लालकुआँ में निकाली गई भव्य कलश यात्रा, आध्यात्मिक उल्लास के साथ श्री शिव महापुराण कथा शुरु

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लालकुआँ के प्रसिद्ध शक्ति स्थल माँ अवंतिका मंदिर में भव्य क्लश यात्रा के साथ। आज रविवार से संंगीतमय श्री शिव महापुराण कथा का उमंग व उल्लास के साथ शुभारम्भ हो गया है विभिन्न देवी देवताओं के ध्वज तले निकाली गयी कलश यात्रा में भक्तों की भीड़ ने आध्यात्मिक छटा बिखेर कर रख दी कथा शुभारम्भ से पूर्व समझे नगर एवं क्षेत्र में भव्य कलश यात्रा बेहद आकर्षण का केंद्र रही नगर के आचंल में स्थित सभी देवताओं को प्रणाम करते हुए शहर के भीतर भव्य क्लश यात्रा निकाली गई।

कलश यात्रा की अगुवाई प्रसिद्व विद्वान वरिष्ठ महामण्डलेश सोमेश्वर यति महाराज कथावाचक व्यास संत श्री दुर्गा दत्त शास्त्री, मानव उत्थान सेवा समिति के कुमाऊँ प्रभारी संत श्री सत्य बोधानन्द जी महाराज गौशाला हल्दूचौड़ के व्यवस्थापक श्री रामेश्वर दास महाराज जी अवंतिका मंदिर के आचार्य प० चन्द्र शेखर जोशी प्रसिद्ध भाष्कर पाण्डेय भागवताचार्य विधायक मोहन बिष्ट नगर पंचायत अध्यक्ष लाल चन्द्र सिंह पूर्व पंचायत अध्यक्ष कैलाश चन्द्र पन्त राम बाबू मिश्रा पवन चौहान सामाजिक कार्यकर्ता भुवन चन्द्र पाण्डेय आचार्य हिमांशु पाण्डेय पिथौरागढ़ के वरिष्ठ सामाजिक कार्यकर्ता पूर्ण चंद्र पंत कैलाश दुम्का आनन्द रजवार विनय रजवार व्यापार मण्डल अध्यक्ष दीवान सिंह बिष्ट महा मन्त्री दिनेश लोहनी सुरेन्द्र लोटनी सभासद हेमंत पाण्डेय समाज सेवी हेमवती नन्दन दुर्गापाल प्रेस कलब अध्यक्ष बीo सी० भट्ट भोला दत्त कफल्टिया छोटा भुवन योगेश पन्त भाजपा मण्डल अध्यक्ष धन सिंह बिष्ट महामन्त्री सुरेन्द्र लोटनी संजीव शर्मा पीताम्बर दुम्का भरत सिंह भूपाल रावत अतुल पाठक भगवान दास वर्मा डाo राजकुमार सेतिया शिव शक्ति दल के पंकज बत्रा स्वामी नाथ पड़ित प्रेमनाथ पंडित गणेश दत्त मातृ शक्ति के गीता भट्ट बीना जोशी चन्द्रा खाती राज लक्ष्मी पंडित चन्द्रा मेलकानी रितु छाबड़ा मनजीत कौर चम्पा नौगाई नंदी उप्रेती चन्द्रा पंत ममता उप्रेती नीमा पाण्डेय उर्मिला मिश्रा मुन्नी पाण्डे कुंती जोशी तारा जोशी आरती सिंह सहित सैकड़ों मातृ शक्तियाँ मौजूद रहे
श्री शिव महापुराण के शुभारभं से पहले निकली शोभा यात्रा में समूचा शहर जय शंकर के नारों से गुंजायमान रहा मातृ शक्ति के सिरों पर शुशोभित कलशों ने आभामण्डल को सुशोभित कर जबरदस्त रौनक बिखेर दी। सैकड़ों की संख्या में मातृशक्ति की अगुवाई में निकाली गई यह यात्रा लालकुआँ क्षेत्रं में आध्यात्म जगत की यादगार यात्रा रही।इस यात्रा में जहां सैकड़ों मातृशक्तियों के सिरों पर कलश शुसोभित थे।वही सैकड़ों की संख्या में भक्तजन नाचकर शिव की कृपा का यशोगान कर रहे थे।

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उल्लेखनीय है कि हिन्दू रीति के अनुसार जब भी कोई पूजा होती है, तब मंगल कलश की स्थापना अनिवार्य होती है। बड़े अनुष्ठान यज्ञ यागादि में पुत्रवती सधवा महिलाएँ बड़ी संख्या में मंगल कलश लेकर शोभायात्रा में निकलती हैं। उस समय सृजन और मातृत्व दोनों की पूजा एक साथ होती है।यह क्लश यात्रा की सबसे बड़ी बात है समुद्र मंथन की कथा काफी प्रसिद्ध है। समुद्र जीवन और तमाम दिव्य रत्नों और उपलब्धियों का आपार केन्द्र है ।इसी से कलश की लम्बी कथा जुड़ी है
कलश का पात्र जलभरा होता है। जीवन की उपलब्धियों का उद्भव आम्र पल्लव, नागवल्ली द्वारा दिखाई पड़ता है। जटाओं से युक्त ऊँचा नारियल ही मंदराचल है तथा यजमान द्वारा कलश की ग्रीवा (कंठ) में बाँधा कच्चा सूत्र ही वासुकी है। यजमान और ऋत्विज (पुरोहित) दोनों ही मंथनकर्ता हैं। पूजा के समय प्रायः उच्चारण किया जाने वाला मंत्र स्वयं स्पष्ट है-‘कलशस्य मुखे विष्णु कंठे रुद्र समाश्रिताः मूलेतस्य स्थितो ब्रह्मा मध्ये मात्र गणा स्मृताः। कुक्षौतु सागरा सर्वे सप्तद्विपा वसुंधरा, ऋग्वेदो यजुर्वेदो सामगानां अथर्वणाः अङेश्च सहितासर्वे कलशन्तु समाश्रिता।’
अर्थात्‌ सृष्टि के नियामक विष्णु, रुद्र और ब्रह्मा त्रिगुणात्मक शक्ति लिए इस ब्रह्माण्ड रूपी कलश में व्याप्त हैं। समस्त समुद्र, द्वीप, यह वसुंधरा, ब्रह्माण्ड के संविधान चारों वेद इस कलश में स्थान लिए हैं। इसका वैज्ञानिक पक्ष यह है कि जहाँ इस घट का ब्रह्माण्ड दर्शन हो जाता है, जिससे शरीर रूपी घट से तादात्म्य बनता है, वहीं ताँबे के पात्र में जल विद्युत चुम्बकीय ऊर्जावान बनता है। ऊँचा नारियल का फल ब्रह्माण्डीय ऊर्जा का ग्राहक बन जाता है। मंगल कलश वातावरण को दिव्य बनाती है।सभी धार्मिक कार्यों में कलश का बड़ा महत्व है। यज्ञ, अनुष्ठान, भागवत यज्ञ आदि के अवसर पर सबसे पहले कलश स्थापना की जाती है।

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यहां यह भी गौरतलब है,धर्मशास्त्रों के अनुसार कलश को सुख-समृद्धि, वैभव और मंगल कामनाओं का प्रतीक माना गया है। देवी पुराण के अनुसार शिव व शक्ति भगवती की पूजा-अर्चना करते समय सर्वप्रथम कलश की स्थापना की जाती है। नवरा‍त्रि के दिनों में मंदिरों तथा घरों में कलश स्थापित किए जाते हैं तथा माँ दुर्गा की विधि-विधानपूर्वक पूजा-अर्चना की जाती है।भागवत कथा से पूर्व निकाली गई कलश यात्रा के दर्शन से प्राणी के रोग,शोक,दुख,दरिद्रता एंव विपदाओं का हरण हो जाता है।
कलश पर लगाया जाने वाला स्वस्तिष्क का चिह्न चार युगों का प्रतीक है। यह हमारी चार अवस्थाओं, जैसे बाल्य, युवा, प्रौढ़ और वृद्धावस्था का प्रतीक है
पौराणिक शास्त्रों के अनुसार मानव शरीर की कल्पना भी मिट्टी के कलश से की जाती है। इस शरीररूपी कलश में प्राणिरूपी जल विद्यमान है। जिस प्रकार प्राणविहीन शरीर अशुभ माना जाता है, ठीक उसी प्रकार रिक्त कलश भी अशुभ माना जाता है।
यही कारण है। कलश में दूध, पानी, पान के पत्ते, आम्रपत्र, केसर, अक्षत, कुंमकुंम, दुर्वा-कुश, सुपारी, पुष्प, सूत, नारियल, अनाज आदि का उपयोग कर पूजा के लिए रखा जाता है। इसे शांति का संदेशवाहक माना जाता है। लालकुआँ के पवित्र आंचल में धर्म,आध्यात्म,शांति का यही संदेश आज क्षेत्र में निकाली गई कलश यात्रा में दिया गया भक्तों की आपार भीड़ के बीच श्री शिव कथा का शुभारम्भ हुआ कथा के बीच में अलौकिक भजनों के अद्भूत संयोग से आस्था व भक्ति के सगंम की अद्भूत झलक से भक्तजन निहाल हो उठे
कलश यात्रा में रक्षा कवच के रूप में माँ हाट कालिका ध्वज माँ भद्रकाली महाकाली माँ अखिल तारिणी गोपेश्वर महादेव खाटू वाले श्याम चिटगल सैम दरबार बाबा एड़ी महादेव माँ पूर्णागिरी माँ अवंतिका माँ दूनागिरी आदि देव स्थलों की धर्म पताकाएं शोभायमान रही

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कलश यात्रा का संचालन वरिष्ठ पत्रकार अजय उप्रेती ने किया
प्रथम दिवस की कथा में प्रसिद्ध संत श्री दुर्गादत्त शास्त्री जी ने श्नद्वालुओं के अपार जन समूह पर श्री शिव कथा की अपनी सुधामयी वाणी की धार से अमृतवर्षा करते हुए श्री शिव महापुराण सुनने का महात्म्य बतलाते हुए कहा जो भी मनुष्य श्रद्वा के साथ श्री शिव महापुराण कथा का श्रवण करता है, उसके जन्म जन्मान्तर के पापों का हरण हो जाता है, वह जन्म मरण के बन्धन से मुक्त होकर अन्त में भगवान शिव के परम लोक को प्राप्त होता है उन्होनें कहा अन्य देवताओं की अपेक्षा शिवजी जल्दी प्रसन्न होनें वाले है। उन्होंने आज प्रथम दिवस की कथा में बिदुक चंचुला व देवव्रत के चरित्रों पर प्रकाश डालते हुए शिव कृपा के फल का बखान किया

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