माँ नन्दा भगवती को माँ के साथ- साथ बहिन बेटी के रूप में किया जाता है कैलाश को विदा
बिन्दुखत्ता/ बिन्दुखत्ता के इन्द्रानगर माँ भगवती शक्ति पीठ से गणेश चतुर्थी के पावन अवसर पर शनिवार को माँ नंदा की छतोली यात्रा कैलाश को रवाना हो गयी आस्था परम्परा व भक्ति के इस अद्भूत महासंगम के हजारों लोग साक्षी रहे
उल्लेखनीय है , कि हिमालय की ईष्ट देवी माँ नन्दा राज राजेश्वरी यहां जहां माँ जगदम्बा के रूप में पूज्यनीय है वहीं यहाँ की पावन संस्कृति में इस देवी से बेटी व बहिन के रूप में भी गहरा स्नेह रक्खा जाता है उसी रुप में इन्हें कैलाश को विदाई दी जाती है
माँ नन्दा की लोकजात यात्रा में पिछले वर्ष की भांति इस वर्ष भी माँ भगवती शक्ति पीठ इन्द्रानगर बिन्दुखत्ता से छतोली हिमालय के पवित्र ऑचल वेदनी कुण्ड को बेहद आध्यात्मिक वातावरण में रवाना हुई
यह जानकारी देते हुए राजराजेश्वरी माँ नन्दा के चरणों में आस्था रखने वाले स्थानीय भक्त एवं मंदिर कमेटी के प्रबंधक रमेश कुनियाल ने बताया
मंदिर समिति के तत्वावधान में छतोली ने 7 सितम्बर शनिवार को बिन्दुखत्ता भगवती मन्दिर से कैलाश को प्रस्थान किया इस दौरान पूरे विधि- विधान के साथ ग्राम वासियों भक्तजनों द्वारा माँ भगवती के छतोली डोली की पूजा-अर्चना की गयी इस विराट आध्यात्मिक कार्यक्रम में तमाम भक्तजन भाग लेकर इस ऐतिहासिक पल के साक्षी बने
श्री कुनियाल ने बताया यहां से लोक जात यात्रा में तमाम भक्त छतोली लेकर इस महान् आध्यात्मिक यात्रा में शामिल है
आयोजन को भव्य स्वरूप प्रदान करने में माँ भगवती मंदिर कमेटी के अध्यक्ष हरि बल्लभ शास्त्री प्रबंधक रमेश कुनियाल उपाध्यक्ष प्रेम दानू सचिव संजय देवराडी कोषाध्यक्ष संभू प्रसाद जोशी उप सचिव जगदीश देवराडी उप प्रबंधक विनोद देवराड़ी पीताम्बर जोशी दिनेश देवराड़ी गोबर्धन सती भवानी दत्त सती लक्की जोशी सूरज देवराड़ी शौरभ सती संरक्षक डा० आर० सी० पुरोहित रघुवीर सिंह बिष्ट विशन दत्त शर्मा
आदि अनेकों भक्तजन बड़े ही श्रद्वा भाव से मेहनत में जुटे रहे
उल्लेखनीय है, कि माँ नन्दा की पूज्यनीयता यहां प्रधान है। वर्ष भर की यात्रा को छोटी जात एवं बारह वर्ष में होने वाली यात्रा को बड़ी जात कहा जाता है ’नन्दा,नन्दप्रिया,निद्रा,नृनुता नन्दनात्मिका!नर्मदा नलिनी नीला नीलकण्ठ समाश्रया माँ भगवती नन्दा की महिमां अपरम्पार है, अनन्त नामों से भक्तों का कल्याण करने वाली माँ नन्दा ही भगवान नीलकण्ठ महादेव की आश्रयरूपा है,
देवभूमि उतराखण्ड में माँ नन्दा को बडे ही श्रद्वा के पूजा जाता है , हिमालयी भूमि में माँ नन्दा के अनेक पावन पीठ है, जिनके दर्शन मात्र से मानव पापरहित हो जाता है, ’’दर्शनार्थ पापहीनों भवेन्नर’’ सिद्वि की कामना रखने वाले तथा ऐश्वर्य की कामना करने वाले लोग इन्हें भाति.भाति रूपों में पूजते है
यहाँ से छतोली को लेकर मुख्य छतोली वाहक विनोद देवराड़ी के साथ राहुल गुणवन्त दिवाकर देवराड़ी किशन बिष्ट गौरव देवराड़ी राजेश मेहरा गोकुल ततराड़ी शम्भू नाथ गोस्वामी मुन्ना देवराड़ी कैलाश को रवाना हुए ग्यारह सितम्बर को सांय तीन बजे छतोली का माँ भगवती शक्ति पीठ में आगमन होगा जहाँ हजारों भक्तजन उपस्थित रहकर छतोली का स्वागत करेंगें तत् पश्चात् रात्रि को भव्य जागरण एवं 12 सितम्बर को माँ नन्दा का पूजन हवन यज्ञ के साथ विशाल भण्डारे का आयोजन होगा
विभिन्न रूपों में पूजित भगवती नन्दा के हिमालय में अनेकों देवी पीठ है, सनातन काल से इन पीठों के प्रति गहरी आस्था है, जहां भगवती प्रयागराज में ललिता देवी, गया में मंगला त्रिकूट में रूद्रसुन्दरी,विन्ध्यासिनी वैघनाथ धाम आरोग्या,महाकाल में महेश्वरी तथा विभिन्न पीठों में भाति-भाति नाम व रूपों से पूजित है, वही हिमालय में भगवती नन्दा के नाम से परम पूज्यनीय है, इनकी पूज्यनीयता का विराट स्वरुप बारह साल में एक बार विशेष रुप से देखनें को मिलता है।कहा भी गया हैःः-’’य एवं कुरूते यात्रां श्री नन्दा देव्याः प्रीतमानसः! सहस्त्रकल्प पर्यन्तं ब्रहमालोके महतरे!!
जो मानव माँ नन्दा देवी के सिद्व पीठों की प्रसन्न मन से यात्रा करता है, उसके पितर हजार कल्पों तक महतर ब्रहम लोक में निवास करते है, माँ के ये सिद्व पीठ प्रत्यक्ष ज्ञान स्वरूप तथा मुक्ति क्षेत्र है ’’इमानि मुक्तिक्षेत्राणि’’ कहकर पुराणों ने भी इस ओर मनुष्य का ध्यान आकृष्ट किया है, तथा कहा है बुद्विमान मानव को इसका आश्रय ग्रहण करना चाहिए।
देवात्मा हिमालय की गोद में बसे उतराखण्ड में माँ नन्दा की पूजा अर्चना समय समय पर बडे ही श्रद्वा के साथ आयोजित होती रहती है, किन्तु प्रत्येक 12 साल में आध्यात्मिक सार से परम ऐतिहासिक ’’श्री नन्दा देवी राजजात ’’ माँ नन्दा की अपने भक्तों के लिए अलौकिक सौगात है । 280 किलोमीटर की यह यात्रा एक विराट यात्रा है 12 साल की लम्बी प्रतीक्षा के बाद इस यात्रा में शामिल होने व उसके दर्शन का लाभ देवी भक्तों को प्राप्त होता है, माँ नन्दा को शिवा अर्थात शिव पत्नी माँ पार्वती के रूप में पूजा जाता हैै कैलाश पर्वत अर्थात भगवान शिव का वास स्थान उनकी ससुराल है, और इसी पर्वत के विराट वैभव में स्थित चमोली जिले के पट्टी चादपुर और श्री गुरू क्षेत्र को मातेश्वरी माता नन्दा का मैता माना जाता है, कहा जाता है कि एक बार माँ अपने मायके आयी और मायके के मोह से महामाया 12 साल तक अपने ससुराल से विमुख रहकर मायके में ही ठहरी रही समय बदला और 12 साल के लम्बे समय बाद जब उन्हें ससुराल को विदा किया गया तो मायके वासी माँ के वियोग में ब्याकुल हो उठे भावुक मैतियों अर्थात मायके वालों ने परम आदर सत्कार के साथ माँ को सस्नेह विदाई दी
रीति रिवाज से दी गयी विदाई अमिट याद बन गई युग युगान्तर के बाद भी यह रस्म निर्मल भावनाओं के साथ बडी श्रद्वा के साथ निभाई जाती रही है, कुमाऊं व गढवाल की सास्कृतिक विरासत की यह महान यात्रा अलौकिक रहस्यों का भी अम्बार है, रोमांचकता इस यात्रा के पग- पग पर है, देखा जाए तो यह यात्रा समूचे विश्व में अपने आप में अनूठी है, उतराखण्ड में नंदा राजजात का अत्यन्त महत्व है, प्राचीन काल से ही कुमाऊ व गढवाल के राजाओं द्वारा इस यात्रा का आयोजन किया जाता था सम्पूर्ण प्रदेश की आराध्या माँ नन्दा, माँ पार्वती का ही एक रूप है कैलाशपति भोलेनाथ से माँ पार्वती का विवाह हुआ था देवी पार्वती हिमालय की पुत्री थी अतः पूरे पर्वतीय प्रदेश में माँ नन्दा पार्वती को अपनी विवाहिता बेटी के रूप में मानते है, प्राचीन रीति रिवाजों के अनुसार नन्दा को ससुराल भेजने की रस्म के रूप में यह यात्रा की जाती रही है, जिस साल इस यात्रा का आयोजन होता है, उस साल कसुवां ग्राम जनपद चमोली के वासी बंसत पंचमी के दिन मनौती मागते है, गांव वासियों का विश्वास है, कि इस दिन नन्दादेवी कैलाश पर्वत से अपने मायके आ जाती है, यात्रा के आयोजन साल में चार सींग वाला मेढा खाडू अवश्य मिल जाता है जो अपने आप में महान आश्चर्य है, यह चौसिगिंया खाडू ही यात्रा के आगे चलता है, राजजात की आयोजन तिथी को राजवंशी कुवंर खाडु व रिगांल से निर्मित घसौली को नौटी ग्राम के राजगुंरू नौटियालों को सौप दी जाती है, नौटी गांव में उस दिन काफी बडे मेले का आयोजन होता है,
विधी विधान के साथ पूजा अर्चना के बाद चौसिेगिया खाडू के पीठ पर उन के दो मुह के झोले में देवी की भेंट व आभूषण सजाकर रख दिए जाते है, नौटी गांव से यात्रा प्रारम्भ होती है, समुद्र तल से 1650 मीटर की उचाई पर स्थित यात्रा तीसरे दिन पुनः नौटी गांव वापस आ जाती है, अगले दिन नन्दा की विदाई होती है, नौटी गांव में श्रद्धालु चौसिंगियां खाडू और छतौली पर देवी को भेंट स्वरूप अपनी भेंटें प्रदान करते है, और पर्वतीय महिलाए मंगल गीत गाकर अपनी पुत्री को मैत से विदा करती है, और विभिन्न प्रकार की भेंटें देवी को सर्मपित करती है, निश्चय ही माॅ नन्दा की विदाई का यह दृश्य काफी भावुक होता है, गांववासी अपनी पुत्री को रीति रिवाजों के साथ गांव से कुछ दूर तक विदा करती है, एक ओर नौटी से यात्रा आरम्भ होती है, और दूसरी ओर कुमाऊँ व गढवाल के विभिन्न क्षेत्रों से श्रद्वालु झण्डे निषाण और देवताओं की छतोलियां लेकर अपने गांवों से निकल पडते है, और स्थान स्थान पर यात्रा में सामिल होते है, जिस गांव से यात्रा निकलती है, वहां यात्रियों का जोरदार स्वागत होता है, रात्रि में देवताओं के जागर लगते है, झोडे चांचरी गीत गाये जाते है,गढवाल एवं कुमाउ की कला एवं सस्कृति का यह संगम देखते ही बनता है,
यात्रा के 12 वे पडाव वाण गांव के बाद लगभग मानव बस्तियां समाप्त हो जाती इस स्थान से माँ नन्दा के भाई गढवाल के प्रसिद्व लोक देवता लाटू यात्रा की अगुवाई करते है, यात्रा रिगणी घाट गैरोली पातल होते हुए 3,354 मीटर की उचांई पर स्थित बेदिनी बुग्याल पहुचती है, यहां पर महाकाली का पूजन विषेश रूप से होता है, यह क्षेत्र पूर्णतया वृक्ष विहीन है, यहां के हरे मखमली घास के बुग्यालों की सुन्दरता देखते ही बनती है, बेदिनी बुग्याल से 10 किमी दूरी पर पातरनौचणियां नामक स्थान है, इस स्थान के साथ कन्नौज के राजा जसधवल की लम्बी कहानी जुडी हुई है, आगे कैलुआविनायक, बगुआबासा चिडियांनाग होते हुए यात्रा 4,061 मीटर की उचाई पर स्थित रूपकुण्ड पहुचती है, इस कुण्ड में लगभग 700 साल पुराने नर कंकाल है, वैज्ञानिकों का अनुमान है, कि ये कंकाल यात्रियों के ही है, जो किसी प्राकृतिक आपदा के कारण दुर्घटना के शिकार हो गये थे इससे आगे समुद्र शिला यात्रा का सुन्दर पडाव है, यहां पर्वतों की उचाई अधिक होने के कारण वायुदाब कम हो जाता है, जिससे सांस लेने में कठिनाई होती है, हिमाच्छादित प्रदेश होने के कारण चट्टानों के टूटने का यहां अक्सर खतरा बना रहता है, कठिन मार्ग को पार कर भाद्रमास की नवमी तिथि को यात्रा होमकुण्ड पहुचती है, त्रिशूली पर्वत की तलहटी पर स्थित होमकुण्ड में पूजा पाठ हेतु एक हवनकुण्ड बना है, पूजा पाठ के पश्चात चौसिगियां खाडू अर्थात चार सीगं वाले भेड को पीठ पर बधी पोटली के साथ त्रिशूूली पर्वत माँ नन्दा के धाम को विदा किया जाता है, यहां पर अश्रुधारा के साथ खाडू और यात्री एक दूसरे से जुदा होते है,
महान आश्चर्य से भावपूर्ण यह दृश्य संसार में माता पार्वती की अद्भूत लीला का बखान करती है, खाडू को विदा कर यात्रा दूसरे मार्ग द्वारा वापिस आती है, लौटते समय यात्रा चंदनिया घाट सूतोल गांव से रूपगंगा और नंदाकिनी का विहगंम दृश्य देखा जा सकता है, इस गांव में धौसिह देवता का प्रसिद्व मंदिर है, कुल मिलाकर माता नन्दा की महिमा अतुलनीय व अलौकिक है, यात्रा पथ में स्थित तमाम क्षेत्र रहस्य व रोमांच की गाथा को अपने आंचल में समेटे हुए है, ’’सभी मंगलों का मंगल करने वाली, सबका कल्याण करने वाली सभी पुरूषार्थो को सिद्व करने वाली शरणागतजनों की रक्षा करने वाली तथा तीन नेत्रों वाली हे!गौरी हे!नारायणी हे!नन्दा आपको नमस्कार है।
लेटैस्ट न्यूज़ अपडेट पाने हेतु -
👉 वॉट्स्ऐप पर हमारे समाचार ग्रुप से जुड़ें