देवभूमि के दुर्लभ रहस्य : धौलीनाग मेले का मुख्य आकर्षण होगी 22 फिट की हस्त निर्मित मशाल, पंचमी मेला 8 अक्टूबर को

ख़बर शेयर करें

पंकज डसीला/*विजयपुर धौलीनाग मंदिर पंचमी मेले में 03किमी पैदल खड़ी चढ़ाई चढ़कर पहुंचाईं जाएगी 22 हाथ लम्बी मशाल(काठ का दीपक)
*इस बार 8 अक्टूबर की रात्रि में होगा पंचमी मेला: भवान सिंह धपोला अध्यक्ष मंदिर समिति
*मेले का मुख्य आकर्षण का केंद्र चीड़ की लकड़ी से हस्तनिर्मित 22 फिट की मशाल रहती है
कांडा।
तहसील के विजयपुर स्थित धौलीनाग मंदिर में मंगलवार की रात्रि को पंचमी का मेला लगेगा। यहां अपार भीड़ रहती हैं श्रृद्धालुओं की। मंदिर में पूजा अर्चना के साथ झोड़ा,चांचरी,भगनोल गायन की धूम रहती हैं। दूरदराज गांवों से यहां लोक संस्कृति के संवाहक ग्रामीण हुड़के ढोल नगाड़ों के साथ पहुंचते हैं।पंचमी मेले में मुख्य आकर्षण का केंद्र चीड़ की लकड़ी का बना हुआ हस्तनिर्मित 22 हाथ लम्बी मशाल जिसे मढ़गोपेश्वर होते हुए शिवालय मंदिर की 152 सीढ़ियो से गोपेश्वर त्रिवेणी से होकर धपोलासेरा हरूसैम मंदिर में काठ के दीये की पूजा होती हैं यहां से बीर बाजा ढोल लगाकर नगाड़ों के साथ धपोलासेरा के धपोला बिरादरी के द्वारा धौलीनाग मंदिर की ओर प्रस्थान किया जाता हैं। बीच में एक खड़बोड़ नामक स्थान पर दीपक का विश्राम होता है यहां से दास बंधुऔ को पोखरी के चंदोला बिरादरी को निमंत्रण देने के लिए भेजा जाता हैं।जिनकी छुरमल देवता मंदिर में न्योता दिया जाता हैं। यहां से फिर संयुक्त रूप से लगभग 03 किमी पैदल चलकर धौलिनाग पहुंचाते हैं। मंदिर समिति के अध्यक्ष भवान सिंह धपोला रात्रि में आठ बजे से करीब मेला शुरू होता। इस जली हुई मशाल को देवस्थल नामक स्थान तक मशाल को उल्टा लाया जाता है यही स्थान है जहां से इसे फिर मंदिर की ओर सुल्टा घुमा दिया जाता हैं यहीं से बढ़े दीपक यानि मुख्य दीपक को जलाया जाता है। यहां तक उजाले आदि के लिए दो छोटे दीपक मशालें बनी होती है। यहां से तीन मशालें साथ चलती हैं।मशाल के साथ सभी संयुक्त रुप से चलते हैं ये मशालें लगभग 12 बजे मध्यरात्रि में मंदिर परिसर में प्रवेश करती हैं देवडांगरों का अवतरण भी साथ साथ होता हैं।डेढ़ परिक्रमा दो बजे से ढाई बजे करीब होती है और डेढ़ परिक्रमा सुबह 4 बजे सुबह होती है कुल तीन परिक्रमा मंदिर की होती हैं। इस काठ के दीये मशाल का निर्माण (भावला) भूल बिरादरी के लोग बनाते हैं हरीश भावला,राजन भावला और ललित जगत,बहादुर इस काठ के दीपक बनाने का कार्य करते हैं।ये बताते हैं कि आठवीं पीढ़ी इनकी यह कार्य कर रही हैं।इस मशाल को बांधने में किसी भी तरह की रस्सी तार आदि का प्रयोग नहीं किया जाता हैं। बल्कि सिर घास से इसे बांधा जाता हैं इसे बहुत ही सूदूरवर्ती क्षेत्रों से लाया जाता हैं। भावला बिरादरी के लोग दिनभर ब्रत रखकर इसका निर्माण करते हैं। इस मशाल को देखने को लोग दूरदराज क्षेत्रों से लोग यहां वर्षों से पहुंचते हैं।
मंदिर समिति ने सभी से मेले में पहुंचने का आह्वान किया हैं।

Ad
Ad Ad Ad Ad
Ad