विष पीकर नील पर्वत पर विराजमान हुए नीलकंठ महादेव

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योगेश्वर के भी ईश्वर महादेव जी की महिमा निराली है ये परम कल्याणकारी हैं, और सभी के आराध्य हैं। देवता.दानव ऋषि -मुनि सभी महादेव जी की आराधना करते हैं आदि व अनादि से रहित सदाशिव के बारे में गोस्वामी तुलसीदास ने लिखा है “भवानी शंकरौ वंदे” श्रद्वा और विश्वास के बिना ज्ञान की प्राप्ति संभव नहीं है। श्रद्वा व विश्वास का अलौकिक केन्द्र नील पर्वत है अर्थात जहां साक्षात् नीलकंठ महादेव विराजते हैं ,उत्तराखण्ड की धरती में नीलकंठ महादेव भगवान शिव का महापुण्दायक क्षेत्र है।

पवित्र पहाड़ों की गोद में स्थित नीलकंठ महादेव के बारे में स्कंद पुराण में बड़ा ही मनोहारी वर्णन मिलता है। संसार के ताप से सन्तप प्राणियों के लिए यह तीर्थ उत्तम औषधि है। संसार तापतप्ताना भेषज तीर्थ मुत्तममष् तथा मोक्ष को प्रदान करने वाला है। समुद्र मंथन के समय मंथन के दौरान जब समुद्र से कालकूट नामक विष निकला तब समस्त त्रिलोकी त्राहिमाम हो उठी, त्रिलोकी की पीड़ी के निवारण के लिए भगवान भोलेनाथ ने हलाहल विष पीकर त्रिलोकी का कल्याण किया और नीलकंठ नाम से प्रसिद्व हुए कंठ में विष को धारण करने से उनका कंठ नीला पड़ गया शिव का यही स्वरूप नीलकंठ कहाया शिव के विभिन्न स्वरूपों में उनके इस स्वरूप का ध्यान करने से महान संकटों का शीघ्र निवारण होता है। स्कंद पुराण भागवत पुराण सहित अनेकों ग्रंथों में नीलकंठ तीर्थ का माहात्म्य आता है। महर्षि वशिष्ठ जी ने इस तीर्थ स्थल की महिमा का गुणगान करते हुए केदारखण्ड में कहा है इस तीर्थ में भगवान परशुराम जी की प्रेरणा से पहुंचकर पूर्वकाल में सात लाख राक्षस मुक्ति को प्राप्त हुए। नीलकंठ के चक्रतीर्थ का महत्व भी पुराणों में बड़ा ही अलौकिक है।

इस स्थल तक पहुंचने के लिए गढ़वाल क्षेत्र में स्थित ऋषिकेश नामक स्थान से 30 किमी आगे जाना पड़ता है। मंदिर तक यातायात मार्ग है तथा रास्ते से एक पैदल मार्ग भी है जहां से मंदिर की दूरी लगभग 12 किमी है यही मणिकूट पर्वत पर स्थित नीलकंठ महादेव जी का स्वयंभू पिण्डी है पुराणों के अनुसार इसके उत्तर की ओर चामरेश्वर महादेव पश्चिम में नाक्षत्री नदी तथा अन्य दिशाओं में अनेकों पावन तीर्थ हैं। इस पर्वत क्षेत्र में बहने वाली नदी मणिभद्रा अर्थात मधुमती कहलाती है। केदार खंड के 106 वें अध्याय में भगवान नीलकंठ का वर्णन आता है। इसके अलावा 79वें अध्याय में भगवान नीलकंठ का वर्णन आता है।

हलाहल विष को धारण करके जिस स्थान पर प्रभु ध्यानस्त हुए वहीं नीलकंठ क्षेत्र है। स्कंद पुराण के अनुसार नीलकंठ महादेव के उत्तम स्थान को गंगोद्वार के नाम से भी जाना जाता है। यह भूमि स्वर्ग भूमि मानी जाती है। इसके दर्शन मात्र से भवबंधन से मुक्ति मिलती है। “यस्य दर्शनमात्रेण चिमुक्ती भवबंधनैः” नीलकंठ महात्म्य में कल्याणकारी अनेक कथाओं का वर्णन आता है।

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