अमरकटंक/(मध्य प्रदेश)/माँ गंगा लोगों के पाप धोते धोते जब स्वंय मैली होकर बन्धन में पड़ जाती है, तब वह माँ नर्मदा में काली गाय का रुप धारण कर वर्ष भर में एक बार नर्मदा में स्नान कर समस्त व्याधियों से मुक्त हो कर स्वतन्त्रता का अहसास करती है। पूरे साल जब मां गंगा अपने तट पर आने वालों के पाप धोकर मैली हो जाती है तो वह अपना मैल दूर करने के लिए मां नर्मदा में स्नान करने आती हैं। ताकि वे फिर से निर्मल व स्वतन्त्र होकर लोगों को पाप मुक्त कर सकें इसलिए अद्भूत है अमरकंटक की महिमां* *🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹इसलिए कहा गया है कि ‘साद्यः पुनाति गांगेयं दर्शनादेव नर्मदा॥’ गंगा मात्र स्नान से जीव को पवित्र कर देती है, किंतु नर्मदा जल के दर्शन मात्र से जीव सभी पापों से मुक्त हो जाता है। पतित पावनी माँ नर्मदा की महिमा अनंत है। पुण्यसलिला माँ नर्मदा, माता गंगा से भी प्राचीन है*।🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹
पवित्र तीर्थ नगरी अमरकंटक नर्मदा नदी,सोन नदी का उदगम स्थान है। यह पावन स्थान मध्य प्रदेश के अनूपपूर जिले में स्थित है। यहां की पहाड़िया मैकाल की पहाडि़यों के नाम से प्रसिद्ध है।समुद्र तल से लगभग 1065 मीटर की ऊंचाई पर स्थित यह स्थान बेहद मनमोहक व रमणीक है। चारों ओर से टीक और महुआ के पेड़ो से घिरे अमरकंटक से ही नर्मद और सोन नदी प्रकट की होती है।नर्मदा नदी यहां से पश्चिम की तरफ और सोन नदी पूर्व दिशा में बहती है।*
*यहां के खूबसूरत झरने, पवित्र तालाब, ऊंची पहाडि़यों और शांत वातावरण सैलानियों व यहां आने वाले आगन्तुको को मंत्रमुग्ध कर देते हैं। प्रकृति प्रेमी और धार्मिक प्रवृत्ति के लोगों को यह स्थान काफी पसंद आता है अमरकंटक का बहुत सी परंपराओं और किवदंतियों से संबंध रहा है। कहा जाता है कि भगवान शिव की पुत्री नर्मदा जीवनदायिनी नदी रूप में यहां से बहती है। माता नर्मदा को समर्पित यहां अनेक मंदिर हैं, जिन्हें शक्ति की प्रतिमूर्ति माना जाता है। यहां की पवित्र पहाड़ियों पर जड़ी बूटियों का अपार भंडार भरा हुआ है इस क्षेत्र को आम्रकूट के नाम से भी पुकारा जाता है यह तीर्थ आध्यात्मिक जगत के अनेक इतिहासों को अपने आप में समेटे हुआ है यहां श्राद्ध कर्म बड़े ही फलीभूत बताए जाते हैं और सिद्ध क्षेत्र के रूप में समूचे विश्व में प्रसिद्ध इस पावन स्थान पर जहां से नर्मदा प्रकट होती है उसे सोम पर्वत भी कहा जाता है
अमरकंटक ऋक्षपर्वत का एक अलौकिक भाग है, जिसका पुराणों में विस्तार के साथ वर्णन आता है जो वर्णित सप्तकुल पर्वतों में से एक है।अमरकंटक में अनेक मन्दिर और प्राचीन मूर्तियाँ हैं, जिनका सम्बन्ध खासतौर से महाभारत काल से माना जाता है है। यहां से एक किलोमीटर आगे नर्मदा की कपिलधारा स्थित है।जो कपिलमुनी की तपस्या का केन्द्र रहा है। यहां पर नदी 100 फ़ुट की ऊँचाई से नीचे गहराई में गिरती है। इसके थोड़ा और आगे दुग्धधारा है, .सोन नदी का उद्गम नर्मदा के उद्गम से एक मील दूर सोन-मूढ़ा नामक स्थान पर से हुआ है। यह भी नर्मदा स्रोत के समान ही पवित्र माना जाता है। यहां के उद्गम के पास ही वंशग़ुल्म नामक तीर्थ का उल्लेख पुराणों में मिलता है। अमरकंटक नर्मदा नदी, सोन नदी के अलावा जोहिला नदी का उदगम स्थान भी है।
नर्मदा नदी यहां से पश्चिम की तरफ और सोन नदी पूर्व दिशा में बहती है। नर्मदा पुराण के अनुसार नद सोनभद्र से विवाह टूटने के बाद गुस्से और जिद में मां नर्मदा ने अनंतकाल तक अकेले ही बहने का निर्णय लिया और पश्चिम दिशा की ओर मुड़ गईं। इस विषय पर पुराणों में विस्तार के साथ कहानियां पढ़ी जा सकती है
यहां माईं की बगिया काफी मनभावन है कहा जाता ह्रै कि यहां मां नर्मदा खेला करती थीं। यहां गुल बकावली नामक अति दुर्लभ पुष्प पाया जाता है दंतकथाओं के अनुसार यह पुष्प माँ नर्मदा की सहेली है। जिसका प्रयोग नेत्र रोग में किया जाता है
माँ कर नर्मदा को शिवजी की पुत्री और अमरकंटक को भगवान शिव का प्रियवास माना जाता है.।नर्मदा और सोन नदियों का यह उद्गम आदिकाल से ऋषि-मुनियों की तपस्या व आराधना का केंद्र रहा है। इसलिए यह तपोभूमि के नाम से प्रसिद्ध है। इस क्षेत्र में अनेक पावन स्थल मंदिरों की लंबी श्रंखला मौजूद है जिनमें
जलेश्वर महादेव, सोनमुड़ा, भृगु कमंडल, स्थल भी काफी लोकप्रिय व मनभावन है।अमरकंटक के कण कण में नर्मदा और सोन की असफल प्रेम कहानी की आध्यात्मिक महिमां छिपी हुई है। पिगंला के पति व राजाविक्रमादित्य के बड़े भाई का यहां के वनों में एक प्राचीन कमंडल है जो हमेशा पानी से भरा रहता है। इसके अतिरिक्त यहां घने जंगल में गर्म पानी का स्रोत भी है। जो औषधीय गुणों से भरपूर है।यहीं वह स्थान है।जहां संत कबीर व गुरु नानक देव जी ने वर्षों साधनाएं की
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