श्रीमद्भगवतगीता अध्यात्म ज्ञान और जीवन शैली सिखाने वाला विश्वविख्यात अनुपम ग्रंथ है। गीता के अध्ययन और मनन से व्यक्ति आत्म शांति का अनुभव कर सकता है। जीवन को सुखी बना सकता है।
योगेश्वर श्री कृष्ण ने अर्जुन को निष्ठापूर्वक कर्म करके अपने जीवन को सफल करने का जो महत्वपूर्ण उपदेश ‘कर्मण्येवाधिकारस्ते, मा फलेषु कदाचन्’ दिया । यह जीवन के मूल को समझने और व्यवहार करने का शाश्वत सूत्र है। रणभूमि में अर्जुन के हताश मन में नई स्फूर्ति और ओज भरने को कृष्ण ने गीता का उपदेश दिया था। इस बहाने सारी मनुष्य जाति का जीवन-समर को सही रीति से जीतने का अमर मंत्र गीता में ही है। इस तरह गीता हिन्दू धर्म विशेष की नहीं वैश्विक मूल्य की कृति है इसीलिए दुनिया की लगभग सभी भाषाओं में गीता प्रस्तुत की जा चुकी है। इसके भाष्य और विवेचन निरन्तर विद्वानों द्वारा किए जाते हैं । गीता पर प्रवचन लोग रुचि से सुनते हैं।
द्वापर युग के समापन तथा कलियुग आगमन के समय आज से कोई पांच हजार वर्ष पूर्व कुरूक्षेत्र के रणांगण में उस समय गीता कही गई , जब महाभारत युद्ध आरंभ होने के समस्त संकेत योद्धाओं को मिल चुके थे। श्रीमद्भगवदगीता के प्रथम अध्याय में इसका विस्तृत वर्णन मिलता है। यथा युद्ध के वाद्यों का बजना, समस्त प्रकार के नादों का गूंजना, यहाँ तक कि तत्कालीन (द्वापर युग के) महानायक भगवान श्री कृष्ण के शंख “पांचजन्य” का उद्घोष, यह सब युद्धारंभ के स्पष्ट संकेत थे।
आज भी दुनिया कुछ वैसे ही कोलाहल , असमंजस और किंकर्तव्यविमूढ़ स्थिति में है। मानव मन जीवन रण में छोटी बड़ी परिस्थितियों में सदैव इसी तरह की उहापोह में डोलता रहता है इसलिए गीता सर्वकालिक सर्वप्रासंगिक बनी हुई है।
श्रीमद्भगवद्गीता का भाष्य ही वास्तव में “महाभारत” है। गीता को स्पष्टतः समझने के लिये गीता को महाभारत के प्रसंगों में पढ़ना और हृदयंगम करना आवश्यक है। महाभारत तो विश्व का इतिहास ही है। ऐतिहासिक एवं तत्कालीन घटित घटनाओं के संदर्भ मे झांककर ही श्रीमद्भगवद्गीता के विविध दार्शनिक-आध्यात्मिक व धार्मिक पक्षों को व्यवस्थित ढंग से समझा जा सकता है।
अनेक विद्वानों के गीता के हिंदी अनुवाद के क्रम में हिंदी काव्य में छंद बद्ध सरस पदों में प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव विदग्ध ने भी इसका पद्यानुवाद किया है जिसे पढ़कर गीता को सरलता से समझा व आत्मसात किया जा सकता है।
(विवेक रंजन श्रीवास्तव -विनायक फीचर्स)
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