महान् गुरु के रूप में प्रतिष्ठा है, ब्रह्मलीन संत बाल कृष्ण यति महाराज जी की

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बेरीपड़ाव/ ।सनातन धर्म में जब जब सत्य व धर्म की रक्षा के लिए संतों के योगदान की चर्चा होती रहेगी, तब तब महान् युग पुरुष तपोनिष्ठ आध्यात्मिक जगत के अलौकिक महापुरुष ब्रहमलीन संत महामण्डलेश्वर बालकृष्ण यति महाराज जी का परम श्रद्वा के साथ स्मरण किया जाता रहेगा। और इनका स्मरण भक्तों में आध्यात्मिक ऊर्जा का नया संचार करेगा। अष्टादश भुजा माता महालक्ष्मी मंदिर बेरीपड़ाव पहुंचकर श्रद्वालुजन जब माता के श्रीचरणों में अपने आराधना के श्रद्वा पुष्प अर्पित करेंगे तब सहज में ही याद आऐगे यति महाराज,

उनका निर्मल, निष्ठामय, कर्तव्यमय, सादगी भरा जीवन, क्षमा, व दया की प्रतिमूर्ति, मर्यादा के महान् रक्षक, माहन् गौ भक्त, एक आत्मनिष्ठ, निष्काम कर्मयोगी, आध्यात्म जगत की जितनी भी उपमाएं है वे सब उनमें झलकती थी, लोग उनसे मिलकर अपने सौभाग्य की सराहना करते थें, उनका दर्शन उनकी वाणी जीवन के कई अनसुलझी गुत्थियों को बरबस ही सुलझा देती थी। जो सच्चे हदय से उनके निकट आकर उनका आर्षीर्वाद प्राप्त करता था, वह ज्ञान की नई अनुभूतियां पाकर अपने जीवन को धन्य समझता था उनके कई निकटतम षिष्य बतलाते है, पूज्य गुरुदेव जी की कृपा का वर्णन ्शब्दों में नही किया जा सकता है, उनकी कृपा निष्कंटक जीवन यात्रा के लिए बहुत बड़ा वरदान है शरीर तो सभी का जाता है चाहे अवतारी पुरुष हो या अन्य कोई एक दिन सभी काल के इस चक्र में व्यतीत हो जाते है, लेकिन महापुरुष जिस सच्चाई को लेकर चलते है, वो तीनों कालों तक रहने वाली सच्चाई है, उसका कभी अन्त नही होता ब्रहमलीन यति जी भी ऐसी ही सच्चाई के साथ थे आत्मा की अमरता व शरीर की नश्वरता से वे अपने भक्तों को सजग कर सदैव कर्तव्य पथ पर चलने की प्ररेणा दिया करते थे, आजीवन शिव व शक्ति की आराधना एवं भक्ति में तल्लीन रहकर उन्होनें सनातन धर्म की जो सेवा की उसे शब्दों में नही समेटा जा सकता है ।श्री यति महाराज ने अपनी जीवन यात्रा के काल में सन्तों की महिमा को जो ऊंचाई प्रदान की उसका बखान भी ्शब्दों में नही किया जा सकता है, वेद व वेद से भी परे आत्मा की विराटता उपनिषदों, शास्त्रों, वेदों पुराणों, गीता, महाभारत दर्षन शास्त्र तथा अनेकों धर्म ग्रन्थों में निहित दिव्य ज्ञान के भीतर छिपे तत्वमय रहस्यों से दुनिया को अवगत कराकर मानवता को सही अर्थों में परिभाषित किया और मानवीय मूल्यों के संरक्षण में अविस्मरणीय योगदान दिया। यही कारण था कि देश विदेश के लाखों श्रद्वालु उनके षिष्य बने गये वेदों के प्रकाण्ड विद्वान होने के कारण ही यति जी वेदान्ताचार्य के रुप में प्रतिष्ठित व प्रसिद्व थे हिमालय की गोद में बसे प्रकृति की अमूल्य धरोहर बाबा व्याध्रेष्वर की भूमि बागनाथ अर्थात् बागेष्वर के जोशी गांव से आपका अलौकिक नाता था। यहां वर्ष 1918 में एक सुंसस्कृत ब्राहमण परिवार में जन्मे श्री यति महाराज की बाल्यकाल से ही धर्म एंव आध्यात्म में गहरी रुचि थी बाल्यकाल से ही सन्यास धारण कर अपने गुरु स्वामी विश्वनाथ यति महाराज के स्नेहिल सानिध्य में बालकृष्ण यति महाराज ने वेद, वेदांग, उपनिषद, धर्मषास्त्र, दर्शन शास्त्र समेत अनेक सनातन ग्रन्थों का गहन अध्यन किया यति जी की प्रारम्भिक शिक्षा तो ग्रामीण क्षेत्र में बागेश्वर में गुरु कृपा से प्राप्त वेद शास्त्रों के पवित्र ज्ञान को उन्होंने अपने प्रवचनों माध्यम से देश के कोने कोने में तथा विश्व के अनेक देशों तक पहुचाया। ज्ञान के प्रचार-प्रसार के लिए विद्वानों को तैयार करने के उद्देश्य् से उन्होंने अनेक सांस्कृतिक महाविघालयों की स्थापना करवयी जनपद नैनीताल अन्तर्गत हल्द्वानी शहर में महादेव गिरी महाविद्यालय महाराज जी के प्रयासों का ही प्रतिकल है; जहां से हजारों छात्र संस्कृतभाषा से पारगंत होकर आज समाज व देश की सेवा में सलंग्न है। बनारस के हाथिया राम मठ में स्थित महाविघालय भी सांस्कृतिक शिक्षा का महान् उदगम स्थल है,जो यति महाराज जी के प्रयास से ही फलीभूत हुआ है।

ब्रहमलीन महामण्डलेश्वर यतिजी महाराज के शिष्यों में से कोई उन्हें युग प्रवर्तक तो कोई युगपुरुष तो कोई सनातन धर्म के महान प्रहरी व ध्वज वाहक के रुप में उन्हे पूजते आये है, तो कोई उन्हें भगवान शिव का ही स्वरुप मानकर उनके दिव्य आशीष की छाव में स्वयं को उनकी कृपा का पात्र मानते थे, ऐसे शिष्यों की संख्या भी आपार है, जो महाराज जी को सम्पूर्ण युग के रुप में देखते थे। और उनके पावन सानिध्य में परम आनन्द की अनूभूति करते रहे है, सचमुच श्री यति महाराज भारत भूमि के अलौकिक दुर्लभ सन्तों में से थे उनका अखण्ड आर्शीर्वाद सदैव भक्तों के साथ है, वर्ष 2013 में शिव नगरी बनारस की पावन भूमि में 94 वर्ष की आयु में श्री यति जी महाराज ने अपनी जीवन यात्रा को विराम देकर परम धाम को प्रस्थान किया आध्यात्मिक यादों की महक में श्री यति जी सदैव अमर रहेगे।
आपके जीवन का अतुलनीय त्याग सदैव भक्जनों के लिए एक महान् आर्दश बनकर मार्ग दर्शन करता रहेगा अट्ठाइस वर्ष तक श्री यति जीने केवल फल, दूध एव जल ग्रहण करके कठोर तपस्या की हठयोग, मंत्रयोग, लययोग, राजयोग, एवं कुडंलिनी योग की साधना में महारथ हासिल कर वेद वेदान्तों का अध्यनकर अपने जीवन को संसस्कुत बनाकर आजीवन लोक कल्याण में सलग्न रहें, देवभूमि उतराखण्ड के महर्षि पुलस्त्य ऋषि की तपोभूमि कालीचौड़, बागेष्वर क्षेत्र के तमाम पौराणिक देवालय सर्वश्रेष्ठ तीर्थ स्थल श्री पाताल भुवनेष्वर व श्री महाकाली दरबार गंगोलीहाट के प्रति श्री यति जी के हदय में गहन श्रद्वा थी। कुल मिलाकर यति जीके सतंत्व का बखान शब्दों से परे है।

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