श्री रामकथा में राम बनवास का प्रसंग सुन भावुक हुए श्रद्धालु

ख़बर शेयर करें

श्री रामकथा में राम बनवास का प्रसंग सुन भावुक हुए श्रद्धालु
किच्छा यहां सुनहरी स्थित सिद्धेश्वर महादेव धर्मशाला मंदिरं में संगीतमय नौ दिवसीय श्रीराम कथा में आज कैकेई द्वारा राजा दशरथ से दो वरदान मांगना राम बनवास दशरथ का पुत्र वियोग में प्राण त्यागना राजा सुमंत का बहुत ही करुण क्रंदन करना तथा भरत का श्री राम से वापस अयोध्या लौटने की विनय करने का बहुत ही हृदय स्पर्शी वर्णन कथावाचक अवधेश मिश्र के द्वारा कराया गया इससे पूर्व आज मानव उत्थान सेवा समिति के कुमाऊं प्रभारी युवा संत महात्मा सत्यबोधानंद जी ने श्री राम कथा में बहुत ही मार्मिक प्रसंग सुनाकर श्रद्धालुओं का मार्गदर्शन किया उन्होंने कहा कि वास्तव में असुरों का संहार तथा सज्जनों की रक्षा के लिए ही मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्री राम ने माता कैकई से राजा दशरथ से दो वरदान मांगने की विनती की जिसके तहत खुद को वनवास तथा भरत को राजगद्दी देना प्रमुख था उन्होंने कहा कि अधर्म के विनाश के लिए और धर्म के प्रकाश के लिए प्रभु राम के संकल्प को पूरा करने में माता कैकई का अतुलनीय योगदान रहा जिसे भुलाया नहीं जा सकता है उन्होंने राम बनवास का भी बहुत ही सुंदर प्रसंग सुनाया और संगीत के माध्यम से कहा कि वन को चले अवध के राम, अपनी अवधपुरी को करके बारंबार प्रणाम, राम लखन सिय वन को चले हैं छोड़ अयोध्या धाम वन को चले अवध के राम से श्रोताओं को भाव विभोर कर दिया। महात्मा सत्यबोधानंद जी ने कहा कि गुरु वशिष्ट की पत्नी अर्थात गुरु माता अदिति द्वारा भी राम बनवास के लिए जब माता कौशल्या से कैकई को दोषी ठहराने की बात की गई तो माता कौशल्या ने कैकई के महान चरित्र का वर्णन करते हुए कहा कि जिस माता की कोख से भरत जैसा पुत्र जन्म लेता है वह माता गलत हो ही नहीं सकती उन्होंने कहा कि धरा धाम में अवतरित अवतारों ने हमेशा जनमानस को सीख दी है कि आपका प्रारब्ध कभी आपका पीछा नहीं छोड़ेगा लिहाजा इस जन्म में किए जाने वाले अच्छे कर्म आपके अगले जन्म के प्रारब्ध बन सकते हैं उन्होंने कहा कि पूर्व में राजा दशरथ को श्रवण कुमार के माता-पिता द्वारा यह अभिशाप दिया गया था कि जिस प्रकार से पुत्र के वियोग में अपने प्राण त्याग रहे हैं ठीक उसी प्रकार से पुत्र के वियोग में उन्हें भी अपने प्राण त्यागने पड़ेंगे जो भगवान राम के वनवास जाने के बाद सच साबित हुआ उन्होंने कहा कि मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान राम ने सर्वशक्तिमान होते हुए भी विधाता के नियम को गलत नहीं होने दिया इस दौरान महात्मा सत्यबोधानंद जी ने दशरथ कैकई संवाद दशरथ का प्राण त्यागना मंत्री सुमंत का राम लक्ष्मण और सीता को सरयू पार कराना और वापस अयोध्या चलने का निवेदन करना आदि बहुत ही सुंदर वर्णन किए इस दौरान उन्होंने राम और केवट का भी बहुत ही हृदय स्पर्शी वर्णन करते हुए सतयुग की उस घटना का भी जिक्र किया जिसमें केवट कछुआ के रूप में शेष शैया पर विराजमान भगवान विष्णु के चरण पखारना चाहता था लेकिन शेषनाग और माता लक्ष्मी उसे बार-बार हटा देते थे लेकिन भक्त की इच्छा को पूरा करने के लिए वही भगवान राम के रूप में और माता लक्ष्मी सीता के रूप में है जबकि शेष अवतार लक्ष्मण के रूप में और वह पूर्व जन्म के चरण छूने की अपनी अभिलाषा को पूर्ण कर लेता है धरती को राक्षस जाति से मुक्त करने का संकल्प लेते हुए प्रभु राम वन को प्रस्थान करते हैं इधर राजा भरत पुनः वापस अयोध्या चलने का निवेदन करते हैं लेकिन प्रभु राम उन्हें क्षत्रिय धर्म की मर्यादा का पाठ पढ़ाते हुए अपने अपने धर्म के तहत अपने कर्तव्य को पूरा करने की सीख देते हैं श्री राम कथा के आज के पावन दिन पर महात्मा प्रचारिका बाई महात्मा प्रभाकरानंद महात्मा हेमंती बाई नंदन सिंह रावत देवेंद्र कांडपाल कन्हैया सिंह आशीष वर्मा मदन मोहन गर्ग ग्यारसी लाल प्रहलाद खुराना गिरधारी लाल मनीषा गुप्ता भगवानदास बर्मा कन्हैया सिंह हरिश्चंद्र माझी शंभू दत्त नैनवाल स्वामीनाथ पंडित श्वेता शर्मा समेत सैकड़ों श्रद्धालु मौजूद रहे

Ad
Ad Ad Ad Ad
Ad