लेबनान के पेजर धमाकों से सबक लेना आवश्यक

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(मनोज कुमार अग्रवाल )
इजराइल ने हिजबुल्ला के कम्युनिकेशन सिस्टम में घुसपैठ कर तबाही मचा दी है। लेबनान में हजारों पेजर्स और वॉकी-टॉकी में धमाके हुए, इनमें करीब 37 लोगों की मौत हो गई वहीं 3 हजार से ज्यादा लोग घायल हो गए हैं। माना जा रहा है कि मरने वालों और घायलों में ज्यादातर हिजबुल्ला के लड़ाके शामिल हैं।इस पूरे मामले में सबसे हैरान वाली बात ये है कि जिन देशों से हिजबुल्ला ने पेजर्स और वॉकी-टॉकी खरीदे थे, उन्हें भी इजराइल के इस प्लान की भनक तक नहीं लगी। रिपोर्ट्स के मुताबिक जिन पेजर्स में धमाके हुए उन पर ताइवान की गोल्ड अपोलो कंपनी का नाम था तो वहीं वॉकी-टॉकी जापान की आइकॉम से निर्मित थे लेकिन इन दोनों ही देशों की कंपनियों की ओर से जो बयान सामने आए हैं वो दिखाते हैं कि इजराइल ने इस प्लान को कितनी चतुरता से एक्जीक्यूट किया है। एक ओर ताइवान की कंपनी ने गेंद हंगरी की कंपनी के पाले में डाल दी है तो वहीं दूसरी ओर जापान की कंपनी का कहना है कि उसने इन पेजर्स का निर्माण करना एक दशक पहले ही बंद कर दिया था।ताइवान की गोल्ड अपोलो कंपनी के फाउंडर और प्रेसीडेंट से पेजर ब्लास्ट को लेकर पूछताछ भी हुई। कंपनी के प्रेसीडेंट शू चिंग क्वांग का कहना है कि जिन पेजर्स में धमाके हुए उनका निर्माण उनकी कंपनी ने नहीं बल्कि हंगरी के बुडापेस्ट की कंपनी बीएसई ने किया है, जिसके पास गोल्ड अपोलो के नाम का इस्तेमाल करने का लाइसेंस है। शू के अलावा अपोलो सिस्टम लिमिटेड नामक कंपनी की एक कर्मचारी टेरेसा वु भी जांच में शामिल हुईं। जिनके बारे में कुछ दिनों पहले गोल्ड अपोलो कंपनी के फाउंडर ने बताया था कि कंपनी की ओर से डील में टेरेसा ही उनके संपर्क में थी।
ताइवान सरकार लेबनान में हुए पेजर धमाकों की जांच कर रही है, क्योंकि यह अब तक साफ नहीं हो पाया है कि आखिर लेबनान में जो पेजर पहुंचे उनमें विस्फोटक कब, कहां, कैसे और किसने लगाए। न्यूज एजेंसी रॉयटर्स के मुताबिक उन्होंने जब ताइवान सरकार के जांच अधिकारियों से संपर्क करने की कोशिश की तो कोई जवाब नहीं दिया गया। वहीं ताइवान सरकार ने अब तक अपनी जांच को लेकर भी कोई बयान जारी नहीं किया है।
इस मामले में ताइवान जैसा ही हाल जापान का है। लेबनान में जिन वॉकी-टॉकी में धमाके हुए उनमें जापानी कंपनी आइकॉम का नाम प्रिंट था। ये वॉकी-टॉकी IC-V82 मॉडल के थे, लेकिन यहां भी गौर करने वाली बात ये है कि जापान की कंपनी आइकॉम ने कहा है कि उसने इनका निर्माण करीब एक दशक पहले ही बंद कर दिया था। कंपनी का कहना है कि वह इस मामले की जांच कर रही है।आइकॉम के मुताबिक उसने इन नकली निर्माताओं के खिलाफ कानूनी कार्रवाई भी की थी और साल 2020 से ही वह नकली मॉडल के ट्रांसीवर्स के बारे में चेतावनी दे रहा था। आइकॉम के मुताबिक इसके कई इलेक्ट्रॉनिक गियर पब्लिक सेफ्टी ऑर्गेनाइजेशन और संयुक्त राज्य डिफेंस और मरीन कॉर्प विभाग को सप्लाई किए हैं।
लेबनान व सीरिया में एक साथ हुए पेजर धमाकों ने लेबनान और सीरिया को ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया को चौंका दिया है। यह नई तकनीक का युद्ध है जो पहली बार प्रयोग किया गया है। दरअसल, तकनीकी तौर पर बेहद उन्नत इसराइली फौज व दुनिया में तहलका मचाने वाली खुफिया एजेंसी मोसाद मोबाइल के जरिये अपने कट्टर दुश्मनों को निशाना बनाते रहे हैं। इसी वजह से ईरान समर्थित हिजबुल्ला के लड़ाके अपनी स्थिति गोपनीय रखने के मकसद से पेजर का इस्तेमाल सूचना संकेतों के लिये करते रहे हैं। बहरहाल पेजर धमाकों की श्रृंखला में लेबनान में अब तक 37लोगों के मरने व करीब पांच हजार लोगों के घायल होने की बात कही जा रही है। लेकिन वास्तविक संख्या इससे अधिक हो सकती है। वहीं सीरिया में भी पेजर धमाकों की श्रृंखला देखी गई।
हालिया घटनाक्रम इजराइल-हिजबुल्ला संघर्ष के चिंताजनक स्थिति में पहुंचने का संकेत देता है। युद्ध में इस तरह की रणनीति का पहली बार दुनिया के सामने खुलासा हुआ है, जिसमें अपने विरोधी देश के संचार उपकरणों को निशाना बनाकर हमला किया गया हो। यह इस क्षेत्र में लंबे समय से जारी संघर्ष में बिल्कुल नई रणनीति को ही दर्शाता है। वहीं हिजबुल्ला की सुरक्षा चक्र की कमजोरियों को भी उजागर करता है। निस्संदेह, हिजबुल्ला ईरान समर्थित लेबनान की एक प्रमुख ताकत है, जो उन्नत इसराइली ट्रैकिंग सिस्टम से बचने के लिये अपेक्षाकृत कम उन्नत तकनीक वाले उपकरण पेजर पर निर्भर रहा है। यही वजह है कि हिजबुल्ला लड़ाकों, चिकित्सकों तथा नागरिकों द्वारा पेजर का उपयोग किया जाता है। बेरूत के दक्षिणी उपनगरों व बेका घाटी सहित लेबनान के कई शहरों में एक एक करके पेजर फट गए। अस्पताल की तरफ भागती सैकड़ों एंबुलेंसों से पूरे लेबनान में भय व असुरक्षा का माहौल बन गया। यहां तक कि सीरिया के कुछ हिस्सों में भी धमाकों की गूंज सुनायी दी, वहां भी हिजबुल्ला के लड़ाके इससे प्रभावित हुए। बहरहाल, लेबनान व सीरिया में सीरियल पेजर धमाकों ने पूरी दुनिया को कई सबक दिए है । संकटकाल में अपने संचार नेटवर्क को बाहरी हस्तक्षेप से बचाने के लिये बहुत कुछ किया जाना जरूरी है। विज्ञान व तकनीकी उन्नति ने आज के युद्धों का पूरा स्वरूप ही बदल दिया है। परंपरागत सेना व सुरक्षा की सारी अभेद्य दीवारें तकनीक के हमलों के आगे बेकार साबित हो रही हैं। बहरहाल, इन हमलों के लिये, इजराइली खुफिया एजेंसी पर साजिश करने के आरोप लग रहे हैं। हालांकि, इजराइल ने इन धमाकों को लेकर कोई दावा नहीं किया है, लेकिन रिपोर्टे बता रही हैं कि निर्माण प्रक्रिया के दौरान पेजर से छेड़छाड़ करके उन्हें धमाकों के मकसद से ज्वलनशील बनाया गया है। जो एक बड़े सुनियोजित ऑपरेशन की ओर संकेत करता है। जिसमें दूर से सुनियोजित तरीके से विस्फोटों को अंजाम दिया गया। इजराइल ने इन धमाकों के जरिये हिजबुल्लाह को यह संदेश देने का प्रयास किया है कि भले ही वह गाजा संघर्ष में उलझा हुआ है, इसके बावजूद वह दूसरे मोर्चे पर हिजबुल्ला के बुनियादी ढांचे को भी निशाना बनाने की क्षमता रखता है। इजराइल इस समय न केवल हमास बल्कि हिजबुल्ला व हूती विद्रोहियों के हमलों का एकसाथ जवाब दे रहा है।
लेबनान में हुए पेजर और वॉकी टॉकी धमाकों में हैरान करने वाले तथ्य सामने आ रहे हैं। जहां एक ओर ताइवान की गोल्ड अपोलो ने पेजर्स निर्माण के लिए हंगरी की एक कंपनी को जिम्मेदार ठहराया है तो वहीं जापान की टेलीकम्युनिकेशन निर्माता कंपनी आइकॉम का कहना है कि उसने एक दशक पहले ही उन वॉकी-टॉकी का निर्माण बंद कर दिया था जिनमें ब्लास्ट हुए हैं। लेबनान ने अपने दुश्मनों को ऐसी शिकस्त दी है कि उन्होंने हिजबुल्ला के संचार सिस्टम को तबाह कर दिया है। इधर इजराइल की केबिनेट ने हिजबुल्ला के खिलाफ आल आउट वार की मंजूरी दे दी है।(विनायक फीचर्स)

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