रुड़की का प्राचीन सिद्धेश्वर महादेव जी का मन्दिर आस्था व भक्ति का अलौकिक संगम है श्रावण माँह में भगवान शिव का जलाभिषेक करनें को यहाँ भक्तों की अपार भीड़ उमड़ी रहती है बड़े ही श्रद्धा भाव के साथ दूर-दराज क्षेत्रों से भक्तजन यहाँ दर्शनों को आते है सिद्वेश्वर महादेव की यह पावन स्थली परम पूज्यनीय है
यहाँ सिविल लाइन्स में स्थित यह मन्दिर काफी प्राचीन मंदिरों में एक है यह स्थान काफी मनमोहक है मंदिर की भव्यता बरबस ही भक्तो को अपनी ओर आकर्षित करती है मंदिर में इन दिनों भांति-भांति प्रकार से यहाँ शिवजी का पूजन होता है
भारत भूमि में सिद्धेश्वर महादेव जी के अनेको मंदिर है जो विभिन्न रूपों में शिव महिमां की गाथाओं को अपनें आप में समेटे हुए है रुड़की का शिव मंदिर भी अलौकिक गाथा का प्रतीक है मान्यता है इस मंदिर के दर्शन से . प्राणियों के सभी अमंगल दूर होते है
वैसे तो यहाँ वर्ष भर दर्शनाथियों का तांता लगा रहता है लेकिन श्रावण मास में अपार संख्या में भक्तजन यहाँ पधारते है
प्राचीन मान्यताओं के अनुसार, सावन का माँह भगवान शिव को विशेष रूप से प्रिय है शिवजी को जहाँ कल्याण के देवता कहा जाता है वही इन्हें जलधारी देवता भी कहा जाता है, जो कि खासतौर से वर्षा के देवता हैं इस महीने में भगवान शिव की विशेष पूजा-अर्चना की जाती है, रुड़की के इस शिवालय में जलाभिषेक का विशेष महत्व है कहा जाता है सावन के महीने में जो भी भक्त पूरी श्रद्धा और भक्ति के साथ यहाँ शिवजी की पूजा करता है और उनके निमित्त शिव पूजन करता है, उसकी सभी मनोकामना पूरी हो जाती हैं
पौराणिक कथाओं के अनुसार, समुद्र मंथन के दौरान जब महा भयंकर हलाहल नामक विष निकला था तो सारी सृष्टि त्राहिमाम हो उठी थी तो सृष्टि की रक्षा करने के लिए भगवान शिव ने हलाहल विष को पीकर उसे कण्ठ में ग्रहण कर लिया था, जिस कारण भोलेनाथ का गला नीला पड़ गया, इसलिए भगवान शिव को “नीलकंठ” भी कहा जाता है सावन महीने में भगवान शिव के गले में विष का प्रभाव कम करने के लिए देवताओं ने जल अर्पित किया जिससे हलाहल विष शांत हो जाए ऐसा कहा जाता है कि इसके बाद से ही सावन में शिवजी को जल चढ़ाने की परंपरा की शुरुआत हुई थी भगवान के जलाभिषेक का यही सुन्दर स्वरूप सावन को यहाँ देखनें को मिलता है
कुल मिलाकर रुड़की का सिद्धेश्वर मंदिर भक्तजनों के लिए भगवान शिव की अनुपम भेंट है
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