बिन्दुखत्ता का बिन्देश्वर महादेव मंदिर आध्यात्मिक जगत में बिखेर गया अद्भूत यादें, मूर्ति प्राण प्रतिष्ठा कार्यक्रम, भव्य कलश यात्रा, हवन यज्ञ विशाल भण्ड़ारा आदि कार्यक्रमों ने बिखेरी रौनक, देखिये वीडियो

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जनपद नैनीताल का बिंदुखत्ता क्षेत्र इन दिनों आध्यात्म के रंग में रंग गया है बिन्देश्वर महादेव मन्दिर में मूर्ति प्राण प्रतिष्ठा कार्यक्रम ने यहाँ की फिजाओं को हर हर महादेव के जयकारों से गुंजायमान कर डाला है भगवान शिव को समर्पित चार दिवसीय कार्यक्रम में भक्तों ने बढ़चढ़ कर भाग लेकर इस आध्यात्मिक कार्यक्रम को यादगार बना डाला आज चौथे दिवस हवन – यज्ञ व विशाल भण्डारे में भी भक्तों ने बड़ी संख्या में भाग लेकर बिन्देश्वर महादेव के चरणों में अपने आराधना के श्रद्धा पुष्प अर्पित किए

 

इससे पूर्व मंगलवार को यहाँ बिन्देश्वर महादेव के नव निर्मित शिव मन्दिर के विधिवत शुभारम्भ के पश्चात् मूर्तियों की प्राण प्रतिष्ठा व स्थापना के अवसर पर लगभग आठ किलोमीटर की निकाली गयी भव्य कलश यात्रा भी समूचे क्षेत्र में भगवान शिव की भक्ति का भव्य संदेश देकर अलौकिक व यादगार आभा बिखेर गयी
बिन्दुखत्ता के इन्द्रानगर द्वितीय में स्थित बिन्देश्वर महादेव जी के प्रति स्थानीय भक्तों में अगाध श्रद्धा है श्रद्धा की शानदार आभा ने मातृ शक्तियों के सिरों में शुशोभित कलशों से शिव भक्ति का जो संदेश दिया वह यादों की महक में अनूठी छाप छोड़ गया

 

सैकड़ों की संख्या में मातृशक्ति की अगुवाई में निकाली गई यह यात्रा आध्यात्म जगत की यादगार यात्रा रही।इस यात्रा में जहां सैकड़ों मातृशक्तियों के सिरों पर क्लश शुसोभित थे।वही सैकड़ों की संख्या में भक्तजन नाचकर प्रभु की कृपा का यशोगान कर रहे थे।
उल्लेखनीय है कि हिन्दू रीति के अनुसार जब भी कोई पूजा होती है, तब मंगल कलश की स्थापना अनिवार्य होती है।

बड़े अनुष्ठान यज्ञ यागादि में पुत्रवती सधवा महिलाएँ बड़ी संख्या में मंगल कलश लेकर शोभायात्रा में निकलती हैं। उस समय सृजन और मातृत्व दोनों की पूजा एक साथ होती है।यह क्लश यात्रा की सबसे बड़ी बात है। समुद्र मंथन की कथा काफी प्रसिद्ध है। समुद्र जीवन और तमाम दिव्य रत्नों और उपलब्धियों का आपार केन्द्र है।इसी से क्लश की लम्बी कथा जुड़ी है।

 

कलश का पात्र जलभरा होता है। जीवन की उपलब्धियों का उद्भव आम्र पल्लव, नागवल्ली द्वारा दिखाई पड़ता है। जटाओं से युक्त ऊँचा नारियल ही मंदराचल है तथा यजमान द्वारा कलश की ग्रीवा (कंठ) में बाँधा कच्चा सूत्र ही वासुकी है। यजमान और ऋत्विज (पुरोहित) दोनों ही मंथनकर्ता हैं। पूजा के समय प्रायः उच्चारण किया जाने वाला मंत्र स्वयं स्पष्ट है

 

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कलशस्य मुखे विष्णु कंठे रुद्र समाश्रिताः मूलेतस्य स्थितो ब्रह्मा मध्ये मात्र गणा स्मृताः। कुक्षौतु सागरा सर्वे सप्तद्विपा वसुंधरा, ऋग्वेदो यजुर्वेदो सामगानां अथर्वणाः अङेश्च सहितासर्वे कलशन्तु समाश्रिता’

अर्थात्‌ सृष्टि के नियामक विष्णु, रुद्र और ब्रह्मा त्रिगुणात्मक शक्ति लिए इस ब्रह्माण्ड रूपी कलश में व्याप्त हैं। समस्त समुद्र, द्वीप, यह वसुंधरा, ब्रह्माण्ड के संविधान चारों वेद इस कलश में स्थान लिए हैं। इसका वैज्ञानिक पक्ष यह है कि जहाँ इस घट का ब्रह्माण्ड दर्शन हो जाता है, जिससे शरीर रूपी घट से तादात्म्य बनता है, वहीं ताँबे के पात्र में जल विद्युत चुम्बकीय ऊर्जावान बनता है। ऊँचा नारियल का फल ब्रह्माण्डीय ऊर्जा का ग्राहक बन जाता है। मंगल कलश वातावरण को दिव्य बनाती है।सभी धार्मिक कार्यों में कलश का बड़ा महत्व है। यज्ञ, अनुष्ठान, भागवत यज्ञ आदि के अवसर पर सबसे पहले कलश स्थापना की जाती है।यहां यह भी गौरतलब है,धर्मशास्त्रों के अनुसार कलश को सुख-समृद्धि, वैभव और मंगल कामनाओं का प्रतीक माना गया है। देवी पुराण के अनुसार माँ भगवती की पूजा-अर्चना करते समय सर्वप्रथम कलश की स्थापना की जाती है। नवरा‍त्रि के दिनों में मंदिरों तथा घरों में कलश स्थापित किए जाते हैं तथा मां दुर्गा की विधि-विधानपूर्वक पूजा-अर्चना की जाती है।भागवत कथा से पूर्व निकाली गई

कलश यात्रा के दर्शन से प्राणी के रोग,शोक,दुख,दरिद्रता एंव विपदाओं का हरण हो जाता है कलश पर लगाया जाने वाला स्वस्तिष्क का चिह्न चार युगों का प्रतीक है। यह हमारी चार अवस्थाओं, जैसे बाल्य, युवा, प्रौढ़ और वृद्धावस्था का प्रतीक है

 

पौराणिक शास्त्रों के अनुसार मानव शरीर की कल्पना भी मिट्टी के कलश से की जाती है। इस शरीररूपी कलश में प्राणिरूपी जल विद्यमान है। जिस प्रकार प्राणविहीन शरीर अशुभ माना जाता है, ठीक उसी प्रकार रिक्त कलश भी अशुभ माना जाता है।

यही कारण है। कलश में दूध, पानी, पान के पत्ते, आम्रपत्र, केसर, अक्षत, कुंमकुंम, दुर्वा-कुश, सुपारी, पुष्प, सूत, नारियल, अनाज आदि का उपयोग कर पूजा के लिए रखा जाता है। इसे शांति का संदेशवाहक माना जाता है।
धर्म,आध्यात्म,शांति का यही संदेश यहाँ निकाली गई कलश यात्रा में दिया गया।

 

आठ जुलाई से ग्यारह जुलाई तक बिन्दुखत्ता के बिन्देश्वर महादेव मंदिर की आध्यात्मिक छटा अद्भूत रही यहाँ यह भी बताते चले कि इन्द्रानगर बिन्दुखत्ता क्षेत्र में स्थित प्राचीन विन्देश्वर महादेव का भव्य मंदिर स्थानीय शिव भक्तों के साथ ही दूर-दराज के श्रदालुओं के लिए भी आस्था व विश्वास का एक अद्भुत केन्द्र के रूप में प्रसिद्ध है। यहाँ परम विभूषित बिन्देश्वर महादेव को त्वरित फलदायी और सभी मनोकामनाओं को पूर्ण करने वाला माना जाता है। यही कारण है कि तराई भाभर क्षेत्रों के अलावा उत्तराखण्ड के पर्वतीय अंचलो से और उत्तरप्रदेश के सीमावर्ती नगरों से भी श्रद्धालु अक्सर इस मन्दिर के दर्शनार्थ पहुंचते हैं। पर्व, उत्सव, संक्रान्ति के मौकों पर यहाँ भक्तो की भारी भीड़ देखी जा सकती है।
बताया जाता है कि विन्देश्वर महादेव यहाँ प्राचीनकाल से ही स्थित है। क्षेत्र के कई बुजुर्ग बताते हैं कि अस्सी के दशक से पूर्व से यहाँ महादेव की पूजा होती है । वर्ष 1982 में जब यहाँ बसासत शुरू हुई तो धीरे धीरे चारा, ईंधन आदि जरूरतों के लिए इसके आसपास आना- जाना आरम्भ हो गया ।इसी दौरान पहली बार बिन्दुखता वासियों को मालूम चला कि यहाँ पर भगवान विन्देश्वर साक्षात विराजमान हैं
फिर क्या था कि यकायक यहाँ पहुंचने वाले श्रद्धालु भक्तों की संख्या तेजी से बढ़ने लगी। इतना ही नहीं यहाँ पर शिव महापुराण, श्रीमद देवी भागवत, श्रीमद्भागवत, अखण्ड रामायण, सुन्दर काण्ड पाठ व कीर्तन भजन जैसे धार्मिक आयोजन होने लगे।
महाशिव रात्रि के अवसर पर उत्सव भी मनाया जाने लगा। समय समय पर भण्डारे का आयोजन होने लगा और भक्तों की आवा – जाही बढ़ती गयी।
लम्बे समय तक बिन्देश्वर महादेव यहाँ सघन वन के बीच लिंग रूप में ही पूजित व सेवित रहे, बाद में स्थानीय भक्तों की पहल पर एक छोटे मन्दिर का निर्माण किया गया।
तकरीबन पचास वर्षों से समूचे बिन्दुखत्ता क्षेत्र के लोगों के लिए गहरी आस्था का केन्द्र रहे इस प्राचीन देव स्थल को नया और भव्य स्वरूप में लाने के विचार से भक्तों द्वारा बिन्देश्वर महादेव मंदिर समिति का गठन किया गया और फिर जनसहयोग से नये मन्दिर का निर्माण कार्य शुरू कर दिया गया। वर्तमान में बहुत ही भव्य रूप में इस महादेव मन्दिर का निर्माण पूर्ण हो चुका है। यहाँ पचदेवों को स्थापित किया गया है। शिव-पार्वती, गणेश, व नन्दी की भव्य मूर्तियां स्थापित हैं । इसके अलावा हनुमान जी और भैरव जी की मूर्ति भी स्थापित की गयी है।
मन्दिर समिति के अध्यक्ष शेरसिंह दानू जो कि एक प्रसिद्ध कुमाउनी लोक गायक भी हैं, व प्रबंधक दीप जोशी जो एक ख्याति प्राप्त पत्रकार है ने बताया कि यहाँ विराजमान बिन्देश्वर महादेव को भक्तजन अपने अनुभवों के आधार पर बड़ा ही चमत्कारी शक्ति मानते हैं। यह अक्सर देखने में आता है कि जिन भक्तों की गहरी आस्था होती है, उनके सारे काम सहज ही बनते चले जाते हैं और ऐसा कहने वाले अनेक भक्त यहाँ और मिल जाते हैं।
कुल मिलाकर जनसहयोग से भव्य आकार ले चुका यह मन्दिर अब क्षेत्रवासियो के लिए एक तीर्थ की मान्यता प्राप्त कर रहा है।

 

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भव्य कलश यात्रा के साथ मूर्ति प्राण प्रतिष्ठा व भण्डारा कार्यक्रम के अवसर पर आचार्य प. भगवत जोशी का बड़ा ही स्नेहमय सहयोग रहा
इस अवसर पर प. चंद्रशेखर कर्नाटक,मंदिर समिति के अध्यक्ष शेर सिंह दानू, मुख्य यजमान गोकुलनंद उपाध्याय, पुजारी नंदन गोस्वामी, हरीश गिरी गोस्वामी राधा बल्लभ पांडे, दीपेंद्र कोश्यारी, हरेंद्र बोरा, कुन्दन चुफाल पवन चौहान .हेमवती नंदन दुर्गापाल, राजेंद्र खनवाल, कुंदन मेहता, मनोज बसनायत, पुष्कर दानू, सुर सिंह फर्शवान, जीवन सिंह रावत खुशाल सिंह कलाकोटी, शिवराज सिंह बिष्ट, रणजीत सिंह मेहरा, विपिन गोस्वामी, भरत सिंह शेखावत, मनोज बसनायत राजेन्द्र शर्मा अरुणेश तिवारी मनीष नैथानी संतोष हरि शंकर कांता सिंह सुरेश चन्द्र पाठक कैलाश पाण्डेय प्रकाश चन्द्र देवराड़ी राजेंद्र परिहार, राजू शर्मा, संजय टाकुली, पंकज बिष्ट, देव सिंह देवली, मनोज परिहार, भैरव दत्त नागिला, सुंदर रजवार, पंकज गिरी, कमल सनवाल, प्रेम सिंह गड़िया, मनोज रजवार, राहुल पाठक, संजय देवली, ललित जोशी, भीम आर्य, सीमा रावत, किशन देवली, राहुल शर्मा, पवन सनवाल, हरीश गिरी, राज शर्मा, हेमा सनवाल, विनोद दानू, दीपा तिवारी, बीना जोशी सीमा रावत पुष्पा शर्मा, सागर शर्मा सहित भारी संख्या में गणमान्य लोग मौजूद रहे।

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मन्दिर के सुव्यवस्थित संचालन के लिए गठित समिति में अध्यक्ष शेरसिंह दानू के अलावा सचिव देव सिंह देवली, उपाध्यक्ष शिवराज सिंह, कोषाध्यक्ष गोकुलानंद उपाध्याय तन – मन- धन से अपनी जिम्मेवारी निभाते आ रहे हैं।
इसी के साथ समिति का एक संरक्षण मण्डल और मार्गदर्शक मण्डल भी बनाया गया है। इसमें दीप चन्द्र जोशी, मनोज बसनायत, पुष्कर दानू, सूर सिंह फर्सस्वाण, चन्द्र शेखर कर्नाटक, पूरन नगरकोटी, राजू शर्मा, चेतन पाण्डे, सागर शर्मा तथा पवन सनवाल प्रमुख रूप से शामिल हैं। मन्दिर में सभी आयोजन इन्हीं महानुभावों के सहयोग से सम्पन्न होते हैं।

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