उत्तराखण्ड में यहाँ गिरा माँ सती का सिर     

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 प्रसिद्ध शक्ति स्थल सुरकण्डा देवी जहाँ गिरा माँ सती का सिर
उत्तराखण्ड की धरती में जनपद टिहरी गढ़वाल के अन्तर्गत स्थित माँ सुरकन्डा देवी का दरबार प्राचीन काल से आस्था व भक्ति का अनुपम संगम है कहा जाता है कि देवी के इस दरवार में मांगी गयी मनौती कभी भी व्यर्थ नही जाती है जो भी मनुष्य श्रद्वा व विनयता पूर्वक यहाँ अपने आराधना के श्रद्वा पुष्प अर्पित करता है वह परम कल्याण का भागी बनता है
पवित्र पहाड़ों की गोद में स्थित माँ सुरकण्डा देवी का दरबार देवी के प्रसिद्ध शक्ति पीठों में एक है 51 शक्ति पीठों में इस स्थान की गिनती होती है कहा जाता है, कि दक्ष प्रजापति द्वारा एक बार कनखल हरिद्वार की भूमि में एक विराट यज्ञ का आयोजन किया गया इस यज्ञ उन्होनें अपनी पुत्री सती व शिव को आमंत्रित नही किया आमंत्रित न किये जानें का कारण जानने के लिए जब माता सती यज्ञ स्थल पर पहुंचीं तो यज्ञ में शिवजी का भाग न देखकर और पिता द्वारा किये गये शिवजी के अपमान से कुपित होकर माता शती ने यज्ञ कुंड में अपनी आहुति दे दी शिवजी को जब यह सूचना मिली तो उन्होने अपने गण वीर भद्र व माँ भद्रकाली सहित तमाम गणों को भेजकर यज्ञ ध्वस्त करवा दिया शिवगणों के ताण्डव से समूचे क्षेत्र में हाहाकार मच गया वीरभद्र ने दक्ष प्रजापति की गर्दन काट डाली बाद में दक्ष प्रजापति की पत्नी व अन्य देवगणों ने शिवजी की प्रार्थना कर क्षमा याचना की शिवजी प्रकट हुए दक्ष प्रजापति को बकरे का सिर प्रदान कर जीवन दान दिया और यहाँ से माता सती के अधजले शरीर को लेकर वे आकाश मार्ग का भ्रमण करने लगे जहाँ – जहाँ माता सती के अंग गिरे वे शक्ति पीठ के रूप में पूजित हुए
कहा जाता है इस स्थान पर माता सती का सिर गिरा और यह स्थान सरकण्डा व सुरकण्डा के नाम से जगत में प्रसिद्ध हुआ विभिन्न पर्वो के अवसर पर यहाँ मेले आयोजित होते है दूर – दराज क्षेत्रों से माता के दर्शनों को लोग यहाँ आते है,  यह स्थान देवराज इन्द्र की तपो भूमि के नाम से भी प्रसिद्ध है कहते है इसी स्थान पर देवी की आराधना व तपस्या करने के बाद देवराज इंद्र को अपना खोया राज्य वापिस मिला  सुरकुट पर्वत पर स्थित माँ सुरकण्डा की यहाँ काली स्वरुप में पूजा होती हैं। इस मंदिर में माता काली की प्रतिमा स्थापित है।
देवी के इस दरबार की विशेषता यह है कि मन्दिर के कपाट वर्ष भर खुले रहते है यह स्थान पर्वत समुद्रतल से 9995 फुट की ऊंचाई पर स्थित है।   घने जंगलों के मध्य स्थित इस स्थान हिमालय की रमणीक पहाडियो के दर्शन होते है चम्बा नामक कस्बे से यहाँ की दूरी लगभग बीस किलो मीटर है मंदिरं की विराट गाथा का वर्णन पुराणों में विस्तार से पढ़ा जा सकता है
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