दुर्लभ रहस्यः भृगु ऋषि ने कुमाऊँ के इस पर्वत पर की थी तपस्या

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भृगुतुम्ब(पिथौरागढ़)/ जनपद पिथौरागढ़ के गंगावली क्षेत्रं में मल्लागर्खा के समीप स्थित भृगु ऋषि की तपोभूमि तीर्थाटन एंव पर्यटन की परिधी से कोसों दूर है।बदहाली का आलम यह है,कि गुफा तक पहुचने का मार्ग भी जीर्ण क्षीर्ण होकर घोर उपेक्षा की दास्तां बयां कर रही है।

सनातन धर्म के सजग प्रहरी महार्षि भृगु के बारें में पुराणों में अनेक स्थानों में कथा आती है।विश्व प्रसिद्व गुफा पाताल भुवनेश्वर के निकट होनें के बावजूद यह सौदर्यशाली पर्वत व पर्वत की चोटी पर स्थित भृगुऋषि की तपस्थली गुफा गुमनामी के साये में गुम है।जबकि पाताल भुवनेश्वर के साथ साथ भृगुतम्ब का भी वर्णन आता है।भृगुतीर्थ के रुप में यह स्थान पुराणों में सुनहरें शब्दों में वर्णित है।महार्षि वेद व्यास जी ने स्कंद पुराण के मानस खण्ड़ के एक सौ व एक सौ एक अध्याय में इस महानतम पवित्र क्षेंत्र का वर्णन करते हुए लिखा है।*शैल पर्वत के उत्तरस्थ में भुवनेश्वर के निकट पर्वत के शिखर पर शोभायमान भृगुपुण्य आश्रम है।*जिसके दर्शन से महाभयंकर पापों का विनाश हो जाता है।* भृगुपुण्याश्रमं दृष्टवा मानवानां *दुरात्मनाम्।पातकानां प्रणाशाय भृगुपुण्याश्रमं बिना।।*
*यत्र पापान्यनेकानि जन्मान्तरकृतानि च।विलीयन्ते न सन्देहो दृष्ट्वा पुण्याश्रमं भृगोः*

इस स्थान पर महार्षिभृगु ऋषि ने अनेक महातपोशाली ऋषियों के साथ बारह वर्ष तक भगवान शिव की तपस्या की उनके तप के प्रभाव से यह स्थान पुण्यशील तीर्थ के रुप में पुराणों में प्रसिद्व है।ब्यास जी ने तो भुवनेश्वर के निकट इस तीर्थ की महिमां को इतना प्रभावशाली बताया है कि यहां के दर्शन से जन्म जन्मान्तरों के पापों का क्षण भर में नाश हो जाता है।भृगुतम्ब (भृगुतंग) की गुफा को पुराणों में भार्गवी कहा गया है।इसी गुफा में ऋषि भृगु ने त्रिदेव की आराधना कर उन्हें प्रसन्न किया इसलिएं यहां तीनों देवताओं का साक्षात् वास माना जाता है।यहां पर की गई शिव पूजा से प्राणी के सभी मनोरथ पूरे हो जाते है।

भृगुतम्ब क्षेत्रं के बारें में अनेकों कथायें प्रचलित है।जिनमें से एक पौराणिक कथा इस प्रकार है,,,,,कहा जाता है कि एक बार हिमालयी क्षेत्रं में भारी अकाल पड़ गया था।

बारह़ वर्ष तक वर्षा न होनें से पशु पक्षी व पृथ्वी पर रहने वाले प्राणियों के सम्मुख अन्न जल,कन्दमूल फल आदि का भयंकर अभाव हो गया। हिमालयी क्षेत्रं में आये अकाल से समूची धरती त्राहिमाम हो उठी थी।शिव प्रेरणा से प्रेरित होकर भुगृ ऋषि ने हिमालय की ओर प्रस्थान किया। भुवनेश्वर गुफा के समीप आकर वे शिव महिमां से इस क्षेत्र की भव्यता को देखकर मोहित हो उठे और भगवान भुवनेश्वर के दर्शन ने तो उनकी दिशा ही बदल दी।वे पूर्ण रुप से उन्हें सर्मर्पित हो गये।जन कल्याण की भावना से उन्होने भृगुतुंग नामक स्थान पर महादेव की घोर आराधना करके उन्हें प्रसन्न किया तथा हिमालय भूमि में ब्याप्त अकाल को दूर करवाया।ऋषि भृगु की तपस्या के प्रभाव से सभी प्राणी वनचर जीव जन्तु सभी निहाल हो उठे।शिवजी ने प्रसन्न होकर मन्दाकिनी के पवित्र जल को इस क्षेत्र में पहुंचा दिया ।जो भार्गवी नदी के नाम से प्रसिद्व हुई इसका जल इतना पावन व निर्मल है।कि स्पर्श करते ही समस्त संतापों का हरण कर लेती है।इसको सर्वगगंगा के नाम से भी पुकारा जाता है।इसकी महत्ता का विस्तार करते हुए मानस खण्ड में श्री व्यास जी लिखते है।इसमें स्नान करने के पश्चात् पश्चम भाग में देवी का पूजन करने से बाजपेय यज्ञ का फल मिलता ऐसा पुराणों में वर्णित है।लेकिन वर्तमान में इस गुफा के समीप जल का अकाल है।धार्मिक आयोजनों के अवसर पर लोग पाचॅं पांच किलोमीटर दूर से कनस्तरों से जल लाते है।

इस क्षेत्रं की महिमां के बारे में कहा गया है।महाकाल व जयतीं माता की पूजा अर्चना के साथ पश्चम में स्थित शिव भक्त घंटाकर्ण नामक गणनायक व सुरभी के पूजन से यमलोक से छुटकारा मिल जाता है।शिव भक्त भृगुऋषि के पूजन के साथ स्कन्दि व रिटि और रामगंगा के समीप स्थित हाटकेश्वर की स्तुति सद्गति को प्रदान करने वाली कही गयी है।भृगु आश्रम में सिद्व,गन्धर्व,नाग,मुनि,देवता और पितृगण सभी निवास करते है।महार्षि भृगु ऋषि के बारे में कहा जाता है।इनकी दो पत्नी थी एक कर्दम की पुत्री ख्याति दूसरी पुलोमा की पुत्री परशुराम भी इसी वशं के थे।माना जाता है।इसी स्थान पर निद्रायोग में लीन भगवान विष्णु की छाती में इन्होंने लात मार दी थी

योगेश्वर भगवान विष्णु की विनम्रता ने इनको अत्यधिक प्रभावित किया तथा ये भगवान बिष्णु के अनन्य भक्त बन गये थे।भृगुतम्ब गुफा में भृगृ का पाद चिन्ह भगवान बिष्णु के बक्षः पर अंकित है।यह भक्ति उन्हें शिव लीला व उनकी कृपा से प्राप्त हुई।कहते है कि भृगुपर्वत के शिखर पर राजा सगर ने अपनी दोनों पत्नीं केशिनी व सुमति ने इसी पर्वत पर सौ वर्ष तक तपस्या की ऋषि भृगु ने इन्हें अनेक पुत्र की प्राप्ति का वरदान दिया। चिटगल,पाली,अग्रौन,पोखरी,मल्लागर्खा,जीवल,भुवनेश्वर,गनौरा,उपराड़ा,जजुट,हटकेश्वर,तामानौली,व्यौल,पोखरी आदि क्षेत्र के लोग कभी कभार इस स्थान पर आकर दिया बाती कर गुफा के दर्शन करते है।पाताल भुवनेश्वर से लगभग तीन किमी की दूरी पर स्थित नन्दिकेश्वर मंदिर के पास से लगभग चार किमी पैदल चढ़ाई के पश्चात् चोटी पर भृगुआश्रम गुफा के दर्शन किये जा सकते है।इस गुफा के निचली घाटी पर चारों ओर देवस्थलों की भरमार है।यदि इस क्षेत्र को तीर्थ स्थल के रुप में विकसित किया जाएं तो महानतम क्षेत्रं चण्डिका घाट,व हटकेश्वर सहित गंगावली का यह भूभाग आगन्तुकों के लिए अलौकिक सौगात सिद्ध होगा भृगु ऋषि त्रिकाल दर्शी के साथ साथ ज्योतिष विद्या में भी पारागतं थे।ब्रहमा के मानस पुत्रों में ये एक थे।अंगिरा ऋषि इनके बड़े भाई थे। अत्रि, मरीचि, दक्ष, वशिष्ठ, पुलस्त्य, नारद, कर्दम, स्वायंभुव मनु, कृतु, पुलह, सनकादि ऋषि इनके भाई हैं। ये विष्णु के श्वसुर और शिव के साढू थे। महर्षि भृगु को भी सप्तर्षि मंडल में स्थान मिला है।इनके पुत्र धाता और विधाता एंव पुत्री भार्गवी की गिनती भी महान् शिव भक्तों में होती है।
* महर्षि भृगु की पहली पत्नी का नाम ख्याति था, जो दक्ष की कन्या थी।और सती की बहिन इस नाते ये भगवान शिव के साढू हुए ख्याति से भृगु को दो पुत्र दाता और विधाता मिले और एक बेटी लक्ष्मी का जन्म हुआ। लक्ष्मी का विवाह उन्होंने भगवान विष्णु से हुआ इस नाते ये भगवान विष्णु के श्वसुर हुए।महान शिव भक्त मार्कण्डेय ऋषि भी इन्हीं के वशं में उत्पन हुए ।महर्षि चव्यन भी इनके पुत्र थे।इनके और भी पुत्रों का जिक्र पुराणों में आता है।मान्यता है कि ऋषि भृगु ने भृगु संहिता की रचना इसी भृगुतम्ब में की की। अग्नि तत्व के भी ये परम ज्ञाता माने गये।आग को प्रज्जवलित करनें की कला का ज्ञान संसार को इन्होनें ही सिखाया।संजीवनी विद्या भी इनके परिश्रम का प्रताप है।इस विद्या में इन्होनें अपने पुत्र शुक्राचार्य को पारांगत किया।
कुल मिलाकर गंगोलीहाट क्षेत्रं की भृगुतम्ब गुफा पौराणिक दृष्टि से अति महत्वपूर्ण है।

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