दुर्लभ जानकारी: सिमाली गाँव के प्राचीन भद्रकाली मन्दिर की महिमां है अलौकिक : संतोष काण्डपाल

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सिमाली/ बागेश्वर/माँ भद्रकाली की महिमां कमस्यार घाटी में सर्वत्र फैली हुई है इनकी अद्भूत लीला का एक और शक्ति स्थल छिमाली गाँव में है माॅ भद्रकाली के इस गुप्त स्थान की जानकारी बहुत ही कम लोगों को है माँ भद्रकाली का यह भव्य मंदिर बेहद आकर्षण का केन्द्र है यहाँ पहुंचकर जो निराली शान्ति मिलती है उसका वर्णन शब्दों में नहीं किया जा सकता है

 

भद्रा नदी के तट पर इस मंदिर के भीतर एक विशाल पत्थर गुफा के आकार को लिए हुए है जिनके निचें एक पिण्ड़ी की पूजा होती है साथ में दो और छोटी – छोटी पिण्डीयों की भी यहाँ पूजा होती है प्राकृतिक रुप से प्रतिष्ठित माँ भद्रकाली के इस दरबार की आध्यात्मिक मनोहरता मन को निर्मल कर देती है

माँ के अनन्य भक्त एवं युवा समाज सेवी संतोष काण्डपाल ने कहा भद्रकाली गाँव में स्थित माँ भद्रकाली के भव्य दरबार की भातिं ही देवी को यहाँ भी तीन रूपों में पूजा जाता है मंदिर के भीतर विशाल पत्थर की छत्र छाया में स्थित यह शक्ति स्थल माँ भद्रकाली की अद्भूत लीला का प्रतीक है

माँ भद्रकाली मंदिर के तट से बहनें वाली इसी भद्रावती नदी के ऊपर लगभग छह किलोमीटर नीचें माँ भद्रकाली का प्रसिद्ध दूसरा मंदिर एक गुफा के ऊपर स्थित है जो उत्तराखण्ड के प्रसिद्ध शक्ति पीठों में एक है लेकिन माँ का यह स्थान गुमनामी के साये में गुम है

 

उन्होनें कहा शाडिल्य ऋषि की तपोभूमि शनि उडियार से कुचौली जानें वाले मार्ग के मध्य से लगभग डेढ़ किलोमीटर की ऊँचाई पर पहाड़ी में स्थित माँ भद्रकाली के इस दरबार तक पैदल चलकर पहुंचा जा सकता है माँ भद्रकाली का यह प्रांचीन मूल स्थान माना जाता है श्री काण्डपाल ने कहा शुरभ्य पहाड़ी में स्थित इस पहाड़ी की चोटी के ऊपर से ही भद्रा नदी प्रकट हुई है जहाँ से नदी प्रकट हुई है उस स्थान को भद्रकाली माता का प्रथम मूल स्थान माना जाता है यहाँ तक पहुंचना बेहद जटिल है यहाँ कोई तपोनिष्ठ योगी भक्त ही पहुंच सकता है स्थानीय भक्तों के अनुसार अन्यथा यहां पहुंचना असम्भव है इसी की निचली पहाड़ी पर माँ भद्रकाली का यह पौराणिक स्थल है कहा जाता है यहीं से माँ भद्रकाली कमस्यार घाटी के भद्रकाली गाँव में जाकर एक गुफा के ऊपर ठहर गयी इसी गुफा के नीचें से कल – कल धुन में नृत्य करती हुई भद्रकाली नदी बहती है यह मंदिर प्रसिद्ध शक्तिपीठों में से एक है लेकिन चोटी पर स्थित माँ भद्रकाली के एक अन्य प्राचीन मंदिर से लोग अनभिज्ञ से है और पौराणिक महत्व वाला माँ का यह मंदिर गुमनामी के साये में गुम है

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उन्होने कहा इस मंदिर के ऊपरी पर्वत से ही भद्रा नदी प्रकट हुई है और माँ ने यही से अपनी लीला बिखेरी और कमस्यार घाटी की तलहटी में भद्रकाली गाँव के निकट ठहरकर आस्था व भक्ति के संगम के रूप में पूजित हुई इससे पहले इनका प्राचीन पड़ाव सनिउडियार से लगभग तीन किलोमीटर आगे कुचौली मार्ग में छिमाली गाँव के निकट एक पर्वत पर भद्रा नदी के तट पर दिव्य रुप से विराजमान है माँ भद्रकाली का यह प्राचीन मंदिर बारहाल गुमनामी के साये में गुम है माँ भद्रकाली के आस्थावान भक्त एवं इस मंदिर के प्रति अगाध श्रद्धा रखनें वाले संतोष काण्डपाल बताते है कि यह मंदिर पौराणिक आस्थाओं का केन्द्र है इस समूची घाटी में माँ भद्रकाली की महिमां सर्वत्र बिखरी हुई है इस क्षेंत्र में माँ के अनन्य भक्त महा प्रतापी नागों का वास है जिनके दर्शन कभी – कभार भक्त जनों को होते है उन्होंने बताया कि वे अपने स्तर से मंदिर क्षेत्र के विकास हेतु प्रयासरत है उनके दादा स्व० श्री फकीर दत्त काण्डपाल माँ के अनन्य भक्तो में एक थे उन्हें इस स्थान पर माँ के डोले के दर्शन हुए थे पूर्णमासी की रात्रि को यहाँ से माँ का डोला भद्रकाली के दूसरे मंदिर तक जाता है यह स्थान साधना की दृष्टि से बेहद उपयोगी है उन्होनें कहा वास्तव में यह स्थान भव्य व दिव्य है तीर्थाटन की दृष्टि से यहाँ का समुचित विकास नहीं हो पाया है गुमनामी के साये में गुम इस स्थान को प्रकाश में लाने के लिए सरकार को विशेष योजना बनायी जानी चाहिए ताकि भक्तजन दर्शनों का लाभ ले सकें यहाँ दर्शनों को पहुचें वरिष्ठ पत्रकार बसंत पाण्डेय एवं अजय उप्रेती ने भी इस भव्य स्थान को आस्था व सुखद अनुभूति का अद्भूत केन्द्र बताया

 

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उल्लेखनीय है इस मंदिर के ऊपरी पर्वत पर खैरी नाग के वास स्थान का जिक्र आता है स्कंद पुराण में खैरी नाग का जिक्र आता है तथा कहा गया है गोपीश्वर महादेव के पूजन के पश्चात् खैरी नाग अर्थात् खर नाग का पूजन करना चाहिए

व्यास जी ने मानस खण्ड में मुनिवरों के समूहों को बताते हुए इस क्षेत्र का वर्णन करते हुए कहा है शिखर पर ‘गोपीश्वर’ का पूजन कर ‘खर’ नामक महा- नाग का पूजन करना चाहिये । तब ध्यानपूर्वक ‘गोपालक’ नाग का पूजन करे। वहीं गोपियों तथा नागकन्याओं के समूह का पूजन भी करे। इनका पूजन करने से ‘गोपीश’ पद प्राप्त होता है। द्विजवरों ! तब ‘गोपीवन’ में ‘काली’ देवी का पूजन कर दुःख और भय को दूर भगा दिया जाय। नागपर्वत में जो पवित्र नदियाँ हैं, वे सब नागप्रमुखों ने स्वर्ग से बुलाई हैं। उनमें स्नान कर महेन्द्रभवन प्राप्त होता है। महर्षि शाण्डिल्य से आहूत ‘गुप्तसरस्वती’ में स्नान करने से ‘इन्द्रपुर’ मिलता है। तब पश्चिम की ओर ‘कोका’, ‘कोटीश्वरी’ तथा ‘कालिका’ का पूजन किया जाता है। दक्षिण भाग में कालीय आदि नागों से सेवित ‘भद्रा’ देवी का पूजन किया जाता है। ‘सुभद्रा-रामगङ्गा’ के मध्य जो ‘भद्रा’ की पूजा करता है, वह इक्कीस कुलों का उद्धार कर परमगति प्राप्त करता है।

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तदनन्तर ‘कनक’ पर्वत के शिखर पर नागकन्याओं से सेवित ‘शाङ्करी’ देवी का पूजन कर दुर्गति से अपनी रक्षा करें। तब शिखरस्थ ‘फेनिल’ नाग का पूजन किया जाता है । वह ‘कालीय’ नाग का ज्येष्ठ पुत्र है। तथा जल तथा पुष्पों से उसका पूजन करने से किसी तरह का अमङ्गल नहीं होता । उससे आगे ‘त्रैलोक्य’ नाम का पूजन होता है उसकी पूजा आरोग्यवर्धक है। तब वन के छोर पर शिखरस्य एवं नाग कन्याओं से सेवित ‘मूलनारायण’ नाग है। तपोधनों ! उसने नारायण की आराधना कर दे दुर्लभ ‘नारायण’ नाम प्राप्त किया। उसकी आराधना करने पर दुर्लभ सिद्धियाँ सुलभ हो।
इससे आसपास नाग पर्वत का विशाल महात्म्य पुराणों में वर्णित है जिसे विस्तार के साथ पढ़ा जा सकता है पुराणों में कहा गया है ‘भद्रा’ के उद्गम स्थल पर ‘भद्रेश’ की पूजा करने से सिद्धि प्राप्त होती है। देव, गन्धर्व, सर्प आदि देवी का पूजन करते हैं। यहाँ ‘चटक’, श्वेतक, ‘कालीय’ नाम आदि ‘भद्रा के मूल में वास देवगन्धर्वाद से सेवित ‘भद्रा” के तीर्थो का सुन्दर जिक्र पुराणों में आया है

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