राप्ती नदी के तट पर माँ गंगा की आराधना कर लोक मंगल की कामना की सत्य साधक ” गुरु जी ” ने, इसी नदी के तट पर कर चुके है दो हजार से अधिक हवन यज्ञ

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बहराइच/ श्रावस्ती, बड़ी से बड़ी समस्याओं से त्वरित मुक्ति पाने तथा जीवन में सुख, समृद्धि, यश – वैभव, सम्मान व परम शान्ति प्राप्त करने हेतु कलिकाल में माँ पीताम्बरी देवी ( बगलामुखी ) का अखण्ड धवन- यज्ञ सबसे सहज,उत्तम और आसान मार्ग है। यह बात यहाँ राप्ती नदी के तट पर हवन यज्ञ करनें पहुंचें सत्य साधक ” गुरुजी ” ने माँ गंगा की आराधना के बीच परिचर्चा के दौरान कही इससे पूर्व उन्होंनें यहाँ विराट यज्ञ का आयोजन किया
अपने उद्‌बोधन में सत्य साधक ” गुरुजी ” ने कहा कि मानव जीवन में यदि समस्याएं हैं तो उन समस्याओं के समाधान भी अवश्य हैं। हर अलग समस्या के निराकरण हेतु जन साधारण स्वभाव वष अलग – अलग विधि- विधान का सहारा लेता है। श्री गुरुजी ने कहा कि इस प्रकार से समस्या ग्रस्त लोगों के समय व श्रम की बर्बादी होती है और परिणामस्वरूप समस्याएं उत्तरोत्तर विकट होती चली जाती हैं। उन्होंने कहा कि कलयुग में दश महाविद्याओं में आठवीं प्रमुख महाविद्या पीताम्बरी ( बगलामुखी ) देवी हैं, जिन्हें मूलतः तंत्र की देवी माना गया है। इस अवसर पर उन्होंनें राप्ती नदी के महत्व पर भी प्रकाश डालते हुए कहा लोक कल्याण की दृष्टि से माई पितांबरी को समर्पित हवन, यज्ञ का अभियान निरंतर जारी है। बीते माह देश के अनेक भागों में विराट हवन यज्ञ आयोजित कराने के पश्चात भक्तों के कल्याण के लिए बलरामपुर के निकट राप्ती नदी के तट पर विगत दिवस पुनः लोकमंगल के लिए माँ का विराट यज्ञ आयोजित किया गया, इस यज्ञ में अनेक श्रद्धालुओं ने भाग लेकर माई पीतांबरी की कृपा को प्राप्त किया यज्ञ से अभिभूत भक्तजनों ने कहां की माँ पीतांबरा के यज्ञ में आहुति प्रदान करने के पश्चात मन को निराली शांति की प्राप्ति होती है तथा उत्साह का संचार होता है श्री गुरुजी ने कहा कि इस नदी का प्राचीन नाम इरावती नदी है यह नदी धर्म व आध्यात्म का महासंगम मानी जाती है। बहराइच, गोंडा, बस्ती और गोरखपुर ज़िलों में बहती हुई बरहज के निकट यह लगभग 640 किमी० लम्बी पावन नदी घाघरा नदी से मिल जाती है उन्होंनें बताया भगवान बुद्ध से भी इस नदी की कहानी जुड़ी हुई है
हवन व माँ गंगा के पूजन के पश्चात् सत्य साधक श्री बिजेन्द्र पाण्डेय गुरुजी ने कहा माई पीताम्बरी स्तम्भन की देवी हैं। सारे ब्रह्माण्ड की शक्ति मिल कर भी इनका मुकाबला नहीं कर सकती मंगलयुक्त चतुर्दशी की अर्धरात्रि में इसका प्रादुर्भाव हुआ माई को ब्रह्मास्त्र के नाम से भी जाना जाता है माई पीतांबरी से की गयी कोई पुकार कभी अनसुनी नहीं होती राजा हो या रंक, मां के नेत्र सभी पर एक समान कृपा बरसाते हैं
भगवती पीताम्बरी की उपासना करने वाले साधक के सभी कार्य बिना व्यक्त किये पूर्ण हो जाते हैं और जीवन की हर बाधा को वो हंसते हंसते पार कर जाता है

गुरुजी ने कहा कि बहुत से साधक मॉ बगलामुखी के उग्र स्वरूप की साधना करके अनेक दुर्लभ सिद्धिया जैसे मारक, सम्मोहन वशीकरण, उच्चाटन आदि सिद्धियां प्राप्त करते हैं, जबकि ऐसे भी साधक है जो मॉ बगलामुखी के पीताम्बरी स्वरूप अर्थात करुणा की देवी के रूप में पूजन-अर्चन तथा साधना करते हैं। उन्होंने कहा कि यद्यपि साधना के दोनों ही मार्ग कठिन हैं लेकिन पीताम्बरी स्वरूप की साधना मॉ के प्रति सच्ची श्रद्धा रखने वाला कोई भी व्यक्ति कर सकता है और माता पीताम्बरी देवी की पावन करुणा को सिद्ध कर लोक कल्याण करने में समर्थ हो जाता है।
श्री गुरु जी ने कहा कि मॉ पीताम्बरी देवी का नाम जप और मंत्र जप करते हुए दस से बारह घंटों तक अखण्ड हवन – यज करने मात्र से विकट से विकट स्थिति में घिरे लोगों पर करुणा की देवी मॉ पीताम्बरी कृपा कर देती हैं और उनकी हर परेशानियों को दूर कर सुख-समृद्धि, यश – वैभव तथा सर्व विध उन्नति का मार्ग प्रशस्त कर देती हैं।
सत्य साधक गुरुजी ने आगे कहा कि माँ पीताम्बरी देवी का अखण्ड हवन-यज्ञ एक आध्यात्मिक विज्ञान है, जिसके प्रभाव से श्रद्धालु भक्तों के साथ – साथ समूचे क्षेत्र के जीव मात्र का भी कल्याण हो जाता है और हर तरफ मंगल व आनन्द का वातावरण निर्मित होता है।
यहाँ यह उल्लेखनीय है कि माँ पीताम्बरी देवी की साधना से प्राप्त सिद्धियों से सत्य साधक “गुरुजी ” बीते तीस वर्षों से लगातार परेशानियों में घिरे लोगों की समस्याओं का समाधान करते आ रहे हैं। साधना की शक्ति से लोक कल्याण करते हुए नशामुक्त समाज का निर्माण करना ही उनके जीवन का लक्ष्य रहा है। अपने तीस वर्षों की साधना यात्रा में गुरुजी जी हवन – यज्ञादि के माध्यम से अब तक लाखों लोगों का जीवन बदल चुके हैं। अब तक उत्तर भारत के अलग – अलग राज्यों के अलग-अलग धर्म स्थलों और शक्ति पीठों में गुरुजी माँ पीताम्बरी के तीन हजार से भी अधिक बड़े हवन सम्पन करा चुके हैं। सभी हवन – यज्ञ के अनुष्ठान 10 से 12 घंटों तक अखण्ड रूप से सम्पन्न किये जाते हैं । हवन – यज्ञादि से पूर्व गुरु जी तीन दिन से लेकर तीन माँह की अखण्ड साधना करते हैं। दैहिक, दैविक व भौतिक तापों से ग्रस्त लोगों की समस्यानुसार साधना व हवन की समयावधि निश्चित होती है और उसी के अनुरूप यज्ञ सामग्री की भी आवश्यकता होती है।
यहाँ यह भी बताते चलें कि अयोधया में श्री राम मन्दिर पर निर्णय आने से पूर्व गुरु जी ने यहाँ हनुमान गढ़ी में 36 घंटों की अखण्ड साधना कर बारह घंटों का हवन – यज्ञ सम्पन्न किया था।

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अपनी तीन दशक की साधना यात्रा में सत्य साधक ” गुरुजी ” देवभूमि उत्तराखण्ड समेत उत्तर प्रदेश, राजस्थान, मध्य प्रदेश, दिल्ली, हिमांचल, हरियाणा, पंजाब, छत्तीसगढ़ , गुजरात, महाराष्ट्र आदि राज्यों के तीन हजार से अधिक तीर्थों, पौराणिक धर्म स्थलों और शक्तिपीठों में लम्बी साधना और बड़े स्तर के अखण्ड हवन – यज्ञ करा चुके हैं। इसके अलावा पवित्र नदियों के तटों पर साधना के बाद हजारों की संख्या में हवन-पूजन, यज्ञ आदि सम्पन्न कर चुके हैं। अकेले श्रावस्ती जनपद में ताप्ती नदी के तट पर दो हजार हवन दिन और रात्रिकाल में सम्पन्न कराये हैं। मध्य प्रदेश के दतिया में, उत्तराखण्ड के बद्रीनाथ, मलयनाथ मन्दिर डीडीहाट, हरिद्वार, ऋषिकेश, पाताल भुवनेश्वर, कमस्यार घाटी स्थित भद्रकाली धाम, रानीबाग स्थित शीतला माता मन्दिर, च्यूरीगाड़ देवी मन्दिर, लालकुआं के फलाहारी आश्रम, द्रोणा गिरि, कालीमठ, काली चौड़, अवन्तिका शक्तिपीठ,टिहरी के बगुली धार, भिलेश्वर मन्दिर समेत सैकड़ों धर्म स्थलों में लम्बी साधना व हवन अनुष्ठान कराये हैं। उत्तर प्रदेश में अयोध्या के अलावा मथुरा, वृदावन, काशी, प्रयाग राज, सोनभद्र, विन्ध्य वासिनी के अलावा ज्यादातर बड़े नगरों में हवन आदि करा चुके हैं।
हवन-पूजन, यज्ञादि में सामान्यतः जौ, तिल, राई, कपूर, हींग, इलायची, लोंग, सेमल फूल, टेसू, मदार, काली मिर्च, बरगद, कमल गट्टा, देशी घी आदि सामग्रियों का प्रयोग होता है लेकिन कुछ विशेष हवन के लिए कुछ अन्य विशेष सामग्री का भी प्रयोग किया जाता है।
कुल मिलाकर सत्य साधक गुरुजी वर्ष भर कहीं न कहीं धार्मिक स्थल पर मॉ पीताम्बरी की साधना में रत रहते हुए समाज में व्याप्त बुराइयों तथा लोगों की हर छोटी बड़ी समस्या का समाधान पीताम्बरी ( बगलामुखी ) अनुष्ठान के जरिये करते आ रहे हैं और किसी भी कारण से परेशान लोगों को राहत दिलाने में सदैव सुलभ रहते हैं।

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