उत्तराखण्ड की धरती पर यहां शयन करती है, आदि शक्ति 

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तीर्थाटन विकास के दावे हवा हवाई

श्री राम के पूर्वज राजा दिलीप से जुड़ी है, यहां की गाथा

गुफा का निर्माण कब व कैसे सब अज्ञात

कमस्यार घाटी / बागेश्वर / उत्तराखण्ड़ के सभी महत्वपूर्ण धार्मिक स्थलों व तीर्थस्थलों को तीर्थाटन विकास योजना के तहत विकसित कर स्थानीय रोजगार को पंख लगानें की बातें राज्य गठन के बाद से ही की जाती रही है। बारी बारी से राज्य की सत्ता में काबिज होती आयी भाजपा व काग्रेसं दोनों पार्टियों की सरकारों ने ऐसे दावे करने में कोई कोर कसर नही छोड़ी परन्तु इस पर्वतीय राज्य का कितना दुर्भाग्य है, कि आज लगभग 21 वर्षों से अधिक समय में भी इस दिशा में सिर्फ और सिर्फ कोरी बयानबाजियां ही होती रही है परिणाम स्वरुप राज्य भर में तीर्थाटन विकास की असीम सभांवनाओं से भरपूर ऐसे एक नहीं अनेकों धार्मिक स्थल पूरी तरह उपेक्षित पड़े है। धार्मिक,पौराणिक व सांस्कृतिक रुप से समृद्व ऐसा ही एक पौराणिक धार्मिक स्थल है चण्डिका गुफा इस गुफा को देखनें पर सहज में ही वैष्णों देवी की गुफा याद आती है उत्तराखंड की वैष्णो देवी के नाम से भी यदि इस गुफा को कहा जाए तो यह अतिशयोक्ति नहीं होगी क्योंकि चंडीका गुफा क्षेत्र का वातावरण सौंदर्य व रहस्य की अद्भुत खान है। गुमनामी के साए में गुम माँ जगदंबा का यह स्थल कब प्रकाश में आएगा यह तो आने वाला समय ही बताएगा लेकिन यदि यह स्थल तीर्थाटन की दृष्टि से विकसित किया जाए भक्तों को इस स्थान का सुरम्य वातावरण वैष्णो देवी से कम नहीं लगेगा।

कमस्यार घाटी हिमालयी भूभाग में तीर्थस्थल व देवालयों की काफी लम्बी श्रृखंला है। इन्हीं श्रृंखलाओं में जनपद बागेश्वर के कमस्यार घाटी में स्थित माँ चण्डिका की गुफा सदियों से पूज्यनीय रही है हालांकि वर्तमान समय में यह गुफा गुमनामी के साये में गुम है। खाती गांव के निकट इस गुफा का पुरातन महत्व पुराणों में विस्तार के साथ मिलता है। धर्मज्ञ महर्षि वेद व्यास जी ने पुराणों में इस स्थान का बहुत ही सुंदर वर्णन किया है। ऋषियों को गूढ़ ज्ञान देते हुये महर्षि व्यास जी ने सरयू और रामगंगा (पूर्वी) के मध्य नागगिरी का भी वर्णन किया है। अष्टकुल नागों के इस निवास स्थान का वर्णन करते हुए व्यास जी ने कहा है कि हिमालय के शिखर तथा विंध्यांचल में जिस प्रकार शिव व शक्ति का परम श्रद्धा के साथ पूजन होता है उसी श्रद्धा व भक्ति से शिव शक्ति को यहां पूजा जाता है। चण्डिका देवी के नाम से पूजित इस स्थान का वर्णनबड़ा ही अलौकिक है।

कहा जाता है कि परद्रोही तथा दुरात्मा जनों को यहीं पर पापों से छुटकारा मिलता है। इस स्थान के दर्शन कोटि यज्ञ के समान फलदायी है अनन्य भक्ति से चण्डिका का पूजन करने पर जो सिद्धि यहाँ पर प्राप्त हो सकती है वह संसार में अन्यत्र नहीं।माता चण्डिका की गुफा भद्रकाली मन्दिर से लगभग सात किमी. की दूरी पर रावतसेरा में गांव ठांगा के निकट है। यहां माँ की मूर्ति शयन अवस्था में एक गुफा में विराजमान हैं। यह गुफा माँ वैष्णो देवी की भांति ही अद्वितीय है। यहां पर माँ का अवतरण कब व किस प्रकार हुआ, यह सब अज्ञात है, किन्तु स्कंद पुराण में रामचन्द्र जी के पूर्वज राजा दिलीप से इसकी कहानी जुड़ी हुई है जिसका संक्षिप्त वर्णन इस प्रकार है पुराणों के अनुसार इक्ष्वाकु वंश में राजर्षि दिलीप अति प्रसिद्ध राजा हुए हैं। वे सत्यभाषी व सर्व धर्मज्ञ थे तथा उनका शासन धर्माचरण से युक्त था। माँ भद्रकाली के चरणों में उनकी गहरी प्रीति थी। एक दिन उन्होंने अलौकिक आभा से सम्पन्न एक नेवले को बिल से निकलते हुए देखा,जिसका शरीर कांतिवान था। वह मनुष्य की वाणी बोलता था। ऐसे प्राणी को देखकर राजा जिज्ञासावश उसके समीप पहुंचे और उसकी पूजा करने लगे। उसने राजा के पूजन को अस्वीकार करते हुए कहा,

राजन तुम पापों से विलप्त हो, प्रजापीड़न में तत्पर रहते हो, आपकी पूजा को स्वीकार कर मैं पाप का भागी नहीं बनना चाहता। प्रति उत्तर में राजा ने कहा हे महानुभाव! न तो मैंने प्रजा को दुख दिया है और न ही कोई पाप किया है फिर आप स्वर्णमय शरीर धारण कर ऐसी बात क्यों बोल रहे हैं? न्योले ने उत्तर देते हुए कहा, मैं अपने पूर्व जन्म के पापों से ही इस जन्म में प्राणियों का हिंसक न्योला बना। लेकिन मेरा भाग्योदय तब हुआ, जब दण्डकारण्य में निवास करते हुए सर्प को खाकर सोए हुए किसी पथिक ने पैर से मुझे छू दिया। गंगाजल से भीगी उसकी चरण की धूर्ति मेरे मस्तक पर गिरी पड़ी। उस धूल के स्पर्श से मैंने पूर्व शरीर को छोड़कर दिव्य शरीर धारण कर लिया। राजा ने जिज्ञासा से आतुर होकर उस न्योले से पूछा, वह पथिक कौन था, किसके प्रताप से वह दुर्लभ पुण्य को प्राप्त हुआ? उसने उत्तर देते हुए राजा से कहा- निषद देश का एक वैश्य जो महापापी व हिंसक था। संयोगवश उसे व्यापार यात्रा के दौरान अपने पूर्व जन्मों के कर्मों के फलस्वरूप हिमालय में नागपुर नामक एक पर्वत की गुफा में चंडिका देवी के दर्शन हुए। यही तपस्या कर देवी कृपा से प्राप्त सिद्धियों के साथ जब वह वापस अपने देश को जा रहा था तो रास्ते में हुई भेंट में उसने मुझे यह सब ज्ञात कराया। चंडिका देवी की महिमा के प्रताप से मैं आनन्दित हो गया। हे राजन! आप न तो पापी हैं और न ही प्रजापीड़क। आपको यह रहस्य ज्ञात कराने के उद्देश्य से मैंने यह नाटक किया है। राजा दिलीप ने भद्रकाली क्षेत्र में उस न्योले से मां चंडिका की महिमा का गूढ़ रहस्य प्राप्त कर उसे प्रणाम किया। न्योले ने भी शरीर छोड़कर सत्यलोक को प्रस्थान किया ऐसा माना जाता है बाद में यहाँ राजा दीलिप ने तपस्या कर माँ की कृपा को प्राप्त किया

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