भागवत किंकर नमन् कृष्ण महाराज की कलम से श्रावण मास के महत्व पर विशेष आलेख

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~~~~~~~ॐ शिव ॐ~~~~~~~

शिव उपासना, शिव भक्ति, शिव संकल्प, शिव-समर्पण का अक्षय पुण्यदायक श्रावण मास सनातनी चातुर्मास अर्थात श्रवण परम्परा का श्रेष्ठ मास है। वस्तुतः चातुर्मास व्यास पूर्णिमा के दिन गुरू-पूजन से प्रारम्भ होता है और देवोत्थान करके ही पूर्ण होता है जिसमें प्रथम श्रावण मास शिव को समर्पित है। रामचरितमानस में भी प्रयागराज में त्रिवेणी के तट पर भारद्वाज ऋषि याज्ञवल्क्य ऋषि को प्रभु श्रीराम की महिमा सुनाने का निवेदन करते हैं तब याज्ञवल्क्य ऋषि श्रीराम कथा सुनाने से पहले भारद्वाज जी को शिव कथा सुनाते हैं। बिना शिवत्व को धारण किए प्रभु श्रीराम की अन्तःकरण में स्थापना हो ही नहीं सकती।

शिव का अर्थ ही है कल्याण- “शिवं कल्याणं ददाति इति शिवदं, अर्थात अपनी करुणा से जो जीवमात्र का कल्याण करें वे शिव हैं”।
और देखिए श्रावण के महीने में जहाँ मास-पर्यंत आकाश मेघाच्छत्र रहता है, मेघों की कालिमा को चीरते हुए महादेव अपनी कृपा, करुणा का नित्य वर्षण करते हैं। प्रतीकात्मक रूप से कहें तो, मेघ जो वासना रूपी हैं, अज्ञान रूपी अहंकार जनित हैं, इन अज्ञान, वासना, अहंकार के काले मेघों को हटाकर महादेव जीव पर अपनी करुणा का वर्षण करते हैं और भक्तों के अंतःकरण में उपासना का प्राकट्य होता है।

तो जीवमात्र के लिए जो करुणावतारं हैं, वे शिव कौन हैं, संक्षेप में मतिनुसार उनका वर्णन करने का साहस कर रहा हूँ।
भगवती श्रुतिनुसार -“शेते तिष्ठति सर्वं जगत यस्मिन सः शिवं “- अर्थात जिनमें सम्पूर्ण जगत स्थिर रहता है वे शिव हैं। सृष्टि के प्रत्येक स्वरूप में शिव ही प्रकट हैं।

शिव सृष्टि का मूल तत्व हैं। जिनसे यष्टि, समष्टि, उपष्टि, सृष्टि के प्रत्येक कण-कण ने जन्म लिया, सचराचर जगत जिनसे उत्पन्न हुआ और शिव में ही समाया हुआ है। शिव से पृथक होना संभव ही नहीं है। शिव तत्व का व्यापक अर्थ है सिद्धांत अर्थात शिव कोई स्वरूप मात्र नहीं, वरन् शिव आकाश हैं, धरती हैं, तारे-नक्षत्र हैं, सूर्य हैं, ज्योति हैं, स्थावर हैं, जंगम हैं नदी और सागर भी शिव हैं। अर्थात प्रत्येक कण-कण, प्रत्येक स्वरूप शिव चेतना है। चेतना, जो सभी दिशाओं में विस्तारित है, सर्वत्र व्याप्त है। शिव ईश्वर हैं, अज हैं, स्वयंभू हैं, अजन्मे हैं किंतु सबकुछ उन्हीं से प्रकट है। शिव महा-समाधि हैं अर्थात चेतना का आन्तरिक आकाश हैं शिव। वस्तुतः ब्रह्मांड का जो स्वरूप है वही परमब्रह्म शिव का स्वरूप है। वे अनादि, अनंत, अज हैं, अविनाशी, अगम, अगोचर हैं, नित्य, शाश्वत एवं कण-कण में व्याप्त हैं। यही अखिल कोटि ब्रह्माण्ड नायक परात्पर ब्रह्म शिव, स्व से प्रकट सृष्टि के प्रत्येक जीव पर करुणा करने के लिए विध-विध स्वरूपों में प्रकट हैं। वेदांत के आधार पर उन महाशिव के प्रकट होने के चार स्तर हैं, यथा- परंब्रह्म, ईश्वर, हिरण्यगर्भ एवं विराट।
1-परंब्रह्म का अर्थ है, सर्वव्यापी चेतना अर्थात ‘सत्यंज्ञानमनन्तं ब्रह्म’ जिसका तात्पर्य है ब्रह्म सत्य और अनंत ज्ञान स्वरूप है। इस विश्वातीत रूप में शिव उपाधियों से रहित निर्गुण ब्रह्म या परमशिव कहलाते हैं।
2- ईश्वर-इस सर्वव्यापी जगतात्मा का मन है अर्थात् उन सदाशिव की माया दृश्यमान विषयों में अभिव्यक्त होती है तब आधार ब्रह्म ईश्वर या कतिपय वैश्वानर कहलाता है।
3-हिरण्यगर्भ इस सर्वव्यापी जगतात्मा की बुद्धि हैं। ब्रह्म के व्यक्त स्वरूप, माया और सृष्टि में बीजावस्था को हिरण्यगर्भ कहते हैं। हिरण्यगर्भ सूत्रात्मा हैं अर्थात सृष्टि के आधार और ब्रह्म के इस रूप का सरल अर्थ है-सकल सूक्ष्म विषयों की समष्टि।
4- विराट- इस इस सर्वव्यापी जगतात्मा का भौतिक विस्तार है अर्थात् महाशिव ही शिव स्वरूप में कण-कण से लेकर आकाश, नक्षत्रों, अग्नि, जल, वायु, धरती में स्वयं विराजित हैं और यही शिव का विराट स्वरूप है।
जीव जब जगत को नित्य मानकर परात्पर ब्रह्म को सृष्टिकर्ता, पालक, संहारक, सर्वज्ञ आदि औपाधिक गुणों से संबोधित करता है तो वह सगुण ब्रह्म या साकार ईश्वर कहलाता है। उन्हीं साकार शिव का जो स्वरूप युगों से लेकर वर्तमान में योगियों द्वारा या परम शैवाचार्यों द्वारा अनावृत्त है, उन शिव की जटाएं हैं, मस्तक पर अर्धचन्द्र सुशोभित है, भ्रूमध्य में तृतीय नेत्र है, गले में सर्प माला है, अंगों में भभूति है, हाथों में डमरू और त्रिशूल हैं, कटि प्रदेश में व्याघ्र चर्म है, वृषभारूढ़ हैं और कैलाश पर्वत पर महा समाधि लगाए हैं और जिनके वामांग में अपराजिता शक्ति माँ पार्वती सुशोभित हैं।

साकार, सगुण शिव स्वरूप की व्याख्या आगामी पोस्ट में करेंगे।
#क्रमशः
नमः परम शिवाय।
अवधपति राघवेन्द्र भगवान की जय।
नमः पार्वती पतये हर हर महादेव।।
Naman Krishna Bhagwat Kinker
सिद्धेश्वर महादेव मंदिर, खटीमा, जिला चम्पावत, उत्तराखंड से सभी को श्रावण मास की हार्दिक शुभकामनाएं।

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