अलौकिक रहस्य : कुमाऊँ की धरती में महाकालेश्वर विराजमान है यहाँ

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त्रिपुरादेवी/कोटेश्वर उत्तराखण्ड स्वयं एक पवित्र तीर्थ स्थल है। यहां स्थित पौराणिक शिवालयों व ऐतिहासिक गुफाओं का विशेष महत्व है। स्कंद पुराण में उत्तराखण्ड के कुमाऊं क्षेत्र को मानस खण्ड और गढ़वाल क्षेत्र के केदारखण्ड कहा गया है। इन क्षेत्रों में स्थित विभिन्न शिवालयों एवं उनकी महत्ता का वर्णन भी मानस खण्ड में विस्तार के साथ किया गया है। वैदिक काल में इस क्षेत्र का नाम मेरू था उत्तरकुरू के नाम से भी महाभारत काल में इस स्थान की प्रसिद्धि रही है। स्वयं योगेश्वर भगवान श्रीकृष्ण और पाण्डवों ने इस भूमि में शिव आराधना की यहां की गहन गिरि कन्दराएं साधना का केन्द्र रही है। इसे शब्दों में पिरो पाना संभव नहीं है। भगवान शिव के असंख्य पावन स्थलों की श्रृंखला में ‘कोटेश्वर’ एक ऐसा अलौकिक क्षेत्र है जो दर्शन मात्र से ही मानव को सहजता में ही मुक्ति प्रदान करने वाली कही गयी है

कोटेश्वर की गुफा का वर्णन मानव खण्ड में विस्तार के साथ मिलता है। यह स्थल जनपद पिथौरागढ़ के राईआगर नामक कस्बे के समीप है। पाताल भुवनेश्वर के निकट सरयू तथा रामगंगा नदियों के बीच इस क्षेत्र के दर्शन से संपूर्ण तीर्थों का फल प्राप्त होता है। तीनों लोकोंं में इसकी समानता वाला दूसरा क्षेत्र नहीं है। पुराणों में इस गुफा की महिमा का बखान करते हुए महर्षि वेद व्यास जी ने लिखा है। जिस प्रकार कैलाश शिखर में तथा मन्दरांचल की चोटी में भगवान शिव निवास करते हैं। उसी प्रकार वे कोटेश्वर की गुफा की चोटी में भगवान शिव निवास करते हैं उसी प्रकार वे कोटेश्वर की गुफा में विराजमान है

‘महाकालेश्वर’ के नाम से इनकी स्तुति करने वाले प्राणी के जनम जन्मांतर के पापों का नाश हो जाता है। बारह वर्षों तक काशी में निवास करने से जो पुण्य संचय होता है। वह पुण्यफल महाकालेश्वर के दर्शन मात्र से प्राप्त होता है। बद्रीकेदार के दर्शन के फल कोटेश्वर के दर्शन मात्र से हो जाता है।
मानस खण्ड में वर्णित कथा के अनुसार वर्णन आता है कि प्राचीन काल में मृत्युंजय नामक एक राजा हुए जो सत्यवादी व धर्मात्मा थे, प्रजा के प्रति उनके हृदय में अपार स्नेह था। ब्राह्मण उनके लिए परम पूज्यनीय थे इन सबके बावजूद उसे कुष्ठ रोग ने घेर लिया। वह दुखी होकर तपस्या करने लगे। उनके विरोधी राजाओं ने यह जानकर उनके राज्य का अपहरण कर लिया कि राज्यहीन व रोगी राजा निराश होकर वन को चला गया, संसार के सभी तीर्थ स्थानों की राजा ने यात्रा की। फिर भी राजा के अन्तःकरण को शांति की प्राप्ति नहीं हुई। इस प्रकार अनेक तीर्थस्थानों में घूमते हुए राजा सनकादिक ऋषियों के साथ पाताल भुवनेश्वर पहुंचा, वहां स्नान कर भुवनेश्वर की पूजा से कुछ शांति की प्राप्ति हुई। यहां से निकलकर वह घने वन की ओर प्रस्थान कर गये। इसी बीच शिव कृपा से उनका मिलन ब्रह्म पुत्र ऋषियों से हुआ जो कोटेश्वर के दर्शन को जा रहे थे। राजा ने उन समस्त ऋषियों को अपनी व्यथा बतायी। दयालु ऋषियों ने देवयोग से ध्यान केन्द्रित कर उस राजा के पिछले जन्म की कथा बताते हुए कहा, हे! राजन, आप पहले जन्म में युवनाश्व नाम के राजा थे।  आपने राज्य के ऐश्वर्य के मद में उन्मत्त होकर ब्रह्मण दंपति की हत्या की थी। उस घोर पाप से आपकी ऐसी दशा हुई है। अब पाप के प्रायश्चित की विधि सुनिये। सरयू तथा रामगंगा के बीच दारूगिरी नामक पर्वत है। जो अनेकों गुफाओं से शोभित है। उसके उत्तर की ओर कोटीश्वर नामक गुफा है। उसमें प्रवेश करने वाला मनुश्य शिव का प्यारा बन जाता है। ऋषियों के कहे वचन के अनुसार राजा ने कोटेश्वर के दर्शन व वहां शिव पूजन कर निर्मल काया को प्राप्त किया और शिव कृपा से अपना राजपाट प्राप्त किया और देह त्याग के पश्चात शिव से अपना राजपाट प्राप्त किया और देह त्याग के पश्चात शिव लोक का भागी बना

इस गुफा के अलौकिक रहस्यों के बारे में वर्णन करते हुए महर्षि वेद व्यास जी ने लिखा है- तीन रात्रि तक जो इस गुफा में रहकर कोटीश्वर की आराधाना करता है वह ब्रह्महत्यादि घोर पापों से छूट जाता है। कोटेश्वर के भक्त को तीनों लोकों में कुछ भी दुर्लभ नहीं है। इस गुफा के भीतर ही महर्षि वशिष्ठ ने भगवान भोलेनाथ जी की आराधना करके उन्हें प्रसन्न किया।उत्तराखण्ड के कुमाऊं मण्डल में गुफाओं की श्रंखला में पिथौरागढ़ जिले में पाताल भुवनेश्वर की गुफा से 2.5 किमी. की दूरी पर हल्द्वानी-गंगोलीहाट मोटर मार्ग पर राईआगर कोटेश्वर महादेव की यह प्राचीन विशाल गुफा पर्यटन एवं तीर्थाटन की दृष्टि से काफी उपेक्षित है। रंजन पर्वत के इस भूभाग में बहने वाली रेवा नदी भी एक महान तीर्थ कुण्ड है जिसमें सात तीर्थ क्रमशः रुद्रतीर्थ, धनद तीर्थ, ब्रह्म तीर्थ, पुत्र तीर्थ, हरी तीर्थ, ऋषि तीर्थ, मृत्युंजय तीर्थ हैं। इनमें से ब्रह्म तीर्थ के ऊपर कोटेश्वर की गुफा है जहां अनेकों शिवलिंग के मध्य भगवान शंकर का एक विशाल लिंग है जिसकी औसत ऊंचाई 3-4 फिट व मोटाई 4.5 से 5.5 फिट के लगभग है। यहां के पुजारी कोटेश्वर के भट्ट हैं जिनके पूर्वजों का पुरातन स्थ्ल काशी रहा है।

बना गांव के पंत व भट्टी गांव के पंत शिव पूजन हेतु इन्हें यहां लाये। इस क्षेत्र में स्थित पुत्र तीर्थ के ऊपर एक विशाल देवदार का वृक्ष है जिसकी आयु हजारों वर्ष पूर्व बतायी जाती है। पेड़ के समीप ही एक विशालकाय नन्दीश्वर की शिला है* कोटेश्वर गुफा देव के दर्शन कर गुुफा द्वार से ऊपर 10-15 सीढ़ियां चढ़कर नरसिंह जी का विष्णुस्वरूप में पूजन होता है। यहां शेषनाग जी का मंदिर है। गुफा के अन्दर अनेक प्रकार के लिंग रूपरूप आकृतियां गणेश जी की सूड की जैसी आकृतियां हैं। नरसिंह मंदिर से एक गुफा का द्वार और है किंवदंती है कि पूर्व समय में एक कुत्ता व एक साधु यहां से काशी निकले थे।

कोटेश्वर के संदर्भ में एक अन्य किंवदंती के अनुसार यहां बेरीनाग क्षेत्र में बसा नामक गांव है। यहां पन्त लोग रहते हैं। इन्हीं लोगों में श्याम दत्त पंत नामक एक व्यक्ति यहां निवास करते थे, जो कोटेश्वर महादेव जी के अनन्य भक्त थे। उन्होंने गुफा द्वार से नरसिंह मंदिर तक सीढ़ियों का निर्माण स्वयं एक-एक पत्थर रोजाना लाकर किया था। बताते हैं कि नियत दिनचर्या के अनुसार वे 7-8 बजे शाम मंदिर में आते थे और रात्रि को 11-12 बजे वापस अपने घर जाते थे। उनके साथ स्वयं नरसिंह जी उन्हें पहुंचाने उनके घर जाते थे। देर रात्रि को घर आना उनकी पत्नी को खटकने लगा। उन्होंने रोजरोज घर विलम्ब से आने का कारण पूछा। तंगआ चुके कोटेश्वर भक्त पंत को सच बताना पड़ा। उन्होंने समूचे ग्रामवासियों को अपने घर बुलाकर कहा यदि में सत्य बताउंगा तो मेरा सिर फट जायेगा और मैं मर जाउंगा। लोगों ने इस बात को उनका पागलपन समझा। आंखिरकार मजबूरी में उन्हें सब कुछ बताना पड़ा कि विष्णु अवतारी नरसिंह भगवान कोटेश्वर से सदा मेरे साथ आते हैं और मैं जिन शालीग्रामों का नित्य पूजन करता था हरहरी के प्रसाद से प्रतिदिन शालीग्राम एक रत्त सोना देते हैं जिन्हें मेरी पत्नी धार्मिक कार्यों में लगाये इतना कहते ही श्याम दत्त पंत स्वर्ग लोक को पधार गये। लेकिन पंत जी के स्वर्गवासी होने के साथ ही शालीग्रामों ने सोना देना बंद कर दिया

कुल मिलाकर तीर्थाटन एवं पर्यटन दृष्टि से महत्वपूर्ण कोटेश्वर की गुफा शिव भक्तों के लिए भगवान भोलेनाथ की एक आलौकिक सौगात है। पर्यटन विकास की दृष्टि से यह क्षेत्र गुमनामी के साये में है।

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