महामंगल का प्रदाता है कुमाऊँ का यह सूर्य मंदिर: पढ़िये रोचक स्टोरी

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देवभूमि उत्तराखण्ड़ की धरती पर अनेक सूर्य मंदिर है जो कि पौराणिक आस्थाओं का महान केन्द्र है इन सूर्य मंदिरो में स्थानीय भक्तजन बड़ी ही श्रद्धा भाव के साथ सूर्य देवता की पूजा अर्चना करते है इन्हीं तमाम पावन सूर्य मंदिरों में एक है कटारमल का सूर्य मंदिर पुराणों में इसे बड़ादित्य के सूर्य मन्दिर के नाम से भी पुकारा जाता है
उत्तराखण्ड़ की धरती पर जनपद अल्मोड़ा क्षेंत्र में स्थित यह मन्दिर भगवान सूर्य की अद्भुत सौगात है पुराणों ने इसकी अलौकिक महिमां बतलायी है कौशिकी समेत अनेक नदियों में स्नान के पश्चात् यहाँ सूर्य देव का पूजन करनें से महान् पातकों से मुक्ति मिलती है कौशिकी महात्म्य में इस बात का स्पष्ट उल्लेख मिलता है

व्यास जी ने स्वंय त्रृषियों को इस देव दरबार की महिमां बताते हुए स्कंद पुराण में लिखा है ‘कौशिकी’ और ‘गार्गी’ के मध्य ‘कन्जार पर्वत है। जहाँ देव व सिद्धों का दिव्य वास है वहीं निम्न ‘द्रोणाचल’ की सीमा समाप्त हो जाती है। उसके दक्षिण पर्व में गन्धर्व, विद्याधर और सिद्धों के समुदाय से सुशोभित ‘बडादित्य (सूर्य) विद्यमान हैं। जहाँ साक्षात् रूप में त्रिलोक के प्रकाशक
ज्योतिर्मय और त्रिगुणात्मक सूर्य देव प्रतिष्ठित है। इनका पूजन करने से इस संसार के जन्म, मृत्यु, जरा एवं व्याधियों का भय विद्यमान नहीं रहता। संसार सागर के घोर अन्धकार को नाश करने वाले इस ‘महान् सूर्य’ का पूजन करने मानवों को महामंगल की प्राप्ति होती है मनुष्य में सदाचार की प्रवृत्ति विकसित होती है यहाँ इनकी आराधना करनें से समस्त प्रकार के भयों का हरण होता है कश्यप प्रजापति के पुत्र सूर्य की आराधना देवताओं द्वारा भी की जाती है। उनकी (बडादित्य) रुप मे आराधना करने पर मानव निर्भय हो जाता है। अतः कौशिकी नदी में स्नान कर जो सूर्य देव’ का पूजन करते हैं, वे धन्य हैं। उन्हें र्स्वग की प्राप्ति होती है
इस स्थान पर भगवान सूर्य के प्रगट होनें की कथा का कारण सत्युग का कालनेमि नामक असुर माना जाता है कहा जाता है सत्युग में यह असुर देवताओं से शत्रुता रखता था साथ ही ऋषि मुनियों का भी विद्वेषी था उसके आंतक से ऋषि मुनि देवता सभी त्राहिमांम हो गये थे इस क्षेत्र में तप करनें वाले ऋषियों का समूह भी कालनेमि के आंतक से त्रस्त था आखिरकार ऋषि मुनियों ने इस असुर के आतंक से मुक्ति पानें के लिए कौशिकी नदी के तट पर एकत्र होकर भगवान सूर्य की उपासना का निर्णय लिया यहाँ स्नान के पश्चात् भगवान सूर्य की ऋषि मुनियों द्वारा उपासना की गयी इस उपासना का जिक्र भी पुराणों में सुन्दर शब्दों में वर्णित है

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उपासना से प्रसन्न होकर सूर्य देव ने ऋषि मुनियों को अभयत्व प्रदान किया और स्वंय अपने दिव्य तेज को पवित्र वट-शिला पर स्थापित किया और अन्तर्ध्यान हो गये भगवान सूर्य के अन्तर्धान होने पर ऋषि लोग सूर्य के तेज का सहारा लेकर तपश्चर्या में लग गए । यमराज की तरह वह दैत्य भी सूर्य के दिव्य तेज को देख कर भयभीत हो गया तब से इस पृथ्वी पर उस वटशिला के मध्य स्थित उन सूर्य भगवान् की ‘बडादित्य’ नाम से स्तुति की जाती है। जो निर्भयता प्रदान करते है

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भगवान सूर्य संसार की आत्मा है। संसार का संपूर्ण भौतिक विकास भगवान सूर्य की सत्ता पर निर्भर है। सूर्य की शक्ति से ही सब उत्पन्न होते है क्योंकि प्रकृति का केन्द्र ही सूर्य है। जिस प्रकार आत्मा के बिना शरीर का अस्तित्व नहीं हो सकता उसी प्रकार जगत की सत्ता सूर्य पर निर्भर है। और बडादित्य कटारमल में सूर्य की आराधना महान् फलदायी बतायी है जनपद अल्मोड़ा मुख्यालय से पश्चिम दिशा में कटारमल नामक गाँव में स्थित यह स्थान बड़ा ही शुरभ्य है चारों ओर की रमणीक पर्वत मालाओं के मध्य स्थित भगवान सूर्य को समर्पित इस मंदिर के निर्माण के बारे में कहा जाता है इस मंदिर का निर्माण कत्यूरी राजा बंसत देव के पुत्र कटारमल्ल देव ने करवाया इस मंदिर के संदर्भ में अनेकों दंत कथायें भी प्रचलित है

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यह कुमांऊॅं के विशालतम ऊँचे मन्दिरों में से एक है अपनी अद्भूत व विलक्षण स्थापत्य एवम् शिल्प कला का बेजोड़ उदाहरण होने से समुद्र सतह से लगभग 2115 मीटर की ऊँचाई पर पर्वत की चोटी पर स्थित यह मंदिर समूचे विश्व में प्रसिद्ध है अल्मोड़ा से लगभग 15 किमी के पश्चात् कुछ दूरी पैदल भी तय करनी पड़ती है/// @ रमाकान्त पन्त///

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