांगणा नाम से प्रसिद्ध एवं महापापों का नाश करनेवाली नदी है वहाँ मेरा लिंग भिल्लेश्वर नाम से प्रसिद्ध है जिसके दर्शन मात्र से मनुष्य केजन्म-जन्मान्तर के पापों का नाश हो जाता है।और स्मरण से महापाप की कोटि में रहनेवाला मनुष्य भी शुद्ध हो जाता है।यही वह क्षेंत्र है जहाँ में भिल्ल रुपी महादेव काले कम्बल का वस्त्र धारण करके मध्य रात्रि में नाना भिल्ल गणों के साथ रहता हूँ वहाँ भिल्लों, भीलों के बजाये हुए बाजों शब्द सुनायी पड़ते हैं। और दिव्य शब्दों का नाद होता रहता है उसके आँगन अनेकों स्वरुपों में भिल्लगण यहाँ अदृश्य होकर विचरण करते हैं। भिल्लागण में उत्पन्न हुई (मिल्लांगणा) नदी में जो स्नान करता है, यह शिव का ही शरीर धारण करता है स्वंय महादेव ने कहा है यह अत्यन्त गोपनीय पीठ है जिसे पुराणों में भी छिपाया गया है। जो इस क्षेत्र में पहुंचकर आहार -विहार त्यागकर दस रात जप करता है, उसके सारे मंत्र भी निश्चित रूप से सिद्ध हो जाते है। नाथ आदि नित्य यहाँ परायण रहकर सिद्ध हुए है वे सिद्धि प्राप्त करके मेरे जैसे हो गये हैं।

उसी क्षेत्र में भक्तिपूर्वक कामेश्वरी देवी का पूजन करके मनुष्य दस अश्वमेध यज्ञों का फल प्राप्त करता है। कामेश्वरी देवी के दक्षिण भाग में बहुत बड़ा शिवलिंग जिसके दर्शन से ही मनुष्य शिवजी की भक्ति को प्राप्त कर लेता है। उसके ऊपर आधे कोस में सुरसुता नाम की नदी है शिवजी स्कंद पुराण में उद्घाटित करते है कि यही वह क्षेंत्र है जहाँ पहले, मैंने ही पवित्र भरम धारण किया था। उस भस्म को धारण करने के लिए इन्द्र आदि देवता उस नदी के किनारे आये थे और उस (नदी) को कन्या मान लिया था। उसमें स्नान करके मनुष्य वाजपेय यज्ञः का फल लाभ करता है ।उसके दक्षिण भाग में मातलिका नामक शिला है। उसका स्पर्श करने से इन्द्रपुरी में बास का फल मिलता है मिल्लागण महाक्षेत्र है। उसका स्मरण करने से पापों का नाश होता है जो मनुष्य इस क्षेत्र की प्रदक्षिणा करता है, मानों उसने सातों द्वीपवालों पृथ्वी को प्रदक्षिणा कर ली। यहाँ जो कर्म किया जाता है, उसका अनन्तगुण फल मिलता है इसलिए सब प्रकार के प्रयत्न से इस तीर्थ में पाप से बचना चाहिए। क्योकि तीर्थ में किये गये पाप का दण्ड अकाट्य है अपना कल्याण चाहनेवाले को यहाँ पुण्य करना चाहिए इस प्रदेश में नाना प्रकार को मणियों तथा सोने की खाने मिलती है, यहाँ अनेक शिवलिंग तथा सैकड़ों नदी की धाराएँ हैं, जो पवित्र एवं पुण्यप्रद हैं। विस्तार से इनका वर्णन कौन कर सकता है |शिवजी आगे माता पार्वती को यहाँ की महिमां वर्णित करते हुए कहते है यहाँ का जल शिवलोक की प्राप्ति कराने वाला है शिवलोक देनेवाला ही है, अनेक शिवलिंग भी दर्शन, पूजन तथा ध्यान करने से शिवलोक ही देते हैं, यह बिलकुल सत्य है, इसमें सन्देह नहीं। यहाँ अनेक प्रयाग और नदियों के संगम भी हैं गंगा की भिल्लांगणा धारा बहुत बड़ी है। उसके दर्शन से ही मनुष्य पापों से छूट जाता है देवि ! यह गंगा की पवित्र धारा तुम्हें बता दी, जिसके जल पीने से मनुष्य निश्चित ही शिव हो जाता है जो पृथ्वी पर प्रातः काल उठकर भिल्लाङ्गण का दुर्लभ माहात्म्य सुन भी लेता है, वह पाप रहित हो जाता है कुल मिलाकर बंगला क्षेत्र में स्थित भिल्ल गंणा का महात्म्य अलौकिक है

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