चिटगल/ गंगोलीहाट/ सनातन धर्म में जब जब सत्य व धर्म की रक्षा के लिए शिव भक्तों के योगदान की चर्चा होती रहेगी, तब तब महान् युग पुरुष तपोनिष्ठ आध्यात्मिक जगत के अलौकिक महापुरुष दिव्य लोक वासी संत परम पूज्य स्व० श्री राधा बल्लभ जी का परम श्रद्वा के साथ स्मरण किया जाता रहेगा और इनका स्मरण भक्तों में आध्यात्मिक ऊर्जा का नया संचार करेगा।और हम सभी का मार्गदर्शन भी चिटगल के स्वयंभू सैम देवता मंदिर पहुंचकर श्रद्वालुजन जब अपने ईष्ट देव के श्रीचरणों में अपने आराधना के श्रद्वा पुष्प अर्पित करेंगे तब सहज में ही याद आऐगे राधा बल्लभ जी
उनका निर्मल, निष्ठामय, कर्तव्यमय, सादगी भरा जीवन, क्षमा, व दया की प्रतिमूर्ति, मर्यादा के महान् रक्षक, महान् गौ भक्त, एक आत्मनिष्ठ, निष्काम कर्मयोगी, आध्यात्म जगत की जितनी भी उपमाएं है वे सब उनमें झलकती थी, लोग उनसे मिलकर अपने सौभाग्य की सराहना करते थें उनका दर्शन उनकी वाणी जीवन के कई अनसुलझी गुत्थियों को बरबस ही सुलझा देती थी। जो सच्चे हदय से उनके निकट आकर उनका आशीर्वाद प्राप्त करता था, वह ज्ञान की नई अनुभूतियां पाकर अपने जीवन को धन्य समझता था आसपास
क्षेंत्र के तमाम लोग उन्हें गुरु के रूप में पूजते थे इनके प्रति आस्था रखनें वाले भक्तों का कहना है पूज्य गुरुदेव जी की कृपा का वर्णन शब्दों में नही किया जा सकता है
महान शिव भक्त श्री राधा बल्लभ जी मूल रूप से जनपद पिथौरागढ़ अन्तर्गत गंगोलीहाट क्षेत्र के चिटगल गाँव निवासी थे वर्ष 1899 वर्ष में एक सुसंस्कृत ब्राह्मण स्व० श्री केशव दत्त पंत जी के परिवार में जन्मे श्री राधाबल्लभ जी बाल्यकाल से ही धर्म तथा आध्यात्म में रुचि रखने लगे थे और किशोरावस्था में आते-आते उन्होंने गृहस्थ में रहते हुए मन से सन्यास ग्रहण कर लिया था। अपने गुरु, व ईष्ट सैम देवता के स्नेहिल सानिध्य में उन्होंने वेद, वेदांग, उपनिषद, धर्मशास्त्र, दर्शन शास्त्र समेत अनेक सनातन ग्रन्थों का गहन अध्ययन किया। उनकी प्रारभिक शिक्षा तो गांव में तथा पिथौरागढ़ गंगोलीहाट आदि क्षेत्रों में ही हुई, लेकिन बाद में हिन्दी मीडिल शिक्षा के बाद कर्मकाण्ड में सलग्न हुए
विषम पारिवारिक परिस्थियों से संघर्ष करते हुए आपने अपना जीवन सादगी पूर्वक व्यतीत किया सनातन धर्म का प्रचार प्रसार करते हुए उन्होंने ने मल्लागर्खा के चौधरी और भण्डारी गाँव के थोकदार भण्डारी लोगों के यहाँ पुरोहित का कार्य किया। तथा अपने यजमानों को सदैव सत्य व धर्म की ओर प्रेरित किया धोती कुर्ता अंगोछा टोपी आपकी वेशभूषा थी। श्री शैम जी के आप अनन्य भक्त होने के कारण दूर-दराज क्षेत्रों से लोग इनके दर्शनों को आते थे और डंगरिया होने के नाते अपने जीवन की जटिल समस्याओं का सहज में निदान पाते थे ।हर पर्व पर श्री सैम जी के मन्दिर में पूजा-पाठ करना उनका स्वाभाविक व नित्य नियम था।और कई कई दिनों तक सैम देवता के मन्दिर में ही आसन जमाये रखना उनकी इस देवता के प्रति अखण्ड़ प्रीति थी श्री शैम देवता के प्रति आपका अटूट प्रेम श्रद्धा व विश्वास के चलते हर तीसरे वर्ष इनके मन्दिर में चौरासी (चार रात्रि का काष्ठ यज्ञ) तथा बेसी (२२ दिन या 7 दिन का काष्ठ यज्ञ करके सनातन के देवता सैम ज्यू की महिमां का विस्तार करते थे और इन यज्ञों के अवसर पर भयानक समस्याओं से भक्तों को मुक्त करते थे यही वह खास अवसर होते थे जब दूर-दूर से लोग अपनी समस्याओं के निदान हेतु इनके पास आया करते थे सैम देवता की बभूति से ही समस्याओं का निदान करना इनकी सिद्धि थी
भारत भूमि के अनेकों तीर्थो का अपने जीवन काल में भ्रमण कर बृद्ध अवस्था में सैम दरबार को ही अपने आराधना का केन्द्र बनाया माघ-स्नान की महिमां को बसूबी जानने वाले स्व० श्री पंत ने तीर्थो में स्नान की महिमां व माघ स्नान के महत्व को मानव जीवन के लिए पुण्यशील बताया
धर्म व आध्यात्म के प्रचारार्थ अनेक स्थानों पर जाकर आध्यात्म का अपने जीवन में अद्भूत संचार किया
कर्मकाण्ड के प्रकाण्ड विद्वान होने के नाते इनकी ख्याति समूचे क्षेत्र में भी नित्य- क्रिया, संध्याउपासन, रामायण पाठ, गीता पाठ आपके जीवन नित्य नियम रहा
स्व० श्री राधा बल्लभ पंत जी के सभी पुत्रों ने उनकी आज्ञा का पालन करते हुए उनकी राह पर चलकर एक आदर्श स्थापित किया है नित्य किया करते थे, आपके आज्ञाकारी छः पुत्रों हुए। सर्वश्री त्रिलोचन पन्त रामदत्त पंत दिगम्बर पंत रघुबर दत्त पंत पूरन चन्द्र पन्त व तारा दत्त पन्त ने अपने जीवन काल में सभी को बड़े ही स्नेह भाव से विराट संघर्ष करते हुए सामर्थानुसार शिक्षा प्राप्त करवायी, उनके आशीर्वाद से सभी अपने- परिवारी जनों के साथ खुशहाली का जीवन यापन कर रहे हैं।
87 वर्ष की आयु में वर्ष 1986 में उन्होंने इस नश्वर देह का परित्याग कर दिव्य लोक को प्रस्थान किया लेकिन उनकी स्मृति उनकी यादें आज भी चिटगल वासियों के हृदय में जीवित है बड़े ही श्रद्धा भाव से लोग आज भी इनका स्मरण करते है
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