त्रिपुरा देवी को दिया गया दान होता है अक्षय: श्री सत्य साधक

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त्रिपुरा देवी(बेरीनाग)।माता त्रिपुरा सुंदरी को दिया जाने वाला दान सभी कालों में अक्षय फल को प्रदान करने वाला होता है सभी पुण्य नष्ट हो सकते हैं किंतु माँ त्रिपुरा सुंदरी के निमित्त दिया गया दान का फल कभी भी नष्ट नहीं होता है वह अक्षय फल प्रदान करने वाला होता है यह उद्गार माँ त्रिपुरा सुंदरी के अनन्य उपासक एवं माई पीतांबरी के साधक सत्य साधक श्री विजेंद्र पांडे ने प्रकट किए उन्होनें कहा कि माँ त्रिपुरा देवी के निमित्त उनको अर्पित करते हुए जो कुछ भी धन अर्पित किया जाता है वह तीनों कालों में अक्षय फल को प्रदान करने वाला होता है श्री विजेंद्र पांडे जी ने कहा माता त्रिपुरा सुंदरी की कृपा से ही समस्त चराचर जगत की क्रियायें संपन्न होती है उन्होंने बताया कि संकट काल में भगवान विष्णु ने इन्हीं माँ की आराधना की जो माँ पीतांबरा का स्वरूप लेकर प्रकट हुई
उन्होनें कहा माँ भगवती त्रिपुरा सुन्दरी इस सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड को चलाने वाली शक्ति है। नवग्रहों को भगवती के द्वारा ही विभिन्न कार्य सौपे गये है जिनका वो पालन करते हैं। नवग्रह स्वयं भगवती की सेवा में सदैव उपस्थित रहते हैं। जब साधक भगवती की उपासना करता है तो उसे नवग्रहों की विशेष कृपा प्राप्त होती है। यदि साधक को उसके कर्मानुसार कहीं पर दण्ड भी मिलना होता है यह दण्ड भी भगवती की कृपा से न्यून हो जाता है एवं जगदम्बा अपने प्रिय भक्त को इतना साहस प्रदान करती है कि वह दण्ड साधक को प्रभावित नहीं कर पाता। इस सम्पूर्ण जगत में कोई भी इतना शक्तिवान नहीं है जो जगदम्बा माँ त्रिपुरा देवी के भक्तों का बाल भी बांका कर सके।

उन्होंने कहा कि माँ पीतांबरी का स्वरूप माँ त्रिपुरा सुंदरी से ही प्रकट हुआ है उन्होनें कहा बगलामुखी देवी को ही पीताम्बरी देवी अथवा पीताम्बरा देवी कहा जाता है। यह देवी सृष्टि की दश महाविद्याओं में से एक मानी जाती हैं। स्वयं प्रभु श्री राम,श्री कृष्ण,भगवान शंकर इस देवी का पूजन करते है,इनकी कृपा से ही राम ने रावण पर विजय पायी थी इसलिए देवी का एक नाम महारावण हारिणी भी है, तंत्रशास्त्र में इस देवी को विशेष महत्व दिया गया है। अपनी उत्पत्ति के समय यह देवी पीले सरोवर के ऊपर पीले वस्त्रों से सुशोभित अद्भुत कांचन आभा से युक्त थी। इसीलिए साधकों ने इस देवी को ‘पीताम्बरी’ अथवा ‘पीताम्बरा’ देवी के नाम से भी सम्बोधित किया है इस तरह यही बगलामुखी देवी पीताम्बरी देवी के रूप में जगत में पूजित, वन्दित एवं सेवित हैं

उन्होनें कहा पौराणिक कथानुसार ‘कृत’ युग में सहसा एक महाप्रलयंकारी तूफान उत्पन्न हो गया। सारे संसार को ही नष्ट करने में सक्षम उस विनाशकारी तूफान को देख कर जगत के पालन का दायित्व संभालने वाले भगवान विष्णु चिन्तित हो उठे। श्री हरि ने सौराष्ट्र के हरिद्रा नामक सरोवर के किनारे महात्रिपुर सुन्दरी को प्रसन्न करने के लिए घोर तप आरम्भ कर दिया। भगवान के तप से प्रसन्न होकर तब उस श्री विद्या महात्रिपुर सुन्दरी ने बगलामुखी रूप में प्रकट होकर उस वातक्षोभ (विनाशकारी तूफान) को शान्त किया और इस तरह संसार की रक्षा की उन्होंने कहा उनके चरणों में अर्पित किया गया दान हजार गुना होकर वापस लौटता हैतथा अक्षय फल को प्रदान करता है

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