आया सावन झूम के :काशी के समान पूजनीय है उत्तरकाशी, इसे कहते है हिमालय की वाराणसी

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शिव व शक्ति की पावन भूमि देवभूमि उत्तराखण्ड के पग – पग पर तीर्थ स्थलो की अद्भूत श्रृखंलाएं मौजूद है सुन्दर पर्वत मालाओं के मध्य प्राचीन काल से पूजनीय देवालयों के प्रति भक्त जनों में आपार श्रद्धा है श्रद्धा व भक्ति का उत्तराखण्ड की धरती में एक ऐसा पावन केन्द्र है जो काशी के समान ही पूजनीय है उत्तरकाशी की धरती पर स्थित भगवान भोलेनाथ जी का दरबार शिव भक्तो के लिए भगवान शिव की ओर से अद्भूत सौगात है काशी विश्वनाथ मंदिर वाराणसी की भांति ही उत्तरकाशी हिमालय की वाराणसी के नाम से प्रसिद्ध है स्कंद पुराण में उत्तरकाशी का बड़ा ही निराला वर्णन मिलता है

इस स्थान का महात्म्य नारद जी ने प्रार्थना पूर्वक कार्तिकेय जी से पूछते हुए कहा हे अग्नि से उत्पन्न देवों के स्वामी! संसार के पिता के सेवक! आपके मुखारविन्द से निकले वचनामृत का पान करते हुए मुझे तृप्ति नहीं मिल रही है। प्रभु! अब मुझे पिपासा बढ़ रही है बहुत से क्षेत्रों का वैभव आपने कहा और मैंने सुना। अब हिमालय में जो अत्यन्त सारभूत क्षेत्र है, उसे सुनना चाहता हूँ अब तक कहे गये क्षेत्रों से अधिक क्षेत्र मुझे बताइये जो कलियुग में मुक्तिदायक हों और जिनके विषय में किसी को न बताया गया हो प्रभो! यज्ञों, तप, उपवासों, व्रतों, महादानों से जो पुण्य होता है, उससे अधिक पुण्य जहाँ हो, जो मुक्ति का परम केन्द्र हो गोपनीय से भी अत्यन्त गोपनीय हो उस क्षेत्रों के विषय में मुझे बताइये

नारद जी की विनती पर स्कंद भगवान ने कहा परम गोपनीय से गोपनीय परम कल्याणकारी हिमालय पर्वत का पुण्यदायक क्षेंत्र जहाँ पवित्र भागीरथी गंगा उत्तरवाहिनी हैं, वह सौम्यकाशी नाम से वारणावत गिरि पर भगवान शिव के परम धाम के रूप में विख्यात है। वहाँ असी और वरुणा दो नदियाँ पुण्य से दृष्टिगोचर होती हैं वहाँ ब्रह्मा, विष्णु और महेश- ये तीनों निवास करते हैं। उस मुक्तिक्षेत्र में ऋषियों के स्थान तथा भव्य आश्रम हैं। वहाँ सदाशिव कल्याण मय रूप को धारण किये हुए हैं यही वह क्षेत्र है जहाँ भगवान परशुराम ने भगवान शिव की घोर तपस्या की कहा तो यहां तक गया है पवित्र तीर्थ सकलकामनादायक उत्तरकाशी में शिवजी के दर्शन से पुनः जन्म नहीं लेना पड़ता है

यह उत्तरकाशी प्राणियों के लिए मुक्तिदायक है। सभी देवता यहाँ दिव्य रूप से निवास करते है इस भूमि के दिव्य चरित्र को सुनते ही नारद जी की जिज्ञासा बढ़ती गयी उन्होनें स्कंद जी से यहाँ के माहात्म्य को विस्तार से सुनानें की प्रार्थना की। इस नगरी का नाम काशी क्यों पड़ा भगवान शिव की इस दिव्य काशी में किस-किस ने तप किया और कौन-कौन अत्यन्त पुण्य आश्रम हैं माता महाकाली की उत्तम का इस भूभाग में क्या महत्व है

भगवान स्कन्द ने नारद जी को यहाँ की महिमां व आसपास के तीर्थ स्थलों की महिमां विस्तार से बताई जिसका वर्णन पुराणों में विस्तार से पढ़ा जा सकता है
इस क्षेंत्र में ऋषियों ने भगवान शिव की सुन्दर स्तुति करके अलौकिक सिद्धियों को प्राप्त किया

स्कंद पुराण के अनुसार स्वंय महादेव ने ऋषियों को रहस्य बताते हुए कहा है विप्रगण! जब पाप का बाहुल्य होगा तब समस्त तीर्थों से युक्त होकर मैं काशी के साथ हिमालय पर्वत पर निवास करूंगा। वह स्थान मेरा सदा ही अनादिकाल से सिद्ध है व असी और वरुणा नदी वहाँ सदैव समीप रहती हैं। काशी में जो तीर्थ हैं, वे सब यहाँ भी है अन्य तीर्थराजों और काशों में भी मैं सदा अंशांशभाव अर्थात् आंशिक रूप से निवास करता हूँ किन्तु यहाँ केदारमण्डल में सम्पूर्णतया रहता हूँ।

इस (काशी) के दर्शन से ही मनुष्य मुक्त हो जाता है यदि यहाँ पुण्यवश किसी कृमि, कीट, पतंग आदि को मृत्यु हो जाती है, तो वह भी निःसन्देह मुक्त हो जाता है जैसी काशी है वैसी यह मेरी पूरी है, इसमें कोई भेद नहीं है। जो कोई संसार में इनका भेद करता है, वह निश्चित हो नरक को जाता है

यहाँ यदि कोई मनुष्य भाग्य से स्नान कर लेता है, तो वह दस हजार सूर्य के समान आभावाले विमान से ध्रुव पद को जाता है मनुष्यों के अन्यत्र किये हुए महान् पाप भी इस क्षेत्र में स्पर्शमात्र से विलीन हो जाते हैं इस तीर्थ में सब प्रकार के प्रयत्नों द्वारा पाप से बचना चाहिए। यहाँ जो एक मास तक निरन्तर दृढ़ता होकर गंगा में स्नान करता है, वह इस लोक में चिरकाल तक रहकर पूर्णतया भोगों को भोग कर एक कल्प तक मेरे लोक में रहने पर पृथ्वी का राजा होता है वह सभी शास्त्रों का तत्त्वज्ञाता, धर्मात्मा अन्त में काशी में आकर मुझमें विलीन हो जाता है जो यहाँ तीन रात उपवास करके शंकर की पूजा करता है, वह जहाँ कहाँ भी मरता है शिवलोक को प्राप्त करता है इस क्षेत्र को मैं कभी नहीं छोड़ता हूँ, इसलिए यह अविमुक्त कहलाता है। अविमुक्त में जप, तप, हवन और दान अक्षय हो जाता है यह मेरा अत्यन्त गोपनीय क्षेत्र है वरुणा और असी नामक नदियों के मध्य में होने से यह वाराणसी कहलाती है। महादेव जी की वाणी स्कंद पुराण में विस्तार से वर्णित है कुल मिलाकर उत्तरकाशी की महिमाँ अपरम्पार है जिसे शब्दों में नहीं समेटा जा सकता है
प्रस्तुतिः/// रमाकान्त पन्त///

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