नाग कन्याओं ने उत्तराखण्ड के इस स्थान पर किया शिवजी का पूजन: नाग पंचमी विशेष

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देवभूमि उत्तराखण्ड प्राकृतिक सौदर्य की दृष्टि से भारत का ही नही अपितु विश्व का एक महत्वपूर्ण क्षेत्र है। यहां के पर्यटक एवं तीर्थ स्थलों का भ्रमण करते हुए जो आध्यात्मिक अनूभूति होती है वह अपने आप में अद्भुत है। पर्यटन की दृष्टि से ही नहीं बल्कि तीर्थाटन की दृष्टि से भी यह पावन भूमि महत्वपूर्ण है। इसी कारण यहां का भ्रमण अन्य क्षेत्रों की अपेक्षा श्रेष्ठ एवं संतोष प्रदान करने वाला है। पर्यटन एवं तीर्थाटन के विकास के लिए सरकार समुचित सहायता व प्रोत्साहन कब देगी यह तो समय ही बतलाएगा, किन्तु इतना जरूर है कि गुमनामी के साये में बदहाल तीर्थ स्थल यदि प्रकाश में लाएं जाएं तो ये तमाम तीर्थ विराट महत्व को प्रकट कर, आस्था व भक्ति का अलौकिक संगम बनकर उभर सकते हैं।

ऐसे ही पावन तीर्थों में अद्भुत माहिमा वाला क्षेत्र है ‘गोपीश्वर महादेव’ मंदिर। माँ भद्रकाली के साथ इस मंदिर की गाथा रेखांकित होती है।
जनपद बागेश्वर के कांडा क्षेत्रान्तर्गत गोपीश्वर महादेव का मंदिर पौराणिक काल से परम पूज्यनीय है। स्थानीय जनमानस में इस मंदिर के प्रति अगाध श्रद्वा है। स्कंदपुराण में गोपीश्वर महादेव की महिमा का अद्भुत वर्णन करते हुए कहा गया है ‘गोपेश्वर के स्मरण व दर्शन से समस्त पापों का हरण हो जाता है।’ पुराणों के अनुसार गोपीश्वर नामक इस स्थान पर गोपियों ने भगवान शंकर की आराधना करके उत्तम गति प्राप्त की। गोपियों के द्वारा इस स्थान पर शिवजी की तपस्या किये जाने से ही इस स्थान का नाम ‘गोपीश्वर’ पड़ा।

इस स्थल की महिमा इतनी विराट है कि उसे शब्दों में नहीं समेटा जा सकता है। इस क्षेत्र से होकर बहने वाली पवित्र नदी भद्रा की महिमा व भद्रकाली की गाथा गोपेश्वर की गरिमा को दर्शाती है। पुराणों में कहा गया है ‘भद्रा में स्नानकर माँ भद्रकाली के दर्शन करके उसके बायीं ओर गोपेश्वर का पूजन करने से मोक्ष प्राप्त होता है।’ इसके पादतल से होकर बहने वाली सरस्वती नदी भद्रा में मिलती है।

यस्य वामे महादेवो गोपीशः पूज्यते द्विजाः।
निमज्य मुनिशादूर्ला भद्रातोये प्रयन्नतः।।
पूज्य गोपेश्वरं देवं प्रयाति परमं पदम्।

महार्षि भगवान वेद व्यास जी ने गोपीश्वर की महिमा का बखान करते हुए कहा है कि इस स्थान पर भगवान शंकर की पूजा करने से पृत मातामहादि पूर्वजों द्वारा किये गये पाप भी प्रभावहीन होकर क्षय को प्राप्त होते है। शिवजी की आराधना के लिए भूमण्डल में यह भूभाग सर्वोत्तम तथा शिवलोक की प्राप्ति कराने वाला कहा गया है।

हिमालय की गोद में बसे उत्तराखण्ड के पवित्र आंचल जनपद बागेश्वर की भूमि में स्थित गोपेश्वर कभी गोपी वन के नाम से प्रसिद्व रहा है। सौदर्य से परिपूर्ण घाटी नागगिरी पर्वत के समीप गोपीश्वर महादेव में शिव जागृत रुप में विराजमान बताये जाते हैं। कहा जाता है कि जो प्राणी भगवान गोपीश्वर के इस दरबार में अपने भावनाओं के श्रद्धा पुष्प भक्ति के साथ भोलेनाथ जी के चरणों में अर्पित करता है वह समस्त भयों से रहित होकर जीवन का आनन्द व मोक्ष प्राप्त करता है। इस दुर्लभ स्थान की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि वर्ण शंकर दोष का यहीं निवारण होता है। कहा तो यहां तक गया है कि दुरात्मा मानवों के पाप गोपीश्वर मण्डल में पहुंचने के पूर्व तक ही विद्यमान रहते है। यहां पहुंचने पर पूर्वजों के पाप भी क्षय हो जाते हैं। गोपीश्वर का पूजन करने पर इक्कीस बार सारी पृथ्वी की परिक्रमा करने जैसा फल मिलता है।

गोपीश्वर नाथ की अपरम्पार महिमा के बारे में ऋषियों की जिज्ञासा को शान्त करते हुए स्कंद पुराण में व्यास भगवान ने इस पावन स्थल के बारे में बताया है कि कभी यहां के पावन पर्वतों पर नाग समुदाय ने माता कामधेनु की सेवा की थी। पुराणों में इस भूभाग को नागपुर क्षेत्र कहा गया है।

ऊँचे पर्वतों पर विराजमान नाग देवताओं के मंदिर गोपीश्वर की अद्भुत महिमा को उजागर करते है। गोपीश्वर व उसके आसपास के तमाम पर्वत नाग पर्वतों के नाम से प्रसिद्ध है। इन तमाम मंदिरों में आज भी विधिवत नागों का पूजन होता है। नाग पर्वत, नागपुर के विषय में अनेक रहस्यमयी दंत कथाएँ आज भी लोगों की जुबां पर सुनी जा सकती हैं। पुराणों ने भी इस विषय में शब्द की प्रमाणिकता को प्रकट करते हुए कहा है कि सतयुग के आरम्भ में ब्र्रह्मा जी ने सारी पृथ्वी को अनेक खण्डों में विभक्त कर दिया था। विभक्त भूभागों में देवता, दानव, गन्धर्व, अप्सरायें, विधाधर तथा भांति-भांति पशु, पक्षी आदि को रहने के लिए अनेक स्थान वितरित किये। इसी तरह ब्रह्मा जी ने नागों के लिए हिमालय के आंचल में नागपुर नामक स्थान नियत किया। ब्रह्मा के बनाये गये नियमों को सिरोधार्य मानकर नागों ने यह भूखण्ड प्राप्त किया जो नागपुर के नाम से जाना जाता है। इसी नागपुर में कामधेनु ने नागों की सेवा से सतुष्ट होकर उनसे वरदान मांगने को कहा। इस पर नाग देवता बोले ‘हमें अपने समान ही गोकुल प्रदान करके कृतार्थ कीजिए।’ कामधेनु से वर पाकर अंसख्य गायों को प्राप्त करके उनके चरने के लिए नागों ने गोपीवन की रचना की और उस गोचर भूमि में गायों को चराने एवं उनकी रक्षा करने के लिए नाग कन्याओं को जिम्मेदारी सौंपी गई। गोपीवन गोपीश्वर में गायों को चराने के साथ-साथ नाग कन्यायें गोपीश्वर की आराधना में तत्पर रहती थीं। तभी भगवान भोलेनाथ की लीला के प्रभाव से एक बार उन्हें इस पहाड़ के अग्रभाग की तलहटी पर एक अद्भुत गुफा दिखी। गुफा के समक्ष सरस्वती गंगा के भी दर्शन किए। वहां उन्होंने शिवजी की भी पूजा की यह गुफा वर्तमान में सानि उडियार के नाम से प्रसिद्ध है। मान्यता है कि इसी गुफा में शाडिल्य ऋषि ने भगवान शंकर की तपस्या करके उन्हें संतुष्ट किया था। इस गुफा को देखकर नाग कन्याओं की जिज्ञासा गुफा के रहस्य को लेकर बढ़ गयी। नागराज मूल नारायण की कन्या के साथ नाग कन्याओं ने उसमें प्रवेश की चेष्टा की लेकिन वे असफल हुई। निराश नाग कन्याओं ने भगवान शंकर की स्तुति करते हुए कहा यदि हमारी शिवभक्ति सच्ची है तो हम गुफा को पार कर जायें। भगवान शंकर को आगे करके वे गुफा में प्रवेश कर गईं। उन्हें आशा थी अवश्य ही इस गुफा में भगवान शंकर उन्हें दर्शन देकर कृतार्थ करेंगे, लेकिन उनकी यह आस अधूरी रह गई। इतना ही नही उनकी गायें भी गुम हो गयीं। गायों को ढूढते-ढूंढते भटकते-भटकते नाग कन्यायें दूसरे वन में पंहुच गयीं। उस वन के गोचर भूमि में हरी भरी घास के बीच उन्होंने अपनी गायों को चरते देखा और सोचा ये गाये घास के लोभ में यहां तक पहुंच गयीं। इसी बीच उन्होंने गायों के समुदाय के मध्य तेजोमय भगवान शिव के अलौकिक स्वरुप को देखा।

उन्होंने देखा कि इस स्वरुप से चराचर जगत दीप्तिमान् हो रहा है। उन्हीं गायों के मध्य भगवान शिव के अलौकिक स्वरूप वाले ज्योतिर्मय लिंग के तेजो मण्डल से आकाश के मध्यवर्ती सूर्य की ज्योति फीकी पड़ गई है। शिवजी के इस स्वरुप के दर्शन पाकर नाग कन्याये धन्य हो गयीं। ये ही नाग कन्यायें गोपियों के नाम से भी प्रसिद्ध थीं। गोपियों ने शिव को प्रणाम कर भांति-भांति प्रकार से उनका पूजन किया। गोपियों की भगवान गोपीश्वर के प्रति की गई यह स्तुति पुराण में काफी प्रसिद्ध हैः-

नमो हरायामितभूषणाय चितासमिदभस्मविलेपनाय।
बृषध्वजाय सुवृषप्रभाय शिवाय शान्ताय नमो नमस्ते।।
नमो विरूपाय कलाधराय षडर्धनेत्राय परावराय।
ऋषिस्तुतायापरिसेविताय नमो नमस्ते बृषवाहनाय।।

अर्थात् असंख्य भूषणभूषित, चिताभस्मलिप्तांग, वृषध्वज, मोर की कान्ति स्वरुप शान्त शिव को हम प्रणाम करते हैं। विरूप, कलाधर, त्रिनेत्र, चन्द्रशेखर तथा महर्षियों से संस्तुत शंकर को हम बार-बार नमस्कार करते है।
गोपियों (नागकन्याओं) की प्रार्थना सुनकर शिवजी ने गोपियों को प्रत्यक्ष दर्शन दिए तथा उन्हें वरदान देकर अन्र्तध्यान हो गये। शिवजी के वरदान के प्रभाव से गोपियां भी गायों के साथ शिवजी में प्रविष्ट हो गयीं। इस प्रकार वे उत्तम गति को प्राप्त हुई और यह स्थान जगत में गोपीश्वर के नाम से प्रसिद्व हुआ।

गोपीश्वर के स्मरण तथा दर्शन से पापों का हरण हो जाता है। जनपद बागेश्वर के कांडा नामक स्थान से लगभग चंद किलोमीटर की दूरी पर पो० सिमकौना स्थित गांव को मणगोपेश्वर के नाम से भी पुकारते हैं। रावल लोग इस मंदिर के पुजारी है।

राज्य में पर्यटन एंव तीर्थाटन की आपार सभांवनाएं हैं। स्थानीय लोक कलाओं के विकास व सास्कृतिक आदान प्रदान में तीर्थाटन एवं पर्यटन का विशेष महत्व है। मानव सभ्यता के विकास में तीर्थाटन एवं पर्यटन की विशेष भूमिका होती है। तमाम स्थलों के बेहतर विकास के लिए प्रसिद्ध स्थलों के साथ ही जो स्थल गुमनामी के साये में है, उन्हें भी प्रकाश में लाने के लिए सरकार को भरसक प्रयास करने चाहिए। गोपीश्वर क्षेत्र अपनी अलौकिक सुन्दरता व धार्मिक क्षेत्र के रुप में प्राचीन काल से ही प्रसिद्ध है। इसके आसपास कई ऐतिहासिक धार्मिक व प्राकृतिक स्थल हैं जो पर्यटन एवं तीर्थ के रुप में अपना विशेष स्थान रखते हंै।

लेकिन गुमनामी के साये में गुम हैं। जिनका प्राकृतिक सौदर्य के अलावा आध्यात्मिक महत्व भी है। धर्म, दर्शन और आध्यात्म के साधकों को यहां का वातावरण सदा ही आकर्षित करता रहा है। यह भूमि ऋषि मुनियों की तपस्या स्थली है। एक से बढ़कर एक महाप्रतापी ग्राम देवता यहां पर्वतों पर वास करते हैं जो अनेक पौराणिक कथाओं, गाथाओं को अपने आप में समेटे हैं।

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