पालडी/सुयालबाड़ी (नैनीताल)/हिमालय भूमि की आध्यात्मिक चेतना विराट है जितनी विराट यहां की यह धार्मिक चेतना है। उतनी ही विराट यहां के आध्यात्मिक स्थलों की महिमा है। यहां के पावन स्थल सदा ही ऋषि मुनियों की आराधना और तपस्या का केंद्र रहे है।इन स्थलों पर पहुंचकर आत्मा दिव्यता का अनुभव करती है,पुराणों में वर्णित इन स्थलों की महिमा का वर्णन अपने आप में अतुलनीय ही नहीं बल्कि आदितीय है ।
उत्तराखंड में पर्यटन विकास की बातें व तीर्थाटन को विकसित किए जाने की बातें कई सालों से हो रही है। राज्य निर्माण से पहले भी केंद्र एवं प्रदेश सरकार (उत्तर प्रदेश) इन बातों को बखूबी के साथ प्रसारित करती रही। उत्तरांखण्ड़ के आर्थिक सामाजिक विकास में पर्यटन उद्योग व तीर्थाटन उद्योग सबसे महत्वपूर्ण है। इनके विकास की बड़ी बड़ी घोषणाएं आये दिन होती रहती है। घोषणाओं का लगातार अंबार राज्य गठन के साथ लगातार होता आया है।लेकिन जमीनी हकीकत यह है,कि राज्य में पर्यटन एंव तीर्थ स्थलों का विकास स्थापित हिल स्टेशनों से आगे नहीं बढ़ सका अनेक क्षेत्रों में स्थित पावन स्थल आज भी अपनी विशेष पहचान को छटपटा रहे हैं।
सनातन संस्कृति के यह पावन स्थल ग्रामीणों की पूजा स्थल तक ही सीमित रह गए हैं ।जबकि इन पावन स्थलों का महत्व अपने आप में एक गौरवशाली इतिहास को समेटे हुए हैं ।
ऐसे ही आध्यात्मिक गौरव का प्रतीक नैनीताल जिले के बस गांव,पालडी में स्थित गुप्तकाशी है।जो प्रचार-प्रसार के अभाव में लोगों से दूर है।इस पावन गुप्तकाशी की महिमा का महत्व समूचे उत्तराखंड के तीर्थ स्थलों में अद्भुत है*लोगों के सुख दुख में सदा अहम् भागीदारी निभानें वाले निस्वार्थ कर्मयोगी क्षेत्रं के वरिष्ठ समाज सेवी कृष्णा काण्डपाल बताते है।श्रद्वा व भक्ति का संगम गुप्तकाशी में एक छोटा सा नौला नुमा कुण्ड़ है।जो श्रद्वा व आस्था के साथ महान आश्चर्य का प्रतीक है। आश्चर्य वाली अद्भुत बात यह है,कि इस कुंड का जल गंगा, प्रयाग,काशी के समान ही पूज्यनीय माना जाता है। उससे भी महत्वपूर्ण बात यह है ,कि इस छोटे से नौलेनुमा जलकुंड में यदि हजारों व्यक्ति एक साथ स्नान करें तो भी इस का जल स्तर कभी घटता नहीं है मान्यता है कि यहां के गुप्तकाशी में स्नान करने से समस्त तीर्थों के स्नान का फल प्राप्त होता है और यहां पर विधि पूर्वक स्नान करने पर मानव के शरीर के विकारों का भी हरण होता है।और असीम आनन्द की प्राप्ति होती है। नैनीताल जिले के सुयालबाड़ी के निकट बसगाँव के अन्तिम छोर तोक में स्थित इस गुप्तकाशी की महिमा को लेकर जनमानस में अनेक प्रकार की दंतकथाएं प्रचलित हैं ।जो आस्था की महान धरोहर बनकर शब्दों के रूप में प्रकट होती है।
बस गांव के गुप्तकाशी के बारे में कहा जाता है,कि एक बार एक सिद्ध संत महात्मा भगवान भोलेनाथ की नगरी काशी से कैलाश भूमि की यात्रा पर एक मटके में जल लेकर चले तथा उन्होंने लोक कल्याण के लिए यह संकल्प लिया कि हिमालय भूमि में यह जल किसी सिद्ध स्थान पर पहुंच कर भगवान भोलेनाथ को समर्पित करूंगा लेकिन जब वह यहां पहुंचे तो दैवीय कृपा से यह मटका फूट गया मटके के फूटते ही संत को यह आभास हो गया कि यह पावन क्षेत्र जरूर ही काशी के समान पूजनीय है।इसलिए यह मटका यहां पर फूटकर खुद ही भूमि देवता को समर्पित हो गया है।अपनी भावनाओं की परख व मन में उत्पन्न शंका को दूर करनें के लिए।व भूमि की पवित्रता एंव महत्वता को जांचने-परखने के लिए अपने सिद्धि के बल पर विनय पूर्वक शिवजी को साक्षी मानकर उस साधु ने यह वचन कहे कि हिमालय भूमि और प्रकृति के देवताओ यदि भगवान शिवजी के प्रति मेरी भक्ति और निष्ठा अचल है ।और काशी का यह जल परम पवित्र है तो यह स्थान काशी के समान महापूज्य हो इस पावन भूमि में ऐसा जल कुंड प्रकट हो जिसका जल न कभी घटे और न ही बढ़े इस जल से स्नान काशी सहित समस्त तीर्थों के दर्शन व स्नान का फल प्रदान करने वाला हो
कहा जाता है,कि इतना कहते ही शिवभक्त की भक्ति के प्रताप से यहां सुन्दर व छोटा सा जलकुण्ड़ प्रकट हुआ जिसे गुप्तकाशी नाम दिया गया।गुप्तकाशी के इस पावन कुंड का जल आज भी श्रद्वा,आस्था,व भक्तिभावना के साथ गंगा जल के समान परम पूज्यनीय है।विभिन्न धार्मिक अवसरों पर यहां मेलों का आयोजन होता है।जिसमें क्षेत्र के आसपास के ग्रामीण जन भारी संख्या में भाग लेते हैं ।
कुल मिलाकर बस गांव की यह गुप्तकाशी गुमनामी के साए में दम तोड़ रही है तथा पहचान से कोसों दूर है यदि सरकार इसे तीर्थाटन की दृष्टि से विकसित करें तो यह प्रमुख तीर्थ स्थल के रूप में विकसित हो सकता है।हिमालय की भूमि पर स्थित बसगांव को यहां के लोग काशी के समान पूजनीय मानते हैं।यहां स्थित शिवालय के दर्शन के बारे में कहा जाता है,कि इस शिवालय के दर्शन से सर्वसौभाग्य का उदय होता है। गुप्तकाशी की महिमा के बारे में पुराणों में अनेक स्थान पर वर्णन आया है ।एक स्थान पर तो स्वयं भगवान स्कंद जी ने कहा है
काश्यां समं पंर क्षेत्र यन्मया न प्रकाशितम्य हां यह भी बताते चले कि गुप्तकाशी का एक प्रमुख पीठ भगवान भोलेनाथ जी का दरबार केदारमण्डल क्षेत्र में स्थित है रमणीक पर्वत मालाओं के मध्य शिवजी का यह गुप्त स्थान मोक्षप्रदान करने वाला कहा गया है बाबा विश्वनाथ की विराट महिमां को समेटे इस शिव दरबार की महिमा का बखान शिव पुत्र स्कन्द ने सबसे पहले महर्षी अगस्त्यऋर्शि को बताते हुए कहा हे अगस्त्य कैलाश भूमि पर एक मोक्षदायक श्रेष्ठ क्षेत्र है जो काशी के समान परम पूज्जयनीय व पावन है यहां जो भी मनुष्य भक्ति भाव से शंकर भगवान की पूजा अर्चना करता है वह परम कल्याण को प्राप्त होता है
इसी भाति परम गुप्त काशी के नाम से प्रसिद्व गुप्तकाशी वसगॉव तक पहुचने के लिए हल्द्वानी से सुयालवाड़ी होते ढोकानी होते हुए यहां पहुचां जा सकता है।बसगॉव पालडी में स्थित इस स्थान की दूरी सुयालवाड़ी से लगभग बारह किमी है।कासननदी के तट पर स्थित इस गुप्त क्षेत्र तक पहुचने के लिए तीन किलोमीटर तक का पैदल सफर तय करना पड़ता है।
सुयालवाड़ी,छिमी,मटेला,तवालेख,हरतोला,सिमराड़,बांज,टिकुरी,पाथरी,विचखाली सहित विभिन्न क्षेत्रों से पूजा अर्चना के लिए समय समय पर यहां भक्तों का आवागमन लगा रहता है।यहां स्थित शिवालय व देवी मन्दिर में पूजा अर्चना का दायित्व पाण्डे व कांडपाल लोग संभाले हुए है
क्षेत्र के आस्थावान भक्त कृष्ण काण्डपाल व नीरज सुयाल बताते है बस गांव में गुप्तकाशी नामक यह जलकुंड अलौकिक शक्ति वाला क्षेत्र है आसपास देव स्थलों की लंबी श्रृंखलाएं मौजूद हैं। कुछ दूरी पर स्थित भूमिया देवता का मंदिर समूचे क्षेत्र में प्रसिद्ध है। साथ ही लोकं देवताओं के मंदिरों की लंबी श्रृंखला आसपास की घाटियों में मौजूद है यदि इन घाटियों व पर्वतों में स्थित देव दरबार को जनमानस के बीच में लाने के लिए विशेष रूप से प्रचार एवं प्रसार की योजना बने तो ये सभी देव दरबार तीर्थाटन का पावन व प्रमुख केंद्र बन सकते हैं
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