अलौकिक रहस्यों का अद्भूत आध्यात्मिक संगम है शिलाजीत पर्वत की देवी का यह दरबार

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जनपद बागेश्वर के कमस्यार घाटी में स्थित कपूरी गांव का सौंदर्य अपनें आप में अदितीय है सौंदर्य की दृष्टि से यह गांव जितना सुंदर है आध्यात्मिक दृष्टि से उतना ही मनभावन है इस गाँव का मनोहारी वर्णन शब्दों में नहीं समेटा जा सकता है

यूं तो समूची कमस्यार घाटी आध्यात्मिक जगत की एक विराट धरोहर है इस घाटी व घाटी के पर्वतों पर एक से बढ़कर एक महा प्रतापी देवी देवताओं का वास है इन देवी देवताओं की महिमां का वर्णन पुराणों में विस्तार के साथ पढ़ा जा सकता है कपूरी गाँव की चोटी पर स्थित माँ भगवती का दरबार यहां युगों- युगों से आस्था भक्ति का एक अद्भूत संगम है इस स्थान पर पहुंच कर सांसारिक मायाजाल में भटके मानव की समस्त ब्याधियाँ यूं शांत हो जाती हैं जैसे अग्नि की लौ पाते ही तिनका भस्म हो जाता है

प्राकृतिक सुन्दरता से भरपूर कमस्यार घाटी सदा से उपेक्षित रही है इसी उपेक्षा के दंश की परिधि में कपूरी गाँव भी है और यहाँ का सुरभ्य आध्यात्मिक स्थल माँ भगवती का पौराणिक दरबार गुमनामी के साये में गुम है

देवभूमि उत्तराखण्ड की धरती में तीर्थाटन का पौराणिक काल से विशेष महत्व रहा है कुमाऊँ की धरती पर कमस्यार घाटी भी विराट आध्यात्मिक चेतना का केन्द्र रहा है शक्ति पीठ व नाग मंदिरों एवं शिवालयों की श्रृंखला में इस पावन भूमि का कोई जबाब नही है यहाँ हर गाँव के देवता के प्रति सभी गाँवों के लोगों की आस्था रहती है शिव शक्ति के विविध रूपों की पूजा से लेकर भूमि व कुल देवताओं की पूजा के लिए प्रसिद्ध यहाँ की धरती में तीर्थाटन दैवीय और सांसारिक दोनों ही दृष्टियों से काफी महत्वपूर्ण है

प्राकृतिक सौंदर्य से भरपूर सुंदर पर्वतमालाएं व घाटियों मैं बिखरा अलौकिक वातावरण इन सबके बीच कमस्यार घाटी का कपूरी गाँव व गाँव की ऊँची पहाड़ी पर गुफा के भीतर माँ भगवती का भव्य दरबार रहस्य रोमांच की अद्भुत धरोहर है स्थानीय भक्तजन बताते हैं कि यहाँ पर देवी के दरबार में पूजन की परम्परा सदियों से चली आ रही है ऐसी मान्यता है कि जब हवनतोली आदि क्षेत्रों में ऋषियों ने पौराणिक काल में जब विराट यज्ञ किया तो यज्ञ की सफलता के लिए सर्वप्रथम कपूरी की माँ भगवती से आशीर्वाद लिया

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कुछ भक्तजन इसे कपिल मुनि की तपोभूमि भी बताते है स्कंद पुराण में माँ चण्डिका के समीप गिरिजा देवी का वास बताया गया है इस कारण कुछ भक्त माँ गिरिजा के रूप में देवी का पूजन करते है तो कुछ भक्त चौसठ योगिनियों की स्वामिनी के रूप में माँ भगवती की उपासना करते है कुछ भक्त माँ भगवती की स्तुति ब्रह्मचारिणी के रूप में करते है बारहाल अनन्त स्वरूपों में विराजित कपूरी की माँ भगवती का गुफा रूपी भवन बेहद गूढ़ रहस्यों को अपनें आँचल में समेटे हुए है
माँ कपूरी की भगवती को कई भक्त कपूरी देवी के नाम से भी पुकारते है श्रीमद् देवी भागवत में पर्वत के शिखर व शिखर की गुफा में निवास करनें वाली कपूरी देवी की स्तुति में एक श्लोक इस प्रकार आया है

*कर्पूरलेपना कृष्णा कपिला कुहराश्रया , कूटस्था कुधरा कम्रा कुक्षिस्था खिल विष्टपा*

अर्थात् कर्पूरलेपना कृष्णा कपिला कुहराश्रया ( बुद्धिरूपी गुहा में स्थित रहनें वाली कूटस्था ( पर्वत शिखर पर निवास करने वाली कुधरा( पृथ्वी को धारण करनें वाली) कम्रा ( अत्यन्त सुन्दरी) कुक्षिस्थाखिलविष्टपा( अपनी कुक्षि में स्थित अखिल जगत की रक्षा करनें वाली देवी के अलावा

माँ कपूरी की स्तुति कौशिकी, कमलाकारा (कमलके समान सुन्दर आकार धारण करनेवाली),
कामचारप्रभञ्जिनी (स्वेच्छाचार का ध्वंस करनेवाली),कौमारी, करुणापाङ्गी (करुणामय कटाक्षसे भक्तों पर कृपा करनेवाली), ककुबन्ता (दिशाओंकी अवसानरूपा), करिप्रिया (जिन्हें हाथी प्रिय है) केसरी, केशवनुता (भगवान् श्रीकृष्णके द्वारा प्रणम्य ,कदम्बकुसुमप्रिया (कदम्बके पुष्पसे प्रेम करनेवाली), कालिन्दी, कालिका, काञ्ची, कलशोद्भवसंस्तुता (अगस्त्यमुनिसे स्तुत होनेवाली) काममाता, क्रतुमती (यज्ञमय विग्रह धारण करनेवाली), कामरूपा, कृपावती कुमारी, कुण्डनिलया (हवन- कुण्डमें विराजने वाली), किराती (भक्तों का कार्य साधन करने के लिये किरात-वेष धारण करनेवाली), कीरवाहना (तोतापक्षीको वाहनरूप रखनेवाली) कैकेयी, कोकिलालापा, केतकी, कुसुमप्रिया, कमण्डलुध (ब्रह्मचारिणीके रूप में कमण्डलु धारण करनेवाली) काली, कर्मनिर्मूलकारिणी (आराधि होनेपर कर्मोंको निर्मूल कर देनेवाली) आदि अनेक स्वरूपों में की जाती है

इन्हें अःकारमनुरूपिणी (अ:कार अर्थात् विसर्गरूप मन्त्रमय विग्रहवाली), कात्यायनी (कात्यायन ऋषि द्वारा उपासित) कालरात्रि (दानवोंके संहारके लिये कालरात्रि के रूप में प्रकट करनेवाली), कामाक्षी (काम को नेत्रों में धारण करनेवाली), कामसुन्दरी (यथेच्छ सुन्दर स्वरूप धारण करनेवाली)
कमला, कामिनी, कान्ता, कामदा, कालकण्ठिनी (कालको अपने कण्ठमें समाहित कर लेनेवाली), करिकुम्भस्तनभरा (हाथीके कुम्भसदृश पयोधरोंवाली), करवीरसुवासिनी (करवीर अर्थात् महालक्ष्मी क्षेत्रमें निवास करनेवाली) कल्याणी, कुण्डलवती, कुरुक्षेत्रनिवासिनी, कुरुविन्ददलाकारा (कुरुविन्ददलके समान आकारवाली), कुण्डली, .कुमुदालया, कालजिह्वा (राक्षसों के संहार के लिये कालरूपिणी जिह्वासे सम्पन्न), करालास्या (शत्रुओंके समक्ष विकराल मुखाकृतिवाली), कालिका, कालरूपिणी, कमनीयगुणा (सुन्दर गुणोंसे सम्पन्न), कान्तिः, कलाधारा (समस्त चौंसठ कलाओं को धारण करने वाली), कुमुद्वती आदि नामों से भी पुकारा जाता है
कुचौली गाँव के निवासी स्व० श्री पूरन चन्द्र पन्त माँ कपूरी देवी के प्रति अपनी भावनाएं प्रकट करते हुए कहा करते थे सम्पूर्ण तीर्थों के स्नान, समस्त यज्ञों की दीक्षा, सभी व्रतों, तपों तथा चारों वेदों के पाठों का पुण्य और पृथ्वी की प्रदक्षिणा- इन सभी साधनों के फल- स्वरूप शक्तिस्वरूपा भगवती माता कपूरी की सेवा सुलभ हो जाती है,
साधना व उपासना करनें वाले साधकों में श्रेष्ठ चिटगल गाँव निवासी स्व० श्री गोविन्द बल्लभ पन्त देवी पीठों में किये जानें वाले यज्ञों को सर्वश्रेष्ठ बताते थे उन्होनें बताया श्रीमद्देवी भागवत में यह उल्लेख है
जिस प्रकार देवताओं में विष्णु, विष्णु भक्तों में नारद, शास्त्रों में वेद, वर्णों में ब्राह्मण, तीर्थों में गंगा, पुण्यात्मा पवित्रों में शिव, व्रतों में एकादशी, पुष्पों में तुलसी, नक्षत्रों में चन्द्रमा, पक्षियों में गरुड, स्त्रियों में मूलप्रकृति; राधा; सरस्वती तथा पृथिवी, शीघ्रगामी तथा चंचल इन्द्रियों में मन, प्रजापतियों में ब्रह्मा, प्रजाओं में राजा, वनों में वृन्दावन, वर्षों में भारतवर्ष, श्रीमान् लोगों में श्री, विद्वानों में सरस्वती, पतिव्रताओं में भगवती दुर्गा और सौभाग्यवती श्रीकृष्ण-भार्याओं में राधा सर्वोपरि हैं, उसी प्रकार समस्त यज्ञों में देवीयज्ञ श्रेष्ठ है यहाँ किये जानें वाला यज्ञ समस्त मनोरथों को पूर्ण करता है

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कमस्यार घाटी के कपूरी गाँव के पर्वत की ऊँची चोटी पर गुफा में विराजमान प्रकृति देवी माँ भगवती की जो-जो कलाएँ प्रकट हुईं, वे सभी पूजित हैं। दूर दराज क्षेत्रों से लोग यहाँ पहुंचकर पूजा अर्चना करते है

पुराणों में वर्णित है प्रकृति की गोद में स्थित इस तरह की देवियों का सबसे बड़ा सम्मान नारी का सम्मान है इसलिए जो मनुष्य नारी जाति का हृदय से सम्मान करता है वह कपिला अर्थात् कपूरी देवी की कृपा का भागी बनता है
*🌹☘️कलांशांशसमुद्भूताः प्रतिविश्वेषु योषितः ॥ योषितामवमानेन प्रकृतेश्च पराभवः । ब्राह्मणी पूजिता येन पतिपुत्रवती सती ॥ प्रकृतिः पूजिता तेन वस्त्रालङ्कारचन्दनैः । कुमारी चाष्टवर्षीया वस्त्रालङ्कारचन्दनैः ॥ पूजिता येन विप्रस्य प्रकृतिस्तेन पूजिता । सर्वाः प्रकृतिसम्भूता उत्तमाधममध्यमाः ॥*

जो-जो ग्रामदेवियाँ हैं, वे सभी प्रकृति की कलाएँ हैं । देवी के कलांश का अंश लेकर ही प्रत्येक लोक में स्त्रियाँ उत्पन्न हुई हैं। इसलिये किसी नारी के अपमान से प्रकृति का ही अपमान माना जाता है । जिसने वस्त्र, अलंकार और चन्दन से पति-पुत्रवती साध्वी ब्राह्मणी का पूजन किया; उसने मानो प्रकृति देवी का ही पूजन किया है। इसी प्रकार जिसने आठ वर्षकी विप्रकन्याका वस्त्र, अलंकार तथा चन्दन से पूजन सम्पन्न कर लिया, उसने स्वयं प्रकृति देवीकी पूजा कर ली। उत्तम, मध्यम अथवा अधम-सभी स्त्रियाँ प्रकृति से ही उत्पन्न होती हैं ॥
*कपूरी की माँ भगवती की सुन्दर स्तुति में कहा गया है सभी मंगलों का भी मंगल करने वाली, सबका कल्याण करने वाली, सभी पुरुषार्थों को सिद्ध करने वाली, शरणागतजनों की रक्षा करने वाली तथा तीन नेत्रों वाली हे गौरि ! माँ कपूरी आपको नमस्कार है*

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कुल मिलाकर कपूरी गांव की चोटी में सुन्दर पर्वत की गुफा में विराजमान माँ भगवती की महिमा का वर्णन कर पाने में इस वसुंधरा में कोई भी समर्थ नहीं है क्योंकि भक्तजन इन्हें वसुंधरा देवी भी कहते है यहां देवी कब वह किस प्रकार प्रकट हुई इस बारे में कोई स्पष्ट उल्लेख तो नहीं है किंतु इतना जरूर है कि कमस्यार घाटी के महा रहस्यों में यह एक ऐसा परम रहस्य है जिसे सजाने और संवारने की प्रबल आवश्यकता है तीर्थाटन की दृष्टि से यह क्षेत्र पूर्णतया उपेक्षित है क्योंकि इस घाटी पर विराजमान देवी-देवताओं शक्तिपीठों की अपनी एक अलग ही महिमां पुराणों ने गाई है भगवती द्वारा यहां के निकटतम पहाड़ियों में ही दैत्यों का संहार किया गया इन क्षेत्रों में माँ ने विश्राम किया और यही क्षेत्र मां जगदंबा के परम पूजनीय स्थलों में एक है माँ भद्रकाली मंदिर समिति के संरक्षक योगेश पंत , योगाचार्य मोहन सिंह बिष्ट एवं सामाजिक कार्यकर्ता महेश राठौर ने कहा कि यदि इस तीर्थ का समुचित विकास किया जाए तो यह स्थल अपने आप में एक अदितिय अलौकिक स्थल के रूप में जगत में प्रसिद्ध होगा
माँ भगवती का इस दरबार से माँ भद्रकाली मन्दिर तक डोला चलनें की बात भी कही जाती है यह स्थान जनपद बागेश्वर के कमस्यार घाटी में है यहाँ पहुंचने के लिए एक रास्ता बास पटान पुल से तथा दूसरा रास्ता बागेश्वर से हवनतोली भद्रकाली होते हुए है///@ रमाकान्त पन्त///

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