कुमाऊँ का वैद्यनाथ तीर्थ जहां के पूजन से पूर्ण होते है मनोरथ

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तीनों लोकों के स्वामी त्रिभुवनेश्वर भगवान शिव जी की महिमां अपरंपार है आदि व अनादि से रहित कण- कण में ब्याप्त भोलेनाथ जी को कैलाश वासी भी कहा जाता है हिमालय की पावन भूमि देवभूमि उत्तराखण्ड तो साक्षात् शिव व माता पार्वती की प्रत्यक्ष वास भूमि कहीं गयी है हिमालय की पावन पर्वत श्रृखलाओं में महादेव विभिन्न स्वरूपों में अपनें भक्तों को दर्शन देते है इन्हें कल्याण का देवता भी कहा जाता है कल्याण की विराट आभा के साथ पवित्र पहाड़ों की गोद में स्थित जनपद बागेश्वर का बैद्यनाथ मंदिर महादेव भक्तों के लिए भगवान शिव की ओर से एक अलौकिक सौगात है

बैद्यनाथ मंदिर की महिमां का वर्णन महर्षि वेद व्यास जी ने स्कंद पुराण में बड़े ही सुन्दर शब्दों में किया है इस स्थल की महिमां के बारे में स्कंद पुराण के मानस खण्ड में माता पार्वती को स्वयं शंकर भगवान ने कहा है वैद्यनाथ का स्मरण करनें मात्र से चोर अग्नि आदि का भय नहीं रहता है
श्रीवैद्यनाथेति च यः स्मरेन्जनो गृहे वने वाऽवि तथा वनान्तरे । न तस्य चौराग्निमह‌द्भयं भवेत् मम प्रभावात् गिरिराजकन्यके ( स्कंद पुराण मानस खण्ड अध्याय इकहत्तर श्लोक १४)

कहा जाता है कि जो भी प्राणी सच्चे मन से वैद्यनाथ जी का दर्शन या स्मरण करता है उसके समस्त मनोरथ सिद्ध होते है वैद्यनाथ जी की कथा का वर्णन करते हुए व्यास जी ने कहा है सिद्ध गन्धर्वों से सेवित यह स्थान अद्भूत व अलौकिक है गोविन्द के चरण से निकलती हुई ‘गोमती’ नदी यही ‘गारुड़ी’ में संगत होती है इसी मध्य में महाक्षेत्र ‘वैद्यनाथ’ है। जहां ‘वैद्यनाथ’ नामक प्रसिद्ध शिवलिङ्ग है। वैद्यनाथ के पूजन करने से दुर्लभ मुक्ति की प्राप्ति होती है साथ ही काशी विश्वनाथ जी की अपेक्षा दस गुना फल मिलता है
कहा तो यहाँ तक गया है जो मनुष्य वैद्यनाथ की ओर मुख करके दो कोस भी चलता है, उसके सभी मनोरथ पूर्ण हो जाते हैं।

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यो वैद्यनाथाभिमुखं प्रयाति गव्यूतिमात्रं प्रयतः प्रभाते । मनोरथास्तस्य भवन्ति पूर्णाः श्रीवैद्यनाथस्य महाप्रभावात् ॥

पुराणों में वर्णित कथा के अनुसार भगवान शिव व माता पार्वती का विवाह इसी स्थान पर हुआ था यह रहस्योद्घाटन स्वयं महादेव ने करते हुए महादेवी को बताया हालांकि केदारनाथ के समीप त्रियुगीनारायण को भी शिव पार्वती की विवाह स्थली मानी गयी है कुछ विद्वानों का मानना है कि शिव व पार्वती का विवाह यही पर हुआ था और अग्नि के फेरे त्रियुगी नारायण में लिये गये थे

वैद्यनाथसमं स्थानं नान्यं मे विद्यते भुवि वणितो यत्र सह महेश्वरि यत्र देवास्त्रर्यास्त्रशत् दृष्ट्वा वैवाहिकं विधिम् । निवसन्ति महाभागे समाराधयितुं हि माम् ॥

हे पार्वति ! यहाँ पर तुम्हारे साथ मेरा विवाह हुआ था। जहाँ तैतीस कोटि देवगण मेरी वैवाहिक विधि को देखकर मेरी आराधना करने के लिए निवास करते हैं। इसके साथ ही वहाँ ब्रह्मा तथा विष्णु एवं ब्रह्मर्षिगण मेरी उपासना करते हैं। शुभे ! जो लोग वैद्यनाथ क्षेत्र में गारुड़ी के मध्य ब्रह्मादि देवों से पूजित शिवलिङ्ग की पूजा करते हैं, उनसे प्रसन्न होकर मैं उनके मनोरथों की सिद्धि कर देता हूँ। महादेवि । इस सम्बन्ध में तुम एक प्राचीन आख्यान सुनो। पहले मैं एक बार ‘रिटि’ के साथ ब्रह्माजी की सभा में गया था। वहाँ विष्णु के साथ खड़े होकर ब्रह्मा ने मेरा स्वागत किया। साथ ही शुभासन पर बैठाकर मेरी पूजा की।

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तदनन्तर भंगवान् विष्णु ने बड़ी गम्भीरता के साथ ब्रह्माजी से कहा भगवान् विष्णु ने बोलना आरम्भ किया- देवदेवेश ! वसिष्ठादि मुनियों से यह विदित हुआ कि शिवलिङ्गों से तीनों लोक आच्छादित हैं। हिमालय तो अधिकतर शिवलिङ्गों से अभिव्याप्त है। वहाँ पर देवी के साथ आपकी शयन-भूमि बतलाई गई है। आप कृपया यह बतायें कि वहाँ ऐसा कौन-सा स्थान है, जहाँ लोगों के मनोरथ सिद्ध हो सकें ।।

सृष्टि के पालनहार भगवान विष्णु के विनय पर महादेव जी ने वैद्यनाथ जी की महिमां का रहस्योद्घाटन करते हुए कहा पूर्ण मनोरथ की सिद्धि वैद्यनाथ के पूजन से ही होती है

गारुडी’ के संगम पर ‘गोमती’ के तटवर्ती ‘वैद्यनाथ’ नामक शिवलिङ्ग के दर्शनों से पूर्वकाल में इन्द्र सहित तमाम देवताओं ने सिद्धि प्राप्त की

मनोरथान् पूर्णान् लोकानां गिरिकन्यके ततो देवाः सगन्धर्वा मया सर्न्दशितं शुभम् ॥ ददृशुर्वेद्यनाथाख्यं लिङ्ग में वर वर्णनि । दर्शनादेव ते सर्वे देवाः पूर्णमनोरथाः
सन्तस्थुर्देवलोकं वै महेन्द्रेण सहेश्वरि । इत्येतत् कथितं देवि मनोऽभिलषितप्रदम्
क्षेत्रं श्रीवैद्यनाथाख्यं देवगन्धर्वसेवितम्

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पुराणों में वैद्यनाथ के नाम से प्रसिद्ध इस तीर्थ को बैजनाथ नाम से भी पुकारा जाता है स्थानीय लोग अक्सर बैजनाथ के नाम से पुकारते है प्राचीन समय में यह स्थान कार्तिकेयपुर के नाम से भी जाना जाता था। माना जाता है यह क्षेत्र कभी कत्यूरी राजा नरसिंह देव की राजधानी भी रही है कत्यूरी राजाओं ने मंदिर का निर्माण करवाया इतिहासकारों के अनुसार
कत्यूरी वंश के बाद चंद राजवंश के लोगों ने इस मंदिर का देखरेख की मंदिर का निर्माण कल्यूरी शैली में है। यहाँ मुख्य मंदिर में बाबा वैद्यनाथ शिव लिंग के रूप में विराजमान हैं, साथ में प्रतिमा स्वरूप में माता पार्वती सहित अनेक देवी देवताओं की मूर्तियां यहां विद्यमान है
भगवान शिव के मुख्य मंदिर के अलावा दर्जन भर से ऊपर सहायक मंदिर और हैं जिन्हें केदारेश्वर, लक्ष्मी-नारायण और ब्राह्मणी देवी आदि है।
समुद्र सतल से लगभग 1130 मीटर की ऊँचाई पर स्थित बाबा वैद्यनाथ जी की महिमां अद्भूत व निराली मानी जाती है इस पावन तीर्थ के आसपास अनेक पौराणिक तीर्थ स्थल मौजूद है

इस स्थान के दर्शन कर लौटे वरिष्ठ पत्रकार प्रकाश जोशी ने बताया वैद्यनाथ की महिमां बड़ी ही निराली है जो एक बार यहाँ आ जाये तो बरबस ही बार – बार यहाँ आने की अभिलाषा रखता है

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