डीडीहाट(पिथौरागढ़)/हिमालय की गोद में स्थित डीडीहाट का सौदर्य अतुलनीय है,यहां की प्राकृतिक आभाओं में आध्यात्म के गूढ़ रहस्य समाये हुए है,सदियों से यह पावन भूमि ऋषि मुनियों व तपस्वियों की आराधना,उपासना,साधना व आत्मिक शान्ति का पावन केन्द्र रहा है। भगवान मलयनाथ की नगरी के नाम प्रसिद्व डीडीहाट आध्यात्मिक रुप से जितना समृद्व है,प्राकृतिक सुन्दरता से उतना ही भरपूर है।पर्यटन एंव तीर्थाटन दोनों ही दृष्टियों से यह भूभाग पूर्णतया समृद्वशाली है
पिथौरागढ़ जनपद मुख्यालय से लगभग55कि.मी. की दूरी पर स्थित श्रीमलयनाथ जी की यह पावन नगरी समुन्द्र सतह से लगभग 1725 मीटर की ऊँचाई पर स्थित है। यहा की अद्भूत शोभा सीराकोट की ऊचीं पहाड़ी है।इसी पहाड़ी पर लोक कल्याण कारी देवता मलयनाथ जी का सुन्दर मन्दिर स्थित है,जो सदियों से श्रद्वा व भक्ति का पावन केन्द्र माना जाता है।मान्यता तो यहां तक है,कि इस देव दरबार में मांगी गई मनौती कभी भी ब्थर्थ नही जाती है।भक्तजन बताते है।सच्चे मन से जो भी मलयनाथ जी की शरण में आता है।उसके सारे मनोरथ स्वतः ही सिद्व हो जाते है।इस मन्दिर की स्थापना का श्रेय यहां के प्राचीन कालीन प्रतापी राजाओं को जाता है। सीराकोट पहाड़ी की चोटी पर स्थित इस देव दरबार से हिमालय की चोटियों के दर्शन बरबस ही दर्शकों को दिव्य लोक का अहसास कराती है।यहां से दिखाई देनें वाली हिमालय की शोभा का वर्णन शब्दों में नही समेटा जा सकता है।क्योकिं हिमालय का महात्म्य व उसकी शोभा का वर्णन बड़ा ही अतुलनीय है।स्कंद पुराण में स्वयं महर्षि वेद व्यास जी ने यहां से दिखाई देने वाले तमाम हिमशिखरों का वर्णन करते हुए कहा है।इन पर्वतों के दर्शन जन्म जन्मान्तरों के पापों का हरण करते है।स्कंद पुराण के हिमालय महात्म्य में तो यहां तक कहा गया है।इन पर्वतों को देखनें की तो बात ही छोडिये इनकी महिमां कहनें व सुनने से ही विष्णुसायुज्य प्राप्त होता है।और हिमकणों की शोभा से दीप्तीमान हिमालय के दर्शनमात्र से विष्णुपद मिलता है। इतना ही नहीं जो भक्तिपूर्वक हिम शब्द का बार बार उच्चारण करता है।उन्हें दस हजार योजन दूर रहते हुए भी भगवान विष्णु की कृपा प्राप्त होती है।हिमालय दर्शन का फल इससे भी बढ़कर बखान करते हुए,भगवान व्यास कहते है।सैकड़ों योजन दूर रहते हुए भी हिमालय का दर्शन करके कीट पतंग भी मरनें के पश्चात् मुक्ति के अधिकारी होते है फिर बाकी कहना ही क्या इसलिए हिमालय को सर्वत्र पुण्यवान बतलाया गया है।
स्कंद पुराण के मानस खण्ड़ के 73 वें अध्याय में व्यास जी द्वारा वर्णित यह श्लोक हिमालय की महानता को दर्शाता है। भगवान मलयनाथ जी के दर्शन के पश्चात् हिमालय के दर्शन का फल गंगा स्नान के समान पुण्यदायी माना जाता है।हिमालय की महिमां का बखान करते हुए ब्यास जी मुनिवरों से कहते है। हिमालय के दर्शन से काशीवास का पुण्य प्राप्त होता है।यह भूभाग देव,गंधर्व व ऋषियों की वास भूमि कही जाती है।पार्वती सहित भगवान शंकर की भूमि होनें से यह सर्वश्रेष्ठ़ भूमि है।यही सृष्टि,स्थिति,सहांरकर्ती भगवती प्रकट हुई जो देव गन्धर्वो से पूजित है।व्यास जी कहते है ऐसे हिमालय का वर्णन करनें में कौन समर्थ है।उसकी महिमां का बखान कैसै किया जा सकता है।
हिमालय में बिष्णु सहित ब्रहमादिदेवों से सेवित एक महाक्षेंत्र है।जो कैलाश नाम क्षेत्रं से प्रसिद्ध है।उल्लेखनीय है,कि कैलाश यात्रा पथ पर ही डीडीहाट व मलयनाथ जी है। कैलाश शिखर के समान ही यह पुण्यशील सिखर है।तथा इसी तरह के अनेकों सिखर यहां है।पुराणों में इन शिखरों की महत्ता समझाते हुए श्री वेद व्यास जी ने मुनियों को अद्भूत रहस्य बतलाते हुए कहा नन्द और कैलाश पर्वत के मध्य विद्यमान शिखरों के दर्शनों के लिए देवता भी आतुर रहते है।मनुष्यों का तो कहना ही क्या उन्हीं शिखरों पर भगवान ने अपना सिर रक्खा और तकिया बनाया तथा अपने पैर दारु पर्वत जागेश्वर तक फैलाये अपनी नाभी तथा कमर को बागीश्वर में प्रतिष्ठित कियाअपनी ग्रीवा गर्दन जोहार पर्वत पर तथा बाई भुजा भुवनेश्वर में स्थित की दाहिनी भुजा को विभाण्डेश्वर में स्थापित किया।उसे शयनागार बनाकर भगवान शिव ने माता पार्वती सहित सुखपूर्वक शयन किया।जिस हिमालय ने भगवान शिव का सायुज्य प्राप्त किया है।उसका वर्णन व महिमां अवर्णनीय है।इन क्षेत्रों में शिव का पूजन करनें से मनुष्य मोक्ष का अधिकारी बनता है।हिमालय के पंचशिखरों का दर्शन परम सौभाग्य को देनें वाला है।ये पर्वत शिव के शीश भी मानें गये है,इनके दर्शन परम पुण्यमय कहे गये है
कुल मिलाकर हिमालय की महिमां विराट है।सीराकोट डीडीहाट से हिमालय का विराट स्वरूप झलकता है।दिग्तड़ नामक पर्वत के नाम से जाने जाने वाला डीडीहाट उत्तराखण्ड की अमूल्य धरोहर है। कैलाश मानसरोवर यात्रा पथ पर स्थित डीडीहाट की जलवायु बड़ी ही मनभावन है।एक ओर हरा भरा आकर्षण वातावरण तो दूसरी ओर हिमालय का बर्फिला नजारा आत्मिक शान्ति का पावन केन्द्र है। बर्फ से ढकी पंचाचूली हिमालय ऋंखला का मनोहर दृश्य शिव आभामण्डल के दर्शन कराती प्रतीत होती है।पंचाचूली शिखर की महिमां का वर्णन पुराणों में विस्तार के साथ पढ़ा जा सकता है। कभी यहां मल्ल राजाओं का राज था।बाद में चंद राजाओं ने यहां राज्य किया।
राजा रत्न चंद यहां के प्रतापी राजाओं में एक थे
यह क्षेत्र पर्वतीय संस्कृति का पावन केन्द्र है।जिसकी खास झलक तीज त्यौहारों पर देखनें को मिलती है।पाण्डव कालीन व पाण्डवों से जुड़ी दंतकथायें भी डीडीहाट के महत्व को दर्शाती है।यहां के लोगों की जीविका का प्रमुख व्यवसाय कृषि पर निर्भर रहा है।अब अधिकाश गांवों के वाशिदें यहां से पलायन कर चुके है।अनेकों लोगों ने अपने आशियाने बिन्दुखत्ता हल्द्वानी,दिल्ली,आदि क्षेत्रों में बना लिये है। कैलाश-मानसरोवर की तीर्थयात्रा का पथ होनें के कारण कुछ स्थानीय लोग होटल व्यवसाय से जुड़कर रोजगार कर रहे है।////@रमाकान्त पन्त////
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