नलखेड़ा स्थित त्रिशक्ति माँ बगलामुखी की महिमां अपरम्पार : स्वामी सांदीप्रेंद

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नलखेड़ा में स्थित माँ बंगलामुखी देवी का दरबार पौराणिक काल से परम आस्था और भक्ति का संगम है कहा जाता है कि माँ पीतांबरी अर्थात माँ बगलामुखी देवी के इस दरबार में जो भी प्राणी अपने आराधना के श्रद्धा पुष्प निर्मल भाव के साथ अर्पित करता है उसके समस्त रोग, शोक, दुःख, दरिद्र एवं महाभयानक विपत्तियों का हरण हो जाता है यही कारण है कि प्रतिदिन दूरदराज क्षेत्रों से भक्तजन यहां पहुंचकर माँ के चरणों में शीश नवाते हैं नलखेड़ा का प्राचीन माँ बगलामुखी का मंदिर पौराणिक काल से परम आस्था के साथ पूजनीय है मान्यता है कि यहां पर माँ बगलामुखी का पूजन करके पाण्डवों ने महाभारत के युद्ध में विजय प्राप्त की

भक्तों के लिए करुणा व ममता बरसानें वाली नलखेड़ा स्थित विश्व प्रसिद्ध माँ बगलामुखी मंदिर का स्मरण भी बेहद फलदायी है माता का यह प्राचीन व प्रथम स्थान माना जाता है और विश्व के सभी बगलामुखी मंदिरों में इसकी विराट आध्यात्मिक महत्ता सर्वाधिक है

तीन मुख वाली माँ बगलामुखी देवी को सर्व स्वरूपा देवी के रूप में भी पूजा जाता है मध्यप्रदेश के आगर मालवा जिले के नलखेड़ा में लखुंदर नदी के तट पर स्थित माॅ परम कल्याणी स्वरूपा के रूप में भी पूजनीय है
मंदिर के पुजारी के बताते है यह देवी योगेश्वर भगवान श्री कृष्ण आराध्या देवी भी है इसलिए इसे केशव स्तुता भी कहते है श्रीकृष्ण की प्रेरणा से ही पाण्डवों ने यहाँ देवी की स्तुति की यहां पूजा में हल्दी और पीले रंग के पूजन सामग्री का विशेष महत्व है।यह संभवत: अकेला मंदिर है जहां मां को पूजा में खड़ी हल्दी और हल्दी पाउडर चढ़ाया जाता है। इस मन्दिर की सबसे बड़ी विशेषता यह है यहाँ सर्व स्वरूपा माँ बगलामुखी त्रिशक्ति रुप में विराजमान है मध्य में माँ बगलामुखी, दाएं माँ महालक्ष्मी तथा बाएं माँ महासरस्वती हैं। माना जाता है माँ बंगला त्रिशक्ति रुप में यहीं विराजमान है
द्वापर युग से इस मंदिर में साधु-संत, तांत्रिक अनुष्ठान के लिए आते हैं।

तंत्र साधना के लिए प्रसिद्ध है माँ बगलामुखी के पीठादीश्वर परमहंस श्री श्री 1008 स्वामी सांदीपेंद्र जी महाराज
द्वारा बताया गया माँ बगलामुखी मंदिर में तंत्र साधना के लिए विशेष संयोग है। मंदिर के चारों ओर श्मशान व पास में ही नदी होने के कारण इसका निराला महत्व है।उन्होनें बताया पश्चिम में ग्राम गुदरावन, पूर्व में कब्रिस्तान और दक्षिण में कच्चा श्मशान है।
श्री महाराज ने बताया कि माँ बगलामुखी तंत्र की देवी हैं, इसलिए यहां पर तांत्रिक अनुष्ठानों का महत्व अधिक है।यह मंदिर इसलिए भी महत्व रखता है, क्योंकि यहां की मूर्ति स्वयंभू और जागृत है।
श्री महाराज ने बताया माँ बगलामुखी में भगवान अर्धनारीश्वर महाशंभों के अलौलिक रूप का दर्शन मिलता है। भाल पर तीसरा नेत्र व मणिजडि़त मुकुट व चंद्र इस बात की पुष्टि करते हैं। बगलामुखी को महारुद्र (मृत्युंजय शिव) की मूल शक्ति के रूप में माना जाता है। उन्होनें बताया भगवती बगला अष्टमी विद्या है।
माँ बगलामुखी को रौद्र रूपिणी, स्तभिंनी, भ्रामरी, क्षोभिनी, मोहनी, संहारनी, द्राविनी, जिम्भिनी, पीतांबरा, देवी त्रिनेभी, विष्णुवनिता, विष्णु-शंकर भमिनी, रुद्रमूर्ति, रौद्राणी, नक्षत्ररूपा, नागेश्वरी, सौभाग्य-दायनी, सुत्र संहार, कारिणी सिद्ध रूपिणी, महारावन-हारिणी परमेश्वरी, परतंत्र, विनाशनी, पीत-वासना, पीत-पुष्प-प्रिया, पीतहारा, पीत-स्वरूपिणी, ब्रह्मरूपा कहा जाता है।
नलखेड़ा में स्थित माँ बगलामुखी के दरबार में देश विदेश के राजनेता ओर कई प्रभावशीली लोग तांत्रिक अनुष्ठान के लिए आते रहते है

माँ बगलामुखी देवी की महिमां
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माँ के भक्त कुन्दन सौनी बताते है,बगलामुखी देवी को ही पीताम्बरी देवी अथवा पीताम्बरा देवी कहा जाता है। यह देवी सृष्टि की दश महाविद्याओं में से एक मानी जाती हैं। स्वयं प्रभु श्री राम,श्री कृष्ण,भगवान शंकर इस देवी का पूजन करते है,इनकी कृपा से ही राम ने रावण पर विजय पायी थी इसलिए देवी का एक नाम महारावण हारिणी भी है, तंत्रशास्त्र में इस देवी को विशेष महत्व दिया गया है।

 

r उत्पत्ति के समय यह देवी पीले सरोवर के ऊपर पीले वस्त्रों से सुशोभित अद्भुत कांचन आभा से युक्त थी। इसीलिए साधकों ने इस देवी को ‘पीताम्बरी’ अथवा ‘पीताम्बरा’ देवी के नाम से भी सम्बोधित किया है*। *☘️🌹🍀इस तरह यही बगलामुखी देवी पीताम्बरी देवी के रूप में जगत में पूजित, वन्दित एवं सेवित हैं।*
*🍀🌹☘️एक पौराणिक प्रसंगानुसार जब दक्ष प्रजापति ने अपने यज्ञ में भगवान शिव को आमंत्रित नहीं किया तो सती अत्यधिक क्रोधित हो उठी। सती के रौद्र रूप को देख कर भगवान शिव अत्यधिक विचलित हो गये और इधर-उधर भागने लगे। तब सहसा दशों दिशाओं में सती का विराट स्वरूप उद्घाटित हो गया। भगवान शिव ने जब देवी से पूछा कि वे कौन हैं, तो विराट स्वरुपा देवी सती ने दश नामों के साथ अपना परिचय दिया जो दश महाविद्याओं ने रूप में जगत प्रसिद्ध हुई।*
*💥🌿🌸एक अन्य पौराणिक कथानुसार ‘कृत’ युग में सहसा एक महाप्रलयंकारी तूफान उत्पन्न हो गया। सारे संसार को ही नष्ट करने में सक्षम उस विनाशकारी तूफान को देख कर जगत के पालन का दायित्व संभालने वाले भगवान विष्णु चिन्तित हो उठे। श्री हरि ने सौराष्ट्र के हरिद्रा नामक सरोवर के किनारे महात्रिपुर सुन्दरी को प्रसन्न करने के लिए घोर तप आरम्भ कर दिया। भगवान के तप से प्रसन्न होकर तब उस श्री विद्या महात्रिपुर सुन्दरी ने बगलामुखी रूप में प्रकट होकर उस वातक्षोभ (विनाशकारी तूफान) को शान्त किया और इस तरह संसार की रक्षा की*। *🔥🌹🍀ब्रह्मास्त्र रूपा श्री विद्या के अखण्ड तेज से युक्त मंगल चतुर्दशी की मकार कुल नक्षत्रों वाली रात्रि को ‘वीर रात्रि’ कहा गया है, क्योंकि इसी रात्रि के दूसरे पहर में भगवती श्री बगलामुखी देवी का आभिर्भाव बताया जाता है*। यथा-
*🕉️🌹🍀अथ वचामि देवेशि बगलोत्पत्ति कारणम्।*
*🌹🍀पुराकृत युगे देवि वात क्षोभ उपस्थिते।।*
*🌹🍀चराचर विनाशाय विष्णुश्चिन्ता परायणः।*
*🌹🍀तपस्यया च संतुष्टा महात्रिपुर सुन्दरी।।*
*🌹🍀हरिद्राख्यं सरो दृष्ट्वा जलक्रीड़ा परायणा।*
*🌹🍀महाप्रीति हृदस्थान्ते सौराष्ट्र बगलाम्बिका।।*
*🌹🍀श्रीविद्या सम्भवं तेजो विजृम्भति इतस्ततः।*
*🌹🍀चतुर्दशी भौमयुता मकारेण समन्विता।।*
*🌹🍀कुलऋक्ष समायुक्ता वीररात्रि प्रकीर्तिता।*
*तस्या मेषार्धरात्रि तु पीत हृदनिवासिनी।।*
*🌹🍀ब्रह्मास्त्र विद्याा संजाता त्रैलोक्यस्य च स्तंभिनी।*
*🌹🍀तत् तेजो विष्णुजं तेजो विधानुविधयोर्गतम्।।*
*🔥आज के भौतिक युग में सर्वत्र द्वन्द एवं संघर्ष का वातावरण व्याप्त है। जीवन में उन्नति करने के लिए स्वस्थ स्पर्धा के स्थान पर ईर्ष्या, रागद्वेष और घृणा का भाव अधिक प्रभावी है। परिणामस्वरूप हर तरफ अशान्ति, अभाव, लड़ाई-झगड़े आपराधिक गतिविधियों तथा पापाचार का बोलबाला है। जनसामान्य में असुरक्षा का भाव घर गया है। अधिकांश लोग परेशान व विचलित हैं। ऐसी परिस्थिति में जो कोई भी सुख व शान्ति की इच्छा रखते हैं, वे अन्ततः भगवान के शरण में जाना ही श्रेयष्कर मानते हैं।*
*माँ भगवती बगलामुखी ममतामयी हैं, करुणामयी हैं तथा दयामयी हैं। ऐसी विषम स्थितियों में भगवती बगलामुखी देवी की शरण ही सबसे सरल व प्रभावी मानी गयी है। शास्त्रों में कहा गया है-‘बगलामुखी देवी की शरणागति भक्तों को सहारा व साहस प्रदान करती है तथा सभी प्रकार के संशयों, दुविधाओं एवं खतरों से निर्भय कर देती है। यह एक सर्वविदित मान्यता है कि मनुष्य को तभी शान्ति की अनुभूति होती है, जब वह अपनी सुरक्षा के प्रति आश्वस्त हो जाता है। प्रत्येक व्यक्ति की यह परम् अभिलाषा होती है कि उसे सामाजिक सुरक्षा, आर्थिक सुरक्षा तथा शत्रुओं से सुरक्षा प्राप्त हो। शास्त्रकारों ने शत्रुओं पर विजय प्राप्त करने के लिए, विजय श्री का वरण करने के लिए तथा अपने प्रभाव व पराक्रम में बृद्धि करने के लिए भगवती बगलामुखी देवी की साधना को सर्वाधिक महत्वपूर्ण बताया है।*
*इसमें तनिक भी संदेह नहीं है, कि सभी दश महाविद्याओं की सिद्धि के परिणाम अत्यधिक सुखद एवं चमत्कारिक होते हैं। यद्यपि साधना विधि जटिल है* *और इसीलिए साधारण साधक इस साधना में रुचि नहीं लेते, इसीलिए दुर्लभ एवं चमत्कारिक लाभों से सर्वथा वंचित रहते हैं।* *अनेकानेक जटिलताओं के बावजूद जो साधक भगवती बगलामुखी की साधना सम्पूर्ण श्रद्धा व विश्वास से करते हैं, वे स्वयम् तो लाभान्वित होते ही हैं,दूसरों को भी लाभ पहुंचाते हैं।*
*अनेक प्राचीन वैदिक संहिताओं तथा धर्म ग्रन्थों में महाविद्या बगलामुखी देवी के स्वरूप, शक्ति व लीलाओं का अत्यन्त विषद वर्णन मिलता है। उपनिषदों में जिसे ब्रह्म कहा गया है, उसे भी इस शक्ति से अभिन्न माना गया है। यानी ब्रह्म भी शक्ति के साथ संयुक्त होकर ही सृष्टि के समस्त कार्यों को कर पाने में समर्थ हो पाता है। इसीलिए तो शक्ति तत्व की उपासना, वंदना व साधना को मनुष्य मात्र के लिए ही नहीं* *अपितु देवताओं के लिए भी परम् आवश्यक बताया गया है। इसी शक्ति तत्व में नव दुर्गा तथा सभी दश महाविद्याएं समाहित हैं*, *जो सृष्टि के कल्याण के लिए अनेकानेक लीलाओं का सृजन करती हैं। दश महाविद्याओं में भगवती बगलामुखी को पंचम शक्ति के रूप में प्रतिष्ठा प्राप्त है।* यथा-
काली तारा महाविद्या षोडसी भुवनेश्वरी।
बाग्ला छिन्नमस्ता च विद्या धूमावती तथा।।
मातंगी त्रिपुरा चैव विद्या च कमलात्मिका।
एता दश महाविद्या सिद्धिदा प्रकीर्तिता।।
कृष्ण यजुर्वेद अन्तर्गत ‘काठक संहिता’ में मॉ भगवती बगलामुखी का बड़ा ही मोहक तथा सुन्दर वृतान्त मिलता है-
*सभी दिशाओं को प्रकाशित करने वाली, मोहक रूप धारण करने वाली ‘विष्णु पत्नी’ वैष्णवी महाशक्ति त्रिलोक की ईश्वरी कही जाती है। इसी को स्तम्भनकारिणी शक्ति, नाम व रूप से व्यक्त एवं अव्यक्त सभी पदार्थों की स्थिति का आधार व पृथ्वी रूपा कहा गया है। भगवती बगलामुखी इसी स्तम्भन शक्ति की अधिष्ठात्री दवी हैं।*
*🌟🌟🌟🌟☀️✨✨✨बगलामुखी देवी को जन सामान्य ‘बगुला पक्षी’ के मुखाकृति वाली देवी समझ बैठते हैं, जबकि यह बगुला की मुखाकृति वाली देवी नहीं हैं। पुरातन ग्रन्थों में इस देवी को ‘बल्गामुखी’ अर्थात अखण्ड व असीम तेजयुक्त मुखमण्डल वाली देवी कहा गया है। कालान्तरण के साथ साधकों ने अपनी सुविधानुसार देवी को बगलामुखी नाम से पूजना आरम्भ कर दिया तथा बाद के ग्रन्थों में भी इसका इसी नाम से उल्लेख किया जाने लगा और यही नाम जग प्रसिद्ध हो गया। समाज में कई साधक ऐसे भी देखे जाते हैं जो आम व्यवहार में इस देवी को भगवती बगुलामुखी नाम से भी सम्बोधित करते हैं। इसलिए नये भक्त शुरुआत में महामाया बगलामुखी को बगुला नामक पक्षी के रूप वाली देवी समझने की भूल कर बैठते हैं। इस बात पर संशय की जरा भी गुंजाइश नहीं है कि भगवती बगलामुखी देवी की श्रद्धा व विश्वास के साथ आराधना करने वाले साधक अपने विरोधियों तथा प्रतिद्वदियों पर सदैव विजय प्राप्त करने में समर्थ हो जाते हैं और दुखियों के दुःख दूर करने में भी सक्षम हो जाते हैं। आमतौर पर असाध्य रोगों व संकटों से छुटकारा पाने के लिए, दूसरों को अपने अनुकूल बनाने के लिए, हर तरह की विघ्न बाधाएं शान्त करने के लिए तथा नवग्रहों की शान्ति के लिए मॉ भगवती बगलामुखी का विधिपूर्वक किया जाने वाला अनुष्ठान अत्यधिक प्रभावशाली एवं तत्काल फलदायी माना गया है। अनुष्ठान या उपासना मत्र, तंत्र अथवा यंत्र किसी भी माध्यम से सम्पन्न करने पर यह देवी त्वरित व चमत्कारिक फल प्रदान करती हैं। देवी के साधक यह भी कहते हैं कि साधना यदि मंत्र व यंत्र का प्रयोग करते हुए की जाये तो इसमें सर्वाधिक सुखद एवं विशेष प्रभाव की अनुभूति होती है। फिर लोक कल्याण की भावना से की जाने वाली साधना का तो कहना ही क्या, देवी ऐसे साधकों पर शीघ्र ही प्रसन्न होकर मनोवांछित फल प्रदान करती हैं। इस सम्बन्ध में ग्रन्थकार कहते हैं*
‘*बगला सर्वसिद्धिदा सर्वान कामानवाप्नुयात’ अर्थात देवी बगलामुखी का पूजन, वन्दन तथा* स्तवन करने वाले भक्त की हर मनोकामना पूर्ण हो जाती है 1

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