जब भगवान विष्णु ने गुरु रुप में किया परमेश्वर पीताम्बरी का पूजन

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पूर्णिमां का सबसे बड़ा पूजन है,माँ पीताम्बरी महायज्ञ वर देने वालों को भी वरदान देता है,यह यज्ञ

श्री शिव,श्रीविष्णु,श्रीराम,श्री कृष्ण,श्रीश्याम,भगवान परशुराम,गुरु द्रोणाचार्य ने भी किया था,माँ बगलामुखी देवी का पूजन

बगलामुखी देवी को ही पीताम्बरी देवी अथवा पीताम्बरा देवी कहा जाता है। यह देवी सृष्टि की दश महाविद्याओं में से एक मानी जाती हैं। इस देवी का पूजन सभी मनोरथों को पूर्ण करता है,स्वयं प्रभु श्री राम,श्रीकृष्ण,भगवान शंकर इस देवी का पूजन करते है, इनकी कृपा से ही राम ने रावण पर विजय पायी थी इसलिए देवी का एक नाम महारावण हारिणी भी है, तंत्रशास्त्र में इस देवी को विशेष महत्व दिया गया है। अपनी उत्पत्ति के समय यह देवी पीले सरोवर के ऊपर पीले वस्त्रों से सुशोभित अद्भुत कांचन आभा से युक्त थी। इसीलिए साधकों ने इस देवी को ‘पीताम्बरी’ अथवा ‘पीताम्बरा’ देवी के नाम से भी सम्बोधित किया है। इस तरह यही बगलामुखी देवी पीताम्बरी देवी के रूप में जगत में पूजित, वन्दित एवं सेवित हैं।

एक कथानुसार ‘पौराणिक युग में सहसा एक महाप्रलयंकारी तूफान उत्पन्न हो गया। सारे संसार को ही नष्ट करने में सक्षम उस विनाशकारी तूफान को देख कर जगत के पालन का दायित्व संभालने वाले भगवान विष्णु चिन्तित हो उठे। श्री हरि ने सौराष्ट्र के हरिद्रा नामक सरोवर के किनारे महात्रिपुर सुन्दरी को प्रसन्न करने के लिए घोर तप आरम्भ कर दिया। भगवान के तप से प्रसन्न होकर तब उस श्री विद्या महात्रिपुर सुन्दरी ने बगलामुखी रूप में प्रकट होकर उस वातक्षोभ (विनाशकारी तूफान) को शान्त किया और इस तरह संसार की रक्षा की।

‘बगला सर्वसिद्धिदा सर्वान कामानवाप्नुयात’ अर्थात देवी बगलामुखी का पूजन, वन्दन तथा स्तवन करने वाले भक्त की हर मनोकामना पूर्ण हो जाती है

 

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