दुर्लभ जानकारी : क्षेत्रों में इसलिए सर्वश्रेष्ठ है केदारनाथ जी

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हिमालय की गोद में बसा उत्तराखण्ड आध्यात्मिक दृृष्टि से विश्व की अलौकिक धरोहर है। यहां स्थित ज्योतिर्लिंग केदारनाथ की महिमा भी पुराणों के अनुसार अतुलनीय है। अनेकों धार्मिक ग्रंथों में भगवान शिव के इस पावन धाम का वर्णन मिलता है। उत्तराखण्ड स्थित चार धामों में केदारनाथ धाम का बड़ा महत्व है। रुद्रप्रयाग जिले में स्थित गौरीकुण्ड से 16 किलोमीटर उत्तर की ओर मंदाकिनी नदी के किनारे समुद्र तल से 3584 मीटर की ऊंचाई पर केदारनाथ भगवान शिव के बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक है।
केदार क्षेत्र सभी तीर्थों में उत्तम तीर्थ कहा गया है। स्वयं भगवान शिव पार्वती से यह बखान करते हुए कहते हैं कि जो केदारनाथ के दर्शन कर श्रद्धापूर्वक मेरी पूजा करता है मैं उसके हृदय में स्वयं प्रकट होता हूं।
केदारक्षेत्र माख्यातं तीर्थानां तीर्थ मुक्तमम्।
शिवलिंग प्रजायेत हृदि तस्य महेश्वरी।।
(42 अ. 2 श्लोक 42 व 43) केदारखण्ड

पौराणिक ग्रंथों के अनुसार केदारनाथ मंदिर के समीपवर्ती क्षेत्रों में स्थित देवालयों का भी विशेष महत्व है, जिनमें तुंगनाथ, रुद्रनाथ, मद्महेश्वर, कल्पेश्वर आदि हैं जहां शिवजी की विविध रूपों में पूजा होती है। केदारनाथ में शिवलिंग, तुंगनाथ में शिवजी की भुजा, रुद्रनाथ में मुख, मद्महेश्वर में नाभि और कल्पेश्वर में उनकी जटा की विशेष पूजा-अर्चना का विधान है।
भगवान केदारनाथ जी की महिमा का एक स्वरूप मध्यमहेश्वर चौखंबा पर्वत चोटी की तलहटी पर 3328 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है जो वास्तुशिल्प का अद्वितीय उदाहरण है। यहां से केदारनाथ व नीलकंठ पर्वत श्रृंखलाओं के दर्शन होते हैं। पुराणों में पंच केदार नामक तीर्थों में से एक इस तीर्थ का बड़ा ही सुन्दर वर्णन आता है। महादेव माता पार्वती को इस स्थल के बारे में बताते हुए कहते हैं। इसके दर्शन से मनुष्य सदा स्वर्ग में वास करता है। ‘‘तस्य वै दर्शनान्मर्त्यो नाकपृष्ठे वसेत्सदा’’ घोर कलियुग में मध्यमेश्वर के दर्शन से मनुष्य धन्य हो जाते हैं। ‘‘धन्या कलियुगे घोरे मध्यमेश्वरदर्शनात्’’ रुद्रप्रयाग गोपेश्वर मार्ग में चौपता से तीन किमी. की दूरी पर स्थित तुंगनाथ शिखर पंचकेदार का ही स्वरूप है। यहां स्थित भगवान शिव के मंदिर में उनकी पूजा, समुद्र तल से 3680 मीटर की ऊंचाई पर होती है। पुराणों में मांधाता क्षेत्र के दक्षिण दिशा में दो योजन चौड़ा, दो योजन लम्बा, पापनाशक तथा सकलकामनादायक तुंगनाथ के पवित्र क्षेत्र का महात्म्य मिलता है। पुराणों के ही माध्यमसे स्वयं महादेव ने महादेवी को बताया है। जो तुंगनाथ नामक मेरे लिंग का पूजन करता है। उस महात्मा के लिए तीनों लोकों में कुछ भी दुर्लभ नहीं रह जाता है।
‘‘सम्पूज्य मम लिंग वै तुंगनाथस्थानकम्।
दुर्लभ त्रिषु लोकेषु नास्ति तस्य महात्मनः।।
जहां तुंगनाथ में भगवान शिव की भुजा की पूजा होती है वहीं रुद्रनाथ में उनके मुखाकृति की पूजा की जाती है। ऋ़षिकेश-गोपेश्वर मार्ग पर सागर से 22 किमी. की दूरी पर स्थित यह स्थान समुद्र तल से 2286 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है जो तीर्थों में उत्तम तीर्थ है। इस स्थान पर देवताओं ने अंधक नामक असुर का बध कर देवताओं को उनका राजपाठ वापस दिलाया। ज्योतिर्लिंग केदारनाथ की अलौकिक लीला का क्षेत्र कल्पेश्वर के दर्शन का महत्व केदार क्षेत्र में समस्त पापों का नाशक है। कल्पेश्वर के शिव मंदिर में शिवजी की जटाओं की पूजा होती है। यह स्थान दुर्वासा ऋषि की तपःस्थली रही है। समुद्र तल से 2134 मीटर की ऊंचाई पर स्थित यह स्थान ऋषिकेश बद्रीनाथ मार्ग पर हेलंग से 12 किमी. दूर स्थित है। प्राकृतिक रूप से सुन्दर इस मंदिर में भक्तजन बरबस ही खिंचें चले आते हैं। इसी स्थान पर भगवान विष्णु तथा इन्द्रादि देवताओं ने ऋषि दुर्वासा के श्राप से लोप हुए लक्ष्मी को पुनः प्राप्त करने हेतु शिवजी की कठोर तपस्या की। प्रसन्न शिव ने समुद्र मंथन का उपाय बताकर देवताओं का उद्धार किया। इस स्थान पर पूर्व में कल्प वृक्ष होने की भी बात कही जाती है।
पंचकेदार के रूप में संसार का मंगल करने वाले भगवान केदारनाथ का प्राचीन मंदिर महाभारत कालीन बताया जाता है। इसका निर्माण पाण्डवों ने किया था व यहीं उन्हें शिव के दर्शन हुए। इस विषय पर भी अनेक कथाओं का वर्णन आता है। दूसरा और मुख्य मंदिर 8वीं शताब्दी में शंकराचार्य द्वारा निर्मित बताया जाता है। यह मंदिर श्रद्धालुओं की आस्था के साथ-साथ वास्तुशिल्प की विशिष्टता के कारण भी प्रसिद्ध है। केदारखण्ड के 41वें व 42वें अध्याय में केदारनाथ की महिमा का विस्तृत मिलता है, जिसमें यह तीर्थों में महान एवं श्रेष्ठों में श्रेष्ठ व देव दुर्लभ स्थान कहा गया है।
स्कंद पुराण के अनुसार महादेव माता पार्वती से कहते हैं जो कहीं यह बोल भी देते हैं कि हम केदार क्षेत्र में जायेंगे वह शिवलोक के भागी बनते हैं। जैसे सतियों में तुम श्रेष्ठ हो, देवताओं में विष्णु हैं, सरोवरों में समुद्र है, नदियों में गंगा, पर्वतों में हिमालय, योगियों में याज्ञवल्क्य, भक्तों में नारद, शिलाओं में वैष्णवी, वनों में वदरी वन, धेनुओं में कामधेनु, मनुष्यों में विप्र, विप्रों में ज्ञानदाता, स्त्रियों में पतिव्रता, प्रियों में पुत्र, पदार्थों में सुवर्ण, मुनियों में शुकदेव, सर्वज्ञों में व्यासदेव, देशों में भारत देश, मनुष्यों में राजा, देवताओं में इन्द्र, वसुओं में कुबेर, पुरियों में कैलाशपुरी, अप्सराओं में रंभा, गन्धर्वों में तुम्बरू श्रेष्ठ हैं। वैसे ही क्षेत्रों में केदार नामक क्षेत्र श्रेष्ठ है।
‘‘क्षेत्राणां च तथा प्रोक्तं क्षेत्रं केदारसंज्ञितम!्’’ (स्कंद पुराण)
केदारनाथ मंदिर प्राकृतिक दृष्टि से भी अत्यधिक दर्शनीय स्थल है। चोराबाड़ी केदारनाथ मंदिर से 2 किमी. की दूरी पर एक छोटी सी झील है। 8 किमी. की दूरी पर बासुकि ताल 14 किमी. पहले गौरी मंदिर यहां से 6 किमी. आगे सोन गंगा सोन प्रयाग आदि अनेक रमणीक स्थान है। तीर्थाटन की दृष्टि से हर स्थान का अपना-अपना विशेष महत्व है। द्वादश ज्योतिर्लिंग स्त्रोत में ‘हिमालये तु केदारं’ नाम से इस श्रेष्ठ तीर्थ का उच्चारण आता है। इस तीर्थ यात्रा के दौरान अभिभूत एक भक्त का कहना है कि दाद्ष ज्योर्तिलिंगों में से एक केदारनाथ की महिमा उपराम्पार है जो भी प्राणी अपने आराधना के श्रद्धापूण्य इनके चरणों में अर्पित करता है उसकी मनोकामनाए पूर्ण होती

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