हल्द्वानी क्षेंत्र में भी विराजमान है केदारनाथ जी की स्वयंभू पिण्डी’, गुमनामी के साये में गुम, हिमालय भूमि में है केदारनाथ जी के अनेकों मंदिर, पढ़िये इन मदिरों की रोचक जानकारी

ख़बर शेयर करें

 

उत्तराखण्ड में तीर्थाटन को बढ़ावा देनें की बातें लम्बें समय से होती चली आ रही है राज्य के कुमाऊं एवं गढ़वाल मण्डल में एक से बढ़कर एक श्रद्धामय तीर्थों की लम्बी श्रृंखलायें मौजूद है इनमें से कुछ ही तीर्थ स्थल अपनी पहचान बना पाये है शेष अधिकांश गुमनामी के सायें में गुम है दूरस्थ तीर्थ स्थलों की तो बात ही छोड़िये राज्य के प्रवेश स्थलों में स्थित पौराणिक धार्मिक आस्थाओं के केन्द्र वाले महत्वपूर्ण धार्मिक स्थल ही आम जनमानस में पहचान से कोसों दूर है ऐसे ही तमाम स्थलों में हल्द्वानी का केदारनाथ दरबार जो पौराणिक काल से परम पूजनीय है लेकिन आम जन मानस की दृष्टि में यह स्थल ओझल सा है आसपास के लोगों को छोड़कर लोगों को यह पता ही नहीं है कि केदारनाथ जी स्वयंभू पिण्डी के रूप में हल्द्वानी में भी विराजमान है
श्री केदारनाथ धाम के अलावा केदारनाथ के रूप में भगवान शिव की लीलायें अनेक क्षेत्रों में बिखरी हुई है जिनमें थल केदार पाताल केदार के साथ हल्द्वानी के केदारनाथ जी है इन सभी स्थानों में श्री केदार नाथ जी स्वयंभू पिण्ड़ी के रूप में विराजमान है

देवभूमि कुमाऊँ के प्रवेश द्वार हल्द्वानी के पन्याली क्षेत्र में श्री केदारनाथ जी की स्वयंभू पिण्डी के दर्शन होते है यह पिण्ड़ी केदारनाथ जी कि भांति ही दर्शनीय है श्री 1008 हैड़ाखान बाबा मन्दिर के प्रांगण में बाबा केदारनाथ जी का दरबार हैड़ाखान बाबा की केदार भक्ति की सौगात है बताते है कि उन्हीं के आवाहन पर बाबा केदार नाथ यहाँ पिण्डी रूप में प्रकट हुए

पन्याली के शिवालय में इस पिण्ड़ी का स्वरूप केदारनाथ जी की भांति ही मनोहारी है कहा जाता है कि जब बाबा हैड़ाखान जी यहां साधना करते थे उस दौर में केदारनाथ जानें वाले भक्तों की आवाजाही काफी रहती थी पैदल व जटिल मार्गों के चलते कुछ भक्त चाहते हुए भी केदारनाथ नहीं जा पाते थे अपनें हताश भक्तो की हताशा व केदार दर्शन की निष्ठा को देखते हुए बाबा हैड़ाखान जी ने बाबा की स्तुति व आवाहन किया और यहाँ केदारनाथ जी पिण्डी रूप में प्रकट हुए
घोर आश्चर्य का विषय तो यह है कि भगवान शिव की यह पावन स्थली जो केदारनाथ जी का ही एक स्वरूप है तीर्थाटन के विकास से कोसों दूर है जबकि पुराणों में अपनें केदार स्वरूप के बारें में स्वंय महादेव जी माता पार्वती से कहते हैं जो कहीं यह बोल भी देते हैं कि हम केदार क्षेत्र में जायेंगे वह शिवलोक के भागी बनते हैं। जैसे सतियों में तुम श्रेष्ठ हो, देवताओं में विष्णु हैं, सरोवरों में समुद्र है, नदियों में गंगा, पर्वतों में हिमालय, योगियों में याज्ञवल्क्य, भक्तों में नारद, शिलाओं में वैष्णवी, वनों में वदरी वन, धेनुओं में कामधेनु, मनुष्यों में विप्र, विप्रों में ज्ञानदाता, स्त्रियों में पतिव्रता, प्रियों में पुत्र, पदार्थों में सुवर्ण, मुनियों में शुकदेव, सर्वज्ञों में व्यासदेव, देशों में भारत देश, मनुष्यों में राजा, देवताओं में इन्द्र, वसुओं में कुबेर, पुरियों में कैलाशपुरी, अप्सराओं में रंभा, गन्धर्वों में तुम्बरू श्रेष्ठ हैं। वैसे ही क्षेत्रों में केदार नामक क्षेत्र श्रेष्ठ है।
‘‘क्षेत्राणां च तथा प्रोक्तं क्षेत्रं केदारसंज्ञितम!’ (स्कंद पुराण)
केदार शब्द की ही इतनी महिमां है कि उसे शब्दों में नहीं समेटा जा सकता है और जहाँ विभिन्न स्वरूपों में केदार नाथ जी वास करते हो उस स्थान की महत्ता तो अतुलनीय है लेकिन हैरत की बात है हल्द्वानी के पन्याली क्षेंत्र में स्थित केदारनाथ मन्दिर व उनकी स्वंयभू पिण्ड़ी तीर्थाटन के विकास से कोसों दूर गुमनामी के साये में गुम है
मंदिर के आस्थावान भक्त बताते है जो भी यहाँ पर बाबा केदार की स्तुति करते है उनके सभी बिगड़े काम बनते है उन्होनें  जिन्हें यहाँ के बारे में जानकारी है वह विदेशों में रहकर भी इनका स्मरण करते है इस स्थान पर जाप यज्ञ का विशेष महत्व है असाध्य रोगों के निवारण के दूर दराज से भक्तजन यहाँ समय – समय पर जाप करवाने के लिए आते है महादेव सभी की मनोकामना पूर्ण करते है
केदारनाथ मंदिर प्राकृतिक दृष्टि से भी अत्यधिक दर्शनीय स्थल है। हल्द्वानी- कालाढूंगी मार्ग पर हल्द्वानी कठघरिया चौराहें से चंद कदम उत्तर की दिशा में बाबा केदार के इस मंदिर के आप दर्शन कर सकते है

तीर्थाटन की दृष्टि से हर स्थान का अपना-अपना विशेष महत्व है। द्वादश ज्योतिर्लिंग स्त्रोत में ‘हिमालये तु केदारं’ नाम से श्रेष्ठ तीर्थ का उच्चारण आता है।

उल्लेखनीय है कि हिमालय की गोद में बसा उत्तराखण्ड आध्यात्मिक दृृष्टि से विश्व की अलौकिक धरोहर है। यहां स्थित ज्योतिर्लिंग केदारनाथ की महिमा भी पुराणों के अनुसार अतुलनीय है। अनेकों धार्मिक ग्रंथों में भगवान शिव के इस पावन धाम का वर्णन मिलता है। उत्तराखण्ड स्थित चार धामों में केदारनाथ धाम का बड़ा महत्व है। रुद्रप्रयाग जिले में स्थित गौरीकुण्ड से 14 किलोमीटर उत्तर की ओर मंदाकिनी नदी के किनारे समुद्र तल से 3584 मीटर की ऊंचाई पर केदारनाथ भगवान शिव के बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक है।
केदार क्षेत्र सभी तीर्थों में उत्तम तीर्थ कहा गया है। स्वयं भगवान शिव पार्वती से यह बखान करते हुए कहते हैं कि जो केदारनाथ के दर्शन कर श्रद्धापूर्वक मेरी पूजा करता है मैं उसके हृदय में स्वयं प्रकट होता हूं।
केदारक्षेत्र माख्यातं तीर्थानां तीर्थ मुक्तमम्।
शिवलिंग प्रजायेत हृदि तस्य महेश्वरी।।
(42 अ. 2 श्लोक 42 व 43) केदारखण्ड

पौराणिक ग्रंथों के अनुसार केदारनाथ मंदिर के समीपवर्ती क्षेत्रों में स्थित देवालयों का भी विशेष महत्व है, जिनमें तुंगनाथ, रुद्रनाथ, मद्महेश्वर, कल्पेश्वर आदि हैं जहां शिवजी की विविध रूपों में पूजा होती है। केदारनाथ में शिवलिंग, तुंगनाथ में शिवजी की भुजा, रुद्रनाथ में मुख, मद्महेश्वर में नाभि और कल्पेश्वर में उनकी जटा की विशेष पूजा-अर्चना का विधान है।
भगवान केदारनाथ जी की महिमा का एक स्वरूप मध्यमहेश्वर चौखंबा पर्वत चोटी की तलहटी पर 3328 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है जो वास्तुशिल्प का अद्वितीय उदाहरण है। यहां से केदारनाथ व नीलकंठ पर्वत श्रृंखलाओं के दर्शन होते हैं। पुराणों में पंच केदार नामक तीर्थों में से एक इस तीर्थ का बड़ा ही सुन्दर वर्णन आता है। महादेव माता पार्वती को इस स्थल के बारे में बताते हुए कहते हैं। इसके दर्शन से मनुष्य सदा स्वर्ग में वास करता है। ‘‘तस्य वै दर्शनान्मर्त्यो नाकपृष्ठे वसेत्सदा’’ घोर कलियुग में मध्यमेश्वर के दर्शन से मनुष्य धन्य हो जाते हैं। ‘‘धन्या कलियुगे घोरे मध्यमेश्वरदर्शनात्’’ रुद्रप्रयाग गोपेश्वर मार्ग में चौपता से तीन किमी. की दूरी पर स्थित तुंगनाथ शिखर पंचकेदार का ही स्वरूप है। यहां स्थित भगवान शिव के मंदिर में उनकी पूजा, समुद्र तल से 3680 मीटर की ऊंचाई पर होती है। पुराणों में मांधाता क्षेत्र के दक्षिण दिशा में दो योजन चौड़ा, दो योजन लम्बा, पापनाशक तथा सकलकामनादायक तुंगनाथ के पवित्र क्षेत्र का महात्म्य मिलता है। पुराणों के ही माध्यमसे स्वयं महादेव ने महादेवी को बताया है। जो तुंगनाथ नामक मेरे लिंग का पूजन करता है। उस महात्मा के लिए तीनों लोकों में कुछ भी दुर्लभ नहीं रह जाता है।
‘‘सम्पूज्य मम लिंग वै तुंगनाथस्थानकम्।
दुर्लभ त्रिषु लोकेषु नास्ति तस्य महात्मनः।।
जहां तुंगनाथ में भगवान शिव की भुजा की पूजा होती है वहीं रुद्रनाथ में उनके मुखाकृति की पूजा की जाती है। ऋ़षिकेश-गोपेश्वर मार्ग पर सागर से 22 किमी. की दूरी पर स्थित यह स्थान समुद्र तल से 2286 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है जो तीर्थों में उत्तम तीर्थ है। इस स्थान पर देवताओं ने अंधक नामक असुर का बध कर देवताओं को उनका राजपाठ वापस दिलाया। ज्योतिर्लिंग केदारनाथ की अलौकिक लीला का क्षेत्र कल्पेश्वर के दर्शन का महत्व केदार क्षेत्र में समस्त पापों का नाशक है। कल्पेश्वर के शिव मंदिर में शिवजी की जटाओं की पूजा होती है। यह स्थान दुर्वासा ऋषि की तपःस्थली रही है। समुद्र तल से 2134 मीटर की ऊंचाई पर स्थित यह स्थान ऋषिकेश बद्रीनाथ मार्ग पर हेलंग से 12 किमी. दूर स्थित है। प्राकृतिक रूप से सुन्दर इस मंदिर में भक्तजन बरबस ही खिंचें चले आते हैं। इसी स्थान पर भगवान विष्णु तथा इन्द्रादि देवताओं ने ऋषि दुर्वासा के श्राप से लोप हुए लक्ष्मी को पुनः प्राप्त करने हेतु शिवजी की कठोर तपस्या की। प्रसन्न शिव ने समुद्र मंथन का उपाय बताकर देवताओं का उद्धार किया। इस स्थान पर पूर्व में कल्प वृक्ष होने की भी बात कही जाती है।
पंचकेदार के रूप में संसार का मंगल करने वाले भगवान केदारनाथ का प्राचीन मंदिर महाभारत कालीन बताया जाता है। इसका निर्माण पाण्डवों ने किया था व यहीं उन्हें शिव के दर्शन हुए। इस विषय पर भी अनेक कथाओं का वर्णन आता है। दूसरा और मुख्य मंदिर 8वीं शताब्दी में शंकराचार्य द्वारा निर्मित बताया जाता है। यह मंदिर श्रद्धालुओं की आस्था के साथ-साथ वास्तुशिल्प की विशिष्टता के कारण भी प्रसिद्ध है। केदारखण्ड के 41वें व 42वें अध्याय में केदारनाथ की महिमा का विस्तृत मिलता है, जिसमें यह तीर्थों में महान एवं श्रेष्ठों में श्रेष्ठ व देव दुर्लभ स्थान कहा गया है।

हिमालय भूमि में हल्द्वानी में जहाँ भक्तों को केदारनाथ जी के दर्शन होते है वहीं अयोध्या के राजा त्रतुपर्ण ऐसे सौभाग्यशाली राजा हुए, जिन्हें पाताल भुवनेश्वर के भीतर केदारमण्डल के दर्शन हुए। शेषनाग जी की कृपा से केदारमण्डल के पाताल भुवनेश्वर में दर्शन कर राजा ऋतुपर्ण कृतार्थ हुए थे।
*पुराणपुरुषं विष्णु प्रणभ्य स पुनः पुनः।*
*शेष नागागुनो राजा यमौ केदारमण्डलम्।।*
*स ददर्शाय केदारं शेषनागेन दर्शितम्।*
*तथैव च महाध्वानं यमौ शिवपुरं प्रति।।*
*434-435 ;मानसखण्ड 103 (अध्याय)*
यहां उन्होंने केदारनाथ जी के पास भक्त राजा ‘केदार’ के भी दर्शन किए। ‘सम्पूज्य तत्र केदारं’*

पाताल भुवनेश्वर महात्म्य में केदारमण्डल का जिक्र बड़े ही श्रद्घा-भाव से आता है। पाताल भुवनेश्वर महिमा का जिक्र पुराणों में भूतल के सबसे पवित्र क्षेत्र के रुप में आता है। भुवनेश्वर का पूजन कर आश्वमेघ से हजार गुना फल प्राप्त होता है। भारतवर्ष के खण्डों में जो अनेक शिवलिंग हैं, वे सब पाताल भुवनेश्वर के समीप विद्यमान हैं। यहां के दर्शन ‘केदार’ से सहस्रगुणित और वैद्यनाथ से भी कोटिगुणित फल प्राप्त होता है।
*सहस्रगुणितं पुण्य केदारन्मुनिसत्तमाः।*’
*वैद्यनाथ कोटिगुन कैलाससदृशं फलम्।।*
(*स्कंद पुराण मानसखण्ड अध्याय 103*)
*भूमण्डल के इस सर्वप्रधान क्षेत्र में केदार के दर्शन होते हैं। भगवान शिव की लीला अवर्णनीय है उसका वर्णन नहीं किया जा सकता है।
केदारनाथ जी का एक स्वरूप पिथौरागढ़ के समीप थल केदार नामक स्थान पर देखा जा सकता है स्कंद पुराण में इस स्थान का भी मनोहारी वर्णन मिलता है यह स्थान पिथौरागढ़ शहर से लगभग 18 किलो मीटर की दूरी पर पर्वत की चोटी में स्थित है सौदर्य की दृष्टि से इस स्थान का कोई जवाब नही है इनका एक पौराणिक मन्दिर द्वारहाट व पाली पछाऊ इलाके में रामगंगा नदी के तट पर विराजमान है

कुल मिलाकर केदारनाथ जी की महिमां हिमालय भूभाग में अनेकों क्षेत्रों में बिखरी हुई है हल्द्वानी पन्याली में भी इनके भव्य व सुन्दर स्वरूप में दर्शन होते है///@ रमाकान्त पन्त///

Ad
Ad Ad Ad Ad
Ad