हल्द्वानी। रिम्पी बिष्ट
पूर्व जिला आयुर्वेद अधिकारी/पर्यावरण कार्यकर्ता डॉ आशुतोष पंत ने कहा कि उत्तराखंड सरकार के द्वारा चीड़ की सूखी पत्तियों को 50 रुपये किलो में खरीदने का निर्णय स्वागत योग्य है. अधिक आय के लिए ग्रामीण इसे इकट्ठा करेंगे तो य़ह जंगल की आग को नियन्त्रित करने में सहायक होगा. पर्वतीय क्षेत्र में पिछले लगभग एक महीने से जंगल धू धू कर जल रहे हैं. यहां आग लगने के पीछे कारण आदमी ही होते हैं. कुछ अनजाने में आग लगाते हैं तो कुछ जानबूझकर. य़ह आग एक बार लग जाये तो इसके फैलने का एक बहुत बड़ा कारण चीड़ की सूखी पत्तियाँ होती हैं. इनमें काफी मात्रा में ज्वलनशील तेल होता है जिसके कारण आग बहुत जल्दी बड़े क्षेत्र में फैल जाती है. पहले पिरूल की क़ीमत 3 रुपये किलो निर्धारित थी तो लोग इसे इकट्ठा करने में रुचि नहीं लेते थे अब 50 रुपये किलो खरीद मूल्य होने पर उम्मीद है इसका अधिक उठान होगा तो प्रत्यक्ष रूप से दावानल पर नियन्त्रण होने की सम्भावना बनेगी.
आग लगाने वालों के विरुद्ध भी सरकार कठोर कार्यवाही कर रही है य़ह अच्छी पहल है. मेरा तो मानना है कि वनों में आग लगाने वालों पर हत्या के अभियोग में कार्यवाही होनी चाहिये. पेड़ पौधों में भी जीवन होता है, इसके अलावा जंगल की आग में हज़ारों छोटे बड़े जानवर, पक्षी, उनके बच्चे जलकर मर जाते हैं. इन सबकी हत्या के लिए जिम्मेदार लोगों को कडी से कड़ी सजा मिलनी चाहिए ताकि औरों के लिए भी मिसाल बने. मुख्यमंत्री जी से मेरा निवेदन है कि आपने पिरूल के दाम बढ़ाने का एतिहासिक निर्णय लिया है पर आपको खुद मॉनिटरिंग करनी होगी कि जल्दी से जल्दी शासनादेश निर्गत हो जाए कहीं ऐसा ना हो कि लालफीताशाही के कारण फाइल सचिवालय में ही घूमती रह जाए और फायर सीजन बीत जाए.
मेरा सभी से अनुरोध है कि जहाँ भी जंगलों में आग लगी देखें उसे बुझाने का भरसक प्रयास करें. ये ना समझें कि य़ह वन विभाग का ही काम है. उनकी तो ड्यूटी है ही पर उनके पास स्टाफ सीमित होता है. जिस दौरान आग की घटनाएं बहुत ज्यादा हो रही होती हैं तो सब जगह उनका पहुँच पाना सम्भव नहीं हो पाता है. जब तक उन्हें सूचना मिलेगी तब देर भी हो सकती है. विनाश को रोकना सभी का कर्तव्य है देखकर भी अनदेखी नहीं करनी चाहिए. अगर शुरुआत में प्रयास किया जाय तो बहुत आसानी से आग पर काबू पाया जा सकता है, एक बार आग फैल गयी तो फिर बहुत बड़ा नुकसान करती है. रुद्रपुर में नियुक्ति के दौरान मेरा अक्सर टांडा जंगल से गुजरना होता था. अपने स्टाफ दिनेश कुमार के सहयोग से मैंने तीन बार आग बुझाने का प्रयास किया. दो बार तो आग की शुरुआत थी तो हम सफ़ल भी हुए. खास बात य़ह है कि उस दौरान उस रोड से सैकड़ों गाड़ियां गुजरी पर किसी ने रोककर सहायता करने के बारे में नहीं सोचा. य़ह उदासीनता ठीक नहीं है देश की सम्पत्ति को बचाने का प्रयास सभी को फर्ज समझ कर करना चाहिये.
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